Jharkhand Ki Bhasha Aur Boli Ka Samanya Parichay झारखण्ड की भाषा और बोली का सामान्य परिचय

झारखण्ड की भाषा और बोली का सामान्य परिचय



Pradeep Chawla on 12-05-2019

झारखण्ड में भावात्मक एवं साहित्यिक शून्यता का कारण-

सभी प्रदेशो का एक सांस्कृतिक एवं भाषाई पहचान है , परन्तु झारखण्ड की स्थिति बड़ी विचित्र है , झारखण्ड में भाषा की बिडम्बना ये है की झारखण्ड की राजभासा हिंदी का झारखण्ड से कोई ऐतिहासिक सम्बन्ध नहीं है न ही कोई सांस्कृतिक सम्बन्ध है . हिंदी एक नयी भासा है . हिंदी के अनेक रूप है खड़ी बोली ,अवधी,ब्रजभासा ,किन्तु भारत सरकार ने पच्छिम उत्तर प्रदेश में बोली जाने वाली खड़ी हिंदी को राष्ट्र भासा माना. खड़ी हिंदी का दो रूप है एक संस्कृत निष्ठ हिंदी और उर्दू मिश्रित हिन्दुस्तानी . हम लोग बोल चल में उर्दू मिश्रित हिन्दुस्तानी हिंदी का प्रयोग करते है . भारत में स्वतंत्रता के बाद हिंदी को राजकीय संरक्षण मिला जिससे हिंदी का दुसरे प्रान्तों में फेलाव और विकाश हुआ . किसी भी भासा के विकाश के लिए राजकीय संरक्षण बहुत जरुरी है बिना राजकीय संरक्षण के भय्ये मर या लुप्त हो जाती है जैसा की मैथिलि भासा के साथ हुआ ,ये ३००० बरस पुरानी भासा सरकारी उपेछा के कारण लुप्तप्राय हो गयी है . मैथिलि भासा बांग्ला भासा की जन्मदाता भासा है . बांग्ला भासा की लिपि वास्तव में मिथिलाक्षर है जिसे तिरहुता भी कहते है .

बिहार सरकार में मैथिलि भासा की उपेछा कर के उर्दू को बिहार की द्वितीय राजभासा बना दिया , झारखण्ड में भी बांग्ला भासा की उपेछा कर उर्दू को द्वितीय राजभासा बना दिया . उर्दू का झारखण्ड से क्या सम्बन्ध है , क्या कोई सांस्कृतिक या ऐतिहासिक सम्बन्ध है ,नहीं बिलकुल नहीं , भला अरबी फारसी और तुर्की सब्दो वाली उर्दू भासा का झारखण्ड से क्या सम्बन्ध हो सकता है . झारखण्ड की राजकीय भासा हिंदी खुद एक आयातित भासा है जिसे उत्तर प्रदेश से आयात किया गया है क्योंकि झारखंडी की सदनी या मूल भाषाये बहुत ही कमजोर है . राजकीय कामकाज खोरठा कुरमाली नागपुरिया पंच्पर्गानिया जैसे कमजोर बहसों के बस की बात नहीं है . बांग्ला को झारखण्ड की राजकीय भासा बनाया जा सकता है क्योकि बांग्ला बहुत ही विकसित भासा है तथा तकनिकी रूप से विकसित है . परन्तु झारखण्ड में रह रहे १ करोड़ बिहारी प्रवासियों को जिससे दिक्कत होती . इसलिए ये सही है की हिंदी को झारखण्ड की राजभासा बनाया गया . हिंदी वास्तव में झारखण्ड की राजभासा बनाने के योग्य है परन्तु द्वितीय राजभासा का दर्जा निश्चित रूप से बांग्ला को मिलना चाहिए . बांग्ला बसा का आगमन झारखण्ड में हिंदी से बहुत पहले हुआ . बांग्ला का आगमन झारखण्ड में १००० से १२०० बरस पूर्व हुआ जब झारखण्ड और बिहार के प्रदेशो पर बंगाल के पाल और सेन राजवंसो का सासन था और मुंगेर पाल राजवंश की राजधानी थी . पूरा का पूरा संथाल परगना और अंग प्रदेश भागलपुर अंग प्रदेश में बांग्ला भासा बोली जाती थी तथा मुग़ल काल में राजमहल बंगाल सूबा की राजधानी थी . सन १९११ तक बंगाल प्रेसिडेंसी के अंतर्गत झारखण्ड और बिहार के प्रदेश थे उस समय राजकीय भासा बांग्ला ही थी . समस्त संथाल परगना ,मानभूम ,सिंघ्भुम में बांग्ला माध्यम स्कूल थे . १९५०-५५ तक इन इलाको में बांग्ला माध्यम के स्कूल चल रहे थे कालांतर में इन स्कूल को हिंदी माध्यम में रूपांतरित कर दिया गया . मानभूम संथाल परगना सिंघ्भुम के निवाशी बांग्ला भासा और संकृति से पूरी तरह से जूद चुके थे उस समय एक नयी भासा हिंदी को उन पर थोप दिया गया . संथाल परगना की लोक संस्कृति रीती रिवाज़ धार्मिक क्रियाकलाप पंचांग शिक्षा बांग्ला पर आधारित थी . लोक गीतों अदि पर बांग्ला का प्रभाव था . इन इलाको में बांग्ला भासा के ख़तम हो जाने से एक सांस्कृतिक और भावात्मक शून्यता पैदा हो गयी .नयी और पुरानी पीढ़ी के बीच एक भाषाई खालीपन पैदा हो गया . मानभूम क्षेत्र के पुराने लोग हिंदी बोलना नहीं जानते . आप धनबाद चास चंदनकियारी चांडिल पटमदा सिंघ्भुम के किसी ग्रामीण क्षेत्र में चल जाये और किसी बूढी महिला को पूछ कर देखे वो हिंदी नहीं जानती होगी लेकिन बांग्ला बोलना जरूर जानती होगी . आज हिंदी भारत की राष्ट्र भासा है और झारखण्ड की राजकीय भासा है इसलिए आज हिंदी भासा का महत्वा ज्यादा है इसलिए आज की नयी पीडी हिंदी बोलना पसंद करती है लेकिन झारखण्ड के संथाल परगना मानभूम और सिंघ्भुम के लोगो को बांग्ला भासा को नहीं भूलनी चाहिए क्योकि ये उनकी जड़ो से जुडी हुई है . नहीं तो एक सांस्कृतिक खालीपन पैदा हो जाएगी . आज भी झारखण्ड में गयी जनि वाली टुसू गान बांग्ला में ही है . अर्जुन मुंडा और सिबू सोरेन भी बंगलाभाषी ही है .

झारखण्ड में भासा का कालानुक्रम -

१. कुरमाली ,खोरठा ,संथाली अति प्राचीन

२. बांग्ला - १०००-१२०० बरस पूर्व

३. हिंदी १५० -२०० बरस पूर्व

हम लोग बीच वाले काल क्रम को भूल जाने चाहते है और बांग्ला बोलने में संकोच महसूस करते है .

झारखण्ड की भाषाये और झारखण्ड के लोगो के अवनति का कारण,कुछ प्रश्न मन में उठती है की झारखण्ड पर बाहरी लोग क्यों शाशन कर रहे है . झारखण्ड के मूल्निवाशी गरीब क्यों जबकि झारखण्ड खनिज सम्पदा में धनि है

झारखण्ड पर आरा,छपरा,बलिया के लोग सासन कर रहे है

महारास्ट्र में भी तो करोडो बाहरी उत्तर प्रदेश बिहार और अन्य प्रदेश के लोग रह रहे है . महारास्ट्र के १२ करोड़ आबादी में ३ करोड़ बहार के लोग है लेकिन हिंदी भाषी लोग महारास्ट्र की संस्कृति और मराठी भासा को प्रभाभित नहीं कर पाई मराठी भासा बहुत समृद्ध भासा अपार सब्द भंडार ,साहित्य ,बिचारक ,तकनिकी रूप से समृद्ध भासा होने का कारण हिंदी भासा और बाहरी संस्कृति प्रभावित नहीं कर सकी . हिंदी भासा और हिंदी भाषी लोग वोही के लोगो को प्रभावित कर सके जहा की भासा तकनिकी रूप से कमजोर है . झारखण्ड की सदानी भासा आर्य भासा समूह में आते है और गैर आदिवासी लोगो द्वारा बोले जाते है

झारखण्ड के भासा समूह -

१. आर्य भासा - खोरठा ,पंच्पर्गानिया ,कुरमाली ,नागपुरी

द्रविड़ भासा - खुरुख या ओराँव भासा

आग्नेय कुल की भासा -संथाली ,मुंडारी,हो ,

झारखण्ड की ज़नसख्या को तीन समूहों में विभाजित कर सकते है -

१.दिकु या बाहरी लोग , बिहारी ,पुरबी उत्तर प्रदेश के लोग , जिनका गाँव झारखण्ड में नहीं है वो बाहरी है , गाँव ही स्थानीयता की पहचान है

२. सदान- वो झारखंडी मूल्वाशी को झारखण्ड के सदियों से रह रहे है . ये लोग आदिवाशी नहीं है लेकिन आदिवाशी लोगो से सांस्कृतिक रूप से जुड़े हुआ है और बहुत से आदिवासी रीति रिवाज और परंपरा को भी मानते है

३. आदिवासी - झारखण्ड की आत्मा , जिनसे झारखण्ड की पहचान है ये लोग झारखण्ड में हजारो भर्सो से रह रहे है . परन्तु ओराँव लोग बाद में झारखण्ड में बसे है ८वी या ९ वी सताब्दी में फिर भी १२०० बरस पूर्व

आज हिंदी झारखण्ड की राजभासा है परन्तु झारखण्ड में हिंदी भासा का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है. हिंदी भासा का आगमन झारखण्ड में १०० बरस पूर्व हुआ . आज भी झारखण्ड के दुर-दराज ग्रामीण अँचल में लोग हिंदी भासा बोलना नहीं जानते . झारखण्ड की पुरानी पीड़ी के लोग हिंदी बोलना नहीं जानते . आजकल दूरदर्सन हिंदी फिल्मो ,केबल टीवी ,रेडिओ की वजह से लोग हिंदी बोलना सीख गए है . युवा पीड़ी हिंदी में बात करना पसंद करती है

परन्तु झारखंडी लोगो की मात्रभासा हिंदी नहीं है. सरकारी कम काज के लिए झारखंडी भाषाये उपयुक्त नहीं है इसलिए हिंदी को राजभासा बनाया गया . झारखण्ड में रह रहे १ करोड़ बिहारी लोग हिंदी बोलते है इसलिए हिंदी को राजभासा बनाया गया .

झारखण्ड में बंगला भासा का इतिहास और झारखंडी संस्कृति पर बंगला भासा का प्रभाव -

बंगला भासा करीब २००० बरस पुरानी भासा है . हिंदी अपेछाकृत नयी भासा हिंदी भासा का विकाश पछिम उत्तर प्रदेश प्रदेश की खरी बोली से हुआ तथा अवधि ब्रज इसके अंग है .

मैथिलि बंगला की जन्मदाता भासा है . बंगला वास्तव में मैथिलि और अंगिका भासा का पूर्वी रूपांतरण है. अंगिका और मैथिलि के साथ बंगला का घनिष्ट सम्बन्ध है .बंगला भासा की लिपि वास्तव में मैथिलि लिपि से ली गयी है जिसे तिरहुता या मिथिलाखर कहते है . बंगला की खुद की कोई लिपि नहीं है .बंगला तिरहुता या मिथिला लिपि को प्रोयोग में लाता है. बंगला भासा का इतिहास झारखण्ड में १०००० बरस पुराना है या उससे भी पुराना .प्राचीन काल

झारखण्ड में बंगाल के पाल वंश का सासन था . सन १९१२ तक झारखण्ड बंगाल प्रसिदेंसी का भाग था.

झारखण्ड के बंगला भासी प्रदेश -

१. संथाल परगना -दुमका ,पाकुर ,जम्तारा ,साहिबगंज ,देवघर

२. मानभूम जिले का झारखण्ड में पड़ने वाले प्रदेश -चास ,चंदनकियारी ,धनबाद जिला ,रांची जिला का सिल्ली ,तमार, सराइकेला ,खरसावाँ का चांडिल ,इचागढ ,नीमदिह अंचल , पूर्वी सिंघ्भुम जिला ,

मानभूम जिला का विभाजन १९५६ -

१ नवम्बर १९५६ को मानभूम जिला का विभाजन बंगाल और बिहार के बीच में हुआ . वास्तव में पूरा का पूरा मानभूम जिला बंगाल में जाना चाहिए था परन्तु केवल ४०% हिस्सा बंगाल को मिला तथा ६०% प्रतिसत हिस्सा बिहार को मिला . मानभूम के बंग्लाभासी इलाके जबरजस्ती बिहार में मिला दिए गए .चास चन्दनक्यारी,चांडिल ,निरसा ,गोविंदपुर अदि बंग्लाभासी इलाके बिहार में मिला दिए गए . पछिम बंगाल सरकार ने मानभूम में रुचि नहीं दिखाई या ठीक से प्रयास नहीं किया जबकि बिहार सरकार ने पूरी तत्परता दिखाए जिससे मानभूम का ६०% हिस्सा बिहार को मिला और केवल ४०% बंगाल को जो पुरुलिया जिला के नाम से जाना जाता है.

मानभूम के झारखंडी लोग असिछित थे तथा बिहार में रहने के परिणाम के बारे में जागरूक नहीं थे . परन्तु बिहारियों ने मौके का पूरा फायदा उठाया तथा बिहार तथा पूर्वी उत्तरप्रदेश के लोगो को धनबाद कोअलिअरी तथा ओदोगिक प्रदेश में बसना सुरु किया . ३ लाख प्रवाशी भोजपुरी लोगो ने परिणाम को प्रभावित किया तथा धनबाद का संपन प्रदेश बिहार में रह गया . मानभूम में रह रहे ५ लाख भोजपुरी लोगो की भूमिका महतापूर्ण थी और वो लोग जागरूक थे तथा मानभूम को बिहार में रखने के कृतसंकल्प थे .परन्तु मानभूम के मूल्निवाशी अपने आने वाले खतरों से अनजान थे . वे वास्तव में बेवकूफ लोग थे जो अब अपनी संस्कृति जमीन भासा पहचान से हाथ धोने वाले थे .वो गुलामी की ज़ंजीरो में बंधने वाले थे . पुरुलिया में मनभूमि संस्कृति जीवंत है .मोटा बंगला या कुरमाली बंगला ,छो नृत्य ,टुसू भादू ,मनसा पूजा ,करम पूजा ,जात्रा ,झूमर अदि जो मानभूम संस्कृति की पहचान है वो केवल पुरुलिया में ही मिलेंगे .पुरुलिया के लोग गरीब है लेकिन वो सुखी है क्योकि उनकी अपनी संस्कृति है .

बिहार के मानभूम प्रदेश की स्थिति -

मानभूम के बंगला भाषी इलाके चास चन्दनक्यारी ,धनबाद जिला ,चांडिल ,इचागढ ,पटमदा अदि को जबरजस्ती बिहार में मिला दिया गया . उनकी भासा संकृति को मिटाया जाने लगा .१९५६ से पहले मानभूम में हजारो बंगला मीडियम स्कूल थे . चास चंदनकियारी के बंगला मीडियम स्कूल को हिंदी मीडियम स्कूल में बदल दिया तथा बंगला भासा बोलने पर बिहारियों द्वारा तिरस्कार किया जाने लगा . बंगला भाषी लोगो को बुरी तरह आतंकित किया गया .

तत्कालीन बिहार के संथाल परगना भी मुख्या रूप से बंगलाभाषी प्रदेश था वोह भी बंगला भासा की उपेछा की जाने लगी . सभी बंगला भाषी स्कूल को बंद कर दिया गया या हिंदी मीडियम स्कूल में बदल दिया गया . सिंघ्भुम प्रदेश में भी बंग्लाभासियो का दमन जरी रहा .बिहार में मैथिलि और बंगला भासा की उपेछा की गयी. मैथिलि भासा के सरकारी बहिस्कार या तिरस्कार के कारण बिहार में यह ३००० बरस पुरानी भासा बिलुप्ती की कगार पर है. वास्तव में मैथिलि को बिहार की द्वितीय राजभासा होना चाहिए था . तकनिकी साहित्यिक ,सब्द भंडार , व्याकरण की दृष्टी

से मैथिलि बिहार की सभी बहसों से ज्यादा उन्नत है. परन्तु लालू सरकार ने मुस्लिम वोट बैंक की राजनीती के चलते उर्दू को बिहार की द्वितीय राजभासा बना दिया . उर्दू बिहार की द्वितीय राजभासा क्यों है मैथिलि क्यों नहीं.

झारखण्ड राज्य का गठन -

नवम्बर २००० में झारखण्ड राज्य का गठन हुआ तब झारखंडी मूल्निवाशी सदानों और आदिवाशियो ने खुशिया मनाई की अब उनके अच्छे दिन आएंगे और उनको अपनी पहचान मिलेगी परन्तु कुछ ही बरसो में झारखंडी लोगो का सपना टूट गया . बास्तव में आज भी बिहारी झारखण्ड में राज कर रहे है .झारखण्ड बिहार का उपनिवेश बन चुका है . जिस रफ़्तार से बिहार के भोजपुरी लोग झारखण्ड में बस रहे है वो दिन दूर नहीं जब झारखण्ड के मूल्निवाशी अपने राज्य में अल्पसंख्यक हो जायेंगे. आज बोकारो ,रांची ,धनबाद में भोजपुरी भासा का बोल बाला है .बोकारो और धनबाद में भोजपुरी भासियो की तादाद ९०% तक है .

झारखंडी लोगो के गुलामी के कारण ( विशेष कर बोकारो ,धनबाद ,संथाल परगना ,सिंघ्भुम के बंगलाभाषी प्रदेश के लोग )-

१. अपनी संस्कृति से कट जाना ,बंगला भासा बोलना छोड़ देना तथा खोरठा ,पंच्पर्गानिया कुरमाली जैसे कमजोर भासा को बोलना , इन कमजोर जंगली बहसों ने उनका मानसिक विकाश रोक दिया उनका आत्मा स्वाभिमान ख़तम हो गया है. ये लोग खोरठा जैसा कमजोर भासा क्यों बोलते है जिसका सब्द भंडार बहुत कम है . और जो विचारो को अभिव्यक्त नहीं कर सकता .सच्चाई ये झारखंडी बिहारियों से डरते है वो सोचते है की बंगला बोलने से बिहारी मरेंगे लेकिन बेवकूफ झारखंडी लोगो तुम खोरठा बोलने से भी बिहारी का मर खा रहे हो . क्योंकि तुम जागरूक नहीं हो अपने अधिकार के बारे में नहीं जानते हो . कितने शर्म की बात है की आरा -छपरा के लोग तुम्हारे ऊपर राज कर रहे है . अब झारखंडी मनभूमि लोग अपने आप को इस तरह से दिखाते है की वो बंगला नहीं जानते है .खोरठा जैसा बकवास भासा दूसरा कोई नहीं है . सब्द भंडार की कमी के कारण हिंदी का सहारा लेना पड़ता है. आज के इस वेज्ञानिक युग में कमजोर भाषाओ का कोई ओचित्य नहीं . तकनिकी रूप से कमजोर भाषा आज जीवित नहीं रह सकती है .

२ . झारखंडी बिहारियों से डरते है - तथा हिन् भावना के शिकार है

३. बिहारी बिहार में जात पात के नाम पर लड़ते है पर झारखण्ड में रह रहे बिहारियों के बहुत एकता है . झारखण्ड के बिहारियों में बहुत एकता है खास कर भोजपुरी भासियो में वो जानते है की एकता बनाये रखने से वो झारखंडियो पर राज कर सकेंगे .

झारखण्ड में भासा के स्थानीय होने के मानदंड क्या है . किसी जाति भाषा संस्कृति के स्थानीय होने के कारन कौन से है . ये तो सर्बमान्य है की गाव या ग्रामीण अंचल की भासा संस्कृति किसी प्रदेश की स्थानीय भाषा मानी जाती है . धनबाद , बोकारो,रांची के शहरी क्षेत्रो में भोजपुरी भाषी बहुसंख्यक ,करीब ८०% तक लेकिन इसका अर्थ ये तो नहीं हो गया की भोजपुरी धनबाद बोकारो रांची जमशेदपुर की स्थानीय भाषा है .किसी भाषा को उस क्षेत्र के स्थानीय भाषा कहलाने के लिए निम्लिखित योग्यता होनी चाहिए -

१. उक्त भाषा को उस प्रदेश की ग्रामीण या दूर दराज के क्षेत्र की आंचलिक भाषा होनी चाहिए यानि उस क्षेत्र के निरक्षर व्यक्ति से लेकर शिक्षित सभी उस भाषा को बोलना जानते हो

२. उक्त भाषा उस प्रदेश में कम से कम ५०० - १००० बरस पुरानी हो . भाषा के पुराना या प्राचीन होना स्थानीयता को दर्शाता है यानि उक्त प्रदेश में कम से कम ५००- १००० बरस पहले से उक्त भाषा वोहा बोली जाती हो .

३. उक्त भाषा उस प्रदेश इतिहास और संस्कृति से संबध हो , उक्त प्रदेश की संस्कृति लोक कला , लोकगीतों में उस भाषा का प्रभाव हो . प्राचीन साहित्य में प्रभाव हो . धर्म धार्मिक क्रिकलाप उक्त भाषा में किये जाते हो जैसे ज्योतिष गणना पूजा पथ भक्ति काब्य सभी कुछ तथा प्राचीन परंपरा के रूप में .

प्रश्न यह है की हिंदी और बंगला में कौन झारखण्ड की स्थानीय भाषा है ?

तुलनात्मक बिशलेषण-

१. झारखण्ड के किसी भी गाव या ग्रामीण अंचल में हिंदी नहीं बोली जाती ,पछिम उत्तर प्रदेश सहारनपुर मीरट देलही क्षेत्र की हिंदी खडी बोली पछिम उत्तर प्रदेश की स्थानीय भाषा है क्योकि ये भाषा उस प्रदेश के ग्रामीण अंचल में बोली जाती . जब हिंदी को रास्ट्र भाषा का दर्जा मिला तो ये सर्वभारतीय भाषा बना तथा इसका महत्वा और सम्मान और उपयोगिता बढ़ गयी . झारखण्ड की भाषा खोरठा नागपुरी अदि कमजोर भाषा होने के कारण हिंदी को झारखण्ड की स्थानीय भाषा बनाया गया लेकिन ये झारखण्ड की स्थानीय भाषा नहीं है क्योकि हिंदी झारखण्ड के दूर दराज और ग्रामीण अंचल में नहीं बोली जाती .

बंगला भाषा झारखण्ड में बहुत प्राचीन है और चास चंदनकियारी मुरी सिल्ली ,पुरबी सिंघ्भुम ,सराइकेला खरसावाँ के ग्रामीण अंचल ,धनबाद ,जामतारा,दुमका ,पाकुड़ , साहिबगंज और आंशिक रूप से देवघर के ग्रामीण क्षेत्रो में बोली जाती है और १००० वर्सो से बोली जा रही . १९४७ तक इन क्षेत्रो में शिक्षा का माध्यम बंगला मीडियम स्कूल थे . बाद में बंगला स्कूल को हिंदी स्कूल में रूपांतरित कर दिया गया यानि झारखण्ड में ५०% क्षेत्र में बंगला भाषा स्थानीय रूप में बोली जाती रही है जो की इस भाषा की स्थानीयता को दर्शाता है . किसी भाषा के विकाश के लिए उस भाषा का राजकीय समर्थन जरुरी है . परन्तु तत्कालीन बिहार सरकार और वर्तमान में झारखण्ड सरकार ने झारखण्ड में उर्दू भाषा का विकाश और बंगला भाषा के विनाश को मूल लक्ष्य बनाया है . उर्दू का झारखण्ड से क्या संबंद है जिस भाषा में ८०% विदेसी सब्द हो उसका झारखण्ड क्या भारत से कोई सम्बन्ध नहीं है अरबी फारसी तुर्की सब्दावाली से बनी उर्दू भाषा का झारखण्ड से क्या सम्बन्ध तो फिर क्यों सन २००६ में मधु कोड़ा और कांग्रेस की सरकार ने उर्दू को द्वितीय राजभासा बनाया . क्या ये मुस्लिम वोते बैंक की राजनीती है .

हिंदी एक नयी भाषा है जिसका विकाश १७-१८ वी सताब्दी में हुवा और वर्त्तमान हिंदी का स्वरुप सन १८०० के सुरु में प्रकट हुवा बंगला एक प्राचीन भाषा है करीब १५००-२००० बरस पुरानी

झारखण्ड के धार्मिक सांस्कृतिक क्रियाकलाप पर बंगला भाषा का प्रभाव -

१. ग्रामो में बंगला जात्रा का मंचन

२. बंगला ज्योतिष कैलेंडर को मानना , पूजा पद्धति पर बंगला भाषा का प्रभाव ,

३. झारखण्ड के मानभूम सिंघ्भुम संथाल परगना के ग्रामीण अंचल में काशीदास जी का महाभारत और किर्तिवाश ओझा रचित रामायण का पाठ होता ग्राम के होरी मेला में मानभूम सिंघ्भुम के गाव में एक सामुदायिक धर्मं चर्चा स्थान होता है जिसे हरी मेला या होरी मेला कहते है वोह वैसाख मास में किर्तिवाशी रामायण पाठ होता है .

इस प्रकार हम कह सकते है की बंगला झारखण्ड की स्थानीय भाषा है और इसे द्वितीय राजभासा का दर्जा अवश्य मिलना चाहिए नाकि उर्दू को



बोकारो इस्पात नगर और चास का नगरिया क्षेत्र का परिवर्तन और सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव का तुलनात्मक बिशलेषण-

बोकारो क्षेत्र की इतिहासिक पृष्ठभूमि -

ये क्षेत्र मानभूम जिला के अंतर्गत आता था जो की पहले बंगाल प्रदेश का भाग था बाद में बिहार को दे दिया गया . उस से पहले ये काशीपुर एस्टेट राज का भाग था जो की अद्रा के पास है . काशीपुर राज के इस भाग में दो थाने थे चास और चंदनकियारी तथा इस क्षेत्र को खाशपोइल परगना के नाम से जाना जाता था . मानभूम में काशीपुर राज (पुरुलिया) के अलावे झरिया राज , कतरासगढ़ राज और महाल गाव(सेक्टर-८) के जमींदार के अलावे अन्य बहुत सारी छोटी जमींदारिया थी .

राजकीय कामकाज और शिक्षा की भासा - उस समय बंगला भासा में ही सारे काम होते थे हिंदी भासा का आगमन नहीं हुआ था . इस क्षेत्र में हिंदी भासा का आगमन १०० बरस पूर्व हुआ था .

प्राकृतिक रूप से ये प्रदेश बहुत सुन्दर था , ये पूरी तरह से वनाच्छादित प्रदेश था , स्वच्छ नदिया और परिवेश और सुखी जीवन ,तीज ,मेला टुसू करम ,पीठा,छिलका पोस परब वास्तव के खास्पोइल के लोग सुखी थे .यहाँ के लोग विशुद्ध बंगला तो कभी नहीं बोलते थे परन्तु मोटा बंगला या खोरठा मिश्रित बंगला बोलते थे . हिंदी भासा का प्रभाव १९४७ के बाद सुरु हुआ . १९५६ मानभूम जिला का विभाजन बंगाल और बिहार के बीच में हुआ . जिसमे बिहारियों की चालाकी और धूर्तता और बंगालियों के घमंड और झूठा अहंकार

ने मानभूम के लोगो का नुकसान किया . असल में बंगाली बुद्धिजीवी या भद्र लोक जो अपने आप को बोद्धिक और सांस्कृतिक रूप से काफी उच्च समझते थे मानभूम के बंग्लाभासियो को कभी भी मान्यता नहीं दिया या बराबर का नहीं समझा . असल में मानभूम के लोग पूरी तरह बंगाली नहीं है उनकी अपनी विशिस्ट संस्कृति है . वेस्ट बंगाल सरकार ने मानभूम में ज्यादा रूचि नहीं दिखाई .बिहार सरकार ने मानभूम के समृद्ध धनबाद के कोयला खानों को बिहार में रखने के लिए पूरा जोर लगाया . ५ लाख भोजपुरी भाषियों को आरा-छपरा और बलिया से बसाया गया . धनबाद के इलाके में बिहारी बहुसख्यक हो गए और परिणाम को प्रभावित किया . चास - चंदनकियारी का बिहार में रहना और पुरुलिया में न जाना आश्चर्यजनक है . चास चंदनकियारी (खाश्पोइल ) न तो कोल्यिरी या कोयला खान था न ही यहाँ बिहारी भोजपुरी भाषी बसे थे और ये प्रदेश बंगलाभाषी थे . परन्तु चास चंदनकियारी में बिहार के मगध क्षेत्र से आये भूमिहार जाती की बहुत बड़ी आबादी थी . ये भूमिहार मुंगेर गया ,पटना से गिरिडीह से होकर आये और करीब आज से १५० -२०० साल पहले आकर इस क्षेत्र में बस गए थे चास चंदनकियारी में भूमिहारो के ५००-६०० गाव है . इनकी भासा मघही या मघही से मिलती जुलती मघही खोरठा थी . ये बिहार से हाल में आकर बसी थी और बिहार की समर्थक जाती थी ये खोरठा बोलते थे और आर्थिक रूप से समृद्ध थे . भूमिहारो ने चास चंदनकियारी को पुरुलिया डिस्ट्रिक्ट में जाने से रोक दिया .अगर चास चंदनकियारी मानभूम (पुरुलिया) में चला जाता तो उनकी भासा संस्कृति बच जाती .बोकारो और धनबाद में आज भोजपुरी संस्कृति हावी है . स्थानीय लोगो के साथ भोजपुरी लोग बुरा व्यवहार करती है .बोकारो में स्टील प्लांट और चंदनकियारी में एलेक्ट्रोस्टील प्लांट से वोह स्थानीय निवाशियो का कोई फायदा नहीं हुआ . बोकारो स्टील प्लांट में ९०% नोकरिया बिहारी आरा -छपरा के लोगो को मिली और विस्थापितों को केवल धोका मिला उनके साथ छल हुआ . बोकारो में ८० गाव विश्थापित हुआ . १९९२ के बाद विष्ठापितो की बहाली बंद है . बहुत नाममात्र के मुवावजे पर उनकी जमीं अधिग्रहित कर ली गयी . बोकारो और धनबाद में ९०% आबादी बिहारी की है . भोजपुरी भासा और बिहारी धनबाद बोकारो में हावी है पूजीपति ठेकेदारी बाहुबली भूमाफिया , नेता सभी कुछ वोही है हर क्षेत्र में उनका एकाधिकार है . झारखंडी लोगो की हालत गुलामो जैसो है वोह तो बेचारे १००-१५० की हाजरी की मजदूरी पर खुश है . बोकारो के पूरी आर्थव्यवस्था पर बिहारियों का कब्ज़ा है . प्लांट में नौकरी ,सब्जी बेचना फल बेचना दुकानदार चाय समोषा के ठेले , या कोई भी छोटा मोटा व्यापार अगर स्थानीय लोग करना चाहे तो उन्हें मार कर भगा दिया जाता है. बिहारी एक सोची समझी रणनीति के तहत झारखंडी चास चंदनकियारी के लोगो को बंगाली बोलते है ताकि उनका मनोबल तोडा जाय.जिसका गाव झारखण्ड में है वोही झारखण्ड का मूल्निवाशी है चाहे वोह बंगला बोलता हो या खोरठा . शिबू शोरेन , अर्जुन मुंडा भी तो बंगला बोलते , बोकारो के बिधायक समरेश सिंह जो मूलरूप से चंदनकियारी के निवाशी है वो भी बंगलाभाषी तो क्या ये लोग बंगाली हो गए . जैसे हिंदी कई प्रदेश में बोली जाती है मध्य प्रदेश और बिहार तो मध्य प्रदेश के लोग भी बिहारी हो गए क्योकि वोह हिंदी तो बिहार में भी बोली जाती है . बंगला हिंदी से ज्यादा समृद्ध भासा है और तमिल भारत की सर्वाधिक विकशित भासा है .झारखण्ड में जो बंगला बोलते है उनका ९०% झारखण्ड के मूल्निवाशी है केवल १०% बंगाल से आये बंगाली है . झारखंडियो को बंगाली बोलना बिहारियों की दबाब की रणनीति का हिस्सा है . वोह तो खुद तो दुसरे स्टेट के है लेकिन दिखाना चाहते है देखो तुम तो बंगाली हो और धनबाद बोकारो जमशेदपुर पर हमारा हक तुमसे ज्यादा है .झारखण्ड बने के बाद उल्टा असर हुआ , बिहारी झारखण्ड बनने के बाद और सक्तिसाली हो गए जहा जब बिहार था तो जात पात के नाम पर लड़ते थे पर झारखण्ड बने के बाद उनके एकता बढ़ गयी और बिहार में रहने वाले झारखंडी भोजपुरी भासा और बिहारी के नाम पर एक हो गए .चास चंदनकियारी के लोग अब बंगला बोलना छोड़ रहे है . बिहारियों के ताना से बचने के लिए अब वोह खोरठा बोलते है . नई पीढ़ी हिंदी बोलना पसंद करते है . बोकारो चास में रहने वाले स्थानीय लोग अपने बच्चो को हिंदी में अभयस्त कर रहे है . खोरठा इंडो यूरोपियन या आर्य भासा है लेकिन तकनिकी रूप से कमजोर है और हिंदी के सामने टिक नहीं पाती है . खोरठा बोलने वालो को अन्तोगत्वा हिंदी की सरण में आना ही पड़ता है. खोरठा केवल गाव की खेती बाड़ी की भाषा है .चास ता भैलोई ,बिहीन ता रोपैलो , किसान होई , हाल चल टिक होई न बैसे होई न , कहा जय हथिन की रारे हथिन , या गाव घर का लोक संस्कृति . खोरठा भासा का अपना महत्वा है लेकिन उसकी कुछ सीमाए है ये कमजोर भासा हिंदी जैसी सक्तिसाली भासा को टक्कर नहीं दे सकती है . खोरठा भासा के गाने हिंदी गानों के नक़ल मात्र होते है . खोरठा गानों में मौलिकता का अभाव है . कुछ आच्छे गाने जरुर है पर अधिकतर हिंदी गानों और हिंदी धुनों की बेहूदा नक़ल मात्र है . हमार अठारह साल बोयोश भैय गिलोय हमार सदी कराय दे ये खोरठा गाना पुरुलिया के मनभूमि गाना अमर अठारह बरस बयेश होया गले आमके डाल धयाये दे बिहा कराये दे का नक़ल मात्र है . पुरुलिया की मनभूमि भासा और संस्कृति ज्यादा जीवंत ,लोक गीत ज्यादा प्रवाहमान है . झारखण्ड के मानभूम क्षेत्र की संस्कृति मर चुकी है . धनबाद बोकारो में मानभूम संस्कृति मर चुकी है . बंगला भासा का तिरस्कार ने उनकी संस्कृति को बर्बाद कर दिया .सक्तिसाली भासा और संस्कृति को कोई हावी नहीं हो सकता न ही प्रभाबित कर सकता है . खोरठा भासा का वास्तविक क्षेत्र कशमार,पेटरवार गोला रामगढ का क्षेत्र है नाकि चास चंदनकियारी का क्षेत्र , चास चंदनकियारी में हमेसा से ही बंगला भाषा का प्रभाव रहा है . बंगला भासा से कटना और बंगला भासा की उपेछा झारखण्ड के मानभूम प्रदेश के बर्बादी का कारन है .



खोरठा और बंगला दोनों ही आर्य भासा है . भासा बैज्ञानिको ने खोरठा ,कुरमाली , नागपुरी , पंच्पर्गानिया को आर्य भासा या इंडो यूरोपियन भासा समूह में रखा है .बंगला और मराठी इन दो आर्य भाषा में सबसे ज्यादा संस्कृत सब्दो का प्रोग हुआ है . संस्कृत का ज्यादा प्रोयोग इन भाषाओ को मधुर बनता है .

भासा का सकती संतुलन - अगर बंगला को द्वितीय राजभासा का दर्जा दिया जाता तो झारखण्ड में भासा का सक्ति संतुलन बन जाता . कुरमाली भासा बंगला भासा के बहुत निकट है . पंच्पर्गानिया+बंग्लाभासा के मिलन से कुरमाली भासा का जनम हुआ . हिंदी ३०-४० बरसो दोरान खोरठा अदि बहसों को ख़तम कर देगा . खोरठा भाषी खोरठा में काम काज पड़ी लिखी नहीं कर सकते है ? उन्हें हिंदी की सरण में आना ही पड़ता है .जब आप पच्छिम उत्तर प्रदेश डेल्ही की खड़ी बोली हिंदी बोल सकते है तो बंगला क्यों नहीं जो की आपके ज्यादा करीब है .हिंदी उन भासा संस्कृति को प्रभाबित कर पाई है जहा की भासा संस्कृति कमजोर है . महारास्ट्र में ३ करोड़ हिंदी भाषी है लेकिन वोह वोह की भासा संस्कृति को प्रभाबित नहीं कर पाई , क्योकि मराठी भासा संस्कृति बहुत सक्तिसाली है .बंगला झारखंडी लोगो को हिंदी के आक्रामक प्रभाव से बचा सकती जो खोरठा कुरमाली बहसों को लीलने के लिए तयार बैठी है . भोजपुरी भासियो के दबदबे को ख़तम करेगी और झारखण्ड में भासा का सकती संतुलन बनाएगी .







हिंदी और बंगला भासा का तुलनात्मक अध्ययन झारखण्ड राज्य के ऐतिहासिक पृष्टभूमि में

प्रश्न है की झारखण्ड में कोण सी भासा पहले आई हिंदी या बंगला .

सन १९११ तक झारखण्ड बंगाल प्रेसिदेंच्य का भाग था . सन १९११ में बंगाल स्टेट का भिभाजन बिहार और बंगाल के रूप के हुआ. सन १९१२ में बिहार राज्य बना . बंगाल presidancy के बंगला भासा इलाके जैसे

संथाल परगना के पाकुर godda,devghar,जम्तारा,दुतत्कालीन मका इलाके बिहार में सम्मलित कर दिए गए . संथाल परगना में बहुत सरे बंगला भाषी इलाके बिहार राज्यमे जबजस्ती मिला दिए गए . वास्तव में संथाल परगना मानभूम, सिंघ्भुम का संकृति भाषा सिखा का माध्यम बंगला ही है. १९४७ से पहले संथाल परगना मन्भुम९ चास चंदंक्यारी,धनबाद गिरिधिः,चांडिल सिंघ्भुम जिला में बहुत सरे बंगला मीडियम स्कूल थे .

मुग़ल कल में ये इलाके बंगाल सूबा केभाग थे एन इलाकों धनबाद बोकारो दुमका सिंभुम का सासन मुर्शिदाबाद के बंगाल सूबा में होता था.झारखण्ड राज्य के ५०% इलाके में बंगला भासा बोली जाती है ये इलाके जम्तारा,दुमका,पाकुर,चास, चंदंक्य धनबाद, चांडिल,सिंघ्भुम,रांची का सिल्ली तमर इलाके इत्यादि १९४७ से पहले एन इलाकों में सरे स्कूल बंगला माध्यम के थे परतु बाद में हिंदी माध्यम के स्कूल में रूपांतरित का दिए गए

मानभूम जिला का भिभाजन सन१९५६ में बंगाल और झारखण्ड के बिच में हुआ . ४०% हिस्सा बंगाल को मिला तथा ६०% हिस्सा बिहार को मिला, वास्तव में मानभूम जिलअ के चास चंदंक्यारी इलाके बंगला भासी थे, धनबाद जिला भी बंगलाभाषी थे. झारखण्ड के इन इलाको में हिंदी बोलने वाले लोग बहार से आये उत्तर प्रदेश बिहार से लोग कोलिअरी फैक्ट्री मिंस के कम करने आये तथा भोजपुरी और हिंदी भासा को लाये. झारखण्ड में हिंदी भासा का इतिहास मात्र १०० वारस पुराना है. वास्तव में हिंदी बंगला के तुलना में एक नयी भासा है. हिंदी का विकास खरी बोली के रूप में पश्चिम उत्तर प्रदेश डेल्ही मीरट सहारनपुर इलाके में हुआ हिंदी वास्तम में झारखण्ड से १२०० कम दूर की भासा है. हिंदी का ये स्वरुप खरी बोली कहा जाता है जिसे उर्दू का भिविकाश हुआ .

झारखण्ड के गो में हिंदी नहीं बोली जाती. वास्तव में गो किसी इलाके का सांकृतिक प्रतिक होता है. सहर में तो सब भाषा के लोग मिलेंगे.

हिंदी को झंड पर थोपा गया है . ग्रामीण आँचल स्थानीयता को दर्शाता है. झारखण्ड के किसी भी जिले में आज से १०० वारस पूर्व कोई भी हिंदी बोलना नहीं जनता था

झारखण्ड बिहार की सब्सेर पुराणी भासा मैथिलि है. मैथिलि भासा ३००० बसर पुराणी है. मैथिलि भासा उन्नत वैज्ञानिक भासा इसका साहित्य बहुत समृद्ध था.

बंगला बहासा की अपनी कोई लिपि नहीं थी वास्तव में बंगला भासा की लिपि मैथिलि भासा के तिरहुता या मिथिलाखर लिपि से ली गयी है.बंगला की लिपि वास्तव में मैथिलि लिपि है

झारखण्ड के लोक संस्कृति लोक गीतों में बंगला भाषा का बहुत प्रभाब है .

अगर हिंदी झारखण्ड की राजभाषा है तो बंगला को द्वितीय राजभासा होना चाहिए था . सन २००६ में तत्कालीन मुक्यमंत्री मधु कोड़ा ने उर्दू को झारखण्ड का द्वितीय राजभासा बना दिया. मधु कोड़ा और कांग्रेस ने मुस्लिम वोते बैंक के चलते उर्दू को झारखण्ड का द्वितीय राजभासा बना दिया . सांकृतिक ऐतिहासिक रुपोए से उर्दू का झारखण्ड से कोई संभंध नहीं है. झारखण्ड के मूल्निवाशी मुस्लमान अंसारी आज से १०० वारस पुरबा उर्दू पड़ना लिखना नहीं जानते तरहे. झारखंडी संकृति परब त्यौहार से उर्दू का कोई सम्बन्ध नहीं है . संथाली और बंगला को द्वितीय राजभासा बनाया जय . उर्दू में विदेसी सब्दो की भरमार है जैसे अरबी भासा फर्शी तुर्की अरबी फर्शी तुर्की सब्दो का झारखण्ड से क्या रिश्ता. मूल्निवाशी झारखंडी मुसलमानों का उर्दू से कोई सम्बन्ध नहीं था.

मुसलमानों को हिंदी भासा के स्कूल में पड़ने में आपति क्यों है. मुस्लमान हिन्दू से बने है मुस्लमान हिंदी का विरोध क्यों करते है. झारखण्ड में ३०००० उर्दू मीडियम स्कूल है और मात्र १०० बंगला मीडियम स्कूल है. बंगला भासा के साथ ऐसा भेद भाव क्यों. उर्दू मीडियम सरकारी सहता प्राप्त स्कूल और मदरसों में विशेष बहती. मुसलमानी के लिए मदरसा बोर्ड क्या झारखण्ड पर अतिरिक्त आर्थिक भर नहीं

झारखण्ड की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान झाखंड के ग्रामो से मिलेगी झारखण्ड के ग्रामो में हिंदी खरी बोली नहीं बोली जाती है. हिंदी का मूल उत्त्पति स्थान मीरट सहारण पुर है जो की झर्खंड्स से रांची से १२००-१४०० कम दूर है और बंगला का उत्त्पत्ति स्थान कोल्कता है कोल्कता रांची से मात्र १८० कम दूर है आप लोग सोच कर बताये की सांस्कतिक रूप से झारखण्ड बंगला का ज्यादा प्रभाव होगा या उर्दू का या हिंदी का .

बंगला एक संस्क्रित्निस्था भाषा है. भारत की सभी बहसों की तुलना में बंगला में संस्कृत सब्दो का सबसे ज्यादा प्रोयोग हुआ है. संस्कृत सब्दो का अधिक या ज्यादा से ज्यादा संस्कृत सब्दो का प्रोयोक बंगला को भारत की सबसे मधुर भासा बना देते है .

बिहार की द्वितीय राजभासा उर्दू है परतु मैथिलि को बिहार की दूसरी राजभासा होनी चाहिए. मुस्लिम वोते बैंक के लिए बिहार की द्वितीय राजभाषा मैथिलि को छोड़कर उर्दू को बना दिया इसी तरह झारखण्ड में उर्दू को द्वितीय राजभासा बना दिया, झारखण्ड में उर्दू मीडियम सरकारी स्कूल और मदरसों की भरमार है परतु बंगला स्कूल जितने थे सभी बंद हो गए मुसलमानों की आल्गोवादी सोच उन्हें हिंदी मीडियम स्चूल्स में पड़ने से रोकती है . क्या हिंदी मीडियम स्चूल्स में पड़ने से वोह मुस्लमान नहीं रहेंगे .

झारखंडी सदनी भासवो खोरठा कुरमाली पंच्पर्गानिया नागपुरी को द्वितीय राजभासा नहीं बनाया जा सकता है क्योकि

१. झारखंडी सदनी भासये खोता नागपुरी कुरमाली पंच्पर्गानिया तकनिकी रूप से कमजोर भासये से एन बहसों का अभी विकाश नहीं हो पाया है .

२. इन झारखंडी बहसों में सब्द भंडार की कमी इन बहसों के पास बहुत कम सब्द है

३. इन बहसों का व्यकर भी विकसित नहीं है व्याकरण कमजोर

४. इनभासा में तकनिकी और स्किएन्तिफ़िक वैज्ञानिक सब्द भंडार की कमी है

५. आपनी कोई लिपि नहीं है

६. लिखित साहित्य बहुत कम है

७. आज के वैज्ञानिक युग में तथा तकनिकी युग में ये कमजोर भासये किसी कम की नहीं है

८. भासा का विकाश एक जटिल और धीमी प्रक्रिया है एन बहसों को बंगला के स्टार तक आने में ५०० बरस लग जायेंगे.

९. आज के इस व्येज्ञानिक युग में केवल तकनिकी वैज्ञानिक सब्द बन्दर में समृद्ध भासये जीवित रह सकती है. कमजोर भासये धीरे धीरे गायब या लुप्त हो जाती है.

बंगला भासा वैज्ञानिक भासा है. ये बंगलादेश की रास्ट्रीय भासा भी है . तकनिकी रूप से समृद्ध भासा है

झारखण्ड के मूल्निवाशी लोगो के पास भासा के विकल्प के रूप के दो भासये है झारखंडी लोग अपनी सुविधा अनुसार इन दो बहसों में किसी एक को चुने

१. हिंदी

२. बंगखरसावाँ में बंगला मीडियम स्कूल खुलने चाहिए. झारखंडी कमजोर बहसों का कोई भाबिस्य नहीं है.

झारखंडी कोण है? झारखण्ड के मूल्निवाशी कौन है ? झारखंडी मूल्निवाशी की परिभाषा क्या है ?

१. जिसका ग्राम झारखण्ड के किसी जिले में पड़ता हो वोही झारखंडी है

२. ग्राम ही किसी की संस्क्रिक पहचान होती है, जिसका ग्राम गाँव झारखन में है वोही झारखण्ड में है

३. जो मूल रूप से ला

जो इसके बंगला के समीपवर्ती है और जहा बंगला बोली जाती है वोह आपने पड़ने का माध्यम बंगला रखे /

जम्तारा दुमका, चन चंदंक्यारी सिंघ्भुम धनबाद सराइकेला झारखण्ड के किसी गाँव का निवासी हो वोही झारखंडी

किसी राज्य की सांस्कृतिक भासा का पहचान गाँव में ही मिलता है .

झारखण्ड के ५०% गाँव में बंगला भासा बोली जाती है. शहरों की बात अलग है झारखण्ड के सहरो बोकारो धनबाद रांची जमशेदपुर में ९०% लोग बाहरी है . वोह बिहारी और उत्तर प्रदेश के है. बाहरी लोगो की भासा झारखण्ड के कल्तुरे को रेप्रे बाहरी लोगो की भासा झारखण्ड की संस्कृति को PRADERSHIT NAHI KARTI

बंगला औरहिंदी भासा के मध्य पीढ़ी का अंतर

१. झारखण्ड के पुराणी पीडी या झर्खानी जो ६० बरस से ऊपर है है वोह बंगला मीडियम में पढ़े है तथा बंगला संस्कृति से प्रभावित है

नै झारखंडी मूलनिवासी पीढ़ी हिंदी मीडियम में पढ़ी है इसलिए बंगला भाषसे दूर हो गए है

बंगलाभाषी झारखंडी राजनेता

१. समरेश सिंह

२. शिभु सोरेन , सुधीर महतो, दुलाल भुइया अर्जुन मुंडा स्वर्गीय आदरणीय श्री विनोद बिहारी महतो जी ,सुदेश महतो सूरज मोंडल विदुत वरन महतो श्री रजक मला चंदंक्यारी और भी बहुत सरे

झारखण्ड की पुराणी पीढ़ी बंगलाभाषी है नयी पीढ़ी हिंदी भाषी

मैं झारखण्ड का मूल्निवाशी हूँ मेरा पिता और दादा ने बंगला मीडियम में मत्रिच्क पास किया . मैं एक झारखंडी मूल्निवाशी होने के कारन चाहता हूँ की झर्ख्गंद में बंगला को उसका अधिकार मिले .

बेसक हिंदी झारखण्ड की प्रथम राजभासा रहे लेकिन कम से कम बंगला को द्वितीय राजभासा का दर्जा तो मिलना चाहिए




सम्बन्धित प्रश्न



Comments Chilka Mena dada on 19-02-2022

Chilka Mena dada





योजना आयोग की पदेन अध्यक्ष कौन होता है - नसबंदी के बाद परहेज सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 7 निम्नलिखित उत्पादों में से कौन - सा उत्पाद फास्ट ब्रीडर रिएक्टर इंडिया मोती झील का संबंध किस जिले से है , जिसका निर्माण महाराजा सूरजमल द्वारा करवाया गया था ? निम्नलिखित जिलों में से किस जिले में सर्वाधिक चीनी मिले स्थापित हैं ? आरटीआई द्वितीय अपील मध्यप्रदेश में ‘खेसारी दाल’ (लैथाइरस सैटाइवस) पर प्रतिबंध है, क्योंकि इसका कुप्रभाव होता है : दिष्ट धारा की आवृत्ति कितनी होती है सामाजिक परिवर्तन में शिक्षक की भूमिका मध्यप्रदेश में मूंगफली का सर्वाधिक उत्पादन किस जिले में होता है ? पैटर्न बनाने की कला के लिए कौनसा नृत्य प्रसिद्ध है - ब्लड प्रेशर मशीन नाम अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस तिरंगे का जन्मदिन तालीकोटा कहा है लेडीज कार्डिगन की डिजाइन राधा गोविन्द संगीत सार के लेखन का श्रेय है - 14 वर्ष से कम आयु के बहुत से गरीब बच्चे पटाखे बनाने वाले कारखाने में काम करते है . इन कारखानों में बच्चो को काम देने से किस मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है -

नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें Culture Question Bank International Relations Security and Defence Social Issues English Antonyms English Language English Related Words English Vocabulary Ethics and Values Geography Geography - india Geography -physical Geography-world River Gk GK in Hindi (Samanya Gyan) Hindi language History History - ancient History - medieval History - modern History-world Age Aptitude- Ratio Aptitude-hindi Aptitude-Number System Aptitude-speed and distance Aptitude-Time and works Area Art and Culture Average Decimal Geometry Interest L.C.M.and H.C.F Mixture Number systems Partnership Percentage Pipe and Tanki Profit and loss Ratio Series Simplification Time and distance Train Trigonometry Volume Work and time Biology Chemistry Science Science and Technology Chattishgarh Delhi Gujarat Haryana Jharkhand Jharkhand GK Madhya Pradesh Maharashtra Rajasthan States Uttar Pradesh Uttarakhand Bihar Computer Knowledge Economy Indian culture Physics Polity

Labels:
अपना सवाल पूछेंं या जवाब दें।






Register to Comment