भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक
भारत की जलवायु को नियंत्रित करने वाले अनेक कारक हैं जिन्हें मोटे तौर पर दो वर्गों में बांटा जा सकता है-
- स्थिति तथा उच्चावच संबंधी कारक तथा
- वायुदाब एवं पवन संबंधी कारक
स्थिति एवं उच्चावच संबंधी कारक
अक्षांश–
- भारत की मुख्य भूमि का अक्षांशीय विस्तार – 6°4′ उत्तरी अक्षांश से 37°6′ उत्तरी अक्षांश तक एवं देशांतरीय विस्तार 68°7′ पूर्वी देशांतर से 97°25′ पूर्वी देशांतर तक हैं.
- भारत में कर्क रेखा पूर्व पश्चिम दिशा में देश के मध्य भाग से गुजरती है. इस प्रकार भारत का उत्तरी भाग शीतोष्ण कटिबंध में और कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित भाग उष्ण कटिबंध में पड़ता है.
- उष्ण कटिबंध भूमध्य रेखा के अधिक निकट होने के कारण सारा साल ऊंचे तापमान और कम दैनिक और वार्षिक तापांतर का अनुभव करता है.
- कर्क रेखा से उत्तर स्थित भाग में भूमध्य रेखा से दूर होने के कारण उच्च दैनिक तथा वार्षिक तापांतर के साथ विषम जलवायु पाई जाती है.
हिमालय पर्वत–
- उत्तर में ऊंचा हिमालय अपने सभी विस्तारों के साथ एक प्रभावी जलवायु विभाजक की भूमिका निभाता है.
- यह ऊँची पर्वत श्रृंखला उपमहाद्वीप को उत्तरी पवनों से अभेध सुरक्षा प्रदान करती है. जमा देने वाली यह ठंडी पवन उत्तरी ध्रुव रेखा के निकट पैदा होती है और मध्य तथा पूर्वी एशिया में आर – पार बहती है.
- इसी प्रकार हिमालय पर्वत मानसून पवनों को रोककर उपमहाद्वीप में वर्षा का कारण बनता है.
जल और स्थल का वितरण–
- भारत के दक्षिण में तीन ओर हिंद महासागर व उत्तर की ओर ऊँची अविच्छिन्न पर्वत श्रेणी है.
- स्थल की अपेक्षा जल देर से गर्म होता है और देर से ठंडा होता है. जल और स्थल में इस विभेदी तापन के कारण भारत उपमहाद्वीप में विभिन्न ऋतु में विभिन्न वायुदाब प्रदेश विकसित हो जाते हैं.
- वायुदाब में भिन्नता मानसून पवनों के उत्क्रमण का कारण बनती है.
समुद्र तट से दूरी–
- लंबी तटीय रेखा के कारण भारत के विस्तृत तटीय प्रदेशों में समकारी जलवायु पाई जाती है.
- भारत के अंदरूनी भाग समुद्र के समकारी प्रभाव से वंचित रह जाते हैं.ऐसे क्षेत्रों में विषम जलवायु पाई जाती है.
समुद्र तल से ऊंचाई –
- ऊंचाई के साथ तापमान घटता है. विरल वायु के कारण पर्वतीय प्रदेश मैदानों की तुलना में अधिक ठंडे हो जाते हैं.
उच्चावच–
- भारत का भौतिक स्वरूप अथवा उच्चावच, तापमान, वायुदाब, पवनों की गति एवं दिशा तथा ढाल की मात्रा और वितरण को प्रभावित करता है.
- उदाहरणतः जून और जुलाई के बीच पश्चिमी घाट तथा असम के पवनाभिमुखी ढाल अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं जबकि इसी दौरान पश्चिमी घाट के साथ लगा दक्षिणी पठार पवन विमुखी की स्थिति के कारण कम वर्षा प्राप्त करता है.
वायुदाब एवं पवनों से जुड़े कारक
भारत की स्थानीय जलवायु में पाई जाने वाली विविधता को समझने के लिए निम्नलिखित तीन कारकों की क्रिया विधि को जानना आवश्यक है
- वायुदाब एवं पवनों का धरातल पर वितरण.
- भूमंडलीय मौसम को नियंत्रित करने वाले कारकों एवं विभिन्न वायु संहतियों एवं जेट प्रवाह के अंतर्वाह द्वारा उत्पन्न उपरी वायु संचरण और
- शीतकाल में पश्चिमी विक्षोभ तथा दक्षिणी पश्चिमी मानसून काल में उष्णकटिबंधीय अवदाबों के भारत में अंतर वहन के कारण उत्पन्न वर्षा की अनुकूल दशाएं.
उपर्युक्त 3 कारणों की क्रिया विधि को शीत व ग्रीष्म ऋतु के संदर्भ में अलग-अलग भली-भांति समझा जा सकता है.
शीत ऋतु में मौसम की क्रियाविधि
धरातलीय वायुदाब तथा पवनें-
- शीत ऋतु में भारत का मौसम मध्य एवं पश्चिमी एशिया में वायुदाब के वितरण से प्रभावित होता है.
- इस समय हिमालय के उत्तर में तिब्बत पर उच्च वायुदाब केंद्र स्थापित हो जाता है. इस उच्च वायुदाब केंद्र के दक्षिण में भारतीय उपमहाद्वीप की और निम्न स्तर पर धरातल के साथ साथ पवनो का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है.
- मध्य एशिया के उच्च वायुदाब केंद्र से बाहर की ओर चलने वाली धरातलीय पवनें भारत में शुष्क महाद्वीपीय पवनों के रूप में पहुंचती है. यह महाद्वीपीय पवन उत्तर-पश्चिम भारत में व्यापारिक पवनों के संपर्क में आती हैं, लेकिन इस संपर्क क्षेत्र की स्थिति स्थाई नहीं है.
- कई बार तो इसकी स्थिति खिसककर पूर्व में मध्य गंगा घाटी के ऊपर पहुंच जाती है. परिणाम स्वरुप मध्य गंगा घाटी तक संपूर्ण उत्तर पश्चिमी तथा उत्तरी भारत इन शुष्क उत्तर पश्चिमी पवनो के प्रभाव में आ जाता है
जेट प्रवाह और ऊपरी वायु परिसंचरण
- 9 से 13 किलोमीटर की ऊंचाई पर समस्त मध्य एवं पश्चिमी एशिया पश्चिम से पूर्व बहने वाली पछुआ पवन के प्रभावाधीन होता है.
- यह पवन तिब्बत के पठार के समानांतर हिमालय के उत्तर में एशिया महाद्वीप पर चलती हैं. इन्हें जेट प्रवाह कहा जाता है.
- तिब्बत उच्च भूमि इन जेट प्रवाहों के मार्ग में अवरोधक का काम करती है, जिसके परिणाम स्वरुप जेट प्रवाह दो भागों में बढ़ जाता है -इसकी एक शाखा तिब्बत के पठार के उत्तर में बहती है.
- जेट प्रवाह की दक्षिण शाखा हिमालय के दक्षिण में पूर्व की ओर बहती है. इस दक्षिणी शाखा की औसत स्थिति फरवरी में लगभग 25 डिग्री उत्तरी अक्षांश रेखा के ऊपर होती है. तथा इसका दाब स्तर 200 से 300 मिली बार होता है. ऐसा माना जाता है कि जेट प्रवाह की यही दक्षिणी शाखा भारत में जाड़े के मौसम पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है.
- ऊपरी वायु संचरण के निर्माण में पृथ्वी के धरातल के निकट वायुमंडलीय दाब की भिन्नताओं की कोई भूमिका नहीं होती.
पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ तथा उष्णकटिबंधीय चक्रवात
- पश्चिमी विक्षोभ जो भारतीय उपमहाद्वीप में जाड़े के मौसम में पश्चिम तथा उत्तर पश्चिम से प्रवेश करते हैं भूमध्यसागर पर उत्पन्न होते हैं.
- भारत में इनका प्रवेश पश्चिमी जेट प्रवाह द्वारा होता है. शीतकाल में रात्रि के तापमान में वृद्धि इन विक्षोभो के आने का पूर्व संकेत माना जाता है.
- उष्णकटिबंधीय चक्रवात बंगाल की खाड़ी तथा हिंद महासागर में उत्पन्न होते हैं. इन उष्णकटिबंधीय चक्रवातों से तेज गति की हवाएं चलती है और भारी बारिश होती है.
- ये चक्रवात तमिलनाडु आंध्र प्रदेश और उड़ीसा के तटीय भागों पर टकराते हैं. मुसलाधार वर्षा और पवनों की तीव्र गति के कारण ऐसे अधिकतर चक्रवात अत्यधिक विनाशकारी होते हैं.
ग्रीष्म ऋतु में मौसम की क्रियाविधि
धरातलीय वायुदाब तथा पवनें
- गर्मी का मौसम शुरू होने पर जब सूर्य उत्तरायण स्थिति में आता है, उपमहाद्वीप के निम्न तथा उच्च दोनों ही स्तरों पर वायु परिसंचरण में उत्क्रमण हो जाता है. जुलाई के मध्य तक धरातल के निकट निम्न वायुदाब पेटी जिसे अंतः उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र कहा जाता है, उत्तर की ओर खिसक कर हिमालय के लगभग समानांतर 20 से 25 डिग्री उत्तरी अक्षांश पर स्थित हो जाती है.
- इस समय तक पश्चिमी जेट प्रवाह भारतीय क्षेत्र से लौट चुका होता है.
- मौसम विज्ञानियों ने पाया है कि भूमध्य रेखीय द्रोणी के उत्तर की ओर खिसकने तथा पश्चिमी जेट प्रवाह के भारत के उत्तरी मैदान से लौटने के बीच एक अंतर संबंध है. प्रायः ऐसा माना जाता है कि इन दोनों के बीच कार्य-कारण का संबंध है.
- आई टी सी जेड निम्न वायुदाब का क्षेत्र होने के कारण विभिन्न दिशाओं से पवनों को अपनी ओर आकर्षित करता है दक्षिणी गोलार्ध से उष्णकटिबंधीय सामुद्रिक वायु संहति विषुवत वृत्त को पार करके सामान्यतः दक्षिण पश्चिमी दिशा में इसी कम दाब वाली पेटी की ओर अग्रसर होती है यही आद्र वायु धारा दक्षिण पश्चिम मानसून कहलाती है.
जेट प्रवाह और ऊपरी वायु संचरण
वायुदाब एवं पवनों का उपर्युक्त प्रतिरूप केवल क्षोभमंडल के निम्न स्तर पर पाया जाता है. जून में प्रायद्वीप के दक्षिणी भाग पर पूर्वी जेट प्रवाह 90 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से चलता है. यह जेट प्रवाह अगस्त में 15 डिग्री उत्तरी अक्षांश पर तथा सितंबर में 22 डिग्री उत्तरी अक्षांश पर स्थित हो जाता है. ऊपरी वायुमंडल में पूर्वी जेट प्रवाह सामान्यतः 30 डिग्री उत्तरी अक्षांश से परे नहीं जाता.
पूर्वी जेट प्रवाह तथा उष्णकटिबंधीय चक्रवात
पूर्वी जेट प्रवाह उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को भारत में लाता है. यह चक्रवात भारतीय उपमहाद्वीप में वर्षा के वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इन चक्रवातों के मार्ग भारत में सर्वाधिक वर्षा वाले भाग हैं. इन चक्रवातों की बारंबारता दिशा गहनता एवं प्रवाह एक लंबे दौर में भारत की ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा के प्रतिरूप निर्धारण पर पड़ता है.
A+A