जॉन डीवी के अनुसार शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है अर्थात शिक्षा के तीन अंग है – (1) शिक्षक, (2) बालक तथा (3) पाठ्यक्रम। निम्नलिखित पंक्तिओं में हम शिक्षा के उत्क तीनो अंगों पर अलग-अलग प्रकाश डाल रहे हैं –
(1) शिक्षक – प्राचीन युग में शिक्षक को मुख्य स्थान प्राप्त था तथा बालक को गौण। वर्तमान युग की शिक्षा में इसका बिल्कुल उल्टा हो गया है। इसमें सन्देह नहीं की आधुनिक शिक्षा में शिक्षक का स्थान यधपि गौण हो गया है तथा बालक का मुख्य, फिर भी शिक्षक का उतरदायित्व पहले से और भी अधिक हो गया है। इसका कारण यह है कि आधुनिक युग में शिक्षक केवल बालक के वातावरण का निर्माता भी है। शिक्षा की प्रक्रिया में शिक्षक के दो कार्य है – (1) वातावरण का महत्वपूर्ण अंग होने के नाते वह अपने व्यक्तित्व के प्रभाव से बालक के व्यक्तित्व को प्रभावित करता है तथा (2) वातावरण का निर्माता होने के नाते उसे ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करना पड़ता है जिनमें रहते हुए बालक उन क्रियाशीलनों तथा अनुभवों का ज्ञान प्राप्त कर सके जिनके द्वारा उसकी समस्त आवश्यकतायें पूरी होती रहें तथा वह एक सुखी एवं सम्पन्न जीवन व्यतीत करके उस समाज के कल्याण हेतु अपना यथाशक्ति योगदान देता रहे, जिसका वह एक महत्वपूर्ण अंग है। इसके अतिरिक्त शिक्षा के उदेश्यों में से एक मुख्य उद्देश्य बालक के चरित्र का निर्माण करना भी है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए शिक्षक के व्यक्तित्व का प्रभाव विशेष महत्त्व रखता है। यदि शिक्षक का चरित्र उच्च कोटि का होगा तो उसके व्यक्तित्व के प्रभाव से बालक में भी चारित्रिक गुण अवश्य विकसित हो जायेंगे अन्यथा वह निक्कमा बन जायेगा। इस दृष्टि से शिक्षक को चरित्रवान, प्रसन्नचित तथा धर्यशील होना परम आवश्यक है। यही नहीं, शिक्षक को अपने विषय का पूर्ण तथा अन्य विषयों का सामान्य ज्ञान भी अवश्य होना चाहिये। इसमें उसे अपने कार्य में सफलता मिलेगी और कक्षा में अनुशाशन भी बना रहेगा। वर्तमान युग में शिक्षक के लिए सच्चरित्र तथा पांडित्य के साथ-साथ आधुनिक शिक्षण-पद्धतियों का भी ज्ञान होना भी परम आवश्यक है जिससे वह उचित शिक्षण-पद्धतियों के प्रयोग द्वारा बालक का अधिक से अधिक विकास कर सके। संक्षेप में, शिक्षक राष्ट्र का महत्वपूर्ण अंग भी है और निर्माता भी।
(2) बालक – मनोवैज्ञानिक अनुसंधानों तथा जनतांत्रिक भावनाओं के परिणामस्वरूप वर्तमान शिक्षा का श्रीगणेश बालक से होता है। दुसरे शब्दों में, अब शिक्षा बालकेन्द्रित हो गई है। एडम्स से इस मत का सबसे पहले प्रतिपादन करते हुए इस वाक्य द्वारा बताया था – शिक्षक जॉन को लैटिन पढ़ता है। इस वाक्य में लैटिन पढ़ना इतना आवश्यक नहीं है जितना कि जॉन। एडम्स के इस स्पष्टीकरण से इस बात का संकेत मिलता है कि शिक्षा के क्षेत्र में बालक का स्थान मुख्य है। यही कारण है कि वर्तमान युग के सभी शिक्षाशास्त्री बलाक को सच्चे अर्थ में शिक्षित करने के लिए अब इस बात पर बल देते हैं कि शिक्षा का समस्त कार्य बालक की रुचियों, योग्यताओं, क्षमताओं तथा आवश्यकताओं के अनुसार होना चाहिये। वस्तुस्थिति यह कि आधुनिक युग में पाठ्यक्रम, पाठ्य-विषय तथा पाठ्य-पुस्तकें सब बालकेन्द्रित हो गई हैं आब कोई भी शिक्षक अपने कार्य में उस समय तक सफल नहीं हो सकता जब तक उस बालक के स्वभाव का पूरा-पूरा ज्ञान न हो। दुसरे शब्दों में, आज उसी व्यक्ति को योग्य शिक्षक कहा जा सकता है जिसे अपने विषय के ज्ञान के साथ-साथ मनोविज्ञान का भी ज्ञान हो।
(3) पाठ्यक्रम – शिक्षा की प्रक्रिया में पाठ्यक्रम का महत्वपूर्ण स्थान है। यह बालक तथा शिक्षक के बीच कड़ी का काम करता है तथा दोनों की सीमाओं को निश्चित करके शिक्षा की समस्त योजना को शिक्षा के उदेश्यों के अनुसार संचालित करता है। संकुचित अर्थ में पाठ्यक्रम का तात्पर्य कुछ विषयों व सीमित तथ्यों का अध्ययन करना है। पर व्यापक अर्थ में पाठ्यक्रम समस्त अनुभवों का वह योग है जिसको बालक स्कूल के प्रागण में प्राप्त करता है। अत: इसके अन्तर्गत वे सभी क्रियाओं आ जाती है जिन्हें बालक तथा शिक्षक दोनों मिलकर करते हैं। ध्यान देने की बात है कि पाठ्यक्रम का निर्माण देश काल, तथा समाज की आवश्यकताओं एवं प्रचलित विचारधाराओं के अनुसार होता है। यही कारण है कि एकतंत्रवादी समाज का पाठ्यक्रम का निर्माण व्यक्ति की अपेक्षा समाज की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए किया जाता है यह कठोर तथा सबके लिए समान होता है। इसके विपरीत जनतंत्र मिने व्यक्ति की स्वतंत्रता को स्वीकार किया जाता है। अत: जनतंत्रीय समाज के पाठ्यक्रम में कठोरता, व्यवस्था तथा नियंत्रण की अपेक्षा लचीलापन, अनुकूल तथा स्वतंत्रता पर विशेष बल दिया जाता है।
Siksha ek tridruviy prakriya h BS Bloom k anusar-_
1-Vidyarthi
2-siksak
3-Samaj
Vartman me shikshan pranali konsi he dvimukhya ya trimukhya
শিক্ষাকে ত্রীমুখী প্রক্রিয়া বলা হয় কানো?2
शिक्षण
शिक्षा को त्रिमुखी प्रक्रिया किसने कहा ha
Shiksha ek treemukhi prakriya h yeh kisne kha or kyoon
B.s bloom ki trimukhi prkriya ke ang kon kon se h
Sikshya domukhi parkiya h kese
शिक्षा एक त्रि-धृविय पृकिरिया है.आलोचना करे
Sikhsa dravimukhi PRakriya hai kisne kha
Shiksha bahu-aayami h kisne kaha
Shiksha ko trimukhi kisanai kaha hai
Shiksha ka vyapak arth
शिक्षा विज्ञान है अथवा कला? समझाइए
Jan sanchar madymo ki kya upyogita hai
shiksha dvidruvi prakriya hai kisne kaha
Shiksha dimukhi prakriya hai....kisne kaha
Shiksha do mukhi prakriya hai yah kisne kaha
What is education ?
B.s.bloom ke aanusar shikshan parkriya bhi trimukhi h kya Sir
जॉन डी वी ओर ब्लूम के अनुसार शिक्षा के प्रक्रिया के कितने अंग है
शिक्षा एक त्रिमूर्ति प्राकृत है
Wayktik bhinnta ka siddhant Pathyakarm ka siddhant Nhi hai uska karan kya
Bs bloom ki trimukhi prakriya h
Adams ke anusar devimukh kon konse h
शिक्षण की त्रिधुरवीय प्रणाली विकसित की गई थी
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शिक्षा एक द्विमुखी पृकि्या नहीं अपितु त्रिमुखी पृकि्या है इस कथन की समालोचना करते हुए शिक्षा के विभिन्न अर्थो पर पृकाश डालिये? पृशन उत्तर