सामुदायिक विकास सम्पूर्ण समुदाय के चतुर्दिक विकास की एक ऐसी पद्धति है जिसमेंजन-सहभाग के द्वारा समुदाय के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने का प्रयत्न किया जाता है।भारत में शताब्दियों लम्बी राजनीतिक पराधीनता ने यहाँ के ग्रामीण जीवन को पूर्णतयाजर्जरित कर दिया था। इस अवधि में न केवल पारस्परिक सहयोग तथा सहभागिता कीभावना का पूर्णतया लोप हो चुका था बल्कि सरकार और जनता के बीच भी सन्देह की एकदृढ़ दीवार खड़ी हो गयी थी। स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय समाज में जो विशमपरिस्थियॉ विद्यमान थी उनका उल्लेख करते हुए टेलर ने स्पष्ट किया कि इस समय‘‘भारत मे व्यापक निर्धनता के कारण प्रति व्यक्ति आय दूसरे देशों की तुलना में इतनी कमथी कि भोजन के अभाव में लाखों लोगों की मृत्यु हो रही थी, कुल जनसंख्या का प्रतिशत भाग प्राकृतिक तथा सामाजिक रूप से एक-दूसरे से बिल्कुल अलग-अलग था,ग्रामीण उद्योग नष्ट हो चुके थे, जातियों का कठोर विभाजन सामाजिक संरचना को विशाक्तकर चुका था, लगभग 800 भाषाओं के कारण विभिन्न समूहों के बीच की दूरी निरन्तरबढ़ती जा रही थी, यातायात और संचार की व्यवस्था अत्यधिक बिगड़ी हुर्इ थी तथा अंग्रेजीशासन पर आधारित राजनीतिक नेतृत्व कोर्इ भी उपयोगी परिवर्तन लाने में पूर्णतया असमर्थ था।’’ स्वाभाविक है कि ऐसी दशा में भारत के ग्रामीण जीवन को पुनर्सगठित किये बिनासामाजिक पुनर्निर्माण की कल्पना करना पूर्णतया व्यर्थ था।
भारत की लगभग 74 प्रतिशत जनसंख्या आज ग्रामों में रहती है। जनसंख्या के इतने बडे़भाग की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का प्रभावपूर्ण समाधान किये बिना हम कल्याणकारीराज्य के लक्ष्य को किसी प्रकार भी पूरा नहीं कर सकते। यही कारण है कि भारत मेंस्वतन्त्रता प्राप्ति के तुरन्त बाद से ही एक ऐसी वृहत योजना की आवश्यकता अनुभव कीजाने लगी जिसके द्वारा ग्रामीण समुदाय में व्याप्त अशिक्षा, निर्धनता, बेरोजगारी, कृषि केपिछडे़पन, गन्दगी तथा रूढ़िवादिता जैसी समस्याओं का समाधान किया जा सके। भारत मेंग्रामीण विकास के लिए यह आवश्यक था कि कृषि की दशाओं में सुधार किया जाये,सामाजिक तथा आर्थिक संरचना को बदला जाये, आवास की दशाओं में सुधार किया जाये,किसानों को कृषि योग्य भूमि प्रदान की जाये, जन-स्वास्थ्य तथा शिक्षा के स्तर को ऊँचाउठाया जाये तथा दुर्बल वगोर्ं को विशेष संरक्षण प्रदान किया जाये। इस बडे़ लक्ष्य कीप्राप्ति के लिए सर्वप्रथम सन् 1948 में उत्तर प्रदेश के इटावा तथा गोरखपुर जिलों में एकप्रायोगिक योजना क्रियान्वित की गयी। इसकी सफलता से प्रेरित होकर जनवरी 1952 मेंभारत और अमरिका के बीच एक समझौता हुआ जिसके अन्तर्गत भारत में ग्रामीण विकासके चतुर्दिक तथा व्यापक विकास के लिए अमरीका के फोर्ड फाउण्डेशन द्वारा आर्थिकसहायता देना स्वीकार किया गया। ग्रामीण विकास की इस योजना का नाम ‘सामुदायिकविकास योजना’ रखा गया तथा 1952 में ही महात्मा गॉधी के जन्म दिवस 2 अक्टूबर से 55विकास खण्डों की स्थापना करके इस योजना पर कार्य आरम्भ कर दिया गया।
सामुदायिक विकास की अवधारणा
ग्रामीण विकास के अध्ययन में रूचि लेने वाले सभी अर्थशास्त्रियों दृष्टिकोण से ‘सामुदायिकविकास’ के अर्थ को समझे बिना इस योजना के कार्यक्षेत्र तथा सार्थकता को समुचित ढंगसे नहीं समझा जा सकता है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से सामुदायिक विकास एक योजनामात्र नहीं समझा जा सकता है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से सामुदायिक विकास एकयोजना मात्र नही है बल्कि यह स्वयं में एक विचारधारा तथा संरचना है। इसका तात्पर्य है कि एक विचारधारा के रूप में यह एक ऐसा कार्यक्रम है जो व्यक्तियों को उनकेउत्तरदायित्वों का बोध कराना है तथा एक संरचना के रूप में यह विभिन्न क्षेत्रों केपारस्परिक सम्बन्धों और उनके पारस्परिक प्रभावों को स्पष्ट करता है। दूसरे शब्दों में यहकहा जा सकता है कि भारतीय सन्दर्भ में, सामुदायिक विकास का तात्पर्य एक ऐसी पद्धतिसे है जिसके द्वारा ग्रामीण समाज की संरचना, आर्थिक साधनों, नेतृत्व के स्वरूप तथाजन-सहभाग के बीच सामंजस्य स्थापित करते हुए समाज का चतुर्दिक विकास करने काप्रयत्न किया जाता है।
शाब्दिक रूप से सामुदायिक विकास का अर्थ- समुदाय का विकास या प्रगति।इसके पश्चात भी सामुदायिक विकास की अवधारणा इतनी व्यापक और जटिल है कि इसेकेवल परिभाषा द्वारा ही स्पष्ट कर सकना बहुत कठिन है। जो परिभाषाएॅ दी गयी है, उनमेंकिसी के द्वारा एक पहलू पर अधिक जोर दिया गया है और किसी में दूसरे पहलु पर।इसके पश्चात भी कैम्ब्रिज में हुए एक सम्मेलन में सामुदायिक विकास को स्पष्ट करते हुएकहा गया था कि ‘‘सामुदायिक विकास एक ऐसा आन्दोलन है जिसका उद्देश्य सम्पूर्णसमुदाय के लिए एक उच्चतर जीवन स्तर की व्यवस्था करना है। इस कार्य मेंप्रेरणा-शाक्ति समुदाय की ओर से आनी चाहिए तथा प्रत्येक समय इसमें जनता कासहयोग होना चाहिए।’’ इस परिभाषा से स्पष्ट होता है कि सामुदायिक विकास ऐसाकार्यक्रम है जिसमें लक्ष्य प्राप्ति के लिए समुदाय द्वारा पहल करना तथा जन-सहयोग प्राप्तहोना आधारभूत दशाएॅ है। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य किसी वर्ग विशेष के हितों तकही सीमित न रहकर सम्पूर्ण समुदाय के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाना है।
योजना आयोग (Planning Commission) के प्रतिवेदन में सामुदायिक विकास केअर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा गया कि ‘‘सामुदायिक विकास एक ऐसी योजना है जिसकेद्वारा नवीन साधनों की खोज करके ग्रामीण समाज के सामाजिक एवं आर्धिक जीवन मेंपरिवर्तन लाया जा सकता है।
प्रो.ए.आर.देसार्इ के अनुसार ‘‘सामुदायिक विकास योजना एक ऐसी पद्धति है जिसकेद्वारा पंचवश्र्ाीय योजनाओं में निर्धारित ग्रामों के सामाजिक तथा आर्थिक जीवन में रूपान्तरणकी प्रक्रिया प्रारम्भ करने का प्रयत्न किया जाता है।’’ इनका तात्पर्य है कि सामुदायिकविकास एक माध्यम है जिसके द्वारा पंचवश्र्ाीय योजनाओं द्वारा निर्धारित ग्रामीण प्रगति केलक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
रैना (R.N. Raina) का कथन है कि ‘‘सामुदायिक विकास एक ऐसा समन्वित कार्यक्रम है जोग्रामीण जीवन से सभी पहलुओं से सम्बन्’िधत है तथा धर्म, जाति सामाजिक अथवा आर्थिकअसमानताओं को बिना कोर्इ महत्व दिये, यक सम्पूर्ण ग्रामीण समुदाय पर लागू होता है। उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि सामुदायिक विकास एक समन्वित प्रणाली हैजिसके द्वारा ग्रामीण जीवन के सर्वागीण विकास के लिए प्रयत्न किया जाता है। इसयोजना का आधार जन-सहभाग तथा स्थानीय साधन है। एक समन्वित कार्यक्रम के रूप मेंइस योजना में जहॉ एक ओर शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य, कुटीर उद्योगों के विकास, कृषिसंचार तथा समाज सुधार पर बल दिया जाता है, वहीं यह ग्रामीणों के विचारों, दृष्टिकोणतथा रूचियों में भी इस तरह परिवर्तन लाने का प्रयत्न करती है जिससे ग्रामीण अपनाविकास स्वयं करने के योग्य बन सकें। इस दृष्टिकोण से सामुदायिक विकास योजना कोसामाजिक-आर्थिक पुनर्निमाण तथा आत्म-निर्भरता में वृद्धि करने वाली एक ऐसी पद्धतिकहा जा सकता है जिसमें सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक विशेषताओं का समावेशहोता है।
सामुदायिक विकास योजना के उद्देश्य
सामुदायिक विकास योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण जीवन का सर्वागीण विकास करनातथा ग्रामीण समुदाय की प्रगति एवं श्रेश्ठतर जीवन-स्तर के लिए पथ प्रदर्शन करना है।इस रूप में सामुदायिक विकास कार्यक्रम के उद्देश्य इतने व्यापक है कि इनकी कोर्इनिश्चित सूची बना सकना एक कठिन कार्य है। इसके पश्चात भी विभिन्न विद्वानों नेप्राथमिकता के आधार पर सामुदायिक विकास कार्यक्रम के अनेक उद्देश्यों का उल्लेखकिया है।
प्रो.ए.आर. देसार्इ ने इस योजना के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए बताया है कि सामुदायिकविकास योजना का उद्देश्य ग्रामीणों में एक मनोवैज्ञानिक परिवर्तन उत्पन्न करना है। साथही इसका उद्देश्य ग्रामीणों की नवीन आकांक्षाओं, प्रेरणाओं, प्रविधियों एवं विश्वासों कोध्यान में रखते हुए मानव शक्ति के विशाल भण्डार को देश के आर्थिक विकास में लगानाहै। लगभग उसी उद्देश्य को प्राथमिकता देते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिवेदन मे डंग हैमरशोल्ड ने स्पष्ट किया है कि ‘‘सामुदायिक विकास योजना का उद्देश्य ग्रामीणों के लिएकेवल भोजन वस्त्र, आवास, स्वास्थ्य और सफार्इ की सुविधाएँ देना मात्र नहीं है बल्किभौतिक साधनों के विकास से अधिक महत्वपूर्ण इसका उद्देश ग्रामीणों के दृष्टिकोण तथाविचारों में परिर्वतन उत्पन्न करना है’’ वास्तविकता यह है कि ग्रामवासियों में जब तक यहविश्वास पैदा न हो कि वे अपनी प्रगति स्वयं कर सकते हैं तथा अपनी समस्याओं को स्वयंसुलझा सकते हैं, तब तक ग्रामों का चतुर्दिक विकास किसी प्रकार भी सम्भव नहीं है। इसदृष्टिकोण से ग्रामीण समु दाय की विचारधारा एवं मनोवृत्ति में परिर्वतन लाना निश्चितही इस कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
डॉ. दुबे ने (S.C. Dube)
सामुदायिक विकास योजना के उद्देश्य को भागों मेंविभाजित करके स्पष्ट किया है: (1) देश का कृषि उत्पादक प्रचुर मात्रा में बढ़ाने का प्रयत्न करना, संचार की सुविधाओंमें वृद्धि करना, शिक्षा का प्रसार करना तथा ग्रामीण स्वास्थ्य और सफार्इ की दशा में सुधारकरना।(2) गाँवों में सामाजिक तथा आर्थिक जीवन को बदलने के लिए सुव्यवस्थित रूप सेसांस्कृतिक परिवर्तन की प्रक्रिया का आरम्भ करना।इससे स्पष्ट होता है कि डॉ. श्यामाचरण सामुदायिक विकास योजना के प्रमुख उद्देश्यके रूप में कृषि के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता देने के पक्ष में है। आपकी यह धारणा हैकि कृषि के समुचित विकास के अभाव में ग्रामीण समुदाय का विकास सम्भव नहीं हैक्योंकि ग्रामिण समुदाय का सम्पूर्ण जीवन किसी न किसी रूप में कृषि से ही प्रभावित है।दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि कृषि के विकास की अपेक्षा ‘दृष्टिकोण मेंपरिवर्तन’ का उद्देश्य गौण है। यदि कृषि के विकास से ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति मेंसुधार हो जाये तो उनके दृष्टिकोण में तो स्वत: ही परिवर्तन हो जायेगा। भारत सरकार केसामुदायिक विकास मंत्रालय द्वारा इस योजना के 8 उद्देश्यों को स्पष्ट किया गया है। येउद्देश्य इस प्रकार हैं: -
- ग्रामीण जनता के मानसिक दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना।
- गाँवों में उत्तरदायी तथा कुशल नेतृत्व का विकास करना।
- सम्पूर्ण ग्रामीण जनता को आत्मनिर्भर एवं प्रगतिशील बनाना।
- ग्रामीण जनता के आर्थिक स्तर को ऊँचा उठाने के लिए एक ओर कृषि काआधुनिकीकरण करना तथा दूसरी ओर ग्रामीण उद्योगों को विकसित करना।
- इन सुधारों को व्यावहारिक रूप देने के लिए ग्रामीण स्त्रियों एवं परिवारों की दशा मेंसुधार करना।
- राष्ट्र के भावी नागरिकों के रूप में युवकों के समुचित व्यक्तित्व का विकास करना।
- ग्रामीण शिक्षकों के हितों को सुरक्षित रखना।
- ग्रामीण समुदाय के स्वास्थ्य की रक्षा करना।
इन प्रमुख उद्देश्य के अतिरिक्त इस योजना में अन्य कुछ उद्देश्यों का भी उल्लेख कियागया है। उदाहरण के लिए, (क) ग्रामीण जनता का आत्मविश्वास तथा उत्तरदायित्व बढ़ाकरउन्हें अच्छा नागरिक बनाना, (ख) ग्रामीणों को श्रेश्ठकर सामाजिक एवं आर्थिक जीवन प्रदानकरना, तथा (ग) ग्रामीण युवकों में संकीर्ण दायरे के बाहर निकलकर सोचने और कार्य करनेकी शक्ति विकसित करना आदि भी इस योजना के कुछ सहयोगी उद्देश्य हैं। इस सभीउद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए यदि व्यापक दृष्टिकोण अपनाया जाय तो यह कहा जासकता है कि सामुदायिक विकास कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण समुदाय के अन्दर सोर्इ हुर्इक्रान्तिकारी शक्ति को जाग्रत करना है जिसमें ग्रामीण समुदाय अपने विचार करने और काय्र करने के तरीकों को बदलकर अपनी सहायता स्वयं करने की शक्ति को विकसित करसकें।
सामुदायिक विकास योजना के सभी उद्देश्य कुछ विशेष मान्यताओं पर आधारितहैं। सर्वप्रमुख मान्यता यह है कि सामुदायिक विकास योजनाएँ स्थानीय आवश्यकताओं परआधारित होनी चाहिए। दूसरे,, उद्देश्य-प्राप्ति के लिए योजना में जन-सहभाग केवलप्रेरणा और समर्थन द्वारा प्राप्त किया जा सकता है, शक्ति के प्रयोग द्वारा नहीं। इसके लिएसामुदायिक विकास कार्यकर्ताओं के चयन और प्रशिक्षण में विशेष सावधानी रखना आवश्यकहै। अन्तिम मान्यता यह है कि वह पूर्णतया नौकरशाही व्यवस्था द्वारा संचालित न होकरअन्तत: ग्रामीण समुदाय द्वारा संचालित होना चाहिए जिसके लिए योजना के आरम्भ से अन्ततक इसमें ग्रामीणों का सक्रिय सहयोग आवश्यक है।
Shahi