(1) विजयनगर के शासन का विद्रोह : 1765 ई. में कम्पनी ने उत्तरी सरकार के जिलों को प्राप्त कर लिया। इसके पश्चात कठोरतापूर्वक कार्य किया गया। 1794 ई. में कम्पनी ने राजा को अपनी सेना भंग कर देने की माँग की और उसे तीन लाख रूपए उपहार में देने हेतु बाध्य किया गया। जब राजा ने इन शर्तों को मानने से इनकार कर दिया, तो कम्पनी ने उनकी जागीर छीन ली। अतः विवश होकर राजा ने ब्रितानियों के विरूद्ध विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह में उन्हें अपनी प्रजा तथा सेना का पूर्ण समर्थन प्राप्त था। राजा ब्रितानियों के विरूद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। इसके बाद कम्पनी को सुध आई तथा उन्होंने राजा के बड़े पुत्र को जागीर वापस लौटा दी तथा धन की माँग भी कम कर दी।
इसी प्रकार, डिंडीगुल और मालाबार में पॉलीगार के लोगों में ब्रितानियों की भूमिकर व्यवस्था के विरूद्ध भयंकर असन्तोष विद्यमान था। अतः: उन्होंने भी ब्रितानियों के विरूद्ध विद्रोह कर दिया। 1801-1805 तक अभ्यर्पित जिलों (ceded districts) एवं उत्तरी अरकाट जिलों के पॉलीगारों का विद्रोह चलता रहा। इन पॉलीगारों के छूट-पुट विद्रोह मद्रास प्रेजिडेन्सी में भी 1856 ई. तक चलते रहे।
(2) दीवान वेला टम्पी का विद्रोह : 1805 ई. में वेलेजली ने ट्रावनकोर के महाराजा को सहायक सन्धि करने हेतु बाध्य किया। महाराज सन्धि की शर्तों से नाराज थे। अतः उन्होंने सहायक कर (Subsidy) नहीं चुकाया, जिससे उस पर यह धन बकाया होता चला गया। यहाँ के ब्रिटिश रेजिडेण्ट का व्यवहार भी बहुत धृष्टतापूर्ण था। अतः दीवान वेला टम्पी विद्रोह करने हेतु बाध्य हो गए, जिसमें उन्हें नायर बटालियन का सहयोग भी प्राप्त हुआ। अधिक शक्तिशाली ब्रिटिश सेना को ही इस विद्रोह का दमन करने में सफलता प्राप्त हुई।