Chittor Ka Itihas चितौड़ का इतिहास

चितौड़ का इतिहास



GkExams on 27-12-2018


पद्मिनी महल का तैलचित्र

चित्तौड़गढ़ का एक शहर है। यह शूरवीरों का शहर है जो पहाड़ी पर बने दुर्ग के लिए प्रसिद्ध है। चित्तौड़गढ़ की प्राचीनता का पता लगाना कठिन कार्य है, किन्तु माना जाता है कि महाभारत काल में महाबली भीम ने अमरत्व के रहस्यों को समझने के लिए इस स्थान का दौरा किया और एक पंडित को अपना गुरु बनाया, किन्तु समस्त प्रक्रिया को पूरी करने से पहले अधीर होकर वे अपना लक्ष्य नहीं पा सके और प्रचण्ड गुस्से में आकर उसने अपना पाँव जोर से जमीन पर मारा, जिससे वहाँ पानी का स्रोत फूट पड़ा, पानी के इस कुण्ड को भीम-ताल कहा जाता है; बाद में यह स्थान मौर्य अथवा मूरी राजपूतों के अधीन आ गया, इसमें भिन्न-भिन्न राय हैं कि यह मेवाड़ शासकों के अधीन कब आया, किन्तु राजधानी को उदयपुर ले जाने से पहले 1568 तक चित्तौड़गढ़ मेवाड़ की राजधानी रहा। यहाँ पर रोड वंशी राजपूतों ने बहुत समय राज किया। यह माना जाता है गुलिया वंशी बप्पा रावल ने 8वीं शताब्दी के मध्य में अंतिम सोलंकी राजकुमारी से विवाह करने पर चित्तौढ़ को दहेज के एक भाग के रूप में प्राप्त किया था, बाद में उसके वंशजों ने मेवाड़ पर शासन किया जो 16वीं शताब्दी तक गुजरात से अजमेर तक फैल चुका था।


अजमेर से खण्डवा जाने वाली ट्रेन के द्वारा रास्ते के बीच स्थित चित्तौरगढ़ जंक्शन से करीब 2 मील उत्तर-पूर्व की ओर एक अलग पहाड़ी पर भारत का गौरव राजपूताने का सुप्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ का किला बना हुआ है। समुद्र तल से 1338 फीट ऊँची भूमि पर स्थित 500 फीट ऊँची एक विशाल (ह्वेल मछ्ली) आकार में, पहाड़ी पर निर्मित्त यह दुर्ग लगभग 3 मील लम्बा और आधे मील तक चौड़ा है। पहाड़ी का घेरा करीब 8 मील का है तथा यह कुल 609 एकड़ भूमि पर बसा है।


चित्तौड़गढ़, वह वीरभूमि है जिसने समूचे भारत के सम्मुख शौर्य, देशभक्ति एवम् बलिदान का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। यहाँ के असंख्य राजपूत वीरों ने अपने देश तथा धर्म की रक्षा के लिए असिधारारुपी तीर्थ में स्नान किया। वहीं राजपूत वीरांगनाओं ने कई अवसर पर अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अपने बाल-बच्चों सहित जौहर की अग्नि में प्रवेश कर आदर्श उपस्थित किये। इन स्वाभिमानी देशप्रेमी योद्धाओं से भरी पड़ी यह भूमि पूरे भारत वर्ष के लिए प्रेरणा स्रोत बनकर रह गयी है। यहाँ का कण-कण हममें देशप्रेम की लहर पैदा करता है। यहाँ की हर एक इमारतें हमें एकता का संकेत देती हैं।


GkExams on 12-05-2019

चित्तौड़गढ़ का इतिहास वीरतापूर्ण लड़ाइयों, राजपूत शूरता, महिलाओं के अद्वितीय साहस की कई और कहानियां सुनाता है। अपने घटनापूर्ण इतिहास में चित्तौड़गढ़ के शहर ने हमले और कब्जे के कई प्रयास देखे हैं। चित्तौड़गढ़ ने जो सबसे घातक हमला देखा है वो 14वीं सदी की शुरुआत में था। रानी पद्मिनी की खूबसूरती से आकर्षित होकर अलाउद्दीन खिलजी किसी भी तरह उसे पाना चाहता था। उन्हें पाने के पागलपन में अलाउद्दीन ने चित्तौड़गढ़ पर हमला कर दिया। पद्मिनी के पति महाराजा रतन सिंह और उनके आदमियों ने खूब बहादुरी से युद्ध किया लेकिन वो खिलजी के हाथों हारे और मारे गए। हालांकि अलाउद्दीन का यह प्रयास विफल रहा क्योंकि चित्तौड़गढ़ किले में महिलाओं और रानी पद्मिनी ने जौहर यानि आत्मदाह कर लिया। चित्तौड़गढ़ पर दोबारा हमला महाराजा बिक्रमजीत के शासन में 16वीं सदी के मध्य में हुआ। गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने राजपूतों को हराया पर इतिहास ने खुद को दोहराया जब रानी कर्णवती के नेतृत्व में महिलाओं ने जौहर कर लिया। उनके बेटे उदय सिंह जो उस समय सिर्फ एक शिशु थे, उन्हें बूंदी भेजा गया और बाद में वो बूंदी और चित्तौड़गढ़ के राजा बने। मुगल शासक अकबर ने 1567 में चित्तौड़गढ़ पर कब्जा कर लिया। उदयसिंह ने इसका प्रतिरोध नहीं किया और पलायन कर गए और नया शहर उदयपुर बनाया। हालांकि दो किशोरों पत्ता और जयमल के नेतृत्व में राजपूतों ने पूरी ताकत से लड़ाई लड़ी और मारे गए। अकबर के आदमियों ने चित्तौड़गढ़ किले को लूटा और तबाह किया, और आज इस किले के अवशेष इस जगह के समृद्ध इतिहास की याद दिलाते हैं।


GkExams on 12-05-2019

waah

भूपेंद्र सिंह on 12-05-2019

चित्तौड़गढ़ का इतिहास वीरतापूर्ण लड़ाइयों, राजपूत शूरता, महिलाओं के अद्वितीय साहस की कई और कहानियां सुनाता है। अपने घटनापूर्ण इतिहास में चित्तौड़गढ़ के शहर ने हमले और कब्जे के कई प्रयास देखे हैं। चित्तौड़गढ़ ने जो सबसे घातक हमला देखा है वो 14वीं सदी की शुरुआत में था। रानी पद्मिनी की खूबसूरती से आकर्षित होकर अलाउद्दीन खिलजी किसी भी तरह उसे पाना चाहता था। उन्हें पाने के पागलपन में अलाउद्दीन ने चित्तौड़गढ़ पर हमला कर दिया। पद्मिनी के पति महाराजा रतन सिंह और उनके आदमियों ने खूब बहादुरी से युद्ध किया लेकिन वो खिलजी के हाथों हारे और मारे गए। हालांकि अलाउद्दीन का यह प्रयास विफल रहा क्योंकि चित्तौड़गढ़ किले में महिलाओं और रानी पद्मिनी ने जौहर यानि आत्मदाह कर लिया। चित्तौड़गढ़ पर दोबारा हमला महाराजा बिक्रमजीत के शासन में 16वीं सदी के मध्य में हुआ। गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने राजपूतों को हराया पर इतिहास ने खुद को दोहराया जब रानी कर्णवती के नेतृत्व में महिलाओं ने जौहर कर लिया। उनके बेटे उदय सिंह जो उस समय सिर्फ एक शिशु थे, उन्हें बूंदी भेजा गया और बाद में वो बूंदी और चित्तौड़गढ़ के राजा बने। मुगल शासक अकबर ने 1567 में चित्तौड़गढ़ पर कब्जा कर लिया। उदयसिंह ने इसका प्रतिरोध नहीं किया और पलायन कर गए और नया शहर उदयपुर बनाया। हालांकि दो किशोरों पत्ता और जयमल के नेतृत्व में राजपूतों ने पूरी ताकत से लड़ाई लड़ी और मारे गए। अकबर के आदमियों ने चित्तौड़गढ़ किले को लूटा और तबाह किया, और आज इस किले के अवशेष इस जगह के समृद्ध इतिहास की याद दिलाते हैं।



Comments भूपेंद्र सिंह on 13-10-2023

Hi





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