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फ्रांस के प्रसिद्ध विद्वान लाप्लेस नें 1796 में पृथ्वी की उत्पत्ति के संबंध में निहारिका परिकल्पना अपनी बहु चर्चित पुस्तक पोजीशन ऑफ़ द वर्ल्ड सिस्टम प्रस्तुत की लाभ लेने कांत की परिकल्पना के दोष को दूर करने का प्रयास किया और यह माना कि प्रारंभ में पदार्थ ठोस कणों के रूप में नहीं था बल्कि अंतरिक्ष में एक गैसीय निहारिका थी
लाप्लेस को निहारिका की परिकल्पना की प्रेरणा शनि ग्रह को देखने से मिली थी लाप्लास ने अनुमान लगाया कि निहारिका का व्यास वर्तमान सौरमंडल के विस्तार के बराबर था यह निहारिका अपनी धुरी पर बड़ी तीव्र गति से घूम रही थी कालांतर में यह निहारिका ठंडी होकर सिकुड़ने लगी गति विज्ञान के नियमानुसार सिकुड़ती हुई वस्तु की घूर्णन गति में वृद्धि होती है * बढ़ने से अपकेंद्रीय बल में भी वृद्धि हुई जब अपकेंद्रीय बल बढ़ते बढ़ते गुरुत्वाकर्षण बल के बराबर हो गया तो निहारिका की विषुवत रेखा का कुछ पदार्थ एक छल्ले के रूप में पृथक होकर बाहर ही हो गया निहारिका के और अधिक ठंडा होने तथा उसमें अपकेंद्री बल में वृद्धि होने के कारण छल्ला इस निहारिका से दूर चला गया और बाद में अनेक छल्लों में विभाजित हो गया , बाद में यह छल्ले ठंडे ग्रहों उपग्रहों के रूप में विकसित हो गए निहारिका का अवशिष्ट भाग हमारा वर्तमान सूर्य है
विवेचना
1. लाप्लेस की परिकल्पना के अनुसार ग्रहों का अपने अक्ष तथा सूर्य के गिर्द अपने कक्ष पर घूमना स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है
2. सौर मंडल के सभी ग्रह एक ही तल में गति करते । लाप्लास नें स्पष्ट किया सभी ग्रह एक ही छल्ले से बने हैं जिस कारण से एक ही तल में गति करते हैं
3. लाप्लास के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति के ठंडे होने से हुई बाद में ठंडी हो गई पृथ्वी के ऊपरी भाग तथा आंतरिक भाग से इस बात की पुष्टि होती है
4. सौर मंडल के सभी ग्रहों की रचना एक जैसे तत्वों से हुई है उसकी परिकल्पना के अनुसार है
5. अंतरिक्ष में कई निहारिका की उपस्थिति लाप्लास की परिकल्पना प्रमाणित करती हैं
आपत्तियां
1. इस परिकल्पना के अनुसार ग्रहों का आकार सूर्य से दूरी के हिसाब के क्रमानुसार होना चाहिए जो कि वास्तविक नहीं है सूर्य के निकट बुध शुक्र पृथ्वी तथा मंगल तो छोटे ग्रह हैं परंतु बृहस्पति कथा शनि बड़े ग्रह हैं इससे बड़े अरुण तथा वर्ण फिर छोटे ग्रह हैं
2. लाप्लेस स्पष्ट नहीं किया छल्लो के घनीभूत होने से गोलाकार ग्रह कैसे बन गए गैस अणुगति सिद्धांत के अनुसार गैस के छल्लों द्वारा घनीभूत होकर ग्रह का रूप धारण करना संभव नहीं है
3. लाप्लास ने बताया कि वर्तमान सूर्य निहारिका का शेष भाग है सत्य है ईश्वर एक बार होना चाहिए इस बात का बोध हो यदि एक छल्ला सूर्य से अलग होने वाला है परंतु परंतु सूर्य पर ऐसा कोई विभाग दिखाई नहीं देता गृह निर्माण की प्रक्रिया बंद क्यों हो गई
4. वरुण तथा शनि के उपग्रह विपरीत दिशा में गति करते हैं जो लाप्लास की परिकल्पना के अनुसार नहीं है
5. सूर्य की आयु लगभग 4 से 5 वर्ष मानी गई है यदि आपने निहारिका को सारे सौरमंडल पर सैलरी मान लें तो इतनी कम अवधि में निहारिका का आयतन वर्तमान सूर्य के बराबर होना असंभव है
6. ग्रह और सूर्य की विषुवत रेखीय कक्षा को समानांतर होना चाहिए जबकि वास्तव में कक्षाओं के बीच का अंतर पाया गया है
7. लाप्लास की परिकल्पना के अनुसार प्रारंभिक निहारिका का कोणीय संवेग कुल सौर परिवार के कोणीय संवेग के बराबर होना चाहिए कोणीय संवेग का सिद्धांत द्रव्यमान तथा गति से संबंधित है सूर्य का द्रव्यमान कुल सौर परिवार के द्रव्यमान का 99.8% है और समस्त ग्रहों को द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान का एक दृश्य 1/745 है इस परिकल्पना के अनुसार कोड़ीय संवेग का वितरण भी इसी अनुपात में होना चाहिए परंतु ऐसा नहीं है सूर्य का संवेग सौर परिवार की तुलना में केवल 2% या उससे भी कम है यह तथ्य कोड़ी संवेग की सुरक्षा संबंधी नियम के सर्वथा विपरीत है
8. वालों का निर्माण होना चाहिए ना कि रुक रुक कर जैसा कि लाप्लेस ने बताया है
Jaiv vigyan ka Janak kise kahte he
Chembrlen ne maltrn ki garhanu parikalpana kab di
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Niharika kise kahate hai
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लाप्लास के सिद्धांत में निहारिका किसे कहा जाता हैं