फॉक्स का इण्डिया बिल (नवम्बर, 1783)
डुण्डास विधेयक ने सरकार को कम्पनी के संविधान में सुधार करने के लिए प्रेरित किया। अतः फॉक्स तथा नौर्थ के संयुक्त मंत्रिमण्डल ने तुरन्त इस प्रश्न को अपने हाथ में लिया। फॉक्स ने भारत में कम्पनी सरकार को अवर्णआतीत, शोचनीय, अराजकता तथा गड़बड़ बतलाया। उसने 18 नवम्बर, 1783 ई. को अपना प्रसिद्ध ईस्ट इण्डिया बिल पेश किया, जिसके प्रमुख सुझाव निम्नलिखित थे-
1. कम्पनी की प्रादेशिक सरकार को उसके व्यापारिक हितों से पृथक् कर दिया गया।
2. स्वामी मण्डल तथा संचालक मण्डल के स्थान पर सात कमिश्नरों का एक मण्डल लन्दन में स्थापित किया जाए।
3. इस मण्डल को भारतीय प्रदेशों तथा उसके राजस्व का प्रबन्ध करने का पूर्ण अधिकार हो। उसको कम्पनी के समस्त कर्मचारियों को नियुक्त तथा पदच्युत करने की शक्ति भी दी जाए।
4. मण्डल के सदस्यों की नियुक्ति पहली बार संसद के द्वारा की जाए लेकिन बाद में रिक्त होने वाले स्थानों को भरने का अधिकार सम्राट को हो।
5. इन सदस्यों का कार्यकाल चार वर्ष रखा गाय और इस अवधि के दौरान उन्हें संसद के दोनों सदनों में से किसी एक सदन के कहने पर इंग्लैण्ड का सम्राट उन्हें पदच्युत कर सके।
6. इस बोर्ड की बैठकें लन्दन में बुलाए जाए और संसद को इस मण्डल के कार्यों का निरीक्षण करने का अधिकार हो, अर्थात् बोर्ड पर संसद का नियंत्रण स्थापित किया जाए।
7. व्यापार को नियंत्रित करने के लिए व सहायक निदेशकों का एक और मण्डल बनाया जाए।
8. इन सहायक निदेशकों की नियुक्ति भी प्रथम बार संसद द्वारा हो और इसके पश्चात स्वामी मण्डल को उन्हें निर्वाचित करने का अधिकार दिया जाए।
9. इन सहायक निदेशकों को कार्यकाल पाँच वर्ष हो और इस सम्बन्ध में वे भी कमिश्नरों की तरह सुरक्षित हों।
10. विधेयक में एकाधिकार, भेंट तथा रियासतों को ब्रिटिश सेना के मदद को समाप्त करने की व्यवस्था की गई।
फॉक्स विधेयक का संसद में तथा उसके बाहर जोरदार विरोध हुआ। पुन्निया के शब्दों में पार्लियामेन्ट के अन्दर और बाहर दोनों जगह इस विधेयक का मुखर, प्रबल और कटुतापूर्ण विरोध हुआ। इस विधेयक के दोषों के बारे में रॉबर्ट्सन ने लिखा है, भारत में कम्पनी सरकार को वस्तुतः: सात व्यक्तियों के सुपुर्द कर दिया गया था। इससे कमिश्नरों तथा शासक दल को संरक्षण बाँटने का विस्तृत अधिकार मिल जाता। इससे संसद ने भ्रष्ट होने का भी भय था। यह नये राजनीतिक दायित्व का निर्माण करता।
कम्पनी का संविधान चार्टर द्वारा नियमित होता था, परन्तु फॉक्स विधेयक से कम्पनी के चार्टर की पवित्रता नष्ट हो जाती और उसके संविधान के नष्ट हो जाने से अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाती। इंग्लैण्ड नरेश जार्ज तृतीय के व्यक्तिगत हस्तक्षेप के कारण यह विधेयक लार्ड सभा में अस्वीकृत हो गया। रॉबर्ट्सन के शब्दों में विधेयक एक बड़ी समस्या को व्यापक रूप से सुलझाने का निश्छल एवं कूटनीतिक प्रयास था। कीथ ने भी लिखा है, यह विधेयक सम्पूर्ण संविधान को सुधारने का एक प्रबल प्रयत्न था।