bhukti
= भुक्ति() (Bhukti)
भुक्ति संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. भोजन । आहार ।
२. विषयोपभोग । लौकिक सुख ।
३. धर्मशास्त्रानुसार चार प्रकार के प्रमाणों में से एक । कब्जा । दखल ।
४. ग्रहों का किसी राशि में एक एक अंश करके गमन वा भोग ।
४. सीमा [को॰] ।
शासन की सुविधा के लिये गुप्त वंश के शासकों ने साम्राज्य को अनेक भुक्तियों में विभाजित किया था। ये भुक्तियाँ वर्तमान कमिश्नरी की भाँति थीं जिनमें कई 'विषय' या जिले होते थे। भुक्तियों का शासन 'उपरिक' नाम के अधिकारियों के हाथ में था जो अधिक शक्तिशाली हो जाने पर 'उपरिक महाराज' कहलाते थे। गुप्तोत्तर काल में शासन की इकाई के रूप में भुक्ति के उल्लेख अधिक नहीं मिलते। प्रतिहार साम्राज्य में ऐसे कुछ उल्लेख हैं किंतु उनकी संख्या अधिक नहीं है। परमार, गहड़वाल, चंदेल और चालुक्यों के साम्राज्य में अधिक विस्तृत नहीं थे, भुक्ति के उल्लेख नहीं मिलता। बंगाल में पालों के बड़े साम्राज्य के कारण भुक्ति के उल्लेख हैं। असम में भी भुक्ति का उपयोग संभवत: पालों के साथ दीर्घकालीन संबंध के कारण था। गुप्तोत्तर काल में सम्राज्य का बहुत बड़ा भाग सामंतों के अधिकार में होने के कारण केंद्र द्वारा शासित प्रदेश इतना बड़ा नहीं था कि उसे भुक्ति जैसी बड़ी इकाइयों में बाँटा जा सके। राष्ट्रकूट वंश, जो गंगा के मैदान के संपर्क में रहा, अपने कुछ अभिलेखों में कुछ भुक्तियों के नाम देता है, किंतु वहाँ यह विषय का विभाजन था। जो वर्तमान तालुक या तहसील जैसा छोटा था और उसमें प्राय: केवल ५० से ७० तक गाँव होते थे। कुछ स्थलों पर भुक्ति का शासन के विभाजन के विशिष्ट अर्थ में उपयोग नहीं मिलता; यथा ईदा अभिलेख में 'वर्धमान भुक्ति' के अंतर्गत दंडभुक्ति एक मंडल था। इसी प्रकार तीरभुक्ति नगर के नाम के रूप में भी प्रयुक्त हुआ है। गुप्तोत्तर काल में भुक्ति का उपयोग सामंतों की जागीर के अर्थ में भी मिलता है। यह उपयोग भुक्ति के शाब्दिक अर्थ पर आधारित था। कई चाहमान अभिलेखों, कीर्तिकौमुदी और उपमिति भवप्रपंच कथा में भुक्ति का उपयोग इस अर्थ में है। [[चित्र: धर्मशास्त्रों में भुक्ति अथवा भोग का इसके शाब्दिक अर्थ के आधार पर एक विशिष्ट उपयोग मिलता है। किसी संपत्ति पर स्वामित्त्व के लिये आवश्यक हैं - भुक्ति और आगम (स्वत्व का अधिकार)। इसी कारण भुक्ति दो प्रकार की मानी गई है - सागमा और अनागमा।
भुक्ति meaning in english