लोकनाट्य क्या है (Loknatya in hindi) : मनोरंजन एवं सामाजिक शिक्षा के लिए की गई सामूहिक अभिव्यक्ति ही लोकनाट्य है, जिसमें नाट्य दल या फिर कलाकारों के योगदान के साथ-साथ दर्शकों की भागीदारी भी महत्वपूर्ण होती है।
‘लोकनाट्य’ शब्द ‘लोक’ और ‘नाट्य’ दो शब्दों के योग से बना है। ‘लोक’ की कृति जब नाट्यरूप में संवादों के माध्यम से किसी कथा को प्रस्तुत करे तो उसे ‘लोकनाट्य’ कहते हैं। और इसे आकर्षक और प्रभावी बनाने के लिए नृत्य, संगीत, अभिनय तथा वेशभूषा आदि का प्रयोग किया जाता है।
लोक नाट्य का इतिहास :
पहले के जमाने में नाट्य कला की अपनी अलग ही पहचान थी। तब गांव-गांव में नाटकों का भव्य मंचन होता था। एक बड़ा वर्ग नाटक, गायन, लोक नृत्य व गीत-संगीत का फैन था। इसी का असर था कि जिला मुख्यालय से लेकर सुदूर ग्रामीण इलाकों तक में नाट्य कला का प्रदर्शन होता था, और बढ़-चढ़कर कलाकार इसमें हिस्सा भी लेते थे।
वर्तमान समय में लोक रंगमंच कला का ही एक रूप माना जाता है, जो नाटक के मूल तत्वों को दर्शाता है। यही पहलू लोक रंगमंच को भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का एक जीवंत और महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनाता है। भारतीय भाषाओं और अंग्रेज़ी में नाटकों के मंचन में कई अर्ध-पेशेवर और शौकिया रंगमंच समूह शामिल हैं।
उदाहरण के लिए जैसे रामपुर में नुक्कड़ नाटकों, रंगमंच और यहाँ तक कि कठपुतली शो के रूप में रामायण और महाभारत के विभिन्न चित्रण देखे जा सकते हैं। लोक रंगमंच भारत में संगीत, नृत्य, पैंटोमाइम, छंद, महाकाव्य और गाथागीत पाठ के तत्वों के संयोजन के साथ एक समग्र कला रूप है।
रंगमंच में मुख्य रूप से रासलीला, नौटंकी और रामलीला जैसे कुछ लोक नाट्य रूपों को पूरे देश में मान्यता प्राप्त है, परंतु भारत भर में सुंदर लेकिन कम ज्ञात लोक नाट्य रूपों की भी अपनी एक लंबी सूची है।
लोकनाट्य की अवधारणा :
लोकनाट्य कला के वर्तमान स्वरूप की उत्पत्ति 15- 16 वीं सदी से मानी जाती है। परंपरागत लोकनाट्य कला सामाजिक नियमों, मान्यताओं और नीतियों सहित स्थानीय जीवन शैली के विभिन्न पहलओं को दर्शाती है।
लोकनाट्य कला का विकास ग्रामीण जीवन से जुड़े होने के कारण स्वत: ही होता रहता है। लौकिक विषय जो कि जन सामान्य के जन-जीवन से संबंधित (धार्मिक भी) होते हैं, को । स्वांग, ख्याल, नौटंकी, नाच एवं तमाशा जैसी शैलियों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।
बात करें उत्तरी भारत की तो यहाँ के लोकनाट्यों में जहां गायन तथा संवाद शैली की प्रधानता है वहीं दक्षिण भारत में लोकनाट्यों में नृत्य की प्रधानता है।
लोकनाट्य के प्रकार :
यहाँ हम निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा आपको लोकनाट्य के प्रकारों से अवगत करा रहे है, जो इस प्रकार है...
नृत्य प्रधान लोकनाट्य संगीत प्रधान लोकनाट्य अभिनय प्रधान लोकनाट्य यात्रा / जात्रा रामलीला रासलीला स्वांग नौटंकी दशावतार करियाला ख्याल तमाशा बहम कलापमलोकनाट्य की विशेषताएं :
यहाँ हम निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा आपको लोकनाट्य की विशेषताओं से अवगत करा रहे है, जो इस प्रकार है...
लोकनाट्य समूह या समाज की अनुभूतियों, भावनाओं एवं प्रवृत्तियों की अभिव्यंजना करता है, किसी व्यक्ति की कल्पना और अनुभावों की नहीं। लोक की स्वाभाविक भाषा पद्य होती है तथा लोकनाट्य के संवाद पद्यात्मक होते हैं। इसके पात्र प्रवृत्ति विशेष या समूह विशेष के द्योतक होते हैं। खुला रंगमंच, दृश्य परिवर्तन का अभाव (प्रायः एक पर्दा सबसे पीछे टँगा रहता है। अभिनय में संकेत, नृत्य के हाव-भाव युक्त अभिनय धार्मिक, पौराणिक, सामाजिक, ऐतिहासिक तथा प्रेम पर आधारित कथा। बीच-बीच में विदूषक का आगमन जो मर्मस्पर्शी अभिनयों के बीच में आदर्श उपदेश या सम सामयिक विषमताओं का दुखड़ा रोना या उच्च वर्ग पर छींटे कसे जाते हैं। कथानक का महत्व कम, रसानुभूति द्वारा तृप्ति का महत्व क्योंकि कथाएं प्राय: परिचित होती हैं। नाटक मंडली का प्रत्येक सदस्य आवश्यकतानुसार प्रत्येक कार्य- विदूषक, नायक, निर्देशक सभी कार्य कर सकता है। लोक जीवन के रीति-रिवाज या उत्सवों का उल्लेख आवश्यक है। उसमें लोक प्रचलित गीत एवं कहावतों का समावेश भी अवश्य रहता है।
लोकनाट्य का इतिहास