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Wasko Dr. Gama Ki Kahani वास्को डा गामा की कहानी

वास्को डा गामा की कहानी



GkExams on 22-01-2023


वास्को डा गामा की कहानी : 8 जुलाई 1497 को पुर्तगाली नाविक वास्को डी गामा भारत की खोज (vasco da gama india) में निकला था। वह 20 मई 1498 को केरल के कोझीकोड जिले के कालीकट (काप्पड़ गांव) पहुंचा था। यहीं से कुछ दूर कोच्ची में वास्को की कब्र है। और यहां से तीन बार वे पुर्तगाल गए और आये।


ध्यान रहे की वास्कोडिगामा (vasco da gama history) गांव साइन्स, पुर्तगाल का रहने वाला था इनका घर नोस्सा सेन्होरा दास सलास के गिरिजाघर के निकट स्थित था वास्कोडिगामा (वास्को द गामा) समुंद्र के रास्ते भारत पहुँचने वाला प्रथम व्यक्ति था।


यूरोप से भारत आने का सीधा समुंद्री रास्ता खोजने (vasco da gama achievements) का श्रेय वास्कोडिगामा को जाता है जिसने लगभग 9 महीने का कठिनाई भरा सफर तय कर भारत तथा यूरोप के समुंद्री मार्ग को खोज निकाला था।


लूट का बनाया रास्ता :




वास्को डी गामा ने यूरोप के लुटेरों, शासकों और व्यापारियों के लिए एक रास्ता बना दिया था। इसके बाद भारत पर कब्जा जमाने के लिए यूरोप के कई व्यापारी और राजाओं ने कोशिश की और समय-समय पर वे आए और उन्होंने भारत के केरल राज्य के लोगों का धर्म बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


पुर्तगालियों की वजह से ब्रिटिश लोग भी यहां आने लगे। अंतत: 1615 ई. में यह क्षेत्र ब्रिटिश अधिकार में आया। 1698 ई. में यहां फ्रांसीसी बस्तियां बसीं। फ्रांस और ब्रिटेन के बीच के युद्ध के काल में इस क्षेत्र की सत्ता बदलती रही।


1503 में वास्को पुर्तगाल लौट गए और बीस साल वहां रहने के बाद वह भारत वापस चले गए। 24 मई 1524 को (vasco da gama death) वास्को डी गामा की मृत्यु हो गई। लिस्बन में वास्को के नाम का एक स्मारक है, इसी जगह से उन्होंने भारत की यात्रा शुरू की थी। दरअसल, 1492 में नाविक राजकुमार हेनरी की नीति का अनुसरण करते हुए किंग जॉन ने एक पुर्तगाली बेड़े को भारत भेजने की योजना बनाई, ताकि एशिया के लिए समुद्री मार्ग खुल सके।


उनकी योजना मुसलमानों को पछाड़ने की थी, जिनका उस समय भारत और अन्य पूर्वी देशों के साथ व्यापार पर एकाधिकार था। एस्टावोडिगामा को इस अभियान के नेतृत्व के लिए चुना गया, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद वास्को द गामा ने उनका स्थान लिया।


8 जुलाई 1497 को वास्को द गामा चार जहाजों के एक बेड़े के साथ लिस्बन से निकले थे। वास्को द गामा के बेड़े के साथ तीन दुभाषिए भी थे जिसमें से दो अरबी बोलने वाले और एक कई बंटू बोलियों का जानकार था। बेड़े में वे अपने साथ एक पेड्राओ (पाषाण स्तंभ) भी ले गए थे जिसके माध्यम से वह अपनी खोज और जीती गई भूमि को चिन्हित करता था।




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Comments विकास तिवारी on 27-04-2019

संविधान



विकास तिवारी on 27-04-2019

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