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मेहरगढ़ पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण एक स्थान है जहाँ (7000 ईसा-पूर्व से 3300ईसा-पूर्व) के बहुत से अवशेष मिले हैं। यह स्थान वर्तमान ( ) के कच्ची मैदानी क्षेत्र में है। यह स्थान विश्व के उन स्थानों में से एक है जहाँ प्राचीनतम एवं से सम्बन्धित साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। इन अवशेषों से पता चलता है कि यहाँ के लोग एवं की खेती करते थे तथा , एवं अन्य जानवर पालते थे। " .
मेहरगढ़ आज के बलूचिस्तान में बोलन नदी के किनारे स्थित है। भारतीय इतिहास में इस स्थल का महत्व अनेक कारणों से है। यह स्थल भारतीय उप महाद्वीप को भी गेंहूँ-जौ के मूल कृषि वाले क्षेत्र में शामिल कर देता है और नवपाषण युग के भारतीय काल निर्धारण को विश्व के नवपाषण काल निर्धारण के अधिक समीप ले आता है। इसके अतिरिक्त इस स्थल से सिंधु सभ्यता के विकास और उत्पत्ति पर प्रकाश पड़ता है। यह स्थल हड़प्पा सभ्यता से पूर्व का ऐसा स्थल है जहां से हड़प्पा जैसे ईंटों के बने घर मिले हैं और लगभग 6500 वर्तमान पूर्व तक मेहरगढ़ वासी हड़प्पा जैसे औज़ार एवं बर्तन भी बनाने लगे थे। निश्चित तौर पर इस पूरे क्षेत्र में ऐसे और भी स्थल होंगे जिनकी यदि खुदाई की जाए तो हड़प्पा सभ्यता के संबंध में नए तथ्य मिल सकते हैं। मेहरगढ़ से प्राप्त एक औज़ार ने सभी का ध्यान आकर्षित किया है। यह एक ड्रिल है जो बहुत कुछ आधुनिक दाँत चिकित्सकों की ड्रिल से मिलती जुलती है। इस ड्रिल के प्रयोग के साक्ष्य भी स्थल से प्राप्त दाँतों से मिले हैं। यह ड्रिल तांबे की है और इस नयी धातु को ले कर आरंभिक मानव की उत्सुकता के कारण इस पर अनेक प्रयोग उस समय किए गए होंगे ऐसा इस ड्रिल के आविष्कार से प्रतीत होता है। एक अन्य महत्वपूर्ण वस्तु है सान पत्थर जो धातु के धारदार औज़ार और हथियार बनाने के काम आता था।
मेहरगढ़ से प्राप्त होने वाली अन्य वस्तुओं में बुनाई की टोकरियाँ, औज़ार एवं मनके हैं जो बड़ी मात्र में मिले हैं। इनमें से अनेक मनके अन्य सभ्यताओं के भी लगते हैं जो या तो व्यापार अथवा प्रवास के दौरान लाये गए होंगे। बाद के स्तरों से मिट्टी के बर्तन, तांबे के औज़ार, हथियार और समाधियाँ भी मिलीं हैं। इन समाधियों में मानव शवाधान के साथ ही वस्तुएँ भी हैं जो इस बात का संकेत हैं कि मेहरगढ़ वासी धर्म के आरंभिक स्वरूप से परिचित थे।
दुर्भाग्य से पाकिस्तान की अस्थिरता के कारण अतीत का यह महत्वपूर्ण स्थल उपेक्षित पड़ा है। इस स्थल की खुदाई 1977 ई0 मे हुई थी। यदि इसकी समुचित खुदाई की जाए तो यह स्थल इस क्षेत्र में मानव सभ्यता के विकास पर नए तथ्य उद्घाटित कर सकता है। अभी तक की इस खुदाई में यहाँ से नवपाषण काल से लेकर कांस्य युग तक के प्रमाण मिलते है जो कुल 8 पुरातात्विक स्तरों में बिखरे हैं। यह 8 स्तर हमें लगभग 5000 वर्षों के इतिहास की जानकारी देते हैं। इनमें सबसे पुराना स्तर जो सबसे नीचे है नवपाषण काल का है और आज से लगभग 9000 वर्ष पूर्व का है वहीं सबसे नया स्तर कांस्य युग का है और तकरीबन 4000 वर्ष पूर्व का है। मेहरगढ़ और इस जैसे अन्य स्थल हमें मानव प्रवास के उस अध्याय को समझने की बेहतर अंतर्दृष्टि दे सकते है जो लाखों वर्षों पूर्व दक्षिण अफ्रीका से शुरू हुआ था और विभिन्न शाखाओं में बंट कर यूरोप, भारत और दक्षिण- पूर्व एशिया पहुंचा।
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