Pooja Karte Samay Mukh Kis Disha Me Karein पूजा करते समय मुख किस दिशा में करें

पूजा करते समय मुख किस दिशा में करें



Pradeep Chawla on 16-10-2018


सामान्यत: पूर्वाभिमुख होकर अर्चना करना ही श्रेष्ठ स्थिति है। इसमें देव प्रतिमा (यदि हो तो) का मुख और दृष्टि पश्चिम दिशा की ओर होती है। इस प्रकार की गई उपासना हमारे भीतर ज्ञान, क्षमता, सामर्थ्य और योग्यता प्रकट करती है, जिससे हम अपने लक्ष्य की तलाश करके उसे आसानी से हासिल कर लेते हैं। पर विशिष्ट उपासनाओं में पश्चिमाभिमुख रहकर पूजन का वर्णन भी मिलता है। इसमें हमारा मुख पश्चिम की ओर होता है और देव प्रतिमा की दृष्टि और मुख पूर्व दिशा की ओर होती है।
यह सच है कि कहीं भी किसी भी स्थान और दिशा में भक्ति-भाव से पूजा किया जाये तो वह सफल होता है। लेकिन वास्तु के नियम की बात करें तो मकान के पूर्व-उत्तर में पूजा का स्थान सर्वोत्तम माना गया है। इस स्थान पर पूजा स्थल होने से घर में रहने वालों को शांति, सुकून, धन, प्रसन्नता और स्वास्थ का लाभ मिलता है। सीढ़ियों या रसोई घर के नीचे, शौचालय के ऊपर या नीचे कभी भी पूजा का स्थान नहीं बनाना चाहिए।
यह उपासना पद्धति सामान्यत: पदार्थ प्राप्ति या कामना पूर्ति के लिए अधिक प्रयुक्त होती है। उन्नति के लिए कुछ ग्रंथ उत्तरभिमुख होकर भी उपासना का परामर्श देते हैं। दक्षिण दिशा सिर्फ षट्कर्मों के लिए इस्तेमाल की जाती है।
घर अपना हो अथवा किराये का सभी अपने घर को सजाकर और संवार कर रखते हैं। और ऐसे में उनके लिए एक शोचनीय बात यह होती है कि अपने घर में भगवान के लिए कौन सा स्थान सही होगा। भगवान के लिए घर अर्थात पूजा घर या पूजा स्थल। यह बड़ा सवाल है कि घर में पूजा स्थल कौन सी जगह पर होनी चाहिए मूर्तियों या तस्वीरों की दिशा क्या होनी चाहिए।
यह भी सच है कि आज जगह के आभाव में घर में अलग से पूजा का कमरा बनाना संभव नहीं है। फिर भी छोटा से छोटा घर में भी पूजा का स्थान जरूर होता है।
कर्मकांड, तंत्र और वास्तु ये सब अलग-अलग विधाएं हैं। पर, इन्हें मिला देने से कभी-कभी विपरीत फल भी प्राप्त हो सकते हैं।
तंत्र शास्त्र और कर्मकांड में लक्ष्मी की विशिष्ट साधना के लिए पश्चिमाभिमुख होकर अर्चना का उल्लेख मिलता है।
वास्तु में पश्चिम की तरफ पीठ करके यानी पूर्वाभिमुख होकर बैठना ज्ञान प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।
बही वास्तु में सोने के लिए दक्षिण में सिर रखकर सोने का विवरण प्राप्त होता है और इसे ही धन प्राप्ति के लिए उत्तम माना जाता है। क्योंकि, चुंबकीय ऊर्जा दक्षिण से उत्तर की तरफ प्रवाहित होती है।
पश्चिम की तरफ सिर करके सोना सर में भारीपन व स्वास्थ्य समस्याओं के साथ अनेक अवांछित परिस्थितियों को जन्म देने वाला होता है।
उत्तर-पूर्व के कोण को ईशान कोण माना गया है। ईशान कोण वैसे भी देवताओं का स्थान माना गया है। यहां स्वयं भगवान शिव का भी वास होता है। देव गुरु बृहस्पति और केतु की दिशा भी ईशान कोण ही माना गया है। यही कारण है कि यह कोण पूजा-पाठ या अध्यात्म के लिए सबसे बेहतर होता है।
यह भी ध्यान देने की बात है कि पूजा स्थल पर बीच में भगवान गणेश की तस्वीर या मूर्ति जरूर होनी चाहिए। मूर्तियां छोटी और कम वजनी ही बेहतर होती है। अगर कोई मूर्ति खंडित या क्षतिग्रस्त हो जाये तो उसे तुरंत पूजा स्थल से हटा कर कहीं बहते जल में प्रवाहित कर देना चाहिए।
भगवान का चेहरा कभी भी ढका नहीं होना चाहिए। यहां तक कि फूल-माला से भी चेहरा नहीं ढकना चाहिए। संभव हो तो पूजा स्थल ग्राउंडफ्लोर पर खुला और बड़ा होना चाहिए।
पूजास्थल सकारात्मक ऊर्जा का एक शक्तिशाली स्थान होता है शक्ति का इसलिए ध्यान यह देना चाहिए कि घर में एक से अधिक पूजा स्थल नहीं होना चाहिए। अन्यथा परेशानी बढ़ सकती है।
भगवान का मुंह दक्षिण मुखी कभी नहीं होना चाहिए। पूरब, पश्चिम और उत्तर मुखी हो सकते हैं। पूजा करने वाले की भी पूरब-पश्चिम की ओर ही मुंह कर पूजा करना चाहिए। पूजा घर में कोई अन्य सामान नहीं रखना चाहिए।
अगर आप अपने घर में सही स्थान और सही दिशा में पूजा स्थल बनवाकर सही तरीके से पूजा करते हों तो निश्चित रूप से वहां से साकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होगा। जो आपको स्वास्थ तो रखेगा ही सुखी और सामर्थ्यवान भी बनाएगा।



Comments Vijay kashyap on 24-11-2023

Good bahut achha lga यह बात समाज में नहीं अ पर राही है अगर हम मुख अपना पूरब या पश्चिम की ओर करते हैं और उपासना करते समय प्रभु का मुख भी पूर्व होगा तो हम कैसे पूजा कर पाएंगे क्योंकि प्रभु का मुख


Vijay kashyap on 19-10-2022

Good bahut achha lga

Narinder on 26-11-2021

Bed room kay pichay isan conn mai mandir ho to soty samay sir or pair kidhar hony chahiy or bad room kay sath mandir thik hai ya nahi






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