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किशनगढ़ शैली

जोधपुर से वंशीय सम्बन्ध होने तथा जयपुर से निकट होते हुए भी किशनगढ़ में एक स्वतंत्र शैली का विकास हुआ। सुन्दरता की दृष्टि से इस शैली के चित्र विश्व-विख्यात हैं। अन्य स्थानों की भाँति यहाँ भी प्राचीन काल से चित्र बनते रहे। किशनगढ़ राज्य के संस्थापक किशन सिंह कृष्ण के अनन्योपासक थे। इसके पश्चात सहसमल, जगमल व रूपसिंह ने यहाँ शासन किया। मानसिंह व राजसिंह (1706-48) ने यहाँ की कलाशैली के पुष्कल सहयोग दिया। परन्तु किशनगढ़ शैली का समृद्ध काल राजसिंह के पुत्र सामन्त सिंह (1699-1764) से जो नागरीदारा के नाम से अधिक विख्यात हैं, से आरम्भ होता है। नागरीदारा की शैली में वैष्णव धर्म के प्रति श्रद्धा, चित्रकला के प्रति अभिरूचि तथा अपनी प्रेयसी ठवणी-ठणी’ से प्रेम का चित्रण महत्वपूर्ण है। कविहृदय सावन्त सिंह नायिका वणी-ठणी से प्रेरित होकर अपना राज्य छोड़ ठवणी-ठणी’ को साथ लेकर वृन्दावन में आकर बस गये और नागर उपनाम से नागर सम्मुचय की रचना की। नागरीदास की वैष्णव धर्म में इतनी श्रद्धा थी और उनका गायिका वणी ठणी से प्रेम उस कोटि का था कि वे अपने पारस्परिक प्रेम में राधाकृष्ण की अनुभूति करने लगे थे। उन दोनों के चित्र इसी भाव को व्यक्त करते है। चित्रित सुकोमला वणी-ठणी को भारतीय मोनालिसा’ नाम से अभिहित किया गया। काव्यसंग्रह के आधार पर चित्रों के सृजन कर श्रेय नागरी दास के ही समकालीन कलाकार निहालचन्द को है। ठवणी-ठणी’ में कोकिल कंठी नायिका की दीर्घ नासिका, कजरारे नयन, कपोलों पर फैले केशराशि के सात दिखलाया गया है। इस प्रकार इस शैली में हम कला, प्रेम और भक्ति का सर्वांगीण सामंजस्य पाते है। निहालचन्द के अलावा सूरजमल इस समय का प्रमुख चित्रकार था। अन्य शैलियों की तरह इस शैली में भी गीत-गोविन्द’ का चित्रण हुआ।




इस शैली के चेहरे लम्बे, कद लम्बा तथा नाक नुकीली रहती है। नारी नवयौवना, लज्जा से झुका पतली व लम्बी है। धनुषाकार भ्रू-रेखा, खंजन के सदृश नयन तथा गौरवर्ण है। अधर पतले व हिगुली रंग के हैं। हाथ मेहन्दी से रचे तथा महावर से रचे पैर है। नाक में मोती से युक्त नथ पहने, उच्च वक्ष स्थल पर पारदर्शी छपी चुन्नी पहने रुप यौवना सौदर्य की पराकाष्ठा है। नायक पारदर्शक जामे में खेत 9 मूंगिया पगड़ी पहने प्रेम का आहवान से करता है। मानव रुपों के साथ प्रकृति भी सफलता से अंकित है। स्थानीय गोदोला तालाब तथा किशनगढ़ के नगर को दूर से दिखाया जाना इस शैली की अन्य विशेषता है। चित्रों को गुलाबी व हरे छींटदार हाशियों से बाँधा गया है। चित्रों में दिखती वेषभूषा फर्रुखसियर कालीन है। इन विशेषताओं को हम वृक्षों की घनी पत्रावली अट्टालिकाओं तथा दरबारी जीवन की रात की झांकियों, सांझी के चित्रों तथा नागरीदास से सम्बद्ध वृन्दावन के चित्रों में देख सकते है।


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