प्राचीनकालमें शिक्षा का उद्देश्य बालकों के मस्तिष्क में मात्र कुछ जानकारियाँ भरना होता था, किन्तु आधुनिक शिक्षा शास्त्र में बालकों के सर्वागीण विकास परजोर दिया जाता है, जिसके लिएबाल मनोविज्ञान की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है।
वर्तमानसमय में बालकों के सर्वागीण विकास के महत्व को समझते हुए शिक्षकों के लिए बालमनोविज्ञान की पर्याप्त जानकारी आवश्यक होती है। इस जानकारी के अभाव में शिक्षक नतो शिक्षा को अधिक-से-अधिक आकर्षक और सुगम बना सकता है और न ही वह बालकों कीविभिन्न प्रकार की समस्याओं का समाधान कर सकता है। इस प्रकार बालकों के मनोविज्ञानको समझते हुए उनके लिए शिक्षा की व्यवस्था करने की आधुनिक शिक्षा प्रणालीबाल-केन्द्रित शिक्षा कहलाती है।
भारतीयशिक्षाविद् गिजू भाई की बाल-केन्द्रित शिक्षा के क्षेत्र में विशेष एवं उल्लेखनीयभूमिका रही है। बाल-केन्द्रित शिक्षा के बारे में समझाने एवं इसे क्रियान्वित रूपदेने के लिए उन्होंने इससे सम्बन्धित कई प्रकार की पुस्तकों की रचना की तथा कुछपत्रिकाओं का भी प्रकाशन किया। उनका साहित्य बाल-मनोविज्ञान, शिक्षा शास्त्र एवं किशोर-साहित्य से सम्बन्धित है। आज की शिक्षा पद्धति बाल-केन्द्रित है।इसमें प्रत्येक बालक की ओर अलग से ध्यान दिया जाता है पिछड़े हुए और मन्दबुद्धितथा प्रतिभाशाली बालकों के लिए शिक्षा का विशेष पाठ्यक्रम देने का प्रयास कियाजाता है।
व्यावहारिकमनोविज्ञान ने व्यक्तियों की परस्पर विभिन्नताओं पर प्रकाश डाला है, जिससे यह सम्भव हो सका है कि शिक्षक हर एक विद्यार्थी कीविशेषताओं पर ध्यान दें और उसके लिए प्रबन्ध करें।
आज केशिक्षक को केवल शिक्षा एवं शिक्षा पद्धति के बारे में नहीं, बल्कि शिक्षार्थी के बारे में भी जानना होता है, क्योंकि आधुनिक शिक्षा विषय प्रधान या अध्यापक प्रधान न होकरबाल-केन्द्रित है। इसमें इस बात का महत्व नहीं कि शिक्षक कितना ज्ञानी, आकर्षक और गुणयुक्त है, बल्कि इसबात का महत्व है कि वह बालक के व्यक्तित्व का कहाँ तक विकास कर पाता है।
बाल-केन्द्रित शिक्षा की विशेषताएँ
किसी भीक्षेत्र में सफलता के लिए शिक्षक को बालकों के मनोविज्ञान की जानकारी अवश्य होनीचाहिए। इसके अभाव में वह बालकों की न तो विभिन्न प्रकार की समस्याओं को समझ सकताहै और न ही उनकी विशेषताओं को, जिसकेपरिणामस्वरूप बालकों पर शिक्षक के विभिन्न प्रकार के व्यवहारों का प्रतिकूल प्रभावपड़ सकता है।
बालक केसम्बन्ध में शिक्षक को उसके व्यवहार के मूल आधारों, आवश्यकताओं, मानसिकस्तर, रुचियों, योग्यताओं, व्यक्तित्वइत्यादि का विस्तुत ज्ञान होना चाहिए। व्यवहार के मूल आधारों का ज्ञान तो सबसेअधिक आवश्यक है,क्योंकि शिक्षा का उद्देश्य हीबालक के व्यवहार को परिमार्जित करना है। अत: शिक्षा बालक की मूल प्रवृत्तियों, प्रेरणाओं और संवेगों पर आधारित होनी चाहिए। व्यवहार के इन मूल आधारों को नईदिशा में मोड़ा जा सकता है, इनका शोधनकिया जा सकता है, इनको बालक में से निकाला जा सकता है। इसलिए सफल शिक्षक इनकेशोधीकरण का प्रयास करता है। बालक जो कुछ सीखता है, उससे उसकी आवश्यकताओं का बड़ा निकट सम्बन्ध है। स्कूल में पिछड़े हुएऔर समस्याग्रस्त बालकों में से अधिकतर ऐसे होते हैं, जिनकी आवश्यकताएँ स्कूल में पूरी नहीं होती। इसलिए वे सड़कों पर लगेबिजली के बल्बों को फोड़ते हैं, स्कूल सेभाग जाते हैं,आवारागदीं करते हैं और आस-पड़ोसके लोगों को तंग करते तथा मोहल्ले के बच्चों को पीटते हैं। मनोविज्ञान के ज्ञान केअभाव में शिक्षक मारपीट के द्वारा इन दोषों को दूर करने का प्रयास करता है, परन्तु बालकों को समझने वाला शिक्षक यह जानता है कि इन दोषोंका मूल उनकी शारीरिक, सामाजिकअथवा मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं में ही कहीं-न-कहीं है। बाल मनोविज्ञान शिक्षक कोबालकों के व्यक्तिगत भेदों से परिचित कराता है और यह बतलाता है कि उनमें रुचि, स्वभाव तथा बुद्धि आदि की दृष्टि से भिन्नता पाई जाती है। अत:कुशल शिक्षक मन्दबुद्धि, सामान्यबुद्धि तथा कुशाग्र बुद्धि बालकों में भेद करके उन्हें उनकी योग्यताओं के अनुसारशिक्षा देता है। शिक्षा देने में शिक्षक को बालक और समाज की आवश्यकताओं में समन्वयकरना होता है। स्पष्ट है कि इसके लिए उसे बालक की पूर्ण मनोवैज्ञानिक जानकारी होनीचाहिए।
Bal kendrit Shiksha ke mahatva ka vistar purvak varnan Karen