कृषि खेती और उद्यानिकी >>ऐसे करें जीरे की उन्नत खेती

ऐसे करें जीरे की उन्नत खेती

जलवायु

जलवायु
जीरे की फसल को शुष्क एवं साधारण ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है। बीज पकने के समय शुष्क एवं साधारण गर्म मौसम जीरे की फसल के लिए अच्छा रहता है। अधिक वायुमण्डलीय नमी, रोग व कीड़ों को पनपाने में सहायक होती है तथा जीरे की फसल पाला सहन करने में असमर्थ होती है।



उपयुक्त किस्में- आर.जेड. – 19, आर.जेड. – 209, आर.जैड. – 223, गुजरात जीरा -4 (जी.सी-4)

उपयुक्त किस्में- आर.जेड. – 19, आर.जेड. – 209, आर.जैड. – 223, गुजरात जीरा -4 (जी.सी-4)



भूमि तथा भूमि की तैयारी

भूमि तथा भूमि की तैयारी
जीवांश युक्त दोमट मिट्टी जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो जीरे की खेती के लिए उपयुक्त होती है। बुवाई से पूर्व यह आवश्यक है कि खेत की तैयारी ठीक तरह की जाये इसके लिये खेत को अच्छी तरह से जोत कर उसकी मिट्टी को भुरभुरी बना लिया जाए।



खाद एवं उर्वरक

खाद एवं उर्वरक
जीरे की अच्छी पैदावार लेने के लिये 10 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से जुताई से पहले गोबर की अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद खेत में बिखेर कर मिला देना चाहिये। एक औसत उर्वर भूमि में 30 किलो नत्रजन एवं 20 किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से दें।

फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई पूर्व आखिरी जुताई के समय भूमि में मिला देना चाहिये एवं नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई के 30-35 दिन बाद एवं शेष 15 किलो नत्रजन बुवाई के 60 दिन बाद सिंचाई के साथ दे। बुवाई के समय 20 किलो प्रति हैक्टेयर गंधक खेत में डालें।



बीजदर व बीजोपचार

बीजदर व बीजोपचार
जीरे का 12 किलोग्राम बीज एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए पर्याप्त है। बीज जनित रोगों से बचाव के लिए बुवाई से पूर्व जीरे के बीज को 2 ग्राम कार्बेण्डाजिम 50 डब्ल्यू.पी. प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित कर बोना चाहिए।



बुवाई का समय व तरीका

बुवाई का समय व तरीका
जीरे की बुवाई मध्य नवम्बर के आसपास कर देनी चाहिये। बुवाई आमतौर पर छिटकवां विधि से की जाती है। तैयार खेत में पहले क्यारियां बनाते है। उनमें बीजों को एक साथ छिटक कर क्यारियों में लोहे की दंताली इस प्रकार फीरा देनी चाहिए कि बीज के ऊपर मिट्टी की एक हल्की सी परत चढ़ जाये। कतारों में बुवाई के लिए क्यारियों में 25-30 सेन्टीमीटर की दूरी पर लोहे या लकड़ी के बने हुक से लाईने बना देते हैं। बीजों को इन्हीं लाईनों में डालकर दंताली चला दी जाती है।



सिंचाई

सिंचाई
पहली हल्की सिंचाई बुवाई के तुरन्त बाद की जाती है। इस सिंचाई के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि क्यारियों में पानी का बहाव अधिक तेज न हो। दूसरी सिंचाई बुवाई के एक सप्ताह पूरा होने पर जब बीज फूलने लगे तब करें। इसके बाद मृदा की संरचना तथा मौसम के अनुसार 15-25 दिन के अन्तराल पर 5 सिंचाईयां पर्याप्त होगी। फव्वारा विधि द्वारा बुवाई समेत पांच सिंचाईयां बुवाई के समय, दस, बीस, पचपन एवं अस्सी दिनों की अवस्था पर करें। फव्वारा तीन घण्टे ही चलायें।



निराई-गुड़ाई

निराई-गुड़ाई
प्रथम निराई-गुड़ाई बुवाई के 30-35 दिन बाद व दूसरी 55-60 दिन बाद करनी चाहिये।



कटाई

कटाई
जीरे की फसल 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। फसल को दांतली से काटकर अच्छी तरह सूखा लेवें।



भण्डारण

भण्डारण
भण्डारण करते समय दानों में नमी की मात्रा 8-9 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। संग्रहित जीरे को समय-समय पर धूप में रखें।



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