र्थिक एवं राजनीतिक शक्तिओ का निम्नस्तर (ग्राम) तक विकेन्द्रीकरण ही लोकतान्त्रिक विकेंद्रिकरण है जिसे गांधीजी ने “ग्राम स्वराज “ का नाम दिया तथा मूल संविधान के अनुच्छेद 40 वें और 73वां संशोधन द्वारा अनुच्छेद 243 में पंचायती राज संस्थाओं का तात्पर्य ग्रामीण स्वशासी संस्थाओं से है
ब्रिटिश शासन काल में 1882 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड रिपन ने स्थानीय स्वायत्त शासन की स्थापना का प्रयास किया था, लेकिन वह सफल नहीं हो सका। ब्रिटिश शासकों ने स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं की स्थिति पर जाँच करने तथा उसके सम्बन्ध में सिफ़ारिश करने के लिए 1882 तथा 1907 में शाही आयोग का गठन किया। इस आयोग ने स्वायत्त संस्थाओं के विकास पर बल दिया, जिसके कारण 1920 में संयुक्त प्रान्त, असम, बंगाल, बिहार, मद्रास और पंजाब में पंचायतों की स्थापना के लिए क़ानून बनाये गये।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गांधीजी के प्रभाव से पंचायती राज व्यवस्था पर विशेष बल दिया गया और इसके लिए केन्द्र में पंचायती राज एवं सामुदायिक विकास मंत्रालय की स्थापना की गई और एस.के.डे को इस विभाग का मन्त्री बनाया गया।
इसके बाद 2 अक्टूबर, 1952 को इस उद्देश्य के साथ सामुदायिक विकास कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया कि सामान्य जनता को विकास प्रणाली से अधिक से अधिक सहयुक्त किया जाए। इस कार्यक्रम के अधीन खण्ड को इकाई मानकर खण्ड के विकास हेतु सरकारी कर्मचारियों के साथ सामान्य जनता को विकास की प्रक्रिया से जोड़ने का प्रयास किया गया, लेकिन जनता को अधिकार नहीं दिया गया, जिस कारण यह सरकारी अधिकारियों तक सीमित रह गया और असफल हो गया। इसके बाद 2 अक्टूबर, 1953 को राष्ट्रीय प्रसार सेवा को प्रारम्भ किया गया।
2 अक्तूबर, 1952 को सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा 2 अक्तूबर 1953 को राष्ट्रीय प्रसार सेवा कार्यक्रम प्रारंभ किए गए, परन्तु दोनो ही कार्यक्रमों अपेक्षित सफलता नही मिली
पंचायती राज व्यवस्था में सुधार हेतु गठित समितिया –
1 | बलवंत राय मेहता समिति | 1957 |
2 | अशोक मेहता समिति | 1977 |
3 | डॉ. पी. वी. के. राव समिति | 1985 |
4 | डॉ. एल. एम. सिंधवी समिति | 1986 |
5 | 73 वां संविधान संशोधन | 1993 |
1. बलवंत राय मेहता समिति (1957)– बलवंत राय मेहता समिति का गठन ‘पंचायती राज व्यवस्था’ को मजबूती प्रदान करने के लिए वर्ष 1956 में बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में किया गया था। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट 1957 में प्रस्तुत कर दी थी। समिति की सिफारिशों को 1 अप्रैल, 1958 को लागू किया गया।
सन 1957 में योजना आयोग ने बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में “सामुदायिक परियोजनाओं एवं राष्ट्रीय विकास” सेवाओं का अध्ययन दल के रूप में एक समिति बनाई, जिसे यह दायित्व दिया गया की वह उन कारणों का पता करे, जो सामुदायिक विकास कार्यक्रम की संरचना तथा कार्यप्रणाली की सफलता में बाधक थी। मेहता दल ने 1957 के अंत में अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की, जिसके अनुसार- “लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण और सामुदायिक विकास कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु पंचायती राज व्यवस्था की तुरंत शुरुआत की जानी चाहिए।”
त्रिस्तरीय व्यवस्था
पंचायती राज व्यवस्था को मेहता समिति ने “लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण ” का नाम दिया। समिति ने ग्रामीण स्थानीय शासन के लिए त्रिस्तरीय व्यवस्था का सुझाव दिया, जो निम्न प्रकार था-
a) ग्राम पंचायत – ग्राम स्तर पर
b) पंचायत समिति या जनपद समिती – विकासखंड स्तर पर
c) ज़िला परिषद- ज़िला स्तर पर
बलवंत राय मेहता की सिफारिश के पश्चात पंडित जवाहर लाल नेहरू ने राजस्थान के नागौर ज़िले में 2 अक्टूबर, 1959 को भारी जनसमूह के बीच इसका शुभारम्भ किया। 1 नवम्बर, 1959 को आन्ध्र प्रदेश राज्य ने भी इसे लागू कर दिया। धीरे-धीरे यह व्यवस्था सभी राज्यों में लागू कर दी गयी, कुछ राज्यों ने त्रिस्तरीय प्रणाली को अपनाया तो कुछ राज्यों ने द्विस्तरीय प्रणाली को अपनाया।
असफलता का कारण पंचायती राज व्यवस्था का यह नूतन प्रयोग भारत में सफल नहीं हो पाया। अत: इसमें सुधार की मांग की जाने लगी। इन्हीं कारणों से जनता पार्टी के द्वारा दिसम्बर, 1977 में अशोक मेहता की अध्यक्षता में पंचायती राज संस्थाओं पर समिति गठित की गयी।
2-अशोक मेहता समिति (1977) -अशोक मेहता समिति का गठन दिसम्बर, 1977 ई. में अशोक मेहता की अध्यक्षता में किया गया था। ‘बलवंत राय मेहता समिति’ की सिफ़ारिशों के आधार पर स्थापित पंचायती राज व्यवस्था में कई कमियाँ उत्पन्न हो गयी थीं, इन कमियों को ही दूर करने तथा सिफ़ारिश करने हेतु ‘अशोक मेहता समिति’ का गठन किया गया था।
अशोक मेहता समिति में 13 सदस्य थे। समिति ने 1978 में अपनी रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंप दी, जिसमें पंचायती राज व्यवस्था का एक नया मॉडल प्रस्तुत किया गया था। समिति द्वारा दी गई रिपोर्ट में केवल 132 सिफ़ारिशें की गयी थीं। इसकी प्रमुख सिफ़ारिशें थीं-
राज्य में विकेन्द्रीकरण का प्रथम स्तर ज़िला हो,
ज़िला स्तर के नीचे मण्डल पंचायत का गठन किया जाए, जिसमें क़रीब 15000-20000 जनसंख्या एवं 10-15 गाँव शामिल हों,
ग्राम पंचायत तथा पंचायत समिति को समाप्त कर देना चाहिए,
मण्डल अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष तथा ज़िला परिषद के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष होना चाहिए,
मण्डल पंचायत तथा परिषद का कार्यकाल 4 वर्ष हो,
विकास योजनाओं को ज़िला परिषद के द्वारा तैयार किया जाए
अशोक मेहता समिति की सिफ़ारिशों को अपर्याप्त माना गया और इसे अस्वीकार कर दिया गया।
3-डॉ. पी. वी. के. राव समिति (1985 )- डॉ. पी. वी. के. राव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करके उसे यह कार्य सौंपा गया कि वह ग्रामीण विकास तथा ग़रीबी को दूर करने के लिए प्रशासनिक व्यवस्था पर सिफ़ारिश करे। इस समिति ने राज्य स्तर पर राज्य विकास परिषद्, ज़िला स्तर पर ज़िला परिषद्, मण्डल स्तर पर मण्डल पंचायत तथा गाँव स्तर पर गाँव सभा के गठन की सिफ़ारिश की। इस समिति ने विभिन्न स्तरों पर अनुसूचित जाति तथा जनजाति एवं महिलाओं के लिए आरक्षण की भी सिफ़ारिश की, लेकिन समिति की सिफ़ारिश को अमान्य कर दिया गया।
4-डॉ. एल. एम. सिंधवी समिति(1986) – पंचायमी राज संस्थाओं के कार्यों की समीक्षा करने तथा उसमें सुधार करने के सम्बन्ध में सिफ़ारिश करने के लिए सिंधवी समिति का गठन किया गया। इस समिति ने ग्राम पंचायतों को सक्षम बनाने के लिए गाँवों के पुनर्गठन की सिफ़ारिश की तथा साथ में यह सुझाव भी दिया कि गाँव पंचायतों को अधिक वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराया जाए।
73 वां संविधान संशोधन द्वारा संविधान के भाग – 9 में अनुच्छेद 243 के अंतर्गत 243क से 243ण तक अनुच्छेद जोडे गऐ , तथा एक अनुसुची – 11 जोडी गई जो सभी पंचायती राज से संबंधित हैं अनुसूची – 11 में कुल 29 बिषय हैं जिन पर पंचायतें कानून बना सकती हैं
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पंचायती राज व्यवस्था एवं रोजगार के अवसर