Rashtriya Madhyamik Shiksha Abhiyan pdf राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान pdf

राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान pdf



GkExams on 17-11-2018


आरएमएसए का लक्ष्‍य प्रत्‍येक घर से उचित दूरी पर एक माध्‍यमिक स्‍कूल उपलब्‍ध कराकर पांच वर्ष में नामांकन दर माध्‍यमिक स्‍तर पर 90 प्रतिशत त‍था उच्‍चतर माध्‍यमिक स्‍तर पर 75 प्रतिशत तक बढ़ाने का है। इसका लक्ष्‍य सभी माध्‍यमिक स्‍कूलों को निर्धारित मानकों के अनुरूप बनाते हुए महिला-पुरूष भेदभाव, सामाजिक-आर्थिक और नि:शक्‍तता-बाधाओं को मिटाते हुए और 2017 तक माध्‍यमिक स्‍तर तक की शिक्षा की व्‍यापक सुलभता की व्‍यवस्‍था कराते हुए माध्‍यमिक शिक्षा की गुणवत्‍ता में सुधार करना भी है।


लाखों बच्चों को प्रारम्भिक शिक्षा देने के लिए सरकार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RSMA) काफी हद तक सफल रहा है एवं इसने पूरे देश में माध्यमिक शिक्षा के आधारभूत ढांचे को शक्तिशाली बनाने की आवश्यकता उत्पन्न कर दी है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने यह बात गौर से देखी है तथा अब वह 11वीं योजना के दौरान 20,120 करोड़ रुपये के कुल व्यय पर राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA) नामक एक माध्यमिक शिक्षा योजना लागू करने पर विचार कर रही है।


मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुसार- “सर्व शिक्षा अभियान सफलतापूर्वक लागू होने से बड़ी संख्या में छात्र उच्च प्राथमिक कक्षाओं में उत्तीर्ण हो रहे हैं तथा माध्यमिक शिक्षा के लिए ज़बरदस्त मांग उत्पन्न कर रहे हैं।”

दृष्टि

माध्यमिक शिक्षा की दृष्टि है 14-18 वर्ष आयु समूह के सभी युवाओं को अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा सुलभ तथा वहन योग्य तरीके से उपलब्ध कराना। इस दृष्टि को ध्यान में रखते हुए, निम्नलिखित को हासिल किया जाना है:

  • किसी भी अधिवास क्षेत्र के लिए वाजिब दूरी पर माध्यमिक विद्यालय की सुविधा उपलब्ध कराना, जो कि माध्यमिक विद्यालय के लिए 5 किलोमीटर तथा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय स्तर पर 7-10 किलोमीटर के अंदर हो,
  • 2017 तक सभी को माध्यमिक शिक्षा की सुलभता सुनिश्चित करना (100% GER), एवं
  • 2020 तक सभी बच्चों को स्कूल में बनाये रखना,
  • समाज के आर्थिक रूप से कमज़ोर तबकों के विशेष सन्दर्भ में, शैक्षिक रूप से पिछड़ों, लड़कियों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे असमर्थ बच्चों एवं अन्य पिछड़े वर्गों जैसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यकों (EBM) को माध्यमिक शिक्षा सुगमतापूर्वक ढंग से उपलब्ध कराना।

लक्ष्य एवं उद्देश्य

माध्यमिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण (यूनिवर्सलाइज़ेशन ऑफ सॆकंडरी एजुकेशन, USE) की चुनौती का सामना करने के लिए माध्यमिक शिक्षा की परिकल्पना में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। इस सम्बन्ध में मार्गदर्शक तत्व हैं: कहीं से भी पहुंच, सामाजिक न्याय के लिए बराबरी, प्रासंगिकता, विकास, पाठ्यक्रम एवं ढांचागत पहलू। माध्यमिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण अभियान बराबरी की ओर बढ़ने का मौका देता है। आम स्कूल की परिकल्पना प्रोत्साहित की जाएगी। यदि प्रणाली में ये मूल्य स्थापित किए जाते हैं, तो अनुदान रहित निजी विद्यालयों सहित सभी प्रकार के विद्यालय भी समाज के निचले वर्ग के बच्चों एवं गरीबी रेखा से नीचे (BPL) के परिवारों के बच्चों को उचित अवसर देना सुनिश्चित कर माध्यमिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण (USE) के लिए योगदान देंगे।

मुख्य उद्देश्य

  • यह सुनिश्चित करना कि सभी माध्यमिक विद्यालयों में भौतिक सुविधाएं, कर्मचारी हों तथा स्थानीय सरकार/निकायों एवं शासकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों के मामले में कम से कम सुझाए गए मानकों के अनुसार, एवं अन्य विद्यालयों के मामले में उचित नियामक तंत्र के अनुसार कार्य हों,
  • नियमों के अनुसार सभी युवाओं को माध्यमिक विद्यालय स्तर की शिक्षा सुगम बनाना- नज़दीक स्थित करके (जैसे कि माध्यमिक विद्यालय 5 किलोमीटर के भीतर एवं उच्चतर माध्यमिक विद्यालय 7-10 किलोमीटर के भीतर) / दक्ष एवं सुरक्षित परिवहन की व्यवस्था/ आवासीय सुविधाएं, स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार, मुक्त स्कूलिंग सहित। लेकिन पहाड़ी तथा दुर्गम क्षेत्रों में, इन नियमों में कुछ ढील दी जा सकती है। ऐसे क्षेत्रों में आवासीय विद्यालय स्थापित किए जाने को तरजीह दी जा सकती है।
  • यह सुनिश्चित करना कि कोई भी बालक लिंग, सामाजिक-आर्थिक, असमर्थता या अन्य रुकावटों की वज़ह से गुणवत्तापूर्ण माध्यमिक शिक्षा से वंचित न रहे,
  • माध्यमिक शिक्षा का स्तर सुधारना, जिसके परिणामस्वरूप बौद्धिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक सीख बढ़े,
  • यह सुनिश्चित करना कि माध्यमिक शिक्षा ले रहे सभी छात्रों को अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा मिले,
  • उपर्युक्त उद्देश्यों की प्राप्ति, अन्य बातों के साथ-साथ, साझा विद्यालय प्रणाली (कॉमन स्कूल सिस्टम) की दिशा में महती प्रगति को भी दर्शाएगी।

द्वितीय चरण के लिए तरीका एवं रणनीति

संख्या, विश्वसनीयता एवं गुणवत्ता की चुनौती का सामना करने के लिए माध्यमिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण (USE) के सन्दर्भ में, अतिरिक्त विद्यालयों, अतिरिक्त कक्षों, शिक्षकों एवं अन्य सुविधाओं के रूप में बड़े पैमाने पर लागत आएगी। साथ ही साथ, इसमें आकलन/शैक्षकीय आवश्यकताओं के प्रावधान, भौतिक ढांचे, मानव संसाधन, अकादमिक जानकारी एवं कार्यक्रम लागू करने की प्रभावी निगरानी की भी आवश्यकता है। शुरू में यह योजना कक्षा 10 के लिए होगी। तत्पश्चात्, जहां तक हो सके लागूकरण के दो वर्षों के भीतर, उच्चतर माध्यमिक स्तर को भी लिया जाएगा। माध्यमिक शिक्षा तक सभी की पहुंच बनाने एवं उसकी गुणवत्ता में सुधार के लिए रणनीति इस तरह है:

पहुँच

देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्कूली शिक्षा में बड़ी असमानता है। निजी तथा सरकारी विद्यालयों के बीच असमानताएं हैं। गुणवत्तापूर्ण माध्यमिक शिक्षा के लिए एकसमान पहुंच प्रदान करने के लिए, यह स्वाभाविक है कि राष्ट्रीय स्तर पर विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए विस्तृत नियम विकसित किए जाएं तथा प्रत्येक राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश के लिए प्रावधान किए जाएं– न सिर्फ राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश की भौगोलिक, सामाजिक-आर्थिक, भाषागत एवं सांख्यिकीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए बल्कि जहां ज़रूरी हो, स्थानीय जगह के अनुसार भी। माध्यमिक विद्यालयों से नियम सामान्यतौर पर केन्द्रीय विद्यालयों के तुल्य होने चाहिए। ढांचागत सुविधाओं एवं सीखने के संसाधनों का विकास निम्नलिखित तरीकों से किया जाएगा,

  • मौजूदा विद्यालयों में माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों की शिफ्टों का विस्तार/रणनीति,
  • सूक्ष्म नियोजन के आधार पर सभी आवश्यक ढांचागत सुविधाओं एवं शिक्षकों सहित उच्च प्राथमिक विद्यालयों का उन्नयन। प्राथमिक विद्यालयों के उन्नयन के समय आश्रम विद्यालयों को प्राथमिकता दी जाएगी,
  • आवश्यकता के आधार पर माध्यमिक विद्यालयों का उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में उन्नयन,
  • स्कूल मैपिंग प्रक्रिया द्वारा अब तक अछूते रहे क्षेत्रों में नए माध्यमिक विद्यालय/उच्चतर माध्यमिक विद्यालय खोलना। इन सभी इमारतों में वर्षा-जल संचय प्रणाली अनिवार्य रूप से होगी तथा उसे विकलांगों के लिए मित्रवत् बनाया,
  • वर्षा-जल संचय प्रणालियां मौजूदा विद्यालयों में भी लगाई जाएंगी,
  • मौजूदा स्कूलों की इमारतों को भी विकलांगो के लिए मित्रवत् बनाया जाएगा,
  • नए विद्यालयों को भी सार्वजनिक-निजी भागीदारी के आधार पर स्थापित किया जाएगा।

गुणवत्ता

  • आवश्यक ढांचागत सुविधाएं, जैसे श्यामपट्ट, कुर्सियाँ, पुस्तकालय, विज्ञान एवं गणित की प्रयोगशालाएं, कम्प्यूटर प्रयोगशालाएं, शौचालय आदि की सुविधाएँ उपलब्ध कराना,
  • अतिरिक्त शिक्षकों की नियुक्ति तथा शिक्षकों का कार्य के दौरान प्रशिक्षण,
  • कक्षा 8 उत्तीर्ण कर रहे छात्रों की सीखने की क्षमता में वृद्धि के लिए सेतु-पाठ्यक्रम,
  • राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना (National Curriculum Framework, NCF, 2005) के मानकों की अपेक्षा के अनुसार पाठ्यक्रम का पुनरावलोकन,
  • ग्रामीण तथा दुर्गम पहाड़ी इलाकों में शिक्षकों के लिए आवासीय सुविधा,
  • महिला शिक्षकों को आवासीय सुविधा के लिए प्राथमिकता दी जाएगी

न्याय

  • अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग एवं अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों के लिए मुफ्त भोजन/आवास की सुविधाएं,
  • लड़कियों के लिए छात्रावास/आवासीय विद्यालय, नकद प्रोत्साहन, स्कूल ड्रेस, पुस्तकें व अलग शौचालय की सुविधाएँ,
  • प्रावीण्य सूची में आए/ज़रूरतमंद छात्रों को माध्यमिक स्तर पर छात्रवृत्ति प्रदान करना,
  • सभी गतिविधियों की विशिष्टता होगी संयुक्त शिक्षा। सभी विद्यालयों में विभिन्न क्षमताओं के बच्चों के लिए सभी सुविधाएं प्रदान करने के प्रयास किए जाएंगे,
  • मुक्त एवं दूरस्थ सीखने की ज़रूरतों के फैलाव की आवश्यकता, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो पूर्णकालिक माध्यमिक शिक्षा हासिल नहीं कर सकते, तथा आमने-सामने बैठकर निर्देशों के लिए पूरक सुविधा/सुविधाओं में वृद्धि। यह प्रणाली विद्यालय के बाहर छात्रों की शिक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

संस्थागत सुधार एवं स्रोत संस्थाओं का सशक्तीकरण

केन्द्रीय सहायता प्राप्त करने के लिए प्रत्येक राज्य में आवश्यक प्रशासनिक सुधार पूर्व-शर्त होगी। इन संस्थागत सुधारों में शामिल हैं-

  • विद्यालय प्रशासन में सुधार– प्रबन्ध तथा जवाबदारियों के विकेन्द्रीकरण द्वारा विद्यालयों के प्रदर्शन में सुधार,
  • शिक्षकों की भर्ती, नियुक्ति, प्रशिक्षण, वेतन एवं करियर विकास की न्यायोचित नीति आत्मसात करना,
  • शैक्षणिक प्रशासन में आधुनिकीकरण/ई-शासन एवं ज़िम्मेदारी बांटना/ विकेन्द्रीकरण करना
  • सभी स्तरों पर माध्यमिक शिक्षा प्रणाली में आवश्यक व्यावसायिक एवं अकादमिक जानकारी का प्रावधान,
  • कोषों के त्वरित प्रवाह एवं उनके अधिकतम उपयोग के लिए वित्तीय प्रक्रियाओं का सरलीकरण,
  • विभिन्न स्तरों पर स्रोत संस्थाओं का आवश्यक सशक्तीकरण, उदाहरण के लिए,
    • राष्ट्रीय स्तर पर- राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (RIEs सहित), राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन विश्वविद्यालय (NUEPA) एवं राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (NIOS),
    • राज्य स्तर पर- राजकीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (SCERT), राज्य के मुक्त विद्यालय, राजकीय शैक्षिक प्रबंधन और प्रशिक्षण संस्थान (State Institute of Educational Management and Training, SIEMAT) आदि एवं
    • विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग, विज्ञान/सामाजिक विज्ञान/मानविकी शिक्षा क्षेत्र की प्रसिद्ध संस्थाएं, एवं केन्द्र प्रायोजित शिक्षकों की शिक्षा योजना, शिक्षक शिक्षण कॉलेज/ शिक्षा में उन्नत अध्ययन की संस्थाएं।

पंचायती राज संस्थाओं की भागीदारी

नियोजन प्रक्रिया लागू करने तथा उसपर निगरानी रखने एवं सतत् विकास के लिए पंचायती राज एवं नगर निगम, समुदाय, शिक्षकों, पालकों एवं अन्य हिस्सेदारों की माध्यमिक शिक्षा में विद्यालय प्रबंध समितियों एवं पालक-शिक्षक संघों जैसी व्यवस्थाओं के माध्यम से भागीदारी।

भारत सरकार की चार योजनाएँ

भारत सरकार द्वारा चार केंद्र प्रायोजित योजनाएं संचालित की जा रही हैः

  1. राज्य सरकारों को माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में कम्प्यूटर शिक्षा एवं कम्प्यूटर की मदद से शिक्षा देने के लिए विद्यालयों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT),
  2. राज्य सरकारों तथा गैर सरकारी संस्थाओं (NGOs) द्वारा असमर्थ बच्चों को मुख्य धारा में लाने के लिए असमर्थ बच्चों की एकीकृत शिक्षा (IEDC),
  3. गैर सरकारी संस्थाओं (NGOs) को ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों के छात्रावास चलाने में सहायता देने के लिए माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों की बालिकाओं के लिए खानपान एवं छात्रावास सुविधाओं का सुदृढ़ीकरण (पहुँच एवं न्याय),
  4. अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान ओलिम्पियाड को सहायता के साथ-साथ विद्यालयों में गुणवत्ता में वृद्धि जिसमें योग की शुरुआत, विद्यालयों में विज्ञान की शिक्षा, पर्यावरण शिक्षा एवं जनसंख्या शिक्षा के लिए राज्य सरकारों को सहायता देने का प्रावधान शामिल है, वर्त्तमान रूप या संशोधित रूप में ये सभी योजनाएं, नई योजना के साथ मिल जाएँगी,
  5. वित्तीय रूप से कमजोर बच्चों को स्वयं के रोज़गार या अंशकालीन रोज़गार के लिए तैयार कर सीखने के दौरान आय अर्जित करने का प्रावधान। राज्य / केंद्र शासित प्रदेश प्रखंड व जिला स्तर पर वोकेशनल प्रशिक्षण केन्द्र एवं संस्थाएं स्थापित कर सकते हैं।

केंद्रीय विद्यालय एवं जवाहर नवोदय विद्यालय

इस क्षेत्र में तीव्रता लाने व उनके महत्व को देखते हुए केंद्रीय विद्यालय एवं जवाहर नवोदय विद्यालय की संख्या को बढ़ाया जाएगा एवं उनकी भूमिकाएं सशक्त की जाएंगी ।

वित्तीय प्रबंधन और प्रापण

वित्‍तीय प्रबंधन का आशय, परियोजना के विभिन्‍न वित्‍तीय संसाधनों में सामान्‍य प्रबंधन सिद्धांत लागू करने से संबंधित है। इसमें योजना बनाना, आयोजन करना और परियोजना निधियों के प्रापण एवं प्रयोज्‍यता जैसी गतिविधियों का निदेशन और नियंत्रण सम्मिलित हैं।


उद्देश्‍य


सामान्‍य रूप से वित्‍तीय प्रबंधन का संबंध, किसी परियोजना के लिए खरीद, आवंटन और वित्‍तीय संसाधनों के नियंत्रण से है। गैर-लाभकारी सामाजिक कार्यक्रमों के तहत वित्‍तीय प्रबंधन के उद्देश्‍य निम्‍नलिखित है:

  • कार्यक्रम के अंतर्गत निधियों की नियमित और पर्याप्‍त रूप में पूर्ति सुनिश्चित करना।
  • अधिक‍तम और पर्याप्‍त रूप से निधियों का उपयोग करना जिससे कार्यक्रम अपने पूर्व निर्धारित उद्देश्‍यों को प्राप्‍त करने की ओर अग्रसर होते हैं।
  • सभी नियोजित कार्यकलापों के लिए बजट और बजट कैलेंडर तैयार करना।
  • परियोजना के लिए उपलब्‍ध निधियों/संसाधनों के दुरूपयोग से बचना।
  • कार्यक्रम के कार्यान्‍वयन के दौरान निर्णयकर्ताओं को सुधारात्‍मक कदम उठाने में सक्षम करना।

वित्‍तीय प्रबंधन के तत्‍व


आरएमएसए कार्यक्रम के तहत वित्‍तीय प्रबंधन में निम्‍नलिखित मुख्‍य घटक शामिल है:

  • परियोजना के लिए बजट: बजट तैयारी में विशिष्‍ट कार्यों और लक्ष्‍यों को चिन्ह्ति करना और इन कार्यकलापों को वित्‍तीय शब्‍दावली में ‘आरएमएसए के लिए बजट’ के रूप में अभिव्‍यक्‍त करना शामिल है।
  • वित्‍तीय योजना: वित्‍तीय योजना में योजना निधि प्रवाह, प्रापण योजना, कार्मिक (स्‍टाफिंग), स्‍टाफ की क्षमता निर्माण, बजट कैलेंडर आदि तैयार करना सम्मिलित है।
  • वित्‍तीय परिषद और निगरानी: वित्‍तीय प्रधान का यह दायित्‍व है कि वह निधियों के उपयोग की निगरानी करें और वह परियोजना के कार्यान्‍वयन के लिए निर्धारित नियमों और विनियमों सुनिश्‍चत अनुपालन का करे। नियंत्रण और निगरानी के लिए सांविधिक लेखा-परीक्षा, आंतरिक लेखा-परीक्षा, प्रापण-समीक्षा, वित्‍तीय एमआईएस आदि को वित्‍तीय साधनों के रूप में प्रयोग किया जाए।




सम्बन्धित प्रश्न



Comments Priyanka on 22-11-2020

Madhyamik siksha sanchalan ke sanchalan ke liye vibhin yojanaye





मरू विकास के संबंध में जोधपुर का नाम लिया जाता है क्योकि? 1 . यहां केन्द्रीय क्षेत्र अनुसंधान संस्थान है 2 . यहां मरुस्थल वृक्षारोपण अनुसंधान केन्द्र है 3 . यहां केन्द्रीय रेगिस्तान विकास बोर्ड है हड़प्पाकालीन स्थलों में अभी तक किस धातु की प्राप्ती नहीं हुई है - cell structure and function notes in hindi एक शिक्षक कक्षा के कार्य को एकत्र करता है और उन्हें पढ़ाता है उसके बाद योजना बनाता है और अपने अगले पाठ को शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समायोजित करता है। वह … … … … . कर रहा/रही है ? (CTET-I LEVEL-2014) भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना किसी देश का निबल राष्ट्रीय उत्पाद होती है - भारत में दूरदर्शन की शुरुआत विवाह संस्कार विधि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना मध्यप्रदेश 2017 निम्नलिखित में से कौन - सा राष्ट्रपति के निर्वाचन का भाग हैं परन्तु उसके महाभियोग अधिकरण का भाग नहीं है - मानव हृदय में कक्षा की संख्या है ? लेज़र और ३द किसके प्रकार है महाभारत के पात्र कर्ण मध्य प्रदेश के अभयारण्य मौसम विज्ञान का संस्थापक कौन है राजस्थान के पश्चिमी भाग में अत्यधिक उच्च तापमान क्यों होता है ? कोणार्क का सूर्य मन्दिर किस प्रदेश में स्थित है भारत का सबसे बड़ा मूंगफली उत्पादन राज्य है - पुत्र प्राप्ति के लिए हनुमान जी की पूजा भारत में सबसे कम वर्षा वाला स्थान

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