Dingal Kavita डिंगल कविता

डिंगल कविता



GkExams on 06-05-2022


डिंगल के बारें में : राजस्थान के चारण कवियों ने अपने गीतों के लिये जिस साहित्यिक शैली का प्रयोग किया है, उसे डिंगल कहा जाता है। आपकी बेहतर जानकारी के लिए बता दे की चारण कवियों के अतिरिक्त प्रिथीराज जैसे अन्य कवियों ने भी डिंगल शैली में रचना की है।


ध्यान रहे की राजस्थान के भट्ट कवि "डिंगल" का आश्रय न लेकर "पिंगल" में रचना करते रहे हैं। कुछ विद्वान् "डिंगल" और "राजस्थानी" को एक दूसरे का पर्यायवाची मानते हैं, किंतु यह मत भाषाशास्त्रीय दृष्टि से त्रुटिपूर्ण है।


डिंगल कविता :




मास फागण मोहणो मन, जड़ज चैतन जोश।
रूंख फालै साख रूड़ी, मानखो मदहोश।
तो उदघोस जी उदघोस, सुरंगी रुत रो उदघोस।।

खिलै कळियां फलक खोलै, भंमरां भणकार।
रस चूसत भमैह रसिया, पाळवा थिर प्यार।
तो रसधार जी रसधार, कुदरत लुटावै रसधार।।


वृंदवन में कान विचरै, सुघड़ राधा संग।
गोप गोपी मगन गावै, रास रवमय रंग।
तो अरधंग जी अरधंग, राधा साम री अरधंग।।


डांडिया भरपूर डणकै, ढमक बाजै ढोल।
गैरिया गणणाट गमकै, रमत घण रमझोल।
तो धमरोल जी धमरोल, उडैह खैह रा धमरोल।।


गांव गळियां गीत गूंजै, राग फागण रंग।
ढाणी रमत ढोल ढमकै,मुखर धुन मड़दंग।
तो उछरंग जी उछरंग, हिवड़ै छावियो उछरंग।।


नार नर सब निडर नाचै, उमंग भर भर अंग।
मौज मस्ती मिनख मचलै, चोट पडतां चंग।
तो हुड़दंग जी हुड़दंग,माचै होळियां हुड़दंग।।


प्रेम रस औमाव पूरण, सजन सजनी संग।
भर्ये हिवड़ै बदन भीनै, रमै होळी रंग।
तो सतरंग जी सतरंग, फागण आवियो सतरंग ।।


प्यारी धण रा रंगै पीया, गौर बरणा गाल।
हेत समंदर लै हबोळा, प्रीत बांधै पाल।
तो हेताळ जी हेताळ, जोड़ी जबर री हेताळ।।


भला देवर नणद भावज, टाबरां री टोळ।
धुलेंडी रो उडै धमचक, रंग में रगदोळ।
तो ठिठठोल जी ठिठठोल, हासा मसखरी ठिठठोल।।


रीत उजवळ रंग राचै, प्रेम रस पिचकार।
भेदभावां भींत भागै, प्रखर पसरै प्यार।
तो बौछार जी बौछार, बरसै नेह री बौछार ।।


लाल चूंदड़ ओढ़ लचकै, कळहळाता कैर।
रोहिड़ां रा फूल राता, महकै चहूं मेर।
तो लख लैर जी लख लैर, कुदरत कोख में लखलैर।।


हरणकुस री बैन होळी, लखण कीधा लाख।
पैलादे रो परस पाए, खला हुयगी खाख।
तो अखियात जी अखियात, भगत पैळादो अखियात।।


दंभ आळस दोस दुरगुण, होळी मांहि होम।
मांहि राखो मिनखचारो, कस्ट उबरै कौम।
तो हरिओम जी हरिओम, समरो रात दिन हरिओम।।


अडग ऊभा सीम ऊपर, धरा भारत धीश।
रगत रंगांह गैर रमै, समर बगसै शीश।
तो धरणीश जी धरणीश, फौजी रांगड़ा धरणीश।।


कोयलां वनराय कुहकै, हरियाळी हमेस।
विड़द फागण 'दीप' वरणै, सांवठो संदेश।
तै मरुदेस जी मरुदेस, वाल्हो हिवड़ै मरुदेस।।



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