छत्तीसगढ़ सरकार की पहल और नयी हथकरघा नीति की वजह से हथकरघा कपड़ा बुनाई से लगभग 53 हजार बुनकर, स्कूली बच्चों के गणवेश सिलाई इत्यादि में छह हजार महिलाओं को रोजगार मिला है।
ऋषि कुमार सिन्हा की उम्र 30 साल है और वे राजनांदगांव जिले के सुकुलदैहान गाँव के रहने वाले हैं। वे अपने माता-पिता, पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहते हैं। करीब 2 एकड़ जमीन भी है उनके पास। ऋषि अपने पिता के साथ किसानी करते हैं। चूँकि जमीन कम है इस वजह से खेती से ज्यादा आमदनी नहीं हो पाती। घर-परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए ऋषि रंगाई और पुताई का काम भी करते हैं। दिन-भर रंगाई-पुताई का काम करने पर 100 रुपये मिलते हैं। बड़ी मुश्किल से घर में हर महीने 6 हजार रुपये जमा हो पाते हैं। इन्हीं 6 हजार रुपयों से सभी की सारी जरूरतें पूरी करनी होती हैं।
ऋषि की तरह ही हालत विजय चतुर्वेदी की भी है। विजय भी युवा हैं, उम्र 28 साल और अपने माता-पिता, पत्नी और तीन बच्चों के साथ गाँव में रहते हैं। उनके पिता की एक किराना दूकान और इसी दूकान से होने वाली आमदानी से घर-परिवार चलता है। आमदनी महीना 6 हजार से ज्यादा नहीं हो पाती।
लेकिन, ऋषि और विजय की जिंदगी उस समय बदली जब उन्हें यह पता चला कि युवाओं को रोजगार का स्थाई प्रबंध करने के मकसद से छत्तीसगढ़ सरकार के हाथकरघा विभाग ने लोगों को हैंडलूम लेने और हैंडलूम के जरिये कपड़ा बनाने की ट्रेनिंग देने का फैसला लिया है। बड़ी बात यह है सरकार ने गैर-बुनकरों को भी हाथकरघा पर कपड़ा बनाने का प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया था।
छत्तीसगढ़ सरकार के इसी फैसले और योजना का लाभ उठाने के लिए सुकुलदैहान गाँव में बुनकर सहकारी समिति का गठन किया गया। गाँव के कई युवा और महिलाएं इस सहकारी समिति से जुड़ गए। समिति के दफ्तर में हथकरघा लगवाए गए। युवाओं और महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया। गैर-बुनकर लोगों ने भी हैंडलूम पर कपड़ा बनाने का प्रशिक्षण लिया। ऋषि कुमार सिन्हा और विजय चतुर्वेदी ने भी प्रशिक्षण लिया और हैंडलूम पर कपड़ा बनाने लगे। अब दोनों हैंडलूम पर कपड़ा बनाते हए हर महीने कम से कम 9 हजार रुँपये कम रहे हैं। उनके घर-परिवार की न सिर्फ आर्थिक हालत सुधरी है बल्कि उनकी जिंदगी में खुशियाँ और खुशहाली आयी है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि छत्तीसगढ़ सरकार खुद बुनकर सहकारी समितियों को धागा उपलब्ध करती है और इस धागे से कपड़ा बनने के बाद खुद सरकार ही कपड़ा खरीद लेती है।
पहले होता यह था कि बुनकर कपड़ा तो बना लेते थे लेकिन उन्हें खरीददार ढूँढने में कई तरह की तकलीफों का सामना करना पड़ता था। खरीददार के मिल जाने पर भी कपड़े का सही दाम नहीं मिल पाता था। चूँकि अब सरकार खुद बुनकरों से कपड़ा खरीद रही है जो बुनकर दूसरे काम में लग गए थे वे भी अब हाथकरघा पर लौट आये हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार की पहल और नयी हथकरघा नीति की वजह से हथकरघा कपड़ा बुनाई से लगभग 53 हजार बुनकर, स्कूली बच्चों के गणवेश सिलाई इत्यादि में छह हजार महिलाओं को रोजगार मिला है। शासकीय वस्त्र प्रदाय योजना के तहत शासन के विभिन्न विभागों के लिए हथकरघा कपड़ों और स्कूली बच्चों के लिए गणवेश कपड़ों के उत्पादन से राज्य के बुनकरों को नियमित रूप से रोजगार दिलाया जा रहा है। राज्य में कार्यशील बुनकर सहकारी समितियों की संख्या 111 से बढ़कर 245 हो गई है। इस वर्ष के अंत तक यह संख्या बढ़कर 260 से ज्यादा हो जाएगी।
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