हमारे देश में महिलाओं की स्थिति सदैव एक समान नही रही है। इसमें युगानुरूप परिवर्तन होते रहे हैं। उनकी स्थिति में वैदिक युग से लेकर आधुनिक काल तक अनेक उतार - चढ़ाव आते रहे हैं तथा उनके अधिकारों में तदनरूप बदलाव भी होते रहे हैं। वैदिक युग में स्त्रियों की स्थिति सुदृढ़ थी , परिवार तथा समाज में उन्हे सम्मान प्राप्त था।
पहले के समय में हमारे देश में ऐसी - ऐसी कुप्रथाएं थी जिन्हें आज के समय में सोचने पर भी रूह कांप उठती है। इनमे से एक है सती प्रथा जी हाँ दोस्तों एक समय था जब नारी को अपने पति की मौत के बाद उसे उनके साथ जिंदा जलकर सती हो जाना पड़ता था। इस कुप्रथा से निजात दिलाने हेतु राजा राममोहन राय ने नारी हित में पहली बार ठोस कदम उठाया और सती प्रथा पर रोक लगा दी गयी।
इसके अलावा समाज में कुप्रथाओ के वाहक कुछ विशेष वर्ग के पुरुषों ने नारी को समाजिक सुख सुविधाओं व शिक्षा से दूर रखा और नारी गुलामी की प्रतीक बन गई। नारी को समाजिक गतिविधियों में शामिल होने की छूट नहीं थी। और उसे अपने घर के अंदर भी अपना चेहरा घूघंट में छिपाकर रखना पड़ता था।
इन सब बातों को देखते हुए हमे आज भी ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल जाते है जहाँ पर नारी की बिलकुल भी कदर नही होती है। खासकर गाँव के इलाकों में तो आज भी कई प्रकार की कुप्रथाएं मौजूद है। इसलिए इस प्रकार की कुप्रथाओं से आज हमे लड़ने की सख्त जरूरत है।
भारत में महिला सशक्तिकरण :
हमारे देश में महिला सशक्तिकरण (women's empowerment in india) को लेकर काफी कदम उठाए गए है और निरंतर इन पर ध्यान दिया जा रहा है एक यहाँ हम उदाहरण की बात करें तो केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए 02 जनवरी 2018 को ‘नारी’ पोर्टल का लोकार्पण किया।
इससे सामाजिक, आर्थिक और कानूनी अधिकारों के अलावा केंद्र सरकार की लगभग 350 योजनाओं और कार्यक्रमों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। महिलाओं के कल्याण और विकास से संबंधित योजनाओं और कार्यक्रमों की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। यह पोर्टल भी इसी दिशा में एक कदम है। इस पोर्टल को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने विकसित किया है।
वर्तमान युग की नारी और उसका योगदान :
अगर हम आज के समय की बात करें तो महिलाएं पुरुष वर्ग के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रगति की ओर अग्रसर हो रही है, वह समाज के लिए एक गर्व और सराहना की बात है। फिर चाहे वह कोई भी वर्ग हो जैसे - राजनीति, टेक्नोलोजी, सुरक्षा समेत हर क्षेत्र में जहां जहां महिलाओं ने हाथ आजमाया उसे कामयाबी ही मिली।
दोस्तों आज के समय अब तो ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां आज की नारी
(essay on women empowerment in india) अपनी उपस्थिति दर्ज न करा रही हो। और इतना सब होने के बाद भी वह एक गृहलक्ष्मी के रूप में भी अपना स्थान बनाए हुए है। जो की काबिल ए तारीफ है।
लेकिन फिर भी भारत के संदर्भ में बात करें तो पाएंगे कि अब भी हमारे देश को महिलाओं की स्थिति सुधारने की जरुरत है। शिक्षा को निचले स्तर तक पहुंचा कर हम नारियों को सशक्त करने का प्रयास कर सकते हैं। इसके साथ ही महिलाओं को भी अपने अधिकार के साथ समाज की मर्यादा का भी ध्यान रखना चाहिए। एक सही दिशा में ही चलकर महिलाओं का सही विकास संभव है।
International Women’s Day : 08th March
प्रतिवर्ष इस दिवस को 08 मार्च को वर्ष 1975 से मनाया जा रहा है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य - महिलाओं के अधिकार और सम्मान दिलाने के लिए समाज को जागरूक करना है। वास्तव में इस दिन की शूरुआत एक आंदोलन से हुई थी। वर्ष 1908 में 15000 महिलाएं ने कम का घंटे, बेहतर सैलरी और वोट देने के अधिकार की मांग करते हुए न्यूयॉर्क में मार्च निकाला था।
जिसके एक साल बाद अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने पहले राष्ट्रीय महिला दिवस की घोषणा की। ये थी "क्लारा जेटकिन" जो एक कमयूनिस्ट और महिलाओं के अधिकार के लिए वकील भी। क्लारा ने ही अंतर्राष्ट्रीय दिवस के निर्माण का सुझाव दिया था। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पहली बार 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विटजरलैंड में मनाया गया था। वहीं साल 1975 में चीजों को आधिकारिक बना दिया गया जब संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को मनाना शुरू किया।
महिलाओं की सुरक्षा पर कविता :
आया समय, उठो तुम नारी,
युग निर्माण तुम्हें करना है ।।
आजादी की खुदी नींव में,
तुम्हें प्रगति पत्थर भरना है ।।
अपने को, कमजोर न समझो,
जननी हो सम्पूर्ण जगत की, गौरव हो ।।
अपनी संस्कृति की, आहट हो स्वर्णिम आगत की,
तुम्हे नया इतिहास देश का, अपने कर्मो से रचना है ।।
दुर्गा हो तुम, लक्ष्मी हो तुम,
सरस्वती हो, सीता हो तुम ।।
सत्य मार्ग, दिखलाने वाली, रामायण हो, गीता हो तुम,
रूढ़ि विवशताओं के बन्धन, तोड़ तुम्हें आगे बढ़ना है ।।
साहस, त्याग, दया ममता की, तुम प्रतीक हो अवतारी हो
वक्त पड़े तो, लक्ष्मीबाई, वक्त पड़े तो झलकारी हो,
आँधी हो तूफान घिरा हो, पथ पर कभी नहीं रूकना है ।।
शिक्षा हो या अर्थ जगत हो या सेवाये हों,
सरकारी पुरूषों के समान तुम भी हो ।।
हर पद की सच्ची अधिकारी,
तुम्हें नये प्रतिमान सृजन के अपने हाथों से गढ़ना है ।।