राजस्थानी के भीष्म पितामह कहे जाने श्री कन्हैयालाल सेठिया जी को कौन नहीं जानता होगा। यदि कोई नहीं जानता हो तो कोई बात नहीं इनकी इन पंक्तियों को तो देश का कोना-कोना जानता है।
धरती धोराँ री............,
आ तो सुरगां नै सरमावै,
ईं पर देव रमण नै आवै, ईं रो जस नर नारी गावै,
धरती धोराँ री, ओssss धरती धोराँ री|
श्री सेठिया जी का यह अमर गीत देश के कण-कण में गुंजने लगा, हर सभागार में धूम मचाने लगा, घर-घर में गाये जाने लगा। स्कूल-कॉलेजों के पाढ्यक्रमों में इनके लिखे गीत पढ़ाये जाने लगे, जिसने पढ़ा वह दंग रह गया, कुछ साहित्यकार की सोच को तार-तार कर के रख दिया, जो यह मानते थे कि श्री कन्हैयालाल सेठिया सिर्फ राजस्थानी कवि हैं, इनके प्रकाशित काव्य संग्रह ने यह साबित कर दिखाया कि श्री सेठीया जी सिर्फ राजस्थान के ही नहीं पूरे देश के कवि हैं।
हिन्दी जगत की एक व्यथा यह भी रही कि वह जल्दी किसी को अपनी भाषा के समतुल्य नहीं मानता, दक्षिण भारत के एक से एक कवि हुए, उनके हिन्दी में अनुवाद भी छापे गये, विश्व कवि रविन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओं का भी हिन्दी अनुवाद आया, सब इस बात के लिये तरसते रहे कि हिन्दी के पाठकों में भी इनके गीत गुण्गुणाये जाये, जो आज तक संभव नहीं हो सका, जबकि श्री कन्हैयालाल सेठिया जी के गीत धरती धोराँ री, आ तो सुरगां नै सरमावै, ईं पर देव रमण नै आवै, और असम के लोकप्रिय गायक व कवि डॉ॰भूपेन ह्जारिका का विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार, निःशब्द सदा, ओ गंगा तुम, ओ गंगा बहती हो क्यों ? गीत हर देशवासी की जुवान पर है।
यह इस बात को भी दर्शाता है कि पाठकों को किसी एक भाषा तक कभी भी बांधकर नहीं रखा जा सकता और न ही किसी कवि व लेखक की भावना को। यह बात भी सत्य है कि इन कवियों को कभी भी हिन्दी कवि की तरह देश में मान नहीं मिला, बंगाल रवीन्द्र टैगोर, शरत्, बंकिम को देवता की तरह पूजता है। बिहार दिनकर पर गर्व करता है। उ.प्र. बच्चन, निराला और महादेवी को अपनी थाती बताता है। मगर इस युग के इस महान महाकवि को कितना और कब और कैसे सम्मान मिला यह बात आपसे और हमसे छुपी नहीं है। बंगाल ने शायद यह मान लिया कि श्री सेठिया जी राजस्थान के कवि हैं और राजस्थान ने सोचा ही नहीं की श्री सेठिया जी राजस्थानियों के कण-कण में बस चुके हैं। कन्हैयालाल सेठिया ने राजस्थानी के लिये, कविता के लिए इतना सब किया, मगर सरकार ने कुछ नहीं किया। बंगाल रवीन्द्र टैगोर, शरत्, बंकिम को देवता की तरह पूजता है। बिहार दिनकर पर गर्व करता है। उ.प्र. बच्चन, निराला और महादेवी वर्मा को अपनी थाती बताता है। मगर राजस्थान ....... ? कवि ने अपनी कविता के माध्यम से राजस्थान को जगाने का प्रयास भी किया -
किस निद्रा में मग्न हुए हो, सदियों से तुम राजस्थान्
कहाँ गया वह शौर्य्य तुम्हारा, कहाँ गया वह अतुलित मान
बालकवि बैरागी ने लिखा है
मैं महामनीषी श्री कन्हैयालालजी सेठिया की बात कर रहा हूँ। अमर होने या रहने के लिए बहुत अधिक लिखना आवश्यक नहीं है। मैं कहा करता हूँ कि बंकिमबाबू और अधिक कुछ भी नहीं लिखते तो भी मात्र और केवल वन्दे मातरम् ने उनको अमर कर दिया होता। तुलसी - हनुमान चालिसा, इकबाल को सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा जैसे अकेला एक गीत ही काफी था। रहीम ने मात्र सात सौ दोहे यानि कि चौदह सौ पंक्तियां लिखकर अपने आप को अमर कर लिया। ऎसा ही कुछ सेठियाजी के साथ भी हो चुका है, वे अपनी अकेली एक रचना के दम पर शाश्वत और सनातन है, चाहे वह रचना राजस्थानी भाषा की ही क्यों न हो।
यह बात भले ही सोचने में काल्पनिक सा लगने लगा है हर उम्र के लोग इनकी कविता के इतने कायल से हो चुके हैं कि कानों में इसकी धुन भर से ही लोगों के पांव थिरक उठते हैं, हाथों को रोके नहीं रोका जा सकता, बच्चा, बुढ़ा, जवान हर उम्र की जुबान पे, राजस्थान के कण-कण, ढाणी-ढाणी, में धरती धोरां री गाये जाने लगा। सेठिया जी ने न सिर्फ काल को मात दी, आपको आजतक कोई यह न कह सका कि इनकी कविताओं में किसी एक वर्ग को ही महत्व दिया है, आमतौर पर जनवादी कविओं के बीच यह संकिर्णता देखी जाती है, इनकी इस कविता ने क्या कहा देखिये:
कुण जमीन रो धणी?, हाड़ मांस चाम गाळ,
खेत में पसेव सींच,
लू लपट ठंड मेह, सै सवै दांत भींच,
फ़ाड़ चौक कर करै, करै जोतणीर बोवणी,
कवि अपने आप से पुछते है -
बो जमीन रो धनीक ओ जमीन रो धणी ?
Dharti dhora ri
धरती तो समझ आ गई है पर धोरां री का अर्थ चाहिए ।
धरती धोरा री का हिंदी में क्या अर्थ है
Dharti dhora ri ka hindi Arthur
Grejuson ka arthritis
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हधरती तो समझ गए धोरा री का मतलब क्या है