sfdsf रणथंबोर में महाराणा प्रताप के घोड़े का चिन्ह - Ranthambore Me Maharanna Pratap Ke Ghode Ka Chinh -74768

Ranthambore Me Maharanna Pratap Ke Ghode Ka Chinh रणथंबोर में महाराणा प्रताप के घोड़े का चिन्ह

रणथंबोर में महाराणा प्रताप के घोड़े का चिन्ह



GkExams on 07-03-2023


महाराणा प्रताप के बारें में (Maharana pratap hindi) : महाराणा प्रताप का जन्म 09 मई, 1540 को कुम्भलगढ़ किले में हुआ था जो पाली क्षेत्र में स्थित है। हिंदी कैलेंडर के अनुसार राणा की जयंती ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होती है।

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आपको बता दे की महाराणा प्रताप मेवाड़ के 13वें राजा बने थे। प्रताप उदय सिंह के सबसे बड़े पुत्र थे। प्रताप के तीन भाई और दो सौतेली बहनें (maharana pratap family) भी थीं।


महाराणा प्रताप के भाले का वजन :




ऐसा कहा जाता है कि महाराणा प्रताप तब 72 किलो का कवच पहनकर 81 किलो का भाला अपने हाथ में रखते थे। भाला, कवच और ढाल-तलवार का वजन कुल मिलाकर 208 किलो था। राणा 208 किलो वजन के साथ युद्ध के मैदान में उतरते थे।


महाराणा प्रताप का घोड़ा :




चेतक महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम था। हल्दी घाटी-(1937 - 1939 ई0) के युद्ध में चेतक ने अपनी स्वामिभक्ति एवं वीरता का परिचय दिया था। अन्ततः वह मृत्यु को प्राप्त हुआ। श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित प्रसिद्ध महाकाव्य हल्दीघाटी में चेतक के पराक्रम एवं उसकी स्वामिभक्ति की कथा वर्णित हुई है। आज भी चित्तौड़ में चेतक की समाधि बनी हुई है।


महाराणा प्रताप का हाथी :




घोड़े के अलावा महाराणा प्रताप का एक प्रिय हाथी भी था जिसका नाम था रामप्रसाद। रामप्रसाद की वीर गाथा भी चेतक से कम नहीं है। रामप्रसाद नाम का ये हाथी इतना ताकतवर था कि उसने अकबर के तीन हाथियों को मार गिराया था। ऐसा भी कहा जाता है की हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर ने महाराणा के साथ उनके हाथी रामप्रसाद को भी पकड़ने के आदेश दिए थे।


जिसके बाद अकबर ने उसे बंदी बना लिया था। फिर अकबर ने रामप्रसाद का नाम बदलकर "पीर प्रसाद" रखा था। बताया जाता है की अकबर ने रामप्रसाद के खाने के लिए सबसे बेहतरीन व्यवस्था कि लेकिन उसने 18 दिन तक खाना नहीं खाया। जिसके बाद रामप्रसाद की मौत हो गई।


दोस्तों मुगलों (maharana pratap vs akbar) ने कई बार महाराणा प्रताप को चुनौती दी लेकिन मुगलों को मुंह की खानी पड़ी। आखिरकार, युद्ध और शिकार के दौरान लगी चोटों की वजह से महाराणा प्रताप की मृत्यु 1597 को चावंड में हुई। 30 वर्षों के संघर्ष और युद्ध के बाद भी अकबर महाराणा प्राताप को न तो बंदी बना सका और न ही झुका सका।



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