नदियों की सुरक्षा के लिए
नदी के दोनों ओर कम-से-कम एक किलोमीटर की चौड़ाई में बड़ी संख्या में पेड़ लगाने से पर्यावरण बेहतर होगा, साथ ही देश तथा समाज को सामाजिक और आर्थिक लाभ होंगे।
इतने बड़े पैमाने पर और दीर्घकालीन कार्रवाई को सिर्फ सरकारी नीति से ही स्थायी बनाया जा सकता है। इस राष्ट्रीय मुद्दे के बारे में जागरूकता पैदा करने और कार्रवाई को प्रेरित करने के लिए सद्गुरु ने ‘नदी अभियान’ का विचार दिया, जिसमें वह खुद कन्याकुमारी से लेकर हिमालय तक ड्राइव करेंगे।
भारत की नदियां मुख्य रूप से वर्षा जल से पोषित होती हैं। तो वे साल भर, यहां तक कि सूखे मौसमों में भी कैसे बहती हैं? वनों के कारण। बारिश का मौसम खत्म होने के बाद भी बारहमासी नदियां बहती रहें, इसमें पेड़ों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
स्रोत: wri.org
पेड़ की जड़ें मिट्टी को छेददार बना देती हैं जिससे वह बारिश के समय पानी सोख लेती है और उसे थाम कर रखती है। मिट्टी में मौजूद यह जल साल भर धीरे-धीरे नदी में मिलता रहता है।
अगर पेड़ नहीं होंगे, तो बाढ़ तथा सूखे का विनाशकारी चक्र चलता रहेगा। मानसून के दौरान अधिक पानी सतह पर आ जाएगा और बाढ़ लाएगा क्योंकि मिट्टी बारिश के पानी को नहीं सोखेगी। मानसून के समाप्त होने के बाद नदियां सूख जाएंगी क्योंकि उन्हें पोषित करने के लिए मिट्टी में नमी नहीं होगी। इसीलिए नदियों के दोनों ओर पेड़ों का होना बहुत जरुरी है।
वैज्ञानिक अध्ययनों के मुताबिक नदियों के तटों पर पेड़ लगाने के बहुत से फायदे हैं