पहाडियो से घिरे औंगाबाद शहर का अपना अलग ही ऐतिहासिक महत्व है। इसे शहर को मलिक अम्बर ने सन् 1610 में बसाया था तब इसका नाम खिडकी रखा गया था। सन् 1626 में मलिक अम्बर के पुत्र फतेहखान ने इसका फतेहपुर रख दिया। सन् 1653 में औरंगजेब ने जब दक्षिण पर विजय प्राप्त की थी तब उसने इस शहर का नाम बदल कर औरंगाबाद घोषित कर दिया था। औरंगाबाद एक साफ सुथरा शहर है यह शसर चारो ओर से दीवार से घिरा हुआ है जिसमे 52 दरवाजे लगे है। अब आगे हम औरंगाबाद पर्यटन स्थल के बारे में जानेगें और उनकी सैर करेगे
बीवी का मकबरा
यह स्थल औरंगाबाद पर्यटन स्थल का सबसे प्रसिद्ध स्थल है। आगरा के ताजमहल की हूबहू प्रतिकृति बीवी का मकबरा दक्षिण का ताजमहल कहा जाता है। यह मुगल व फारसी वास्तुकला का अदभुत नमूना है। इसका निर्माण औरंगजेब के पुत्र आजमशाह ने सन् 1678 में अपनी माता व औरंगजेब की पत्नी रजिया बेगम की याद में करवाया था। इसके आसपास सुंदर बाग बगीचे फव्वारे व तालाब है जो इसकी सुंदरता में चार चांद लगाते है। पूनम की रात में इस मकबरे की सुंदरता देखते ही बनती है।
इस पनचक्की का निर्माण मलिक अम्बर ने सन् 1645 में करवाया था। यह औरंगाबाद के शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय के एकदम निकट है। यह चक्की आज भी चालू हालत में है जिसे देखकर पर्यटक दंग रह जाते है।
सिद्धार्थ उद्यान
यह उद्यान जिसे मिनी अप्पूघर भी कहा जाता है स्थानीय बस स्टैंड के समीप ही स्थित है। यहा के हरे भरे बगीचे, झूले, भूल भुलैया, संगीतमय फव्वारा, मिनी ट्रेन और अप्पू हाथी बच्चो और बडो को खुब लुभाते है। यहा एक सर्पालय भी है जिसमे आप 1200 से भी अधिक सांपो की प्रजातियो को देख सकते है।
विश्वविद्यालय संग्रहालय
इस संग्रहालय में आप पुरातात्विक महत्व की दुर्लभ वस्तुओ के दर्शन कर सकते है। यहा पर 17 वी व 18वी शताब्दी की अरबी भाषाओ की पांडुलिपिया भी दर्शनीय है।
हिमायत बाग
शहर के उत्तर में स्थित हिमायत बाग पिकनीक के लिए उत्तम स्थान है। इसे पर्यटको के लिए दिन भर खुला रखा जाता है।
माता श्री कौशल्या पुरवार संग्रहालय
यह अनूठा संग्रहालय डा° शांतिलाल पुरवार ने अपने निजी भवन में बनाया है। इसमे देश की ऐतिहासिक व सास्कृतिक धरोहर के रूप में नायाब व दुर्लभ वस्तुए संग्रहीत करके प्रदर्शित की गई है। यहा पर कुछ वस्तुए ऐसी भी है जो देश के किसी भी संग्रहालय में नही है।
दौलताबाद का किला
यह किला औरंगाबाद से 14 किलोमीटर की दूरी पर 600 फुट की उचांई पर बना है। यह किला यादव शासको का मुख्य गढ माना जाता था। दिल्ली के सुल्तान मुहम्द बिन तुगलक ने 14वी शताब्दी में इसे अपनी राजधानी बनाकर दौलताबाद नाम दिया था जिसका अर्थ है समृद्धि का नगर।
खुलदाबाद
खुलदाबाद दौलताबाद से 10 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा सा गांव है। यहा जैनुद्दीन शैराजी का मकबरा है। जिसमे औरंगजेब की मजार है। इसके अलावा यहा प्रसिद्ध हनुमान मंदिर “भद्र मारूती” भी है। जिसकी विशेषता यह है कि यहा हनुमान की प्रतिमा कमर के बल लेटी अवस्था में है।
म्हैसमाल
यह औरंगाबाद का निकटतम हिल स्टेशन है। खुलदाबाद से यह 12 किलोमीटर दूर है। यहा का रास्ता अत्यंत दुर्लभ व पथरीला है। यहा वर्ष भर ठंडक रहती है। पर्यटक यहा सूर्योदय और सूर्यास्त के मनोहारी दृश्य देखने के लिए आते है। पर्यटको की सुविधा के लिए यहा एक गेस्ट हाउस भी है।
पैठण
औरंगाबाद से लगभग 56 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पैठण को संतो की भूमि कहा जाता है। एक समय था जब पैठण रोम से व्यापार किया करता था। यहा विश्व प्रसिद्ध पैठणी साडी का निर्माण होता है। जिसका मूल्य हजारो से लेकर लाखो रूपयो तक होता है। यहा का जानेश्वर उद्यान मैसूर के वृंदावन गार्डन की याद दिलाता है।
एलोरा की गुफाएं
एलोरा की गुफाएं औरंगाबाद से 30 किलोमीटर की दूरी पर है। ये गुफाएं अपने भव्य शिल्प व स्थापत्य कला के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध है। यहा की गुफाएं बौद्ध, जैन धर्म की संस्कृतियो के दर्शन मूर्तिकला के माध्यम से कराती है। चट्टानो को काटकर बनाई गई ये गुफाएं संख्या में 34 है जिनमे 16 हिंदू, 13 बौद्ध, तथा 5 जैन धर्म की है। अजंता की गुफाएं जहा कलात्मक भित्तियो के लिए प्रसिद्ध है वही एलोरा की गुफाएं मूर्तिकला के लिए विख्यात है।
घृष्णेश्वर मंदिर
देश के 12 ज्योर्तिलिंगो मे से एक यह मंदिर एलोरा गुफाओ के समीप ही स्थित है। इसका निर्माण 10वी शताब्दी में राजा कृष्णदेव राय ने कराया था। इस स्थल की अपनी अलग ही धार्मिक महत्ता है।
अजंता की गुफाएं
सदियो तक अंधकार की गर्त में छिपी रही ये अनूठी गुफाएं औरंगाबाद से 99 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इन गुफाओ की खोज का श्रेय ब्रिटिश फौजी अफसर जॉन स्मिथ को जाता है जिसने इनकी खोज सन् 1819 में की थी। पर्वतो को तराशकर बनाई गई इन 30 गुफाओ में भित्तिचित्र और कलात्मक मूर्तिया पर्यटको को मंत्र मुग्ध कर देते है कहा जाता है कि इन गुफाओ का निर्माण दूसरी शताब्दी में किया गया था। अजंता की गुफाएं दो प्रकार की है। एक चैत्य और दूसरी स्तूप। गुप्तकाल में गुफा की दीवारो पर की गई चित्रकारी भारतीय चित्रकला की गौरवशाली पूंजी है। यहा पर अधिकांश चित्र बौद्ध धर्म से संबंधित है। अजंता गुफाओ के बौद्ध धर्म से संबंधित होने के कारण जापान सरकार ने अनुदान देकर औरंगाबाद से अजंता तक बढिया सडक का निर्माण करवाया है जिस पर खाने पीने के लिए उत्तम रेस्टोरेंट और ढाबो की उत्तम व्यवस्था है। पर्यटको के लिए ये गुफाएं सुबह 9 बजे से शाम साढे पांच बजे तक खुली रहती है।
पीतलखोरा गुफाएं
ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से ईसा पश्चात पहली शताब्दी के दौरान निर्माण की गई 13 बौद्ध गुफाएं एकांत घाटी के किनारो पर एलोरा के उत्तर प्श्चिम क्षेत्र से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यही कुछ दूरी पर गौताला अभ्यारण्य भी है जहा आप विभिन्न जंगली जानवरो को करीब से देख सकते है। औरंगाबाद पर्यटन स्थल की सैर पर आने वाले अधिकतर सैलानी यहा आना पसंद करते है।
वायु मार्ग द्वारा
औरंगाबाद के लिए दिल्ली, मुंबई, जयपुर तथा उदयपुर से इंडियन एयरलाइंस व जेट एयरवेज की सीधी उडाने है। यहा का हवाई अड्डा शहर से 10 किलोमीटर दूर है।
रेल मार्ग द्वारा
औरंगाबाद के लिए हैदराबाद, दिल्ली, मुंबई, पुणे, अमृतसर से सीधी रेल सेवाएं उपलब्ध है।
सडक मार्ग द्वारा
औरंगाबाद के लिए जलगांव, मुंबई, पुणे, महाबलेश्वर, नागपुर, कोल्हापुर, इंदौर, सूरत, अहमदाबाद, हैदराबाद, शोलापुर, शिरडी, नांदेड, बडौदा, गोवा आदि प्मुख स्थानो से सरकारी व प्राईवेट बस सेवाएं उपलब्ध रहती है।
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