दयपुर में शिशोदिया राजवंश के राजा थे। राणा सान्गा का पुरा नाम महाराणा सग्रामसिन्ग था।
राणा सान्गा ने मेवाड मे १५०९ से १५२७तक शासन किया, जो आज भारत के राजस्थान प्रदेश के रेगिस्थान मे स्थित है।राणा सान्गा सिसोदिआ(सुर्यवन्शी राजपुत) राजवन्शी थे। राणा सान्गा ने विदेशी आक्रमणकारियो के विरुध सभी राज्पुतो को एकजुट किया। राणा सान्गा सही मायनो मे एक बहादुर योद्धा व शासक थे,और जो अपनी वीरता और उदारता के लिये प्रसिध्द हुये। एक विश्वासघाती के कारण वह बाबर से युध्द हारे लेकिनअपनी शौर्यता से दूसरो को प्रेरित कीया। राणा रायमल के बाद सन १५०९ राणा सान्गा मेवाड केउत्तरधिकारी बने। इन्होने दिल्ली, गुजरात,व मालवा मुगल बादशाहो के आक्रमणो से अपने राज्य कि बहादुरी से ऱक्षा की। उस समय के वह सबसे शक्तीशाली हिन्दू राजा थे। इनके शासनकाल मे मेवाड अपनी समृद्धि कि सर्वोच्च ऊचाई पर था। एक आदर्श राजा की तरह इन्होने अपने राज्य रक्षाकी तथा उन्नति की। राणा सांगा अदम्य साहसी (indomitable spirit) थे एक भुजा,एक आँख खोने व अनगिनत जख्मो के बावजूद भी उन्होंने अपना महान पराक्रम नही खोया,सुलतान मोहम्मद शासक माण्डु को युध्द ,मे हराने व बन्दी बनाने के बाद उन्हे उनका राज्य पुनः उदारता के साथ सौंप दिया, यह उनकी बहादुरी को दर्शाता है।
राणा रायमल के बाद सन १५०९ में राणा सांगा मेवाड़ के उत्तराधिकारी बने। इन्होंने दिल्ली, गुजरात, व मालवा मुगल बादशाहों के आक्रमणों से अपने राज्य की बहादुरी से ऱक्षा की। उस समय के वह सबसे शक्तिशाली हिन्दू राजा थे।
इनके शासनकाल मे मेवाड़ अपनी समृद्धि की सर्वोच्च ऊँचाई पर था। एक आदर्श राजा की तरह इन्होंने अपने राज्य की रक्षा तथा उन्नति की।
राणा सांगा अदम्य साहसी (indomitable spirit) थे। एक भुजा, एक आँख खोने व अनगिनत ज़ख्मों के बावजूद उन्होंने अपना महान पराक्रम नहीं खोया, सुलतान मोहम्मद शासक माण्डु को युद्ध मे हराने व बन्दी बनाने के बाद उन्हें उनका राज्य पुनः उदारता के साथ सौंप दिया, यह उनकी बहादुरी को दर्शाता है।
राणा सांगा मेवाड़ के राजा थे। लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व वह मेवाड़ पर राज्य करते थे। उनके शासनकाल में मेवाड़ अपने गौरव के शिखर पर पहुँच गया था। वे अपने शूरवीरता के कार्यों के लिए प्रख्यात थे।
राणा सांगा ने दिल्ली और मालवा के नरेशों के साथ अठारह युद्ध किये। इनमे से दो युद्ध दिल्ली के शक्तिशाली सुल्तान इब्राहीम लोदी के साथ लड़े गए। कहा जाता था कि मालवा के सुल्तान मुजफ्फर खान को युद्ध में कोई गिरफ्तार नहीं कर सकता था क्योंकि उसकी राजधानी ऐसी मजबूत थी कि वह दुर्भेद्य थी। परन्तु पराक्रमी राणा सांगा ने केवल उसके दुर्ग पर ही अधिकार न किया किन्तु सुल्तान मुजफ्फर खान को बंदी बनाकर मेवाड़ ले आया। फिर उसने सेनापति अली से रणथम्भोर के सुदृढ़ दुर्ग को छीन लिया।
अंत में राजा क़ी मुठभेड़ बाबर से हुई जो फरगना का सुल्तान था और देश विजय करके काबुल का बादशाह बन गया था। बाबर राणा से कम शूरवीर और युद्ध-कुशल न था। दोनों में सीकरी नमक स्थान पर घोर युद्ध हुआ। राणा सांगा क़ी हार हुई। इसके बाद राणा सांगा को उसी के मंत्री ने विष देकर मार डाला। उसके शरीर पर अठारह घावों के निशान थे। युद्ध में उसकी एक आँख जाती रही थी और एक हाथ कट गया था।
जिहाद का नारा
राणा साँगा की प्रसिद्धि और बयाना जैसी बाहरी मुग़ल छावनियों पर उसकी प्रारम्भिक सफलताओं से बाबर के सिपाहियों का मनोबल गिर गया। उनमें फिर से साहस भरने के लिए बाबर ने राणा साँगा के ख़िलाफ़ जिहाद का नारा दिया। लड़ाई से पहले की शाम उसने अपने आप को सच्चा मुस्लिम सिद्ध करने के लिए शराब के घड़े उलट दिए और सुराहियाँ फोड़ दी। उसने अपने राज्य में शराब की ख़रीद-फ़रोख़्त पर रोक लगा दी और मुसलमानों पर से सीमा कर हटा दिया। बाबर ने बहुत ध्यान से रणस्थली का चुनाव किया और वह आगरा से चालीस किलोमीटर दूर खानवा नामक स्थान पर पहुँच गया। पानीपत की तरह ही उसने बाहरी पंक्ति में गाड़ियाँ लगवा कर और उसके साथ खाई खोद कर दुहरी सुरक्षा की पद्धति अपनाई। इन तीन पहियों वाली गाड़ियों की पंक्ति में बीच-बीच में बन्दूक़चियों के आगे बढ़ने और गोलियाँ चलाने के लिए स्थान छोड़ दिया गया।
खानवा की लड़ाई (1527) में ज़बर्दस्त संघर्ष हुआ। बाबर के अनुसार साँगा की सेना में 200,000 से भी अधिक सैनिक थे। इनमें 10,000 अफ़ग़ान घुड़सवार और इतनी संख्या में हसन ख़ान मेवाती के सिपाही थे। यह संख्या भी, और स्थानों की भाँति बढ़ा-बढ़ा कर कही गई हो सकती है, लेकिन बाबर की सेना निःसन्देह छोटी थी। साँगा ने बाबर की दाहिनी सेना पर ज़बर्दस्त आक्रमण किया और उसे लगभग भेद दिया। लेकिन बाबर के तोपख़ाने ने काफ़ी सैनिक मार गिराये और साँगा को खदेड़ दिया गया। इसी अवसर पर बाबर ने केन्द्र-स्थित सैनिकों से, जो गाड़ियों के पीछे छिपे हुए थे, आक्रमण करने के लिए कहा। ज़जीरों से गाड़ियों से बंधे तोपख़ाने को भी आगे बढ़ाया गया।
महाराणा सांगा हाथी पर युद्ध लड़ रहे थे, कि तभी एक सख्त तीर महाराणा के चेहरे पर लगा, जिससे वे बेहोश हो गए हलवद के झाला अज्जा महाराणा के छत्र-चंवर वगैरह धारण कर हाथी पर बैठकर युद्ध लड़ने लगे झाला अज्जा के भाई सज्जा व कुछ और सर्दार महाराणा सांगा को युद्धभूमि से दूर ले गए
इस लड़ाई में मेवाड़ की तरफ से मेदिनीराय जीवित रहा
युद्ध के बाद बाबर ने हिन्दुओं के कटे हुए सिरों की एक मीनार बनवाई
बाबर को खानवा के युद्ध में जीतने की कोई आस नहीं थी | तुजुक-ए-बाबरी में बाबर लिखता है मैं इस्लाम के लिए इस लड़ाई के जंगल में आवारा हुआ और मैंने अपना शहीद होना ठान लिया था, लेकिन खुदा का शुक्र है कि गाज़ी बनकर जीता रहा
महाराणा सांगा का देहान्त
मुगल बादशाह बाबर ने खानवा के युद्ध में फतह हासिल की और गाज़ी के खिताब से खुद को मशहूर किया
महाराणा सांगा को जब होश आया तो इस बात से बड़े क्रोधित हुए कि उन्हें युद्धभूमि से दूर ले जाया गया
महाराणा ने फिर से बचे-खुचे सैनिकों को युद्ध के लिए तैयार होने का आदेश दिया व कहा कि मैं हारकर चित्तौड़ नहीं जाऊंगा
महाराणा की इस ज़िद से नाराज़ कुछ दगाबाज़ों ने उनको ज़हर दे दिया, जिससे महाराणा सांगा परलोक सिधारे
47 वर्ष की आयु में अप्रैल, 1527 ई. में महाराणा सांगा का देहान्त हुआ
महाराणा सांगा की कुल 28 रानियां थीं, जिनमें से बहुत सी सती हुईं
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