सागौन को इमारती लकड़ी का राजा कहा जाता है जो वर्बेनेसी परिवार से संबंध रखता है। इसका वैज्ञानिक नाम टैक्टोना ग्रांडिस है। इसका पेड़ बहुत लंबा होता है और अच्छी किस्म की लकड़ी पैदा करता है। यही वजह है कि इसकी देश और विदेश के बाजार में अच्छी डिमांड है। सागौन से बनाए गए सामान अच्छी क्वालिटी के होते हैं और ज्यादा दिनों तक टिकते भी हैं। इसलिए सागौन की लकड़ी से बने फर्नीचर की घर और ऑफिस दोनों जगहों पर भारी मांग हमेशा रहती है। पूरी दुनिया में सागौन लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है। व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए आम तौर पर सागौन की अच्छी किस्म की खेती की जाती है जिसमें कम रिस्क पर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। लगभग 14 सालों में अच्छी सिंचाई, उपजाऊ मिट्टी के साथ वैज्ञानिक प्रबंधन के जरिेए एक पेड़ से 10 से 15 क्यूबिक फीट लकड़ी हासिल की जा सकती है। इस दौरान पेड़ के मुख्य तने की लंबाई 25-30 फीट, मोटाई35-45 ईंच तक हो जाती है। आमतौर पर एक एकड़ में 400 अच्छी क्वालिटी के आनुवांशिक पेड़ तैयार किये जा सकते हैं। इसके लिए सागौन के पौधों के बीच 9/12 फीट का अंतराल रखना होता है।अब खेतों की मेड़ पर पौधे लगाकर किसान कमाएंगे पैसाभारत में सागौन के कई प्रकार हैंनीलांबर (मालाबार) सागौनदक्षिणी और मध्य अमेरिकन सागौनपश्चिमी अफ्रीकन सागौनअदिलाबाद सागौनगोदावरी सागौनकोन्नी सागौनसागौन की खेती के लिए उपयुक्त मौसमसागौन के लिए नमी और उष्णकटिबंधीय वातावरण जरूरी होता है। यह ज्यादा तापमान को आसानी से बर्दाश्त कर लेता है। लेकिन सागौन की बेहतर विकास के लिए उच्चतम 39 से 44 डिग्री सेंटीग्रेट और निम्नतम 13 से 17 डिग्री सेंटीग्रेड उपयुक्त है। 1200 से 2500 मिलीमीटर बारिश वाले इलाके में इसकी अच्छी पैदावार होती है। इसकी खेती के लिए बारिश, नमी, मिट्टी के साथ-साथ रोशनी और तापमान भी अहम भूमिका निभाता है।सागौन खेती में मिट्टी की भूमिकासागौन की सबसे अच्छी पैदावार जलोढ़ मिट्टी में होती है जिसमे चूना-पत्थर, शीष्ट, शैल, भूसी और कुछ ज्वालामुखीय चट्टानें जैसे कि बैसाल्ट मिली हो। वहीं, इसके विपरीत सूखी बलुवाई, छिछली, अम्लीय (6.0पीएच) और दलदलीय मिट्टी में पैदावार बुरी तरह प्रभावित होती है। सॉयल पीएच यानी मिट्टी में अम्लता की मात्रा ही खेती के क्षेत्र और विकास को निर्धारित करती है। सागौन के वन में सॉयल पीएच का रेंज व्यापक है, जो 5.0-8.0 के 6.5-7.5 बीच होता है।सागौन खेती में कैल्सियम की भूमिकाकैल्सियम, फोस्फोरस, पोटैशियम, नाइट्रोजन और ऑर्गेनिक तत्वों से भरपूर मिट्टी सागौन के लिए बेहद मुफीद है। कई शोध परिणाम बताते हैं कि सागौन के विकास और लंबाई के लिए कैल्सियम की ज्यादा मात्रा बेहद जरूरी है। यही वजह है कि सागौन को कैलकेरियस प्रजाति का नाम दिया गया है। सागौन की खेती कहां होगी इसको निर्धारित करने में कैल्सियम की मात्रा अहम भूमिका निभाती है। साथ ही जहां सागौन की मात्रा जितनी ज्यादा होगी उससे ये भी साबित होता है कि वहां उतना ही ज्यादा कैल्सियम है। जंगली इलाकों में जहां नर्सरी स्थापित की जाती है वो बेहद ऊर्वरक होती है और उसमे अलग से खाद मिलाने की जरूरत नहीं होती है।इस गाँव में बेटी के जन्म पर लगाए जाते हैं 111 पौधे, बिना पौधरोपण हर रस्म अधूरी होती हैनर्सरी में सागौन पौधारोपनसागौन की नर्सरी के लिए हल्की ढाल युक्त अच्छी सूखी हुई बलुई मिट्टी वाला क्षेत्र जरूरी होता है। नर्सरी की एक क्यारी 1.2 मीटर की होती है। इसमे0.3 मी.से 0.6मी की जगह छोड़ी जाती है। साथ ही क्यारियों की लाइन के लिए 0.6 से 1.6 मी. की जगह छोड़ी जाती है। एक क्यारी में 400-800 तक पौधे पैदा होते हैं। इसके लिए क्यारी की खुदाई होती है। इसे करीब 0.3 मी. तक खोदा जाता है और जड़, खूंटी और कंकड़ को निकाला जाता है। जमीन पर पड़े ढेले को अच्छी तरह तोड़ कर मिला दिया जाता है। इस मिट्टी को एक महीने के लिए खुला छोड़ दिया जाता है और उसके बाद उसे क्यारी में बालू और ऑर्गेनिक खाद के साथ भर दिया जाता है। नमी वाले इलाके में जल जमाव को रोकने के लिए जमीन के स्तर से क्यारी को 30 सेमी तक ऊंचा उठाया जाता है। सूखे इलाके में क्यारी को जमीन के स्तर पर रखा जाता है। खासकर बेहद सूखे इलाके में जहां 750 एमएम बारिश होती है वहां पानी में थोड़ी डूबी हुई क्यारियां अच्छा रिजल्ट देती है। एक मानक क्यारी से जो कि 12 मी. की होती है उसमे करीब 3 से 12 किलो बीज इस्तेमाल होता है। वहीं, केरल के निलांबुर में करीब 5 किलो बीज का इस्तेमाल होता है।सागौन की रोपाई के तरीकेफैलाकर या छितराकर और क्रमिक या डिबलिंग तरीके से 5 से 10 फीसदी अलग रखकर बुआई की जाती है। क्रमिक या डिबलिंग तरीके से बुआई ज्यादा फायदेमंद होता है अच्छी और मजबूती से बढ़ने वाली होती है। आमतौर पर क्यारियों को उपरी शेड की जरूरत नहीं होती है। सिवा बहुत सूखे इलाके के जहां सिंचाई की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है। ऐसे हालात में यहां खर-पतवार भी नहीं पनप पाता है।इन पेड़ों में प्रदूषण सहने की क्षमता होती है सबसे अधिक...सागौन रोपन में जगह का महत्वसागौन का रोपन 2m x 2m, 2.5m x 2.5m या 3m x 3m के बीच होना चाहिये। इसे दूसरी फसलों के साथ भी लगाया जा सकता है, लेकिन उसके लिए 4m x 4m या 5m x 1m का गैप या अंतराल रखना जरूरी है।सागौन रोपन में जमीन की तैयारी और खेती एवं सावधानियांसागौन के पौधारोपन के लिए जगह चौरस या फिर हल्की ढलान वाला हो (जिसमे अच्छे से पानी निकलने की व्यवस्था हो)। शैल और शीस्ट से युक्त मिट्टी सागौन के लिए अच्छा होता है। सागौन की अच्छी बढ़त के लिए जलोढ़ मिट्टी वाला क्षेत्र बहुत अच्छा माना जाता है। वहीं, लैटेराइट या उसकी बजरी, चिकनी मिट्टी, काली कपासी मिट्टी, बलुई और बजरी सागौन के पौधे के लिए अच्छा नहीं होता है। पौधारोपन के लिए पूरी जमीन की अच्छी जुताई, एक लेवल में करना जरूरी होता है। पौधारोपन की जगह पर सही दूरी पर एक सीध में गड्ढा खुदाई जरूरी होता है। सागौन रोपन के लिए कुछ जरूरी बातें-पूर्व अंकुरित खूंटी या पॉली पॉट का इस्तेमाल करें45 cm x 45 cm x 45 cm की नाप के गड्ढे की खुदाई करें। मिट्टी में मसाला, कृषि क्षेत्र की खाद और कीटनाशक को दोबारा डालें। साथ हीबजरी वाले इलाके के खोदे गए गड्ढे में ऑर्गेनिक खाद युक्त अच्छी मिट्टी डालें।पौधारोपन के दौरान गड्ढे में 100 ग्राम खाद मिलाएं और उसके बाद मिट्टी की ऊर्वरता को देखते हुए अलग-अलग मात्रा में खाद मिलाते रहेंसागौन की खेती के लिए सबसे अच्छा मौसम मॉनसून का होता है, खासकर पहली बारिश का वक्तपौधे की अच्छी बढ़त के लिए बीच-बीच में मिट्टी की निराई-गुड़ाई का भी काम करते रहना चाहिए, पहले साल में एक बार, दूसरे साल में दो बार और तीसरे साल में एक बार पर्याप्त है।पौधारोपन के बाद मिट्टी की तैयारी को अंतिम रुप दें और जहां जरूरी है वहां सिंचाई की व्यवस्था करें।शुरुआती साल में खर-पतवार को हटाने का काम करना सागौन की अच्छी बढ़त को सुनिश्चित करता है।पृथ्वी दिवस : धरती के लिए कुछ पेड़-पौधे सौतेले भीखर-पतवार का नियंत्रणसागौन के पौधारोपन के शुरुआती दो-तीन सालों में खर-पतवार नियंत्रण पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। नियमित अंतराल पर खतर-पतवार हटाने का अभियान चलाते रहना चाहिए। पहले साल में तीन बार, दूसरे साल में दो बार और तीसरे साल में एक बार ये अभियान अच्छी तरह चलाना आवश्यक है। यहां ध्यान रखनेवाली बात ये है कि सागौन ऐसी प्रजाति का पेड़ है जिसकी वृद्धि और विकास के लिये सूर्य की पर्याप्त रोशनी जरूरी है।सागौन खेती में सिंचाई की तकनीकशुरुआती दिनों में पौधे की वृद्धि के लिए सिंचाई बेहद अहम है। खर-पतवार नियंत्रण के साथ-साथ सिंचाई भी चलती रहनी चाहिए जिसका अनुपात 3,2,1है। इसके साथ ही मिट्टी का भी काम चलते रहना चाहिए। अगस्त और सितंबर महीने में दो बार खाद डालना चाहिए। लगातार तीन साल तक प्रत्येक पौधे में 50 ग्राम एनपीके (15:15:15) डाला जाना चाहिए। नियमित तौर पर सिंचाई और पौधे की छंटाई से तने की चौड़ाई बढ़ जाती है। ये सब कुछ पौधे के शीर्ष भाग के विकास पर निर्भर करता है जैसे कि प्रति एकड़ वृक्षों की संख्या में कमी। दूसरे शब्दों में अधिक ऊंचाई वाले पौधे लेकिन कम संख्या या फिर कम ऊंचाई वाले पौधे लेकिन संख्या ज्यादा। सिंचाई सुविधायुक्त सागौन के पेड़ तेजी से बढ़ते हैं लेकिन वहीं, रसदार लकड़ी की मात्रा बढ़ जाती है। ऐसे में पौधे का तना कमजोर हो जाता है और हवा से इसे नुकसान पहुंचता है। ऐसे में पौधे में पानी के फफोले बनने लग जाते हैं। ऐसे पेड़ बाहर से दिखने में मजबूत दिखते हैं लेकिन पानी के जमाव की वजह से पैदा हुए फंगस की वजह से अंदर से खोखला हो जाता है।सागौन की खेती में पौधे आमतौर पर 13 से 40 डिग्री तापमान के बीच अच्छी तरह से बढ़ते हैं। प्रत्येक साल 1250 से 3750 एमएम की बारिश इसकी खेती के लिए पर्याप्त है। वहीं, अच्छी गुणवत्ता वाले पेड़ के लिए साल में चार महीना सूखा मौसम चाहिए और इस दौरान 60 एमएम से कम बारिश ही अच्छी होती है। पेड़ के बीच अंतर, तने की काट-छांट की टाइमिंग से पौधे के विकास पर फर्क पड़ता है। कांट-छांट में अगर देरी की गई या फिर पहले या ज्यादा कांट-छांट की जाती है तो इससे भी इसकी खेती पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।सागौन की खेती में कटाई-छंटाई का महत्वआमतौर पर सागौन के पौधे की कटाई-छटाई पौधा रोपन के पांच से दस साल के बीच की जाती है। इस दौरान जगह की गुणवत्ता और पौधों के बीच अंतराल को भी ध्यान में रखा जाता है। वहीं अच्छी जगह और नजदीकी अंतराल (1.8×1.8 m और 2×2) वाले पौधे की पहली और दूसरी कटाई-छंटाई का काम पाचवें और दसवें साल पर की जाती है। दूसरी बार कटाई-छंटाई के बाद 25 फीसदी पौधे को विकास के लिए छोड़ दिया जाता है।सागौन पौधारोपन के बीच अंतर फसलशुरुआती दो साल के दौरान सागौन की खेती के बीच में अंतर फसल उगाई जाती है खासकर वहां जहां कृषि योग्य भूमि है। एक बार जब भूमि को पट्टे पर दे दिया जाता है तो पट्टेदार भूमि की सफाई, खूंटे जलाना और पौधारोपन का काम शुरु कर देता है। सागौन की खेती के बीच में आमतौर पर गेहूं, धान, मक्का, तिल और मिर्च के साथ-साथ सब्जी की खेती की जाती है। कुछ फसल जैसे कि गन्ना, केला, जूट, कपास, कद्दू, खीरा की खेती नहीं की जाती है।सागौन की खेती में समस्याएंनिष्पत्रक और दीमक जैसे कीट बढ़ रहे सागौन के पौधे को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। सागौन के पौधे में आमतौर पर पॉलिपोरस जोनालिस लग जाता है जो पौधे की जड़ को गला देते हैं। गुलाबी रंग का फंगस पौधे को खोखला कर देते हैं। ओलिविया टेक्टोन और अनसिनुला टेक्टोन की वजह से पाउडर जैसे फफूंद पैदा हो जाते हैं जिससे असमय पत्ता झड़ने लगता है। इसके बाद पौधे के सुरक्षा के लिए रोगनिरोधी उपाय करना जरूरी हो जाता है। केलोट्रोपिस प्रोसेरा, डेट्यूरा मेटल और अजादिराचता इंडिका के ताजा पत्तों के रस इन रोगों से लड़ने में बेहद कारगर साबित होते हैं। जैविक और अकार्बनिक खाद के मुकाबले इससे हानिकारक कीट को अच्छी तरह से खत्म किया जाता है और साथ ही यह पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचाता है।विशेष : घुटने वाली हैं सांसें, भारत में एक व्यक्ति के लिए सिर्फ 28 पेड़ बचेनोट-पौधे में लगे मौजूदा कीट, बीमारी और उस पर नियंत्रण करने में कितना खर्च आयेगा इसके तकनीकी मूल्यांकन के लिए कृपया अपने नजदीकी कृषि विभाग से संपर्क करें।सागौन की कटाई में ध्यान रखने वाली बातें-काटे जाने वाले पेड़ पर चिन्ह लगाएं और सीरियल नंबर लिखेंमुख्य क्षेत्रीय वन अधिकारी के पास इस संबंध में रिपोर्ट दर्ज कराएंक्षेत्रीय वन विभाग जांच के लिए अपने अधिकारी भेजकर रिपोर्ट तैयार करवाएगाकाट-छांट या कटाई के बारे में स्थानीय वन अधिकारी को रिपोर्ट भेजनाअनुमति मिलने के बाद काट-छांट या कटाई की प्रक्रिया शुरु की जाती हैसागौन की पैदावार14 साल के दौरान एक सागौन का पेड़ 10 से 15 क्यूबिक फीट लकड़ी देता है। सागौन का मुख्य तना आमतौर पर 25 से 30 फीट ऊंचा होता है और करीब 35 से 45 इंच मोटा होता है। एक एकड़ में उन्नत किस्म के करीब 400 सागौन का पेड़ पैदा होता है। इसके लिए पौधारोपन के दौरान 9/12 फीट का अंतराल रखना जरूरी होता है।सगौन की मार्केटिंगसागौन के लिए बाजार में बेहद मांग है और इसे बेचना भी बेहद आसान है। इसके लिए बाय बैक योजना के अलावा स्थानीय टिंबर मार्केट भी होते हैं। घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेहद मांग होने की वजह से सागौन की खेती बेहद फायदेमंद है।
किसान खेतों की जुताई कर फसल की अच्छी पैदावार के लिए उत्तम किस्म के बीज , खाद व पेस्टीसाइड का इस्तेमाल करते हैं। बावजूद उसे लाभ नहीं मिलता है। इसका मुख्य वजह है मौसम की मार यदि किसान कम समय ,कम लागत में अधिक मुनाफा कमाएं और पर्यावरण को भी स्वच्छ रखे और अपने भी स्वस्थ्य रहे तो कितना बेहतर होगा। जी हां हम हर साल खेती में हो रहे नुकसान की एक बार में भरपाई की बात बताने जा रहे हैं। किसान भाई को देखते हुए शिवशिक्त बायो टेक्नोलोजीस लिमिटेड की ओर से रॉयल -19 टिशू कल्चर सागवान का उत्तम किस्म का पौधा निकाला है। जिसकी खेती कर किसानों की आर्थिक स्थिति में बदलाव आएगा। इसके बारे में जानकारी दे रहे कृषि जागरण पत्रकार संदीप कुमार।
रॉयल 19 टिशू कल्चर सागवान
जी हां, एक कदम बेहतर कल के लिए, जिस पर कि आप पूरी तरह से भरोसा कर सकते हैं। यह सागवान का पौधा अत्याधुनिक प्रयोगशाला में कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा कई वर्षों की खोज व अनुसंधान के बाद प्रयोगशाला में तैयार किया गया है। यह पौधा उच्च गुणवत्तायुक्त पूरी तरह से मातृ वृक्षों का कहे तो एक तरह से स्वरूप है। यह एक मात्र ऐसा पौधा है जो रोग व कीटाणु से मुक्त है। वहीं इसमें शीघ्र वृद्धि के साथ-साथ पौधों में एकसमानता दिखने को मिलती है। इसकी मुख्य शाखा मजबूत व सीधी होती है। मौसम की बात करें तो इसे किसी भी मौसम में लगाया जा सकता है लेकिन पौधा लगाने के बाद किसान भाई को समय पर सिंचाई के साथ-साथ देखभाल करना जरूरी है। इस पौधे से 12-15 सालों में लकड़ी मिलना शुरू हो जाता है। लकड़ी मजबूत व सुनहरी पीली और उच्च गुणवत्तायुक्त होती है।
आर्थिक लाभ:रॉयल 19 टिशू कल्चर सागवान का यदि किसान भाई प्रति एकड़ 450 से 500 पौधों को लगाए तो उन्हें प्रति एकड़ अनुमानित लकड़ी का उत्पादन 9 हजार घन फीट होगा। जिसका कि बाजार में वर्तमान मूल्य लगभग प्रति घन फीट 1800 रुपये के अनुसार 12 से 15 सालों के बाद प्रति एकड़ कुल आय लगभग एक करोड़ बीस लाख हो जाएगी। यदि कोई किसान इस कंपनी के सागवान का एक पेड़ लगाता है तो 12 से 15 साल में लगभग 20 घन फीट लकड़ी का लगभग 32 हजार चार सौ रु पये आय प्राप्त होगी। जबकि अन्य सागवान वाली पौधा में यह बात नहीं है। इसके बीज अन्य पद्धित से उपचारित किया जाता है। दूसरी बात ये कि इसका विकास असमान व मजबूती की गारंटी नहीं होती है। कीट और रोगों के प्रति यह संवेदनशील होता है। लकड़ी की गुणवत्ता का प्रमाण देना इसमें मुश्किल है। विकास व कटाई का कोई समय नहीं होता है।
शिवशिक्त बायो टेक्नोलोजीस लिमिटेड के प्रचार-प्रसार मैनेजर प्रशांत कुमार परीडा ने कहा कि यह 21 साल पुरानी कंपनी है जो कि भारत के अलावा नेपाल में भी किसानों के लिए कार्य कर रही है। किसान इसका लाभ भी उठा रहे हैं। इस कंपनी को इंटरनेशनल स्तर पर आईएसओ से प्रमाणति किया गया है। कहते हैं कि भारत के छह नामचीन कृषि विश्वविद्यालयों की ओर से इनके उत्पाद को प्रमाणित किया गया है। रॉयल 19 टिशू कल्चर सागवान कई कृषि वैज्ञानिकों के शोध व अनुसंधान के बाद किसानों के लिए बाजारा में उतारा गया है। उन्होंने बताया कि भारत के एक प्रमुख टिकाऊ कृषि उत्पाद आधारित कंपनी है। भारत में कृषि वानिकी क्षेत्र में इस कंपनी को प्रथम स्थान का दर्जा प्राप्त है। कंपनी के व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य है प्रत्यक्ष रूप से किसानों के घर अपना उत्पाद पहुंचाना एवं एकीकृत कृषि के विकास को बढ़ावा देना। यह कंपनी प्रमुख रूप से कृषि आधारित ग्रामीण आबादी के लिए स्थायी आजीविका के अवसर पैदा प्रदान करता है साथ ही हरा-भरा और स्वच्छ वातावरण बहाल करता है। यह कम्पनी देश की आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
सागौन को इमारती लकड़ी का राजा कहा जाता है जो वर्बेनेसी परिवार से संबंध रखता है। इसका वैज्ञानिक नाम टैक्टोना ग्रांडिस है। इसका पेड़ बहुत लंबा होता है और अच्छी किस्म की लकड़ी पैदा करता है। यही वजह है कि इसकी देश और विदेश के बाजार में अच्छी डिमांड है। सागौन से बनाए गए सामान अच्छी क्वालिटी के होते हैं और ज्यादा दिनों तक टिकते भी हैं। इसलिए सागौन की लकड़ी से बने फर्नीचर की घर और ऑफिस दोनों जगहों पर भारी मांग हमेशा रहती है। पूरी दुनिया में सागौन लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है। व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए आम तौर पर सागौन की अच्छी किस्म की खेती की जाती है जिसमें कम रिस्क पर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। लगभग 14 सालों में अच्छी सिंचाई, उपजाऊ मिट्टी के साथ वैज्ञानिक प्रबंधन के जरिेए एक पेड़ से 10 से 15 क्यूबिक फीट लकड़ी हासिल की जा सकती है। इस दौरान पेड़ के मुख्य तने की लंबाई 25-30 फीट, मोटाई35-45 ईंच तक हो जाती है। आमतौर पर एक एकड़ में 400 अच्छी क्वालिटी के आनुवांशिक पेड़ तैयार किये जा सकते हैं। इसके लिए सागौन के पौधों के बीच 9/12 फीट का अंतराल रखना होता है।अब खेतों की मेड़ पर पौधे लगाकर किसान कमाएंगे पैसाभारत में सागौन के कई प्रकार हैंनीलांबर (मालाबार) सागौनदक्षिणी और मध्य अमेरिकन सागौनपश्चिमी अफ्रीकन सागौनअदिलाबाद सागौनगोदावरी सागौनकोन्नी सागौनसागौन की खेती के लिए उपयुक्त मौसमसागौन के लिए नमी और उष्णकटिबंधीय वातावरण जरूरी होता है। यह ज्यादा तापमान को आसानी से बर्दाश्त कर लेता है। लेकिन सागौन की बेहतर विकास के लिए उच्चतम 39 से 44 डिग्री सेंटीग्रेट और निम्नतम 13 से 17 डिग्री सेंटीग्रेड उपयुक्त है। 1200 से 2500 मिलीमीटर बारिश वाले इलाके में इसकी अच्छी पैदावार होती है। इसकी खेती के लिए बारिश, नमी, मिट्टी के साथ-साथ रोशनी और तापमान भी अहम भूमिका निभाता है।सागौन खेती में मिट्टी की भूमिकासागौन की सबसे अच्छी पैदावार जलोढ़ मिट्टी में होती है जिसमे चूना-पत्थर, शीष्ट, शैल, भूसी और कुछ ज्वालामुखीय चट्टानें जैसे कि बैसाल्ट मिली हो। वहीं, इसके विपरीत सूखी बलुवाई, छिछली, अम्लीय (6.0पीएच) और दलदलीय मिट्टी में पैदावार बुरी तरह प्रभावित होती है। सॉयल पीएच यानी मिट्टी में अम्लता की मात्रा ही खेती के क्षेत्र और विकास को निर्धारित करती है। सागौन के वन में सॉयल पीएच का रेंज व्यापक है, जो 5.0-8.0 के 6.5-7.5 बीच होता है।सागौन खेती में कैल्सियम की भूमिकाकैल्सियम, फोस्फोरस, पोटैशियम, नाइट्रोजन और ऑर्गेनिक तत्वों से भरपूर मिट्टी सागौन के लिए बेहद मुफीद है। कई शोध परिणाम बताते हैं कि सागौन के विकास और लंबाई के लिए कैल्सियम की ज्यादा मात्रा बेहद जरूरी है। यही वजह है कि सागौन को कैलकेरियस प्रजाति का नाम दिया गया है। सागौन की खेती कहां होगी इसको निर्धारित करने में कैल्सियम की मात्रा अहम भूमिका निभाती है। साथ ही जहां सागौन की मात्रा जितनी ज्यादा होगी उससे ये भी साबित होता है कि वहां उतना ही ज्यादा कैल्सियम है। जंगली इलाकों में जहां नर्सरी स्थापित की जाती है वो बेहद ऊर्वरक होती है और उसमे अलग से खाद मिलाने की जरूरत नहीं होती है।इस गाँव में बेटी के जन्म पर लगाए जाते हैं 111 पौधे, बिना पौधरोपण हर रस्म अधूरी होती हैनर्सरी में सागौन पौधारोपनसागौन की नर्सरी के लिए हल्की ढाल युक्त अच्छी सूखी हुई बलुई मिट्टी वाला क्षेत्र जरूरी होता है। नर्सरी की एक क्यारी 1.2 मीटर की होती है। इसमे0.3 मी.से 0.6मी की जगह छोड़ी जाती है। साथ ही क्यारियों की लाइन के लिए 0.6 से 1.6 मी. की जगह छोड़ी जाती है। एक क्यारी में 400-800 तक पौधे पैदा होते हैं। इसके लिए क्यारी की खुदाई होती है। इसे करीब 0.3 मी. तक खोदा जाता है और जड़, खूंटी और कंकड़ को निकाला जाता है। जमीन पर पड़े ढेले को अच्छी तरह तोड़ कर मिला दिया जाता है। इस मिट्टी को एक महीने के लिए खुला छोड़ दिया जाता है और उसके बाद उसे क्यारी में बालू और ऑर्गेनिक खाद के साथ भर दिया जाता है। नमी वाले इलाके में जल जमाव को रोकने के लिए जमीन के स्तर से क्यारी को 30 सेमी तक ऊंचा उठाया जाता है। सूखे इलाके में क्यारी को जमीन के स्तर पर रखा जाता है। खासकर बेहद सूखे इलाके में जहां 750 एमएम बारिश होती है वहां पानी में थोड़ी डूबी हुई क्यारियां अच्छा रिजल्ट देती है। एक मानक क्यारी से जो कि 12 मी. की होती है उसमे करीब 3 से 12 किलो बीज इस्तेमाल होता है। वहीं, केरल के निलांबुर में करीब 5 किलो बीज का इस्तेमाल होता है।सागौन की रोपाई के तरीकेफैलाकर या छितराकर और क्रमिक या डिबलिंग तरीके से 5 से 10 फीसदी अलग रखकर बुआई की जाती है। क्रमिक या डिबलिंग तरीके से बुआई ज्यादा फायदेमंद होता है अच्छी और मजबूती से बढ़ने वाली होती है। आमतौर पर क्यारियों को उपरी शेड की जरूरत नहीं होती है। सिवा बहुत सूखे इलाके के जहां सिंचाई की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है। ऐसे हालात में यहां खर-पतवार भी नहीं पनप पाता है।इन पेड़ों में प्रदूषण सहने की क्षमता होती है सबसे अधिक...सागौन रोपन में जगह का महत्वसागौन का रोपन 2m x 2m, 2.5m x 2.5m या 3m x 3m के बीच होना चाहिये। इसे दूसरी फसलों के साथ भी लगाया जा सकता है, लेकिन उसके लिए 4m x 4m या 5m x 1m का गैप या अंतराल रखना जरूरी है।सागौन रोपन में जमीन की तैयारी और खेती एवं सावधानियांसागौन के पौधारोपन के लिए जगह चौरस या फिर हल्की ढलान वाला हो (जिसमे अच्छे से पानी निकलने की व्यवस्था हो)। शैल और शीस्ट से युक्त मिट्टी सागौन के लिए अच्छा होता है। सागौन की अच्छी बढ़त के लिए जलोढ़ मिट्टी वाला क्षेत्र बहुत अच्छा माना जाता है। वहीं, लैटेराइट या उसकी बजरी, चिकनी मिट्टी, काली कपासी मिट्टी, बलुई और बजरी सागौन के पौधे के लिए अच्छा नहीं होता है। पौधारोपन के लिए पूरी जमीन की अच्छी जुताई, एक लेवल में करना जरूरी होता है। पौधारोपन की जगह पर सही दूरी पर एक सीध में गड्ढा खुदाई जरूरी होता है। सागौन रोपन के लिए कुछ जरूरी बातें-पूर्व अंकुरित खूंटी या पॉली पॉट का इस्तेमाल करें45 cm x 45 cm x 45 cm की नाप के गड्ढे की खुदाई करें। मिट्टी में मसाला, कृषि क्षेत्र की खाद और कीटनाशक को दोबारा डालें। साथ हीबजरी वाले इलाके के खोदे गए गड्ढे में ऑर्गेनिक खाद युक्त अच्छी मिट्टी डालें।पौधारोपन के दौरान गड्ढे में 100 ग्राम खाद मिलाएं और उसके बाद मिट्टी की ऊर्वरता को देखते हुए अलग-अलग मात्रा में खाद मिलाते रहेंसागौन की खेती के लिए सबसे अच्छा मौसम मॉनसून का होता है, खासकर पहली बारिश का वक्तपौधे की अच्छी बढ़त के लिए बीच-बीच में मिट्टी की निराई-गुड़ाई का भी काम करते रहना चाहिए, पहले साल में एक बार, दूसरे साल में दो बार और तीसरे साल में एक बार पर्याप्त है।पौधारोपन के बाद मिट्टी की तैयारी को अंतिम रुप दें और जहां जरूरी है वहां सिंचाई की व्यवस्था करें।शुरुआती साल में खर-पतवार को हटाने का काम करना सागौन की अच्छी बढ़त को सुनिश्चित करता है।पृथ्वी दिवस : धरती के लिए कुछ पेड़-पौधे सौतेले भीखर-पतवार का नियंत्रणसागौन के पौधारोपन के शुरुआती दो-तीन सालों में खर-पतवार नियंत्रण पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। नियमित अंतराल पर खतर-पतवार हटाने का अभियान चलाते रहना चाहिए। पहले साल में तीन बार, दूसरे साल में दो बार और तीसरे साल में एक बार ये अभियान अच्छी तरह चलाना आवश्यक है। यहां ध्यान रखनेवाली बात ये है कि सागौन ऐसी प्रजाति का पेड़ है जिसकी वृद्धि और विकास के लिये सूर्य की पर्याप्त रोशनी जरूरी है।सागौन खेती में सिंचाई की तकनीकशुरुआती दिनों में पौधे की वृद्धि के लिए सिंचाई बेहद अहम है। खर-पतवार नियंत्रण के साथ-साथ सिंचाई भी चलती रहनी चाहिए जिसका अनुपात 3,2,1है। इसके साथ ही मिट्टी का भी काम चलते रहना चाहिए। अगस्त और सितंबर महीने में दो बार खाद डालना चाहिए। लगातार तीन साल तक प्रत्येक पौधे में 50 ग्राम एनपीके (15:15:15) डाला जाना चाहिए। नियमित तौर पर सिंचाई और पौधे की छंटाई से तने की चौड़ाई बढ़ जाती है। ये सब कुछ पौधे के शीर्ष भाग के विकास पर निर्भर करता है जैसे कि प्रति एकड़ वृक्षों की संख्या में कमी। दूसरे शब्दों में अधिक ऊंचाई वाले पौधे लेकिन कम संख्या या फिर कम ऊंचाई वाले पौधे लेकिन संख्या ज्यादा। सिंचाई सुविधायुक्त सागौन के पेड़ तेजी से बढ़ते हैं लेकिन वहीं, रसदार लकड़ी की मात्रा बढ़ जाती है। ऐसे में पौधे का तना कमजोर हो जाता है और हवा से इसे नुकसान पहुंचता है। ऐसे में पौधे में पानी के फफोले बनने लग जाते हैं। ऐसे पेड़ बाहर से दिखने में मजबूत दिखते हैं लेकिन पानी के जमाव की वजह से पैदा हुए फंगस की वजह से अंदर से खोखला हो जाता है।सागौन की खेती में पौधे आमतौर पर 13 से 40 डिग्री तापमान के बीच अच्छी तरह से बढ़ते हैं। प्रत्येक साल 1250 से 3750 एमएम की बारिश इसकी खेती के लिए पर्याप्त है। वहीं, अच्छी गुणवत्ता वाले पेड़ के लिए साल में चार महीना सूखा मौसम चाहिए और इस दौरान 60 एमएम से कम बारिश ही अच्छी होती है। पेड़ के बीच अंतर, तने की काट-छांट की टाइमिंग से पौधे के विकास पर फर्क पड़ता है। कांट-छांट में अगर देरी की गई या फिर पहले या ज्यादा कांट-छांट की जाती है तो इससे भी इसकी खेती पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।सागौन की खेती में कटाई-छंटाई का महत्वआमतौर पर सागौन के पौधे की कटाई-छटाई पौधा रोपन के पांच से दस साल के बीच की जाती है। इस दौरान जगह की गुणवत्ता और पौधों के बीच अंतराल को भी ध्यान में रखा जाता है। वहीं अच्छी जगह और नजदीकी अंतराल (1.8×1.8 m और 2×2) वाले पौधे की पहली और दूसरी कटाई-छंटाई का काम पाचवें और दसवें साल पर की जाती है। दूसरी बार कटाई-छंटाई के बाद 25 फीसदी पौधे को विकास के लिए छोड़ दिया जाता है।सागौन पौधारोपन के बीच अंतर फसलशुरुआती दो साल के दौरान सागौन की खेती के बीच में अंतर फसल उगाई जाती है खासकर वहां जहां कृषि योग्य भूमि है। एक बार जब भूमि को पट्टे पर दे दिया जाता है तो पट्टेदार भूमि की सफाई, खूंटे जलाना और पौधारोपन का काम शुरु कर देता है। सागौन की खेती के बीच में आमतौर पर गेहूं, धान, मक्का, तिल और मिर्च के साथ-साथ सब्जी की खेती की जाती है। कुछ फसल जैसे कि गन्ना, केला, जूट, कपास, कद्दू, खीरा की खेती नहीं की जाती है।सागौन की खेती में समस्याएंनिष्पत्रक और दीमक जैसे कीट बढ़ रहे सागौन के पौधे को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। सागौन के पौधे में आमतौर पर पॉलिपोरस जोनालिस लग जाता है जो पौधे की जड़ को गला देते हैं। गुलाबी रंग का फंगस पौधे को खोखला कर देते हैं। ओलिविया टेक्टोन और अनसिनुला टेक्टोन की वजह से पाउडर जैसे फफूंद पैदा हो जाते हैं जिससे असमय पत्ता झड़ने लगता है। इसके बाद पौधे के सुरक्षा के लिए रोगनिरोधी उपाय करना जरूरी हो जाता है। केलोट्रोपिस प्रोसेरा, डेट्यूरा मेटल और अजादिराचता इंडिका के ताजा पत्तों के रस इन रोगों से लड़ने में बेहद कारगर साबित होते हैं। जैविक और अकार्बनिक खाद के मुकाबले इससे हानिकारक कीट को अच्छी तरह से खत्म किया जाता है और साथ ही यह पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचाता है।विशेष : घुटने वाली हैं सांसें, भारत में एक व्यक्ति के लिए सिर्फ 28 पेड़ बचेनोट-पौधे में लगे मौजूदा कीट, बीमारी और उस पर नियंत्रण करने में कितना खर्च आयेगा इसके तकनीकी मूल्यांकन के लिए कृपया अपने नजदीकी कृषि विभाग से संपर्क करें।सागौन की कटाई में ध्यान रखने वाली बातें-काटे जाने वाले पेड़ पर चिन्ह लगाएं और सीरियल नंबर लिखेंमुख्य क्षेत्रीय वन अधिकारी के पास इस संबंध में रिपोर्ट दर्ज कराएंक्षेत्रीय वन विभाग जांच के लिए अपने अधिकारी भेजकर रिपोर्ट तैयार करवाएगाकाट-छांट या कटाई के बारे में स्थानीय वन अधिकारी को रिपोर्ट भेजनाअनुमति मिलने के बाद काट-छांट या कटाई की प्रक्रिया शुरु की जाती हैसागौन की पैदावार14 साल के दौरान एक सागौन का पेड़ 10 से 15 क्यूबिक फीट लकड़ी देता है। सागौन का मुख्य तना आमतौर पर 25 से 30 फीट ऊंचा होता है और करीब 35 से 45 इंच मोटा होता है। एक एकड़ में उन्नत किस्म के करीब 400 सागौन का पेड़ पैदा होता है। इसके लिए पौधारोपन के दौरान 9/12 फीट का अंतराल रखना जरूरी होता है।सगौन की मार्केटिंगसागौन के लिए बाजार में बेहद मांग है और इसे बेचना भी बेहद आसान है। इसके लिए बाय बैक योजना के अलावा स्थानीय टिंबर मार्केट भी होते हैं। घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेहद मांग होने की वजह से सागौन की खेती बेहद फायदेमंद है।
I want 100 Hibrid Sagon plants grown by tissue culture to plat in my village Pure Dan ,Tahsil Bindki, District Fath Pur ,Utter Pradesh.what will be cost and how I will get and talk to whom for follow.Also name the contact person, mobile no.
Alok kumar on 28-12-2021
Rayal 19 tisuu hibireed poudha chahiye kha se milega mob no.6396238172 par whats up kare
Kamal Pal kushwaha on 25-12-2021
Mujhe sagwan ke ped mein gane kahan se sampark Karen
Kamal Pal kushwaha on 25-12-2021
Sagwan ke paudhe lagwane ke liye kis nursery se sampark Karen
Janeshwar singh on 27-11-2021
30 feet Ka sagwan plant hai ek panktime 10 plant hai 18 months ho Chuka hai chahte hai Ki pant short time me tyar ho jay Isle Lita Kay Kate
Shivratn singh on 29-08-2021
Mjhe shagwn lagana hai kha par mile ga iska beej
neeraj on 07-07-2021
kya madhya pradesh ke bhind jile me sagwan ki kheti ki ja sakti hai kya
Sangeeta Kanwar on 24-06-2020
Sagwan paudha k uddsey parikalpna profit loss mapdand Kary seway problem sujhav niskarsh sandrbh suchi
Kuldeep Singh kanaujia on 11-07-2020
देसी सागवन और टिशू कल्चर सागवान में कौन अच्छा होता है
Gopi Chand verma on 27-11-2020
Nepal me liye Kahan kid number or sampark karen
Arvind kumar Singh on 06-12-2020
मुझे सागौन के हाईबि्ड बीज चाहिए कहां से मनाये
Prabhat mishra on 16-12-2020
रॉयल 19 टिशू कल्चर सागवान चाहिए कहाँ से और कैसे प्राप्त किया जा सकता है
Rammani dwivedi on 28-12-2020
सर जी नमस्कार मेरा नाम राममणि दुबेदी गाम सहजी पो़सोनवषा तहसील शिहावल जिला सीधी म0प्र0 मो0न09617774010 मैं 74 पेड़ सागोन है जो कि पेड़ मोटाई में नहीं आ रहे हैं 14साल हो रहे हैं
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