लोक साहित्य के बारें में (Oral literature in hindi) : यह एक ऐसा विषय है जिसके अध्ययन से किसी भी देश की सभ्यता एवं संस्कृति, धर्म, रीति-रिवाजों तथा कला और साहित्य के अभ्युदय को जाना जा सकता है।
इस प्रकार हम समझ सकते है की किसी भी क्षेत्र के निवासियों पर उनके प्रादेशिक पर्यावरण, सामाजिक रहन - सहन तथा संस्कृति का गहरा प्रभाव पड़ता है और ये सभी चीजें जीवन के विविध पक्षों को प्रभावित करती हैं।
लोक साहित्य का क्षेत्र :
अगर लोक-संस्कृति शरीर है तो लोक-साहित्य उसका एक अवयव है। लोक-संस्कृति का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है तो लोक-साहित्य का विस्तार संकुचित है। लोक-संस्कृति की व्यापकता जन-जीवन के समस्त व्यापारों में उपलब्ध होती है तो लोक-साहित्य जनता के गीतों, कथाओं, गाथाओं, मुहावरों तक ही सीमित है।
इसके अलावा लोक-साहित्य अंग है तो लोक-संस्कृति अंगी है। लोक-साहित्य लोक-संस्कृति का एक भाग मात्र है। लोक-गीत, लोक-कथाएँ, लोक-गाथाएँ, कथा-गीत, धर्म-गाथाएँ, लोक-नाट्य, नौटंगी, रास-लीला आदि लोक-साहित्य से संबद्ध विषय हैं।
लोक साहित्य की विशेषता :
यहाँ हम निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा आपको लोक साहित्य की विशेषताओं से अवगत करा रहे है, जो इस प्रकार है...
लोक-साहित्य की भाषा शिष्ट और साहित्यिक भाषा न होकर साधारण जन की भाषा है और उसकी वर्ण्य-वस्तु लोक-जीवन में गृहीत चरित्रों, भावों और प्रभावों तक सीमित है। यह ग्रामीण साहित्य है इस साहित्य पर समस्त जनसमूह का अधिकार है। इस साहित्य में समस्त लोक के राग-विराग, हर्ष-विषाद, सुख-दुख, जीवन-मरण की सहज एवं सरस अभिव्यक्ति है। यह साहित्य सर्व व्यापक है। यह है उससे अधिक राष्ट्रव्यापी है और जितना राष्ट्रव्यापी है उससे भी कहीं अधिक अंतरराष्ट्रीय है। इसमें किसी व्यक्ति विशेष की नहीं अभी तो समस्त जगत के कल्याण की भावना समाहित होती है।