Mahatma Phule Kavita महात्मा फुले कविता

महात्मा फुले कविता





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Comments महेंद्र on 11-04-2020

पूरा नाम – महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले
जन्म – ११ अप्रैल १८२७
जन्मस्थान – पुणे
पिता – गोविंदराव फुले
माता – विमला बाई
विवाह – सावित्रीबाई फुले
पेशवाई के अस्त के बाद अंग्रेजी हुकूमत की वजह से हुये बदलाव के इ.स. 1840 के बाद दृश्य स्वरूप आया. हिंदू समाज के सामाजिक रूढी, परंपरा के खिलाफ बहोत से सुधारक आवाज उठाने लगे. इन सुधारको ने स्त्री शिक्षण, विधवा विवाह, पुनर्विवाह, संमतीवय, बालविवाह आदी. सामाजिक विषयो पर लोगों को जगाने की कोशिश की. लेकीन उन्नीसवी सदिके ये सुधारक ‘हिंदू परंपरा’ के वर्ग में अपनी भूमिका रखते थे. और समाजसुधारणा की कोशिश करते थे. महात्मा जोतिराव फुले / Mahatma Jyotirao Phule इन्होंने भारत के इस सामाजिक आंदोलन से महराष्ट्र में नई दिशा दी. उन्होंने वर्णसंस्था और जातीसंस्था ये शोषण की व्यवस्था है और जब तक इनका पूरी तरह से ख़त्म नहीं होता तब तक एक समाज की निर्मिती असंभव है ऐसी स्पष्ट भूमिका रखी. ऐसी भूमिका लेनेवाले वो पहले भारतीय थे. जातीव्यवस्था निर्मूलन के कल्पना और आंदोलन के उसी वजह से वो जनक साबीत हुये.
काम करने वाले स्त्री और अछूत जनता का कई शतको से हो रहे शोषण की और सामाजिक गुलामगिरी की उन्होंने ऐतिहासिक विरोध किया. सावकार और नोकरशाही इन के खिलाफ उन्होंने लढाई शुरू की. महात्मा फुले ने 21 साल की उम्र में लड़कियों के लिये स्कुल खोला. भारत के पाच हजार सालो के इतिहास में लड़कियों के लिये ये पहला स्कुल था. लड़कियों ने और अस्पृश्यों ने शिक्षा लेना मतलब धर्म भ्रष्ट करना ऐसा समझ उस समय था. उसके बाद ही उन्होंने 1851 में अछूत के लिये स्कुल खोला. उन्होंने पुना में स्त्री अछूत के लिये कुल छे स्कुल चलाये. लेकीन उनके इन कोशिशो को सनातन लोगों की तरफ से प्रखरता से विरोध हुवा. लेकीन फुले ने अपने कोशिश कभी नहीं रुकने दी. अपने आंगन का कुवा अस्पृश्यों के लिये खुला करके उन्हें पानी भरने देना, बालविवाह को विरोध करना, विधवा विवाह का समर्थन करना, मुंडन की रूढी बंद करने के लिये नांभिको का उपोषण करवाना ऐसे बहोत से पहल महात्मा फुले ने किये
महात्मा ज्योतिबा फुले / Mahatma Jyotiba Phule ने ‘ब्रम्ह्नांचे कसब’, ‘गुलामगिरी’, ‘संसार’, ‘शेतकर्यांचा आसुड’, ‘शिवाजीचा पोवाडा’, ‘सार्वजनिक’, ‘सत्यधर्म पुस्तिका’, आदी ग्रंथ लिखे है.
ब्राम्हण ये भारत के बाहर से आये हुये आर्य है. और अछूत ये भारतीय ही है ऐसा सिध्दांत उन्होंने रखा. इस सिध्दांता की वजह से अभ्यासको में मतभेद है. फुले इन्होंने अपने पुरे लेखन में ब्राम्हणों पर जिन भाषा में टिका की है वो भी विवाद का विषय है. लेकिन ऐसी टिका करनेवाले फुले के ‘सार्वजनिक सत्यधर्म’ ये सबसे महत्त्वपूर्ण किताब की तरफ किसीका ध्यान ही नहीं था.
भारतीय समाज की शोषण व्यवस्था खुली करके और जातीव्यवस्था अंत की लढाई खडी करके भी फुले इन्होंने समाज के समानता कही भी ठेस आने नहीं दी. इसलिये शायद महात्मा गांधी ने फुले को ‘सच्चा महात्मा’ ऐसा कहा है. तो डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने उन्हें गुरु माना है.
महात्मा फुले इन्होंने अछूत स्त्रीयों और मेहनत करने वाले लोग इनके बाजु में जितनी कोशिश की जा सकती थी उतनी कोशिश जिंदगीभर फुले ने की है. उन्होंने सामाजिक परिवर्तन, ब्रम्ह्नोत्तर आंदोलन, बहुजन समाज को आत्मसन्मान देणे की, किसानो के अधिकार की ऐसी बहोतसी लढाई यों को प्रारंभ किया. सत्यशोधक समाज ये भारतीय सामाजिक क्रांती के लिये कोशिश करनेवाली अग्रणी संस्था बनी. महात्मा फुले ने लोकमान्य टिळक , आगरकर, न्या. रानडे, दयानंद सरस्वती इनके साथ देश की राजनीती और समाजकारण आगे ले जाने की कोशिश की. जब उन्हें लगा की इन लोगों की भूमिका अछूत को न्याय देने वाली नहीं है. तब उन्होंने उनपर टिका भी की. यही नियम ब्रिटिश सरकार और राष्ट्रीय सभा और कॉग्रेस के लिये भी लगाया हुवा दिखता है.
कॉग्रेस को बहुजनाभिमुख और किसानो के हित की भूमिका लेने में मजबूर करने का श्रेय भी फुले को ही जाता है. महात्मा फुले का जीवन ये पूरा कोशिशो और संघर्षों से भरा हुवा दिखता है. उनकी मृत्यु 28 नवंबर 1890 को हुयी.
महात्मा फुले के बाद महाराष्ट्र में बहोत से सुधारक और विचारवंत होकर गये. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर और महर्षी विठठल रामजी शिंदे ये उनमे से माने जाते है. इन दोनों ने भी महात्मा फुले के विचार अपने तरिके से आगे ले गये. बहुजन समाज ऐक्य का सैद्धांतिक विचार फुले के तत्त्वज्ञान में है ऐसा उस समय में कहा गया. भारत में जब तक जातिव्यवस्था और जातिधारित शोषण अस्तित्व में रहेंगा तबतक सामाजिक क्रांती के लिये लढने वाले इस कृतिशिल विचारवंत का स्मरण होता रहेंगा.
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Sawal on 27-11-2019

India ka area kitna hai

िलकिगिदिदिदमजमजमज on 27-11-2019

तूतूकबककूकूकुकुकुकुसुक
ूददूतूकी


Prashil on 03-04-2019

Mahatma jotirao phule kavita





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