आयुध (Ayuddh) = Armament
आयुध संज्ञा पुं॰ [सं॰] हथियार । शस्त्र । उ॰—तिन्हके आयुध तिल सम करि काटे रघुबीर । —मानस, ३ । १३ । यौ॰—आयुधागार=सिलहखावा । आयुधन्यास ।
कोई भी उपकरण जिसका प्रयोग अपने शत्रु को चोट पहुँचाने, वश में करने या हत्या करने के लिये किया जाता है, शस्त्र या आयुध (weapon) कहलाता है। शस्त्र का प्रयोग आक्रमण करने, बचाव करने अथवा डराने-धमकाने के लिये किया जा सकता है। शस्त्र एक तरफ लाठी जितना सरल हो सकता है तो दूसरी तरफ बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र जितना जटिल भी। आयुध उन यंत्रों को कहते हैं जिनका प्रयोग युद्ध में होता है। इस प्रकार तीर, तलवार से लेकर बड़ी-बड़ी तोपों तक सभी यंत्र आयुध हैं। आयुध के विकास का इतिहास उतना ही पुराना है जितना मानव जाति के विकास का। मानव जीवन आदिकाल से संघर्षपूर्ण रहा है। जीवनरक्षा के लिए उसे भयानक और शक्तिशाली जीवजंतुओं से लड़ना पड़ा होगा। मनुष्य के पास न तो उन जीवजंतुओं के बराबर बल था, न उतना मोटा और कठोर चर्म और न तीव्र तथा घातक दाँत तथा नख ही थे। अपने अनुभवों तथा बुद्धि से मनुष्य ने प्रथम शस्त्रों का आविष्कार किया होगा। एँडे या लाठी का विकास बरछा, गदा, तलवार, बल्लभ और आधुनिक संगीन में हुआ। इसी प्रकार फेंककर मारनेवाले साधारण पत्थर का विकास भाला, धनुष-बाण या धनुर्विद्या, गुलेल, गोला, गोली तथा आधुनिक परमाणु बम में हुआ। आयुधों के विकास और बढ़ती शक्ति के साथ-साथ प्रतिरक्षा के उपकरणों की आवश्यकता हुई और उनका आविष्कार हुआ। संभवत: चर्म को लकड़ी के डंडों में फँसाकर ढाल बनाने की कला बहुत पुरानी होगी। कालांतर में कवच और आधुनिक युग में आकर कवचयान (टैंक) का आविष्कार हुआ। यह देखा गया हे कि मनुष्य ने जब-जब संहार के साधनों का निर्माण किया, उसके साथ-साथ प्रतिरक्षा के साधनों का भी विकास हुआ। आयुधों का वर्गीकरण साधारणत: उनके प्रयोग, विधि ओर विशेषताओं के आधार पर किया जाता है। इनके अनुसार पाषाणयुग से बारूद के आविष्कार तक के आयुधों का वर्गीकरण इस प्रकार है :शस्त्र वे हथियार है जो फेंके नहीं जाते। इनके उपवर्गीकरण के अंतर्गत निम्नलिखित शस्त्र हैं :(अ) काटनेवाले शस्त्र; जैसे तलवार, परशु आदि;(आ) भोंकनेवाले शस्त्र, जैसे बरछा, त्रिशूल आदि;(इ) कुंद शस्त्र, जैसे गदा। अस्त्र वे हथियार हैं जो फेंके जाते हैं। इनके अंतर्गत ये अस्त्र हैं :पुरातत्ववेत्ताओं के मतानुसार
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