ज्वालामुखी क्या है (What Is Volcano In Hindi) : इसे सरल शब्दों में समझे तो यह पृथ्वी पर घटित होने वाली एक आकस्मिक घटना है। इससे भू-पटल पर अचानक विस्फोट होता है, जिसके माध्यम से लावा, गैस, धुँआ, राख, कंकड़, पत्थर आदि बाहर निकलते हैं। और इसके बाद इन सभी वस्तुओं का निकास एक प्राकृतिक नली द्वारा होता है, जिसे निकास नलिका (volcano eruption) कहते हैं।
लावा धरातल पर आने के लिए एक छिद्र बनाता है, जिसे विवर या क्रेटर (Crater) कहते हैं। लावा अपने विवर के आस-पास जम जाता है और एक शंक्वाकार पर्वत बनाता है, जिसे ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं।
Volcano Drawing :
उपरोक्त तस्वीर में माध्यम से आप
volcano drawing को आसानी से समझ सकते है।
ज्वालामुखी विस्फोट की प्रक्रिया :
ज्वालामुखी विस्फोट की प्रक्रिया दो रूपों
(volcanoes in the world) में होती है, जो निम्नलिखित है....
1. भूपृष्ठ के नीचे :
इस प्रकार की प्रक्रिया में लावा धरातल के नीचे पृथ्वी के आन्तरिक भाग में विभिन्न गहराइयों पर ठंडा होकर जम जाता है और बैथोलिथ, लैकोलिथ, लोपोलिथ, सिल, शीट, डाइक आदि रूपों को जन्म देता है।
2. भूपृष्ठ के ऊपर :
इस प्रकार की प्रक्रिया में लावा भूतल पर आकर ठंडा होने से जमता है और उससे विभिन्न प्रकार की भूआकृतियां बनती है।
ज्वालामुखी विस्फोट के कारण :
यहाँ हम आपको निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा ज्वालामुखी विस्फोट के कारणों
(volcano facts) से अवगत करा रहे है, जो इस प्रकार है...
भू-गर्भ में अत्यधिक ताप का होना :
जैसा की हम सब जानते है की पृथ्वी के भू-गर्भ में अत्यधिक तापमान होता है। यह उच्च तापमान वहां पर पाए जाने वाले रेडियोधर्मी पदार्थों के विघटन, रासायनिक प्रक्रमों तथा ऊपरी दबाव के कारण होता है। साधारणतया 32 मीटर की गहराई पर 1 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ जाता है।
इस प्रकार अधिक गहराई पर पदार्थ पिघलने लगता है और भू-तल के कमजोर भागों को तोड़कर बाहर निकल आता है, जिसके कारण ज्वालामुखी विस्फोट होता है।
कमजोर भू-भाग का होना :
ज्वालामुखी विस्फोट के लिए कमजोर भू-भागों का होना अति आवश्यक है। ज्वालामुखी पर्वतों का विश्व-वितरण देखने से स्पष्ट हो जाता है कि संसार के कमजोर भू-भागों से ज्वालामुखी का निकट संबंध है। प्रशांत महासागर के तटीय भाग, पश्चिमी द्वीप समूह और एण्डीज पर्वत क्षेत्र इस तथ्य का प्रमाण देते हैं।
गैसों की उपस्थिति :
ज्वालामुखी विस्फोट के लिए गैसों की उपस्थिति, खासकर जलवाष्प की उपस्थिति महत्वपूर्ण है। वर्षा का जल भू-पटल की दरारों तथा रन्ध्रों द्वारा प्रिथ्वी के आन्तरिक भागों में पहुंच जाता है और वहां पर अधिक तापमान के कारण जलवाष्प में बदल जाता है। समुद्र तट के नजदीक समुद्री जल भी रिसकर नीचे की ओर चला जाता है और जलवाष्प बन जाता है।
जब जल से जलवाष्प बनता है तो उसका आयतन एवं दबाव काफी बढ़ जाता है। अतः वह भू-तल पर कोई कमजोर स्थान पाकर विस्फोट के साथ बाहर निकल आता है, जिसे ज्वालामुखी कहते हैं।
भूकंप :
यह हम सब जानते है की भूकंप से भू-पृष्ठ में विकार उत्पन्न होता है और भ्रंश पड़ जाते हैं। इन भ्रंशों से पृथ्वी के आन्तरिक भाग में उपस्थित मैग्मा धरातल पर आ जाता है और ज्वालामुखी विस्फोट होता है।
विलुप्त ज्वालामुखी :
इस प्रकार के ज्वालामुखी में विस्फोट प्रायः बन्द हो जाते हैं और भविष्य में भी कोई विस्फोट होने की सम्भावना नहीं होती है। ऐसे ज्वालामुखी के मुख का गहरा क्षेत्र धीरे-धीरे क्रेटर झील के रूप में बदल जाता है, जिसके ऊपर पेड़-पौधे उग आते हैं।
इसे भारत के नजरिये से देखें तो यहाँ धोसी हिल एक विलुप्त ज्वालामुखी है, जो अरावली पर्वत श्रृंखला के उत्तर-पश्चिम छोर में अकेला खड़ा है, जिसकी ऊँचाई आसपास की भूमि से लगभग 345 से 470 मीटर तक है।
यह अरावली पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है, जो कि प्रीकैम्ब्रियन मैलानी आग्नेय सुइट से संबंधित है। चट्टानों की ढोसी पहाड़ी हरियाणा और राजस्थान के भारतीय राज्यों की सीमाओं पर स्थित है। हरियाणा का हिस्सा महेंद्रगढ़ जिले में दक्षिण में, सिंघाना रोड पर नारनौल से 5 किलोमीटर (3.1 मील); राजस्थान का भाग उत्तर में झुंझुनू जिले में स्थित है।