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प्रोटोज़ोआ ऐसे प्राणियों का संघ है जिसके सभी प्राणी एककोशिक होते हैं। आकारिकी (morphology) और क्रिया की दृष्टि से इस संघ के प्राणी की कोशिका पूर्ण होती है, अर्थात् एककोशिका जनन, पाचन, श्वसन तथा उत्सर्जन इत्यादि सभी कार्य करती है। प्रोटोज़ोआ इतने सूक्ष्म होते हैं कि इन्हें नंगी आँखों से देखना संभव नहीं है। समुद्री जल में और बँधे हुए मीठे जल में असंख्य प्रोटोज़ोआ मिलते हैं। ये अकेले या निवह (समूह, colony) में रहते हैं। प्रोटोज़ोआओ में ऊतक नहीं होता। इनकी ऊतकहीनता ही निवह में रहनेवाले कोशिका समुच्यय को मेटाज़ोआ (metazoa) से पृथक् करती है। अब तक लगभग 30,000 किस्म के प्रोटोज़ोआ ज्ञात हैं।
प्रोटोज़ोआ में अलैंगिक एवं लैंगिक दोनों प्रकार से जनन क्रिया होती है। अलैंगिक जनन भी दो प्रकार से होता है : (1) सरल द्विविभाजन (simple binary fission) और (2) बहुविभाजन (multiple fission) द्वारा।
(1) सरल द्विविभाजन - इसमें प्रोटोज़ोआ अनुप्रस्थ या अनुदैर्ध्य रूप में दो भागों में विभाजित हो जाता है। ये भाग न्यूनाधिक बराबर होते हैं।
(2) बहुविभाजन - इस विभाजन में दो या अधिक प्रोटोज़ोआ उत्पन्न होते हैं। जनक कोश के केंद्र का बारंबार विभाजन होता है और विभक्त हुए खंडों को कोशिकाद्रव घेर लेता है। जब कोशों का बनना पूर्ण हो जाता है, तो कोशिका द्रव फटकर अलग हो जाता है।
लैंगिक जनन भी दो तरह से होता है : (1) संयुग्मन (conjugation) और (2) युग्मकसंलयन (syngamy)
(1) संयुग्मन - इस प्रकार के जनन में दो प्रोटाज़ोआओं का अस्थायी संयोग होता है। इस संयोग काल में केंद्रकीय पदार्थ का विनिमय होता है। बाद में दोनों प्रोटोज़ोआ पृथक् हो जाते हैं, प्रत्येक इस क्रिया द्वारा पुनर्युवनित (rejuvenated) हो जाता है। सिलिएटा (ciliata) का जनन संयुग्मन का उदाहरण है।
(2) युग्मकसंलयन - इस क्रिया में युग्मक (gamete) स्थायी रूप से संयोग करते हैं और केंद्रकीय पदार्थ का संपूर्ण विखंडन होता है। विखंडन के परिणामस्वरूप युग्मनज (zygote) उत्पन्न होते हैं।
संगठन - प्रोटोज़ोआ के शरीर के मूल घटक केंद्रक (nucleus) और कोशिका द्रव्य (cytoplasm) हैं। यद्यपि प्रोटोज़ोआ की अधिकतर स्पीशीज़ में एक केंद्रक होता है, फिर भी द्विकेंद्रकी एव बहुकेंद्रकी प्रोटोज़ोआ भी हैं। कोशिकाद्रव्य के दो भाग हैं, बाह्य भाग को बहि: प्रद्रव्य (ectoplasm) और आंतरिक भाग को अंत: प्रद्रव्य (endoplasm) कहते हैं। बहि: प्रद्रव्य स्वच्छ एवं समांग होता है, और यह रक्षात्मक, गमनात्मक एवं संवेदात्मक कार्य करता है। बहि:प्रद्रव्य द्वारा पादाभ (pseudopodium) का, कशाभिका (flagella) का तथा सिलिया (cilia) नामक चलन अंगक (organelles) का, संकुचनशील रिक्तिका (contractile vacuole) नामक उत्सर्जक अंग का, खाद्य रिक्तिका (food vacuole) नामक पाचन अंग का एवं पुटी (cyst) नामक रक्षात्मक अंग का निर्माण होता है।
अंत: प्रद्रव्य विषमांग एवं कणिकामय होता है। इसका कार्य जनन और पोषण करना है। कोशिकाद्रव्य की सतही तह जीवद्रवय कला (plasma membrane) कहलाती है। सार्कोडिना (sarcodina) के अतिरिक्त अन्य प्रोटोज़ोआ की जीव-द्रव्य-कला पर एक अन्य कला होती है जिसे तनुत्वक (Pellicle) कहते हैं।
फोरैमिनिफ़ेरा (Foraminifera) नामक गण के प्रोटोज़ोआ सुरक्षा के लिए अपने ऊपर खोल बनाते हैं। असामान्य स्थिति में कुछ प्रोटोज़ोआ सुरक्षा कला का निर्माण करते हैं जिसे पुटी (Cysts) कहते हैं। पुटी प्रोटोज़ोआ की प्रतिरोधक अवस्था है। इस अवस्था में परजीवी प्रोटोज़ोआ भी अपने परपोषी के प्रति प्रभावहीन रहते हैं।
प्रोटोज़ोआ के कोशिका द्रव्य में पाचन के लिए खाद्य रिक्तिका (food vacuole) और जल तथा अन्य तरल उत्सर्ग को बाहर निकालने के लिए संकुचनशील रिक्तका (contractile vacuole) होते हैं। जिन प्रोटोज़ोआओं में क्लोरोफिल रहता है, उनमें क्लोरोफिल के लिए हरित लवक (chloroplast) या वर्णकी लबक रहता है
केंद्रक - प्रोटोज़ोआ की कोशिका की महत्वपूर्ण संरचना केंद्रक है। यह जनन को नियमित तथा अन्य कार्यों को नियंत्रित करता है। कोशिकाद्रव्य के अंत:प्रद्रव्य में यह स्थिर रहता है और इसकी संरचना की सहायता से प्रोटोज़ोआ के जेनरा (genera) और स्पीशीज़ में अंतर करने में सहायता मिलती है। प्रटोज़ोआ में एक या अधिक केंद्रक होते हैं।
प्रोटोज़ोआ में श्वसन संस्थान नहीं होता, किंतु ऑक्सीकरण द्वारा ये ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। उत्सर्जन संस्थान की उपस्थिति भी विवादस्पद है। जीवन के लगभग सभी कार्य इसके कोशिकाद्रव्य द्वारा होते हैं। अधिकांश प्रोटोज़ोआ आहार के लिए लघु पौधों, मल और दूसरे प्रोटोज़ोआओं पर निर्भर करते हैं। परजीवी प्रोटोज़ोआ परपोषी के ऊतकों पर रहते हैं। जिन प्रोटोज़ोआओं में क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast) होता है, वे पौधों की तरह प्रकाशसंश्लेषण से अपना भोजन बनाते हैं। यूग्लीना (Euglena) और वॉलवॉक्स (volvox) इसके उदाहरण हैं । कुछ प्रोटोज़ोआ अपने शरीर की सतह द्वारा जल में घुले आहार को प्राप्त करते हैं। इस प्रकार के पोषण को मृतजीवी पोषण (saprozoic nutrition) कहते हैं। कुछ प्रोटोज़ोआ परिस्थिति के अनुसार पादपसमभोजी (holophytic) और मृतजीवी में बदलते रहते हैं, जैसे यूग्लीना को, जो पादपसमभोजी है, यदि अंधकार में रख दिया जाए तो इसका क्लोरोफिल समाप्त हो जाता है और यह मृतजीवी हो जाता है। कुछ प्रोटोज़ोआ प्राणिसम भोजी (holozoic) होते हैं, जो प्रग्रहण (capture) तथा अंतर्ग्रहण (injestin) द्वारा कार्बनिक पदार्थो को खाते हैं।
वर्गीकरण - प्रोटोज़ोआ को मगन करने के आधार पर निम्नलिखित पाँच वर्गों में बाँटा गया है : (1) मैस्टिगोफोरा (Mastigophora) या कशाभिक (Flagellates) - इस वर्ग के प्रोटोज़ोआ में चाबुक सदृश एक या अधिक कशाभिका रहती है, जो तैरने में सहायता करती है। इस वर्ग के प्रोटोज़ोआ परजीवी, प्राणिसमभोजी एवं पादपसमभोजी होते हैं। (2) सार्कोडिना (Sarcodina) या राइज़ोपोडा (Rhizopoda) - ये पादाभ (pseudopodium) द्वारा गमन करते तथा भोजन करते हैं। (3) स्पोरोज़ोआ (Sporozoa) - इसमें कोई भी चलन अंगक (locomotor organelles) नहीं रहते, क्योंकि इस वर्ग के प्राणी परजीवी जीवन व्यतीत करते हैं (देखे परजीवजन्य रोग)। ये पुटी के अंदर जनन करते हैं। (4) सिलिएटा (Ciliata) - ये सिलिया के द्वारा भोजन एवं गमन करते हैं। सिलिएटा द्विकेंद्रकी होते हैं, जिनमें से एक दीर्घ केंद्रक तथा दूसरा लघु केंद्रक होता है। इसका संघटन बड़ा विकसित है। (5) सक्टोरिया (Suctoria) - ये शिशु अवस्था में सिलिया द्वारा और वयस्क होने पर स्पर्शकों (tentacles) द्वारा गमन करते हैं और इन्हीं के द्वारा भोजन का अंतर्ग्रहण प्रभावित होता है।
आर्थिक महत्व - प्रोटोज़ोआ का जैविक एवं आर्थिक महत्व है। बहुत बड़ी संख्या में प्रोटोज़ोआ पृथ्वी की सतह पर रहते हैं और ये पृथ्वी की उर्वरता के कारक समझे जाते हैं। समुद्र में रहनेवाले प्रोटोज़ोआ समुद्री जीवों के खाने के काम में आते हैं। प्राणिसमभोजी प्रोटोज़ोआ जीवाणुओं का भक्षण कर उनकी संख्या वृद्धि को रोकते हैं। प्रोटोज़ोआ की कुछ जातियाँ पानी में विशिष्ट प्रकार की गंधों के कारक हैं। डिनोब्रियान (Dinobryon) पानी में मछली की तरह की गंध तथा सिन्यूर (Synura) पानी में पके हुए खीरे या ककड़ी की तरह के गंध के कारक हैं।
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Protozoa ke प्रकार