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ज्योतिष शास्त्र मे नक्षत्रों की गणना का विधान आदिकाल से चला आ रहा है। नक्षत्र का प्रभाव व्यक्ति के जन्म से ही शुरू हो जाता है, और उस व्यक्ति के आचार -विचार को निर्धारित करता है। नक्षत्र के फलस्वरूप ही व्यक्ति के गुण एवं दोष निर्धारित होते हैं। नक्षत्रों की श्रेणी मे विशाखा नक्षत्र (vishakha nakshatra 2022 predictions) का विशेष महत्व है विशाखा नक्षत्र जो नक्षत्र मंडल में सौलहवां स्थान प्राप्त करता है। इस नक्षत्र का स्वामी बृहस्पति को माना जाता है।
आपकी बेहतर जानकारी के लिए बता दे की विशाखा नक्षत्र को "त्रिपाद नक्षत्र" भी कहा जाता है क्योंकि इसके तीनों चरण तुला राशि में होते ही होते हैं और अंतिम चरण वृश्चिक राशी में पड़ता है। यह सुनहरे रंग का ग्रह है जो दिखने में मन को मोहित करने वाला होता है। विशाखा नक्षत्र (vishakha nakshatra secrets) तुला राशि में 20 अंश से लेकर वृश्चिक राशि में 3 अंश 20 कला तक रहता है। विशाखा नक्षत्र के व्यक्ति व्यवसाय करने में सक्षम होते हैं और बार-बार व्यवसाय बदलना इनकी प्रकृति मे शामिल होता है।
विदर या बिछुड़ा कब है? विछुड़ा की गणना। वीदर कब लगेंगे 2020-2021
भारत में कुछ स्थानों पर आधे विशाखा नक्षत्र से अनुराधा एवं ज्येष्ठा समाप्त होने तक कुछ कार्य करना वर्जित है इस काल को स्थानीय भाषा में वीदर या बीदर अथवा विछुड़ा या बिछुड़ा कहा जाता है।
राशि चक्र मे। 200।00 से 213।00 अंश के विस्तार का क्षेत्र विशाखा नक्षत्र है। अरब मंजिल में यह अल जुबाना अर्थात बिच्छू के दो डंक, ग्रीक मे लिब्रा, चीनी सियु मे ताई कहलाता है। शाक्य व खंडकातक इसके दो तारे मानते है, बाद की धारणाओ मे यह चार तारो का समूह है जो कुम्हार के चाक या वंदनवार आकृति के समान है।
देवता इन्द्र, अग्नि, स्वामी ग्रह गुरु, राशि तुला 20।40 से वृश्चिक 03।20 अंश। भारतीय खगोल मे यह 16 वा नक्षत्र मिश्र संज्ञक है। इसके चार तारे है जो खाना खाने के कांटे जैसा या वृक्ष की शाखा की आकृति या दरवाजे पर टांगे जाने वाले वंदनवार (तोरण) जैसे दिखते है। इसलिए इसे कही तोरण और कही बहिर्द्वार सदृश कहा है। यह अशुभ तामसिक नपुंसक नक्षत्र है। इसकी जाति चाण्डाल, व्याघ्र, वैर गौ, राक्षस गण, अंत नाड़ी है। यह पूर्व दिशा का स्वामी है। इसे राधा भी कहते है।
विशाखा के देवता इन्द्राग्नि (इंद्रा और अग्नि) है। इन्द्र जीव (सृष्टि के शरीर) के शिल्पकार है। इसे वृषभ भी कहते है जो विश्व का प्राण है। प्राण पांच है - उदान, प्राण, अपान, समान और व्यान। इंद्रा की पत्नी सुचि और निवास अमरावती है ये शिव के अग्रज है। अग्नि इन्द्र के बाद दूसरी शक्ति है. तथा पांच महाभूतो मे से एक है। अग्नि के तीन रूप है - पावक अर्थात विद्युतीय अग्नि, पवमाना अर्थात घर्षणीय अग्नि, सुचि अर्थात सौर अग्नि। वशिष्ठ के शाप वश इन्हे बार-बार प्रज्वलित होना पड़ता है।
इन्द्र-अष्टदिशा अभिभावक
प्रतीकवाद - इसके देवता इन्द्र और अग्नि है। इन्द्र हिन्दुओ मे वैदिक देवता, बोद्धो मे अविभावक, जैनो मे सौधर्मकल्प 16 वे स्वर्ग के इन्द्र है। ये सभी देवताओ के राजा और इन्द्र लोक के स्वामी है। ये ऋषि कश्यप और माता अदिति के पुत्र है। इन्द्र वर्षा और तूफान के देवता भी है। ऋग्वेद की एक-चौथाई ऋचाओ मे इन्द्र का उल्लेख है। पद्मपुराण के कथानक अनुसार इंद्र ने गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या से छल-कपट द्वारा कामक्रीड़ा की जिससे कुपित होकर ऋषि गौतम ने उन्हें शाप दिया जिसके कारण इंद्र के सारे शरीर पर योनिया बन गई जिसे ऋषि गौतम ने इन्द्र द्वारा क्षमा याचना करने पर करुणा वश नेत्रो मे बदल दिया, अहिल्या को पत्थर की शिला बना दिया। कहते है कि इससे इन्द्र के वृषण नष्ट हो गये थे जो अग्नि देव की कृपा से ही पुनः प्राप्त हुए। देवता द्वय नक्षत्र को शक्ति, ऊर्जा, अधिकार से प्रतिबिम्बित करते है।
अग्नि विशाखा के अन्य देवता है। ये वेदो मे इन्द्र के बाद दूसरे मुख्य देवता है और यज्ञ की आहुतियो के वाहक
अग्नि देव
है। अग्नि ब्रम्हा और पृथ्वी के पुत्र है। यह भी माना जाता है कि अग्नि की उत्पत्ति विराट पुरुष के मुख से हुई। वायु पुराण अनुसार पत्नी स्वः से तीन पुत्र पावक (विद्युत अग्नि) पवमाना (घर्षण अग्नि) और सुचि (सूर्य अग्नि) हुए। अग्नि के शरीर से सात रंग की आभा प्रस्फुटित होती है। ऋग्वेद की 1028 मे से 218 ऋचाओ में अग्नि का उल्लेख है। अथर्ववेद मे इन्हे जीवन पोषक, शारीरिक क्रियाओ मे सहायक, सृष्टि का प्रारम्भिक, ज्ञान का देवता, दक्षिण-पूर्व दिशा आग्नेय कोण का स्वामी माना है।
विशेषताएं - यह खेत मे हल चलना, कुम्हार के द्वारा चाक से कृति, अभिप्राय उद्देश्य का कारक है। यह राधा-कृष्ण के प्रगाढ़ प्रेम, राधा के पवित्र, शुद्ध, विषय भोगो से निर्लिप्त स्नेह का द्योतक है। जातक जीवन के दूसरे भाग में उन्नति करता है। जातक आक्रामक तानाशाह, स्थिर, धैर्यवान, निश्चयी होता है। चन्द्रमा इसके चौथे चरण मे नीच का होता है। यह देवता मुरुगन का जन्म नक्षत्र है।
नक्षत्र फलादेश
विशाखा कृष्ण समर्पित राधा-प्रसन्नता दायक का निवास कहलाता है। इसे लवनिहार भी कहा जाता है। इसके देवता इन्द्र, परिवर्तन कारक और अग्नि, आग कारक इस नक्षत्र मे ऊर्जा, शक्ति, प्रभुत्व प्रदाता है। स्वामी ग्रह गुरु उमंग, जोश, विश्वास, आशावाद, भाग्य की उम्मीद प्राप्त करने की शक्ति, जीवन मे अनेक फल का कारक है। विशाखा हल चलाना, खेती करना, फसल काट कर उपज प्राप्त करने का द्योतक है। यह व्यक्ति को लक्ष्य पाने मे सहायक है।
जातक लालची, अभिमानी, निष्ठुर, झगड़ालू, वैश्यागामी, धैर्यवान, स्थिर, कठिन कार्य करने के लिए दृढ संकल्पी, साहसी जीवन के उत्तरार्ध मे सफल और सुखी होता है।
जातक तानाशाह, आक्रामक, लड़ाई जीतने वाला परन्तु कठोरता के कारण युद्ध हारने जैसा, दबा हुआ क्रोधी, निराश, अनेक अधूरी इच्छा वाला, ईर्ष्यालु, अति होता है। यह दोस्तो के मजबूत सामाजिक अभाव के कारण अपने को दुनिया से अलग महसूस करता है जिसके कारण रोष और घृणा से भरा होता है।
पुरुष जातक - जातक गोल उज्ज्वल चेहरा, आकर्षक शारारिक गठन होता है. शारारिक गठन प्रायः दो प्रकार का मोटा- लम्बा और कृश-ठिगना देखने मे आता है। जातक ताकतवर, जीवन शक्ति से ओत-प्रोत, सर्वोच्च बुद्धि वाला, ईश्वर पर दृढ विश्वासी, सत्यता पूर्ण जीवन जीने वाला होता है। यह प्राचीन परम्परागत नियमो और प्राचीन आचार-विचार वाला नही होता परन्तु आधुनिक विचारधारा का शौकीन होता है।
जातक परिवार से पृथक, गुलामी नापसंद, अत्यधिक धार्मिक किन्तु धार्मिक कट्टरता या अन्धविश्वास या मतान्धता को नही मानने वाला होता है। यह गाँधी दर्शन "अंहिंसा परमोधर्म" और सत्य ही ईश्वर है का अनुयायी होता है। कुछ गाँधी वादी जातक 36 वर्ष की अवस्था मे सन्यास ले लेते है परन्तु गृहस्थाश्रम की समस्त जबाबदारियो का निर्वाह करते है। यह सार्वजानिक व्याख्यानदाता, भीड़ जमा करने में निपुण, वादविवाद मे विजेता रहने से कुशल राजनीतिज्ञ होता है।
जातक विचित्र प्रकार का खर्चीला, व्यवसायी, कोषालय अधिकारी, गणितज्ञ, मुद्रक, माता की मृत्यु का कारण मातृ स्नेह से वंचित तथा पिता की सहायता से भी वंचित इस प्रकार यतीम या अनाथ होता है इसलिए बचपन से ही परिश्रमी और कर्मठ होता है। शराबी और पर स्त्री रत होते हुए भी पत्नी से प्रेम करने वाला होता है।
स्त्री जातक - स्त्री जातक मे अल्प या अधिक वे ही गुणदोष पुरुष जातक जैसे होते है। अंतर निम्न है।
1- यह अत्यंत सुन्दर होती है जिससे पुरुष आकर्षित होते है जो समस्या, बाधा, बदनामी का कारण बनते है।
2- यह गृह कार्य मे दक्ष, नौकर हो, तो कार्यालयीन कार्य मे दक्ष, दिखावा और तड़क-भड़क मे अविश्वासी, सहेली और रिस्तेदारो से ईर्ष्या करने वाली, व्रत-पूजा करने वाली होती है।
3- यह कविता रशिक, चंद्र शुक्र की युति हो, तो प्रसिद्ध लेखिका, कला और साहित्य मे प्रवीण होती है।
4- पति को परमेश्वर मनाने वाली, परिवार और रिश्तेदारो की सृमद्धि कारक और कल्याणक होती है। पवित्र स्थलो का भ्रमण करने वाली, स्वस्थ, लेकिन समलैंगिकता के कारण कमजोर होती है।
आचर्यों मतानुसार नक्षत्र फल
विशाखा नक्षत्र वाले अपने आप मे मग्न रहते है। इनके मित्र बहुत कम होते है। चिकनी-चुपड़ी बाते करना, ईर्ष्या और डाह करना इनकी फितरत होती है। अपने विरोधियो का सफाया चतुरता से करते है। लोभी होने के कारण धन इकट्ठा कर लेते है। इनमे दिखावे की भावना बहुत अधिक होती है। - नारद
ये न तो सौम्य और न ही उग्र बल्कि दोनों का सम्मिश्रण होते है। दूसरो की गहराई को हमेशा नापते रहना और अपनी बात की हवा भी नही लगने देना इनकी विशेषता है। - वराहमिहिर
इन लोगो का वंश बहुत देर से चलता है या नही चलता है। पुत्र सुख नही होता है। इनका स्वाभाव तीक्ष्ण और अभिमानी होता है लेकिन ये धन एकत्रित करने मे सफल हो जाते है। - पराशर
➤ यदि चन्द्रमा बलि होकर लग्न मे नही हो, तो उक्त गुणो मे कुछ अच्छाई पैदा हो जाती है।
चन्द्र - चन्द्र इस नक्षत्र मे हो, तो जातक उच्च बुद्धि वाला, भरोसा दायक भाषी, लेखक, ओजस्वी वक्ता, भीड़ इकट्ठा करने वाला, नेतृत्व करने वाला, परिवार से अलग रहने वाला, सब धर्मो को समान मानने वाला, मानवीय, सत्यवादी, राजनीतिज्ञ होता है।
जातक स्वार्थी, लक्ष उन्मुख, महत्वाकांक्षी, सशक्त, हाजिर जबाबी, लोकप्रिय, अच्छा संचारक लेकिन अपघर्षक होता है। इन्हे जीवन के उत्तरार्द्ध मे सफलता मिलती है। ये दूसरो से जलनशील और ईर्ष्यालु होते है।
वराहमिहिर अनुसार चंद्र प्रभाव ईर्ष्या, लालच, गुप्तता और बेरोजगारी का कारक है।
सूर्य - सूर्य इस नक्षत्र में हो, तो जातक आत्म केन्द्रित, महत्वाकांक्षी, अंतर्मुखी, रहस्यमय, शोध उन्मुख, वैज्ञानिक, शराबी, अशान्त होता है। प्राधिकारी से मुसीबत होती है।
लग्न - लग्न विशाखा मे हो, तो जातक आक्रामक, शीघ्र क्रोधित होने वाला, धनाढ्य, पूजा के रूपो के लिए समर्पित, राजनीति रूप से झुका हुआ, ज्योतिष ज्ञानवान, रहस्यमयी होता है।
विशाखा चरण फल
प्रथम चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे शुक्र, गुरु, मंगल ♀ ♃ ♂ का प्रभाव है। तुला 200।00 से 203।20 अंश। नवमांश मेष। यह ऊर्जा, सामाजिक महत्वाकांक्षा, वायदा या वचन बद्धता का द्योतक है। जातक खूबसूरत, पतला या छोटा ललाट, बुद्धिमान, ज्ञानवान, लोभी साहसी व मनस्वी होता है।
इस पाद में उत्पन्न व्यक्ति काम वासना युक्त, प्रणयपूर्ण, सामाजिक महत्वाकांक्षा के लिए कर्मठ, प्रेम मे किसी भी सीमा तक जाने को आतुर, ऊर्जावान किन्तु क्रोधी होता है।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे शुक्र, गुरु, शुक्र ♀ ♃ ♀ का प्रभाव है। तुला 203।20 से 206।40 अंश। नवमांश वृषभ। यह टिकाऊपन, सहनशक्ति, भौतिकता का द्योतक है। जातक ऊँचे कंधे व गाल, विषम शरीर, लम्बी घनी भोंहे, सुडोल वक्ष, बड़ा माथा, स्पष्ट वक्ता, शांत होता है।
इस पाद मे उत्पन्न व्यक्ति बुद्धिमान, व्यापार मे सफल, गुप्त रीति से शत्रुओ को पराजित करने वाला, अमीर, शोध करने वाला होता है। यह पाद स्वास्थ के लिए नेष्ट है जातक को 16, 28, 60 वर्ष मे गम्भीर रोग होते है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे शुक्र, गुरु, बुध ♀ ♃ ☿ का प्रभाव है। तुला 206।40 से 210।00 अंश। नवमांश मिथुन। यह संचार, धर्म, खुली विचारधारा, विवाद, दर्शन, खुली स्वार्थपरता, चिंता ग्रस्तता, छल का द्योतक है। जातक स्वाभविक नेत्र वाला, प्रसन्नचित्त, गौर वर्ण, सम सुन्दर शरीर, कला मे दक्ष, नम्र, मज़ाकी स्वभाव वाला, वैश्या को रखने वाला या वैश्यगामी होता है।
इस पाद मे जातक विचारवान, पढ़ाई-लिखाई मे रुचिवान, कुशल संचारक, तेजबुद्धि, सफल ब्यवसाय वाला, चतुर, विनोदी होता है। भाग्योदय 32 वर्ष बाद होता है। ईश्वर कृपा से सफल होता है।
चतुर्थ चरण- इसका स्वामी चंद्र है। इसमे मंगल, गुरु, चन्द्र ♂ ♃ ☾ का प्रभाव है। वृश्चिक 210।00 से 213।20 अंश। नवमांश कर्क। यह भावना, परिवर्तन, विश्वास, अस्थिरता, इंतकाम का द्योतक है। जातक छोटे होंठ, ऊँची नाक, स्थूल अधर, गौर वर्ण, सुन्दर ललाट, दृढ़ अंग, मेढक के समान पेट वाला होता है।
इस पाद मे उत्पन्न व्यक्ति अत्यंत भावुक, बाहरी वातावरण के प्रति संवेदनशील, तीव्र ईर्षालु, इन्तकामी होता है। इस पाद मे आर्थिक विकास नही होता किन्तु भाग्य से अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेता है।
आचर्यों ने चरण फल सूत्र रूप में कहा है परन्तु अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : विशाखा के प्रथम चरण मे नीतिकुशल, द्वितीय मे शास्त्रविद, तृतीय मे वाद विवाद कुशल या वकील चतुर्थ मे दीर्घायु होता है।
मानसागराचार्य : पहले चरण मे माता-पिता का भक्त, दूसरे चरण मे राजमान्य, तीसरे चरण मे भाग्यवान, चौथे मे धनवान होता है।
विशाखा ग्रह चरण फल
भारतीय मतानुसार सूर्य, बुध, शुक्र की आपसी पूर्ण या पाद दृष्टि नही होती है क्योकि सूर्य से बुध 28 अंश और शुक्र 48 अंश से अधिक दूर नही हो सकते है।
सूर्य :
➧ सूर्य पर चन्द्र की दृष्टि हो, तो जातक जलीय उद्योग, जहाजरानी से आजीविका करेगा।
➧ सूर्य पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक वीर और युद्ध विद्या में कुशल होगा।
➧ सूर्य पर गुरु की दृष्टि हो, तो राजनीतिज्ञो से अनुचित लाभ कमायेगा।
➧ सूर्य पर चन्द्र की दृष्टि हो, तो जातक धोखेबाज, शासन से दण्डित, पापी होगा।
विशाखा सूर्य चरण फल
प्रथम चरण - जातक आत्म केंद्रित, अपने आप में मग्न रहने वाला, महत्वाकांक्षी, दूसरो की तरक्की से जलने वाला, लोभी, धन संग्रहक होता है।
➤ यदि हस्त नक्षत्र लग्न हो, तो जातक का विवाह विलम्ब से होता है और इसके बाद भी पत्नी की म्रत्यु अथवा तलाक हो सकता है। स्त्री जातक का विवाह नही होता है और उसके अवैध ताल्लुक होते है।
द्वितीय चरण - जातक अपने विरोधियो का चतुराई से सफाया करने वाला, भला नही करने वाला, अंतर्मुखी, रहस्यमयी, अशांत और व्याकुल रहने वाला, मितव्ययी, कंजूस, ख़राब बोलने वाला, कम खाने वाला होता है। इसका वंश विलम्ब से चलता है।
तृतीय चरण - जातक चिकनी चुपड़ी बाते करने वाला, बहुत दिखावा करने वाला, मुंह देखकर तिलक निकालने वाला, उग्र और सौम्य का सम्मिश्रण, डाह का अनुभव करने वाला ईर्ष्यालु होता है। नेत्र रोग, दृष्टि दोष और कुछ मामलों मे अंधापन हो सकता है।
चतुर्थ चरण - जातक अपने आप मे मग्न रहने वाला, महत्वाकांक्षी, शोध उन्मुख, वैज्ञानिक मन से सोच-विचार करने वाला, व्यसनी, शराबी, अधिकारियो से परेशान रहने वाला होता है।
चन्द्र :
➧ चंद्र पर सूर्य की दृष्टि हो, तो जातक साहूकार, कृषि व्यवसायी होगा।
➧ चंद्र पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक स्त्रियो से घिरा रहेगा जो इसके खतरे का कारण बनेगा।
➧ चंद्र पर बुध की दृष्टि हो, तो जातक बुद्धिमान, ज्योतिषी या इंजीनियर या गणितज्ञ होगा।
➧ चंद्र पर गुरु की दृष्टि हो, तो जातक माता-पिता का आज्ञाकारी होता है। पत्नी से बेबनाव रहता है।
➧ चंद्र पर शुक्र की दृष्टि हो, तो जातक स्वस्थ, सुखी वैवाहिक जीवन वाला, धनवान होता है।
➧ चंद्र पर शनि की दृष्टि हो, तो जातक प्रतिशोधी, माता से विछोह, स्त्रियो से घृणा करने वाला होता है।
विशाखा चन्द्र चरण फल
प्रथम चरण - जातक स्वार्थी, चिकनी-चुपड़ी बात करके अपना मतलब निकालने वाला, लक्ष्य उन्मुख, महत्वाकांक्षी, दूसरो की गहराई नापने वाला, अपघर्षक, मवेशी पलने से लाभी होता है।
द्वितीय चरण - जातक दृढ़ निश्चयी, भरोसा दायक भाषी, दिखावा करने वाला, तड़क-भड़क पसंद करने वाला, अपने मे मग्न, धैर्यवान, प्रतिक्रिया मे लिप्त, हाजिर जबाबी, स्त्रियो के धन से अनुचित लाभ लेने वाला, सब धर्मो को मानने वाला होता है।
तृतीय चरण - जातक मुंह पर तारीफ करने वाला और मन ही मन जलने वाला, बुद्धिमान और हाजिर जबाब, लोकप्रिय संचारक लेकिन अपघर्षक, स्वभाव से तीक्ष्ण और अभिमानी होता है।
चतुर्थ चरण - जातक भीड़ इकट्ठी करने वाला, दूसरो की थाह रखने वाला, जलनशील, ईर्ष्यालु है। यदि चन्द्र बलि होकर लग्न में नही हो तो उक्त गुणो मे अच्छाई आ जाती है।
मंगल :
➧ मंगल पर सूर्य की दृष्टि हो, तो जातक विदेश मे रहेगा और पत्नी से घृणा करेगा।
➧ मंगल पर चन्द्र की दृष्टि हो, तो जातक माता से स्नेह और पिता से नफरत करेगा।
➧ मंगल पर बुध की दृष्टि हो, तो जातक से उसकी पत्नी अधिक बुद्धिमान और नेक होगी।
➧ मंगल पर गुरु की दृष्टि हो, तो जातक परिवार और परिजनो मे अनुरक्त रहेगा।
➧ मंगल पर शुक्र की दृष्टि हो, तो जातक शासन मे ऊँचे पद पर होगा और प्रसिद्ध होगा।
➧ मंगल पर शनि की दृष्टि हो, तो जातक सब प्रकार से नेक लेकिन कंजूस होगा।
विशाखा मंगल चरण फल
प्रथम चरण - व्यक्ति साहसी, निडर, बहुत कम मित्रो वाला, डाह करने वाला, लोभी होने से धन संग्रह करने वाला, खर्चीला दूसरो का सम्मान नही करने वाला, दुःखी, उभयमुखी, तीक्ष्ण स्वभाव वाला होता है।
द्वितीय चरण - व्यक्ति मुंह पर चिकनी-चुपड़ी बात करने वाला और पीठ पीछे बुराई करने वाला, दो मुंहा, धार्मिक आस्था युक्त होता है। सूर्य से युत हो तो झूठा, पापी, चन्द्र से युत हो, तो कारीगर या खनिक मजदूर होगा।
तृतीय चरण - व्यक्ति अपने मे मग्न रहने वाला, अंतर्मुखी, अल्प मित्र वाला, दूसरो की गहराई नाप कर व्यवहार करने वाला, अर्थ इकट्ठा करने मे व्यस्त, सामान्य स्वाभाव वाला, प्रेम दीवाना, चमड़े की वस्तुओ का व्यापारी या कुम्भकार होता है।
चतुर्थ चरण - व्यक्ति सौम्य, प्रेम के वशीभूत, विरोधियो का सफलता से सामना करने वाला, स्वयं की बात की हवा नही लगने देने वाला, आथित्य प्रेमी, शांत किन्तु किसी का भला नही करने वाला होता है।
➽ पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में बुध हो, तो शिक्षा अधूरी रहती है। शुक्र से युत हो, तो वर्ग या समाज का प्रमुख, गणित और ज्योतिष मे प्रवीण होगा। शनि से युत हो, तो 38 वर्ष तक संकटो से पीड़ित होगा। यदि यह चरण लग्न हो और इसी चरण मे मंगल हो, तो जातक मुख्य मंत्री और प्रधान मंत्री होता है। (नरेन्द्र मोदी)
बुध :
➧ बुध पर चंद्र की दृष्टि हो, तो जातक मेहनती, शासक वर्ग के निकट, धनवान होता है।
➧ बुध पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक सामान्य धनवान होता है।
➧ बुध पर गुरु की दृष्टि हो, तो जातक बुद्धिमान और धनवान होता है।
➧ बुध पर शनि की दृष्टि हो, तो जातक को विपत्तियो का सामना करना पड़ता है।
विशाखा बुध चरण फल
प्रथम चरण - जातक चिकनी-चुपड़ी मुंह देखी बात करने वाला, पीठ पीछे नुकसान करने वाला, दूसरो की तरक्की से जलने वाला, डाह करने वाला, मित्रो का अहित करने वाला, नपुसंक होता है। शनि से युत हो, तो इंजिनियर होता है।
द्वितीय चरण - जातक धन एकत्रित करने वाला, उदार, न किसी का दोस्त और न ही किसी का दुश्मन, वैभव युक्त, भाग्यशाली, विधवाओ से यौन तुष्टि करने वाला होता है। सूर्य केतु की युति हो, तो अधूरी शिक्षा किन्तु बुद्धिमान होता है।
तृतीय चरण - जातक न तो सौम्य और न ही उग्र, अपनी बात गुप्त रखने वाला, धन एकत्रित करने वाला, अन्य वस्तुओ का संग्रह करने वाला होता है।
➽ अनुराधा नक्षत्र पर शनि हो, तो व्यापारी, शनि की युति हो, तो परिजनो की बीमारी पर धन खर्च करने वाला होता है। धन की आपूर्ति अवैध तरीको से करेगा तथा दण्डित होगा।
चतुर्थ चरण - जातक सुन्दर, अन्तर्मुखी, अपने आप मे मग्न, एक वस्तु का संग्रह कर लेने बाद दूसरी के संग्रह की खोज मे लग जाने वाला, फिजूल खर्ची, असत्य भाषी होता है।
गुरु :
➧ गुरु पर सूर्य की दृष्टि हो, तो जातक स्वस्थ, सुखी पारिवारिक जीवन होता है।
➧ गुरु पर चंद्र की दृष्टि हो, तो जातक धनी परिवार मे उत्पन्न होता है।
➧ गुरु पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक साहसी, विद्वान, धनवान होगा।
➧ गुरु पर बुध की दृष्टि हो, तो जातक अच्छे चाल-चलन वाला, धनवान होता है।
➧ गुरु पर शुक्र की दृष्टि हो, तो जातक सुन्दर, प्रभावी व्यक्तित्व वाला होगा।
➧ गुरु पर शनि की दृष्टि हो, तो जातक विभिन्न विषयो मे प्रवीण, ज्ञानी होगा।
विशाखा गुरु चरण फल
प्रथम चरण - जातक सामान्य स्वभाव वाला, व्यसन प्रिय या शराबी, अल्प मित्र वाला, सामान्य शिक्षित, दूसरो के दोष देखने वाला, नुक्ता-चीनी करने वाला, मुक़दमे बाजी मे घिरा होता है।
द्वितीय चरण - जातक अंतर्मुखी, आत्म केंद्रित, धनवान, दूसरो का रुख देखकर बात करने वाला, सदाचारी, धार्मिक अनुष्ठान करने वाला, तन्त्र मन्त्र मे रुचिवान होता है।
तृतीय चरण - जातक सुन्दर, अपनी इच्छानुसार वस्त्र धारण करने वाला, विद्या और बुद्धि से धन संचय करने वाला होता है। शुक्र से युत हो तो नीति की शिक्षा देने वाला होता है।
चतुर्थ चरण - जातक सौभाग्यशाली, प्रेम मे दीवाना, वास्तविक बात कहने वाला, सच्चा निश्छल वासना रहित प्रेम करने वाला, प्रेम का पूजक होता है। मूल नक्षत्र मे केतु हो, या राहु से युति हो, तो वह कृषक परिवार से होगा और अपने सहोदरो को कष्ट कारक होगा। शनि से दृष्ट हो तो बाल्यावस्था मे रोगी होगा।
शुक्र :
➧ शुक्र पर चंद्र की दृष्टि हो, तो जातक मृदुभाषी, परिवार मे नायब होगा।
➧ शुक्र पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक अवैध तरीको से कमाने वाला होता है।
➧ शुक्र पर गुरु की दृष्टि हो, तो जातक भवन, वाहन, जमीन का स्वामी होगा।
➧ शुक्र पर शनि की दृष्टि हो, तो जातक बईमान, लोक निंदा मे रत होता है।
विशाखा शुक्र चरण फल
प्रथम चरण - सामान्य स्वभाव वाला, मुंह देखी बात करने वाला, दूसरो की उन्नति पर ईर्ष्या करने वाला, प्रदर्शन करने वाला होता है। शनि की युति हो, तो बुद्धिजीवी, शासकीय सेवक होगा। चंद्र की युति हो, तो खरीद फरोख्त (दलाली) में माहिर होता है।
द्वितीय चरण - जातक अपने मे ही बहुत मग्न रहता है। यह न किसी का मित्र और न ही शत्रु होता है। धन एकत्रित कर धनवान, ऎश्वर्यशाली, महान प्रेमी, हर प्रकार सुखी होता है। बुध की युति हो, तो प्रतिभाशाली, शासन या शिक्षण संस्था मे उच्च पद पर होता है।
तृतीय चरण - जातक विद्वान, उभयमुखी, प्रेम के लिए आतुर, सदाचारी, विरोधियो को परास्त करने वाला, मनुष्य का पारखी होता है। सूर्य चंद्र की युति हो, तो शास्त्रो मे प्रवीण होता है।
चतुर्थ चरण - जातक सुन्दर, सफल, वासना रहित प्रेमी, प्रेम को ही सब कुछ मान्यता देने वाला, सुन्दर सुशील मनोरम पत्नी वाला होता है। यदि चन्द्रमा लग्न मे नही हो, तो इन गुणो मे वृद्धि हो जाती है।
शनि :
➧ शनि पर सूर्य की दृष्टि हो, तो जातक गरीब, पिता से कोई मदद नही होती है।
➧ शनि पर चंद्र की दृष्टि हो, तो जातक राजनीति मे उच्च पद पर होगा।
➧ शनि पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक हर मामले मे उन्मादी और आतुर होगा।
➧ शनि पर बुध की दृष्टि हो, तो जातक कई विद्याओ और शास्त्रो का ज्ञाता होगा।
➧ शनि पर गुरु की दृष्टि हो, तो जातक जीवन के सभी सुख पायेगा।
➧ शनि पर शुक्र की दृष्टि हो, तो जातक विद्वान, कई विषयो का ज्ञाता होगा।
विशाखा शनि चरण फल
प्रथम चरण - जातक अपने आप मे मस्त. मुंह मे राम बगल मे छुरी वाले सिद्धांत वाला, लोभी और कंजूस होने से धन संग्रह करने वाला, दुराचारी, अश्लील भाषी, परम्पराओ का निर्वाह नही करने वाला होता है। सूर्य बुध की युति हो, तो वित्तीय या लेखा अधिकारी होता है।
द्वितीय चरण - जातक प्रेम रत, जितेन्द्रिय, विद्वान, स्पष्ट बात करने वाला, दिखावा करने वाला, संयमी होता है। सूर्य से युत हो, तो पिता से कष्ट होगा। राहु मंगल से युत होगा तो रक्त विकारी होगा।
तृतीय चरण - जातक सुन्दर व आकर्षक, लच्छेदार बाते करने वाला, विशेष नेकियो और सहायता के कारण मंत्री के समकक्ष होता है।
चतुर्थ चरण - जातक ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति करने वाला, निश्छल प्रेम मे दीवाना, तीक्ष्ण स्वभाव व तुच्छ होता है। स्वाति मे लग्न हो तो महा धनाढ्य होता है।
विशाखा राहु चरण फल
प्रथम चरण - जातक व्यभिचारी, सम्पन्न, दूसरो की सहायता के लिए तत्पर होगा।
द्वितीय चरण - जातक बालक स्वभाव वाला, स्त्री की बीमारी से परेशान, उत्तेजित, लड़ने को उद्द्यत होता है।
तृतीय चरण - जातक धनवान, प्रसिद्ध लेकिन पिता से बेबनाव और पिता से नफरत करने वाला होता है।
चतुर्थ चरण - जातक भूखा रहने से रोगी रहेगा। पिता के दबाब के कारण नापसंद कन्या से विवाह करेगा।
विशाखा केतु चरण फल
प्रथम चरण - जातक आत्म विश्वास से हीन, मानसिक रूप से परेशान होगा। शनि से युत हो, तो मशीनो से सम्बन्धित पद पर होगा।
द्वितीय चरण - जातक चंचल चित का व्यभिचारी, पैतृक संपत्ति लुटाने वाला होता है।
तृतीय चरण - जातक उत्तेजित स्वभाव वाला, नेकी रहित, वाकपटु, बहादूर, माता-पिता का विरोधी होगा।
चतुर्थ चरण - जातक आडम्बर करने वाला, दम्भी, आलसियो की संगती मे रहेगा।
चंद्रमा २७-२८ दिनों में पृथ्वी के चारों ओर घूम आता है। खगोल में यह भ्रमणपथ इन्हीं तारों के बीच से होकर गया हुआ जान पड़ता है। इसी पथ में पड़नेवाले तारों के अलग अलग दल बाँधकर एक एक तारकपुंज का नाम नक्षत्र रखा गया है। इस रीति से सारा पथ इन २७ नक्षत्रों में विभक्त होकर नक्षत्र चक्र कहलाता है। नीचे तारों की संख्या और आकृति सहित २७ नक्षत्रों के नाम दिए जाते हैं—
नक्षत्र तारासंख्या आकृति और पहचान
अश्विनी ३ घोड़ा
भरणी ३ त्रिकोण
कृत्तिका ६ अग्निशिखा
रोहिणी ५ गाड़ी
मृगशिरा ३ हरिणमस्तक वा विडालपद
आर्द्रा १ उज्वल
पुनर्वसु ५ या ६ धनुष या धर
पुष्य १ वा ३ माणिक्य वर्ण
अश्लेषा ५ कुत्ते की पूँछ वा कुलावचक्र
मघा ५ हल
पूर्वाफाल्गुनी २ खट्वाकार X उत्तर दक्षिण
उत्तराफाल्गुनी २ शय्याकारX उत्तर दक्षिण
हस्त ५ हाथ का पंजा
चित्रा १ मुक्तावत् उज्वल
स्वाती १ कुंकुं वर्ण
विशाखा ५ व ६ तोरण या माला
अनुराधा ७ सूप या जलधारा
ज्येष्ठा ३ सर्प या कुंडल
मुल ९ या ११ शंख या सिंह की पूँछ
पुर्वाषाढा ४ सूप या हाथी का दाँत
उत्तरषाढा ४ सूप
श्रवण ३ बाण या त्रिशूल
धनिष्ठा प्रवेश ५ मर्दल बाजा
शतभिषा १०० मंडलाकार
पूर्वभाद्रपद २ भारवत् या घंटाकार
उत्तरभाद्रपद २ दो मस्तक
रेवती ३२ मछली या मृदंग
इन २७ नक्षत्रों के अतिरिक्त अभिजित् नाम का एक और नक्षत्र पहले माना जाता था पर वह पूर्वाषाढ़ा के भीतर ही आ जाता है, इससे अब २७ ही नक्षत्र गिने जाते हैं। इन्हीं नक्षत्रों के नाम पर महीनों के नाम रखे गए हैं। महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र पर रहेगा उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के अनुसार होगा, जैसे कार्तिक की पूर्णिमा को चंद्रमा कृत्तिका वा रोहिणी नक्षत्र पर रहेगा, अग्रहायण की पूर्णिमा को मृगशिरा वा आर्दा पर इसी प्रकार और समझिए।
नाम स्वामी ग्रह पाश्चात्य नाम मानचित्र स्थिति
1 अश्विनी (Ashvinī) केतु β and γ Arietis Aries constellation map.svg 00AR00-13AR20
2 भरणी (Bharanī) शुक्र (Venus) 35, 39, and 41 Arietis Aries constellation map.svg 13AR20-26AR40
3 कृत्तिका (Krittikā) रवि (Sun) Pleiades Taurus constellation map.png 26AR40-10TA00
4 रोहिणी (Rohinī) चन्द्र (Moon) Aldebaran Taurus constellation map.png 10TA00-23TA20
5 मॄगशिरा (Mrigashīrsha) मंगल (Mars) λ, φ Orionis Orion constellation map.png 23TA40-06GE40
6 आद्रा (Ārdrā) राहु Betelgeuse Orion constellation map.png 06GE40-20GE00
7 पुनर्वसु (Punarvasu) बृहस्पति(Jupiter) Castor and Pollux Gemini constellation map.png 20GE00-03CA20
8 पुष्य (Pushya) शनि (Saturn) γ, δ and θ Cancri 03CA20-16CA40
9 अश्लेशा (Āshleshā) बुध (Mercury) δ, ε, η, ρ, and σ Hydrae 16CA40-30CA500
10 मघा (Maghā) केतु Regulus 00LE00-13LE20
11 पूर्वाफाल्गुनी (Pūrva Phalgunī) शुक्र (Venus) δ and θ Leonis 13LE20-26LE40
12 उत्तराफाल्गुनी (Uttara Phalgunī) रवि Denebola 26LE40-10VI00
13 हस्त (Hasta) चन्द्र α, β, γ, δ and ε Corvi 10VI00-23VI20
14 चित्रा (Chitrā) मंगल Spica Virgo constellation map.png 23VI20-06LI40
15 स्वाती(Svātī) राहु Arcturus Bootes constellation map.png 06LI40-20LI00
16 विशाखा (Vishākhā) बृहस्पति α, β, γ and ι Librae Libra constellation map.png 20LI00-03SC20
17 अनुराधा (Anurādhā) शनि β, δ and π Scorpionis Scorpius constellation map.png 03SC20-16SC40
18 ज्येष्ठा (Jyeshtha) बुध α, σ, and τ Scorpionis Scorpius constellation map.png 16SC40-30SC00
19 मूल (Mūla) केतु ε, ζ, η, θ, ι, κ, λ, μ and ν Scorpionis Scorpius constellation map.png 00SG00-13SG20
20 पूर्वाषाढा (Pūrva Ashādhā) शुक्र δ and ε Sagittarii 13SG20-26SG40
21 उत्तराषाढा (Uttara Ashādhā) रवि ζ and σ Sagittarii 26SG40-10CP00
22 श्रवण (Shravana) चन्द्र α, β and γ Aquilae 10CP00-23CP20
23 श्रविष्ठा (Shravishthā) or धनिष्ठा मंगल α to δ Delphinus 23CP20-06AQ40
2 4शतभिषा (Shatabhishaj) राहु γ Aquarii 06AQ40-20AQ00
25 पूर्वभाद्र्पद (Pūrva Bhādrapadā) बृहस्पति α and β Pegasi 20AQ00-03PI20
26 उत्तरभाद्रपदा (Uttara Bhādrapadā) शनि γ Pegasi and α Andromedae 03PI20-16PI40
27 रेवती (Revatī) बुध ζ Piscium 16PI40-30PI00
28वें नक्षत्र का नाम संपादित करें
28वें नक्षत्र का नाम अभिजित (Abhijit)(α, ε and ζ Lyrae - Vega - उत्तराषाढ़ा और श्रवण मध्ये)
चंद्रमा २७-२८ दिनों में पृथ्वी के चारों ओर घूम आता है। खगोल में यह भ्रमणपथ इन्हीं तारों के बीच से होकर गया हुआ जान पड़ता है। इसी पथ में पड़नेवाले तारों के अलग अलग दल बाँधकर एक एक तारकपुंज का नाम नक्षत्र रखा गया है। इस रीति से सारा पथ इन २७ नक्षत्रों में विभक्त होकर नक्षत्र चक्र कहलाता है। नीचे तारों की संख्या और आकृति सहित २७ नक्षत्रों के नाम दिए जाते हैं—
नक्षत्र तारासंख्या आकृति और पहचान
अश्विनी ३ घोड़ा
भरणी ३ त्रिकोण
कृत्तिका ६ अग्निशिखा
रोहिणी ५ गाड़ी
मृगशिरा ३ हरिणमस्तक वा विडालपद
आर्द्रा १ उज्वल
पुनर्वसु ५ या ६ धनुष या धर
पुष्य १ वा ३ माणिक्य वर्ण
अश्लेषा ५ कुत्ते की पूँछ वा कुलावचक्र
मघा ५ हल
पूर्वाफाल्गुनी २ खट्वाकार X उत्तर दक्षिण
उत्तराफाल्गुनी २ शय्याकारX उत्तर दक्षिण
हस्त ५ हाथ का पंजा
चित्रा १ मुक्तावत् उज्वल
स्वाती १ कुंकुं वर्ण
विशाखा ५ व ६ तोरण या माला
अनुराधा ७ सूप या जलधारा
ज्येष्ठा ३ सर्प या कुंडल
मुल ९ या ११ शंख या सिंह की पूँछ
पुर्वाषाढा ४ सूप या हाथी का दाँत
उत्तरषाढा ४ सूप
श्रवण ३ बाण या त्रिशूल
धनिष्ठा प्रवेश ५ मर्दल बाजा
शतभिषा १०० मंडलाकार
पूर्वभाद्रपद २ भारवत् या घंटाकार
उत्तरभाद्रपद २ दो मस्तक
रेवती ३२ मछली या मृदंग
इन २७ नक्षत्रों के अतिरिक्त अभिजित् नाम का एक और नक्षत्र पहले माना जाता था पर वह पूर्वाषाढ़ा के भीतर ही आ जाता है, इससे अब २७ ही नक्षत्र गिने जाते हैं। इन्हीं नक्षत्रों के नाम पर महीनों के नाम रखे गए हैं। महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र पर रहेगा उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के अनुसार होगा, जैसे कार्तिक की पूर्णिमा को चंद्रमा कृत्तिका वा रोहिणी नक्षत्र पर रहेगा, अग्रहायण की पूर्णिमा को मृगशिरा वा आर्दा पर इसी प्रकार और समझिए।
नाम स्वामी ग्रह पाश्चात्य नाम मानचित्र स्थिति
1 अश्विनी (Ashvinī) केतु β and γ Arietis Aries constellation map.svg 00AR00-13AR20
2 भरणी (Bharanī) शुक्र (Venus) 35, 39, and 41 Arietis Aries constellation map.svg 13AR20-26AR40
3 कृत्तिका (Krittikā) रवि (Sun) Pleiades Taurus constellation map.png 26AR40-10TA00
4 रोहिणी (Rohinī) चन्द्र (Moon) Aldebaran Taurus constellation map.png 10TA00-23TA20
5 मॄगशिरा (Mrigashīrsha) मंगल (Mars) λ, φ Orionis Orion constellation map.png 23TA40-06GE40
6 आद्रा (Ārdrā) राहु Betelgeuse Orion constellation map.png 06GE40-20GE00
7 पुनर्वसु (Punarvasu) बृहस्पति(Jupiter) Castor and Pollux Gemini constellation map.png 20GE00-03CA20
8 पुष्य (Pushya) शनि (Saturn) γ, δ and θ Cancri 03CA20-16CA40
9 अश्लेशा (Āshleshā) बुध (Mercury) δ, ε, η, ρ, and σ Hydrae 16CA40-30CA500
10 मघा (Maghā) केतु Regulus 00LE00-13LE20
11 पूर्वाफाल्गुनी (Pūrva Phalgunī) शुक्र (Venus) δ and θ Leonis 13LE20-26LE40
12 उत्तराफाल्गुनी (Uttara Phalgunī) रवि Denebola 26LE40-10VI00
13 हस्त (Hasta) चन्द्र α, β, γ, δ and ε Corvi 10VI00-23VI20
14 चित्रा (Chitrā) मंगल Spica Virgo constellation map.png 23VI20-06LI40
15 स्वाती(Svātī) राहु Arcturus Bootes constellation map.png 06LI40-20LI00
16 विशाखा (Vishākhā) बृहस्पति α, β, γ and ι Librae Libra constellation map.png 20LI00-03SC20
17 अनुराधा (Anurādhā) शनि β, δ and π Scorpionis Scorpius constellation map.png 03SC20-16SC40
18 ज्येष्ठा (Jyeshtha) बुध α, σ, and τ Scorpionis Scorpius constellation map.png 16SC40-30SC00
19 मूल (Mūla) केतु ε, ζ, η, θ, ι, κ, λ, μ and ν Scorpionis Scorpius constellation map.png 00SG00-13SG20
20 पूर्वाषाढा (Pūrva Ashādhā) शुक्र δ and ε Sagittarii 13SG20-26SG40
21 उत्तराषाढा (Uttara Ashādhā) रवि ζ and σ Sagittarii 26SG40-10CP00
22 श्रवण (Shravana) चन्द्र α, β and γ Aquilae 10CP00-23CP20
23 श्रविष्ठा (Shravishthā) or धनिष्ठा मंगल α to δ Delphinus 23CP20-06AQ40
2 4शतभिषा (Shatabhishaj) राहु γ Aquarii 06AQ40-20AQ00
25 पूर्वभाद्र्पद (Pūrva Bhādrapadā) बृहस्पति α and β Pegasi 20AQ00-03PI20
26 उत्तरभाद्रपदा (Uttara Bhādrapadā) शनि γ Pegasi and α Andromedae 03PI20-16PI40
27 रेवती (Revatī) बुध ζ Piscium 16PI40-30PI00
28वें नक्षत्र का नाम संपादित करें
28वें नक्षत्र का नाम अभिजित (Abhijit)(α, ε and ζ Lyrae - Vega - उत्तराषाढ़ा और श्रवण मध्ये)
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Vinchudo me janm lene vale ka nam or rachi kiya he or vo janm se hi dukhi kiyo he plz muje marg darsan kare 8919814148