जस्ता (जिंक)
यह एक सूक्ष्म पोषक तत्व है, जिसकी पौधों को भले ही कम मात्रा में आवश्यकता होती है, किन्तु वृद्धि एवं उत्पादन के लिये उतना ही आवश्यक है, जितना मुख्य तत्व इसके अभाव में पौधों पर लक्षण दिखाई देते हैं। वे उस प्रकार है।
धान:-
धान के पौधे में तीसरी चौथी पत्ती के पटल के मध्य में हल्के पीले या भूरे रंग के रतुआ जैसे धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में बढ़े और गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं। जिसको खेरा रोग के नाम से जाना जाता है। पुरानी पत्तियों के किनारे सूखने लगते हैं, कभी-कभी लगभग पुरानी पत्तियों का रंग पीड़ा पड़ जाता है। या पत्तियां रंगविहीन हो जाती हैं और छोटी रह जाती हैं। पौधे झाड़ीनुमा दिखाई देते हैं। तथा बढ़वार रूक जाता है। फसल में कल्ले कम फूटते हैं। तथा बालों का पूर्ण विकास नही हो पाता है। न ही दाने अच्छी तरह बन पाते हैं। फसल काफी देर से पकती है।
मक्का:-
मक्के में इस तत्व की कमी से पत्तियों का रंग पीला पडऩे लगता है। ऊपर की दो तीन पत्तियों को छोड़कर शेष पत्तियों में पीलापन पत्तियों के निचले हिस्से से शुरू से होता है। बीच की नशे लाल पड़ जाती हैं। और बाद में पत्तियों पर सफेद धब्बे भी पड़ जाते हैं। जो समय के साथ सारी पत्तियों पर फैल जाते हैं। अधिक कमी की अवस्था में पौधों की बढ़वार पूरी तरह नहीं हो पाती है, सामान्यत: यदि जस्ते की कमी ज्यादा न हो तो समय के साथ इसकी कमी के लक्षण लुप्त हो जाते हैं। परन्तु दाने बनने की प्रक्रिया में देर हो जाती है। इस कमी को प्राय: मक्के की सफेद कली के नाम से जाना जाता है। क्योंकि अत्यधिक कमी से पत्तियाँ कागज के समान सफेद हो जाती हैं। यह बुवाई के दो तीन सप्ताह बाद से ही फसल में इसके कमी के लक्षण परिलक्षित होने लगते हैं। क्योंकि जिंक पर्णहरितमा (क्लोरोफिल) के निर्माण में सहायक होता है।
सोयाबीन:-
सोयाबीन मं जस्ते की कमी के लक्षण आरम्भ में नीचे की पहली और दूसरी पत्तियों पर शिराओं के बीच और किनारे पर हरिमाहीनता देखी जा सकती है। पीलापन पत्तियों किनारों से आरंभ होकर मध्य शिरा की ओर बढ़ता है। बाद की अवस्था में कमी होने पर ऊतकों का क्षय होकर पत्तियां प्राय: सूख जाती हैं।
मूंगफली:-
मूंगफली में जस्ते की कमी से नई निकले वाली पत्तियां आकार में छोटी तथा मुड़ी रह जाती हैं। धारियों के मध्य भाग में पहले स्वर्णिम पीला (गोल्डन यलो) रंग विकसित होता है, जो कि बाद में चाकलेट या भूरे रंग के धब्बे का रूप का ले लेता है। जिसका आरंभ पत्तियों की नोंक से होता है। जिससे पौधों की वृद्धि रूक जाती है। तथा फलियां छोटी रह जाती है।
गन्ना, ज्वार, एवं बाजरा:-
फसल बुवाई के एक डेढ़ माह बाद पत्तियों की मध्य शिरा के पास सफेद पीली धारियों का दिखाई देना जस्ते की कमी के विशिष्ट लक्षण है। सामान्यतौर पर कमी के लक्षण पत्तियों के आधार से प्रारम्भ होकर पत्तियों की नोंक की तरफ बढ़ते हैं। ऊपर की दोनों पत्तियों को छोड़कर प्राय: सभी पत्तियों पर कमी के लक्षण दृष्टिगोचर होता है।
उड़द:-
फसल बुवाई के तीन-चार सप्ताह बाद पत्तियों पर हल्के पीले रंग के छोटे-छोटे धब्बे दिखाई देते हैं। परन्तु नसों का रंग हरा ही रहता है। पत्तियां छोटी रह जाती हैं। तथा कपनुमा हो जाती हैं। पीले रंग की पत्तियों धीरे-धीरे भूरे रंग की बदल जाती हैं। तथा सूख कर गिर जाती हैं।
अरहर:-
इस फसल में जस्ते की कमी के लक्षण लगभग बुवाई के तीन-चार सप्ताह के अंदर प्रकट हो जाते हैं। आरम्भ में पत्तियों के शिराओं के मध्य भाग में नारंगी पीला रंग विकसित होता है। बाद में हरितमाहीन धब्बे पत्तियों के किनारों पर और विशेषकर नोंक पर दिखाई देते हैं। जब पत्ती का लगभग 60 प्रतिशत भाग प्रभावित हो जाता है। तो पत्ती झड़ जाती है। नई पत्तियां आकार में छोटी में रह जाती हैं।
कपास:-
पत्तियों के बाहरी शिरों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। पत्तियां गुच्छों में निकलती हैं। तथा नवजात पत्तियां क्लोरोटिक होती हैं। और उसकी नसें हरी होती हैं। कलियों की बढ़वार रूक जाती है। तथा गांठों के बीच की लम्बाई घट जाती है। तथा नई पत्तियों पर छोटे-छोटे बदनुमा धब्बे दिखाई पड़ते हैं। फूल एवं फल बनने की प्रक्रिया पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
Zinc or passforas kha sa magwna ha
Zinc ka hai hi ki kheti mai upyog
Cottan ki kheti main zinc ka use kab air kese karain
52 bigha mai zinc ka upoyog karna hai 1 bigha mai zinc kitna dalna hai upay batye
यह कितनी matra me padta hai
1bhiga dhan ki phasal me jink matra kitni honi chahiy
1bhiga dhan ki phasal me jink matra kitni honi chahiy
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