जौनपुर का नाम आते ही दिमाग में शर्की सल्तनत का नाम आता है परन्तु शर्की सल्तनत से पहले जौनपुर में क्या था? क्या ये बिल्कुल विरान था? यह जानने के लिये हमें इतिहास और पुरातत्व की मदद लेनी पड़ेगी। किसी भी स्थान के इतिहास को मुख्यतया दो भागों में विभाजित कर के देखा जा सकता है 1- प्रागैतिहासिक इतिहास 2- लिखित इतिहास। प्रागैतिहासिक इतिहास का सन्दर्भ ये है की जब लेखन कला का उदय ना हुआ था तथा व्यक्ति यायावर जीवन व्यतीत करता था। भारत के सन्दर्भ मे सिन्धु सभ्यता के समय व्यक्ति शहरों मे रहना शुरू कर दिया था परन्तु वहाँ की भाषा को अभी तक ना पढे जाने कि वजह से सिन्धु सभ्यता को एक तीसरे इतिहास के खण्ड मे रखा गया है जिसे (प्रोटो-हिस्ट्री) कहते हैं। लिखित इतिहास का कालखण्ड लिखित इतिहास के शुरू होने पर होती है, जिसमे हमें लिखित ऐतिहासिक साक्ष्यों का पता किसी अभिलेख, पाण्डुलिपि, सिक्के, ताडपत्र या ताम्रपत्र से चलता है। मौर्य काल के समय से हमें लिखित पट्टियाँ मिलनी शुरु हो जाती हैं इसके पहले भारतभर में कहानी की तरह सब विभिन्न ग्रंथों का उच्चारण करते थें और बाद में जाकर उनको विभिन्न स्थानों पर उतारा गया था। जौनपुर के इतिहास को भी इन्ही प्रकार के दो भागों में बाँट के देखा जा सकता है, जैसे की विभिन्न खुदाइयों के अवशेषों के आधार पर हम जौनपुर के प्रागैतिहासिक बसाव की सीमा का अवलोकन कर सकते हैं, विभिन्न तथ्यों व उत्खननों के आधार पर यहाँ की प्राचीनता की सीमा करीब 3000 ई. पू. माना जा सकता है। यहाँ पर कुछ प्रमुख खुदाइयाँ बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ने करवाया था तथा कुछ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने करवाया था। चित्र में जौनपुर के शाही किला के उत्खनन को प्रदर्शित किया गया है तथा खुदाई से निकले प्राचीन भवन साक्ष्यों को प्रदर्शित किया गया है। बलुआघाट, मादरडीह आदि वे स्थान हैं जहाँ से जौनपुर के प्राचीनता के अवशेष प्राप्त होता है। यहाँ से कृष्ण लेपित मृदभाण्ड की भी प्राप्ति हुयी है जो अपने में अति विशिष्ट बर्तन माने जाते हैं। जौनपुर बौद्ध काल में भी अत्यन्त महत्वपूर्ण था और यह कहना कतिपय गलत नही होगा कि महात्मा बुद्ध कौसाम्बी जाते हुये यहीं से होते हुये गये थें। मछलीशहर प्राचीन नाम (मश्चिका संड) था जिसे बौद्ध कालीन माना जाता है। बौद्ध काल के बाद कुषाण, गुप्त काल के भी अवशेष जौनपुर से प्राप्त होते हैं। जौनपुर में बड़ी संख्या में मंदिर व मूर्तियाँ प्रतिहार काल के शासन में आने के बाद बनाई गयी थी जिसका प्रमाण यहाँ के विभिन्न पुरातात्विक सर्वेक्षणों से प्राप्त हो जाता है। यहाँ पर असंख्य मूर्तियाँ उस काल की मिलती हैं। प्रतिहारों के काल के बाद जौनपुर में तुगलकों का और फिर शर्कियों का काल आया। उपरोक्त तथ्यों से जौनपुर की सांस्कृतिक महत्ता पर प्रकाश पड़ता है। जौनपुर शहर की स्थापना 14वीं शताब्दी में फिरोज तुगलक ने अपने चचेरे भाई सुल्तान मुहम्मद की याद में की थी। सुल्तान मुहम्मद का वास्तविक नाम जौना खां था। इसी कारण इस शहर का नाम जौनपुर रखा गया। 1394 के आसपास मलिक सरवर ने जौनपुर को शर्की साम्राज्य के रूप में स्थापित किया। शर्की शासक कला प्रेमी थे। उनके काल में यहां अनेक मकबरों, मस्जिदों और मदरसों का निर्माण किया गया। यह शहर मुस्लिम संस्कृति और शिक्षा के केन्द्र के रूप में भी जाना जाता है। यहां की अनेक खूबसूरत इमारतें अपने अतीत की कहानियां कहती प्रतीत होती हैं। जौनपुर का इतिहास यदि पुरातात्विक ढंग से देखा जाये तो 1500 ई.पू. तक जाता है। वर्तमान में यह शहर चमेली के तेल, तम्बाकू की पत्तियों, इमरती और स्वीटमीट के लिए लिए प्रसिद्ध है।
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