पर्यावरण जागरूकता में शिक्षक की भूमिका
वायु, जल, भूमि वनस्पति, पेड़, पौधे, पशु, मानव, सब मिलाकर पर्यावरण बनाते है l प्रकृति में इन सबकी मात्रा और इनकी रचना कुछ इस प्रकार से व्यवस्थित है की पृथ्वी पर एक संतुलनमय जीवन चलता रहे l विगत करोड़ो वर्षो से जब से पृथ्वी पर मनुष्य, पशु-पक्षी, और अन्य जीव और जीवाणु उपभोक्ता बनकर आये तब से, प्रकृति का यह चक्र निरंतर और अबाध गति से चला आ रहा है l जिसको जितनी आवश्यकता है वह उने मिलता रहता हैऔर प्रकृति आगे के लिये अपने में और उत्पन्न करके और संरक्षित कर लेती है l
पिछले लगभग 100 वर्षो में जब से मनुष्य ने प्रकृति पर विजय प्राप्त करने के लिये अनेक वैज्ञानिक उपलब्धियां अर्जित की, सुख-सुबिधा के साधन जुटाये, बढ़ते आबादी की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु औद्योगिक क्रांति का सहारा लिया, तभी से प्रकृति का सामान्य रूप विखण्डित होने लगा l वन काटने लगे, उपजाऊ भूमि पर आवास बनने लगे, बड़े-बड़े जंगल साफ़ कर बांधो की योजना बनी और न जाने कितने ऐसे प्रयोग शुरु हो गये जो मानव प्रकृति के अनुकूल नहीं थे l अतः सामान्य जीवन में परिवर्तन आने लगा l पहले तो प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता में कमी आई और फिर शनैःशनैः वायु, जल, भूमि आदि सभी, जो जीवन के लिये आवश्यक है, प्रदूषित होने लगे, जो चिंता का कारण बन गये l
पर्यावरण संरक्षण एवं प्रबंधन का कार्य चाहे कितना भी छोटा एवं सतही रूप में क्यूँ न हो, संचालित अवश्य किया जाये, क्योंकि सतही उपाय ही भविष्य में जनसमूह के द्वारा वृहद रूप धारण कर लेंगे l कोई भी योजना पेड़ पकड़कर फोटो खिंचवाने तथा कागजों तक सिमट कर नहीं रहना चाहिए lजैसा की पिछले वर्ष उ. प्र. सरकार द्वारा लगाये गये न जाने कितने वृक्ष कागजों में ही लग गये और वास्तविकता क्या थी किसी से छिपी नहीं है l हमारा यदि यही हाल रहा तो वह दिन दूर न होगा जब जब हमारे जीवन की कहानी पुष्प समर्पित फोटो एवं कागजों में ही सिमटकर रह जायेगी l ऐसी विपरीत परिस्थितियों में विभिन्न प्रश्न उठते हैं कि –स्वयं, समाज व विश्व पर प्रदूषण का क्या प्रभाव होगा ? दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे प्रदूषण को रोकने के लिये एवं जनमानस तैयार करने का कार्य किसको सौपा जाये ? हमारे किन-किन कार्यों से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है की जानकारी किसके द्वारा किनकी सहायता से दी जा सकती है ? पर्यावरण संरक्षरण एवं प्रबंधन क्यों, कैसे और किसके द्वारा किया जाये ? यह उत्तरदायित्व मुख्य रूप से कौन निभा सकता है जिसके द्वारा पर्यावरण संरक्षण एवं प्रबंधन के उचित एवं सतही कारगर उपाय क्रियान्वित किये जा सकें ? तब हमें एक ही उत्तर प्राप्त होता है, समाज के संचारक (Messenger) एवं चाबी (Key)– शिक्षकगण l
शिक्षक ही समाज का भविष्य निर्माता तथा सूचना का वाहक होता है l शिक्षक का कार्य मात्र सूचनायें देना ही नहीं बल्कि क्रियाओं को करके दिखाना भी है l कहा भी गया है कि – “Teacher is not only a SOURCE but also a RESOURCE.” (शिक्षक स्रोत ही नहीं बल्कि साधन भी है)l वर्तमान में इस बात की महती आवश्यकता है की शिक्षकों एवं छात्रों द्वारा पर्यावरण संरक्षण एवं प्रबंधन के प्रति समाज में चेतना उत्पन्न की जाये l यद्पि इस बारे में सरकार द्वारा समय-समय पर सराहनीय कार्य किये गये और किये भी जा रहे हैं लेकिन इनको इतिश्री नहीं समझना चाहिए l पर्यावरण संरक्षण में हमारा भी क्या प्रयास हो सकता है ? जरा सोचिये........! और शीघ्र ही कार्य को क्रियान्वित करना प्रारम्भ कीजिए l पर्यावरण संरक्षण एवं प्रबंधन में शिक्षक के उत्तरदायित्व इस प्रकार हो सकते हैं –
(1) रोल मॉडल- पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने कहा था की “सर्वप्रथम शिक्षक को प्रत्येक क्षेत्र में रोल मॉडल बनना चाहिए l”पर्यावरण संरक्षण एवं प्रबंधन के प्रति शिक्षक को स्वयं भी जागरूक हो तथा स्वयं वृक्ष लगाना, साफ़-सफाई, नैतिक, चारित्रिक एवं सामजिक गुणों को अपने जीवन में अंगीकृत करता हो, तभी छात्र एवं समाज के लोग इन गुणों को अपने जीवन में उतारेंगे l
(2) शिक्षक प्रभाव- “एक विद्यार्थी 12वीं तक की अपनी पढाई के दौरान 25 हजार घंटे स्कूल में व्यतीत करता है और उसका जीवन अपने शिक्षकों से ज्यादा प्रभावित होता है l”यह बाल्यावस्था से लेकर किशोरावस्था तक का समय ऐसा होता है जिसमें की बच्चों में पर्यावरण संरक्षण एवं प्रबंध जैसी विभिन्न आदतों का विकास किया जा सकता है, इसलिए आवश्यक है की शिक्षक पर्यावरणीय तकनीकियों की जानकारियों से छात्रों को अवगत करायें तथा उनमे प्रारम्भ से ही नैतिक गुणों एवं अच्छी आदतों का विकास करें l
(3) सांस्कृतिक एवं सामुदायिक कार्यक्रम- शिक्षक समाज को जागरूक करने के लिये कुछ विशेष कार्यक्रम जैसे- एन. सी. सी., एन. एस. एस., स्काउट-गाईड्स एवं अन्य सभी छात्रों के सहयोग से विद्यालय के अन्दर एवं बाहर नुक्कड़ नाटक, पर्यावरण गीत एवं विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों आदि की सहायता से जन-आन्दोलन ला सकते हैं l पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषित स्थिति का छात्र प्राकृतिक वेश-भूषा पहनकर प्रचार-प्रसार कर सकते हैं तथा छात्रों एवं शिक्षकों द्वारा स्वयं समाज में वृक्षारोपण किया जा सकता है l
(4) जागरूकता रैली एवं बोलती दीवारें- समाज में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जनचेतना फैलाने के लिये शहरों एवं विशेष तौर से गावों की गलियों में जागरूकता रैली निकाल सकते हैं तथा दीवारों पर पर्यावरण से सम्बन्धित उपयुक्त स्लोगन, संरक्षण एवं प्रदूषण की स्थिति के वास्तविक चित्र स्वयं व छात्रों के लिख एवं बना सकते हैं l
(5) अकादमिक कार्य एवं सृजनात्मकता- शिक्षक, विद्यालय में पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित लेख, वाद-विवाद प्रतियोगिता, सेमिनार, वर्कशॉप तथा कांफ्रेंस आदि आयोजित कर छात्रों को प्रेरित कर सकते हैं तथा विद्यालय में पत्रिका प्रकाशन का सुझाव दे सकते जिसमे पर्यावरण शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न विषयों के साथ-साथ उसकी उपयोगिता बढ़ाने के लिये अन्य विषयों के भी लेख हों चाहे उनका स्तर कुछ भी हो, जिससे छात्रों में सृजनात्मकता का विकास भी होगा और प्रदूषण/संरक्षण के बारे में मौलिक विचार भी मिलेंगे l
(6) लैब एवं प्रकोष्ठ- विभिन्न विषयों की भांति विद्यालय स्तर पर भी पर्यावरण शिक्षा के लिये एक लैब तथा प्रकोष्ठ की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि शिक्षक ओ. एच. पी., टी. वी., सी. डी., चार्ट, मॉडल एवं स्वयं प्रयोग/परीक्षण आदि के द्वारा छात्रो को पर्यावरण प्रदूषण के कारण उत्पन्न भयावह दृष्यों व क्रंदन को दिखा व सुना सकें lपरिणामतः छात्रों में पर्यावरण संरक्षण के लिये संवेदना एवं जिज्ञासा उत्पन्न होगी l
(7) भ्रमण- शिक्षक, छात्रों को भ्रमण के द्वारा प्रदूषण, गन्दी बस्तियों एवं विकराल रूप धारण कर चुके असहाय जीवन जीने को मजबूर व्यक्तियों, परिस्थितियों तथा स्वच्छ वातावरण के द्वारा उत्पन्न शांति, ईमानदारी, साफ-सफाई एवं प्राकृतिक हरियाली को साक्षात् रूप में दिखा सकते हैं l
(8) मीडिया- शिक्षक, टी. बी., डिश आदि पर पर्यावरण से सम्बन्धित कार्यक्रमों, जैसे- भूमि, माइक पाण्डेय कृत अर्थ मैटर आदि देखने को प्रोत्साहित कर सकते हैं, जिससे छात्र पर्यावरण से सम्बन्धित डाकुमेंट्री फिल्म व फोटोग्राफी आदि के द्वारा समय-समय पर होने वाले परिवर्तनों एवं सुधारों से अद्द्तित होते रहेंगे l छात्रों को पर्यावरण से सम्बन्धित मैग्जीन्स, पीरियोडिकल्स, जर्नल्स एवं समाचार-पत्र आदि को पढ़ने एवं जगह-जगह पोस्टर लगाने को कहा जाये तथा बाद में किस छात्र ने इनसे क्या ग्रहण किया तथा कार्यक्रम कैसा चल रहा है, के लिये “फॉलोअप प्रोग्राम”चलाया जाये l
(9) प्रोजेक्ट कार्य / क्रियात्मक शोध- शिक्षक पर्यावरण शिक्षा से सम्बन्धित छोटे-छोटे प्रोजेक्ट कार्य तथा शीघ्र ही समाधित होने वाले “समस्या हमारी समाधान भी हमारा” के उद्देश्य पर आधारित क्रियात्मक शोध व्यक्तिगत या समूह में दे सकते हैं तथा विद्यालय के अन्य सभी छात्रों का सहयोग भी प्राप्त कर सकते हैं l जिससे हमारे पास समूह रूपी ऐसी पौध तैयार होगी जो भविष्य में पर्यावरण के प्रति सचेत एवं संवेदनशील होगी l
(10) स्प्रिचुअल क्वॉशिएन्ट(S.Q.)- वर्तमान में समय आ गया है कि आध्यात्मिक बुद्धिको बढ़ावा दिया जाये l“आध्यात्मिकता का अर्थ है अपने अस्तित्व का ज्ञान l वह ज्ञान जो हमें बोध कराये कि हम कौन हैं, क्यों हैं और हमारा उद्देश्य एवं लक्ष्य क्या है l” अपने आपको जानकर ही हमारी स्वयं, पर्यावरण एवं राष्ट्र के प्रति क्या जिम्मेदारी है, को समझ सकते हैं l आध्यात्मिक आन्दोलन से ही पर्यावरण संरक्षित किया जा सकता है, क्योंकि हमारे सभी धर्मों ने इसको प्राथमिकता दी है l छात्रों में पर्यावरण संरक्षण एवं प्रबन्धन के लिए जोश, जज्बा और जुनून विकसित करने एवं योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए एक “स्प्रिचुअल सर्किल” (आध्यात्मिक मण्डल) का गठन किया जा सकता है l
विश्व के यदि सभी सेवारत एवं सेवानिवृत शिक्षक स्वयं तथा छात्रों के सहयोग से पर्यावरण संरक्षण एवं प्रबन्धन के प्रति समाज को जागरूक कर जनचेतना फैलायें तो भविष्य की एक महँ विभीषिका से आने वाली पीढ़ियों की रक्षा की जा सकती है, क्योंकि शिक्षक का एकल प्रयास ही भविष्य का सामूहिक प्रयास होगा l शिक्षकों के साथ-साथ समाज के सभी लोगों का भी पर्यावरण संरक्षण में क्या कोई योगदान हो सकता है ? इसी आव्हान के साथ...........एक शायर का कथन है-
“भले शजर न सही सिर्फ घास रहने दो l जमीं के जिस्म पे कुछ तो लिबास रहने दो l”
Adhyapika dwara chatrao ko pryavaran ki suraksha ke vishy mea samjhana
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Nice
Aap es Parker ke point upload karth royo
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