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Pradeep Chawla on 12-09-2018


भारतीय संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत देश के राष्ट्रपति को संसद के

सत्रावसान की अवधि में अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई है औऱ इन

अध्यादेशों का प्रभाव व शक्तियां संसद द्वारा बनाए गए कानूनों के बराबर ही

होती हैं परंतु ये अल्पकालिक होती हैं। संविधान अध्यादेश जारी करने के

लिहाज से कार्यपालिका को सीमित अधिकार ही प्रदान करता है ताकि कार्यपालिका

अति आवश्यक अवसरों पर ही अध्यादेश ला सके। अध्यादेश एक संवैधानिक प्रक्रिया

है जिसके माध्यम से राष्ट्रपति एवं राज्यपाल उस समय कानून लागू करने का

कार्य करते हैं जब संसद अथवा राज्य विधानमण्डल के दोनों सदन या कोई एक सदन

सत्र में न हो तथा कानून लागू करना अति आवश्यक हो गया हो। राष्ट्रपति को

अनुच्छेद-123 के तहत तथा राज्यपाल को अनुच्छेद 213 के तहत अध्यादेश लाने के

अधिकार प्रदान किए गए हैं। सामान्य परिस्थिति में विधायी प्रक्रिया के लिए

अध्यादेश का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि अध्यादेश असामान्य

परिस्थिति में अर्थात् उस स्थिति में लाया जाता है जब संसद के दोनों सदनों

या कोई एक सदन के सत्र में न होने के कारण सामान्य विधायी प्रक्रिया का

अनुसरण किया जाना संभव न हो। राष्ट्रपति किसी भी अध्यादेश को प्रधानमंत्री

के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल की सलाह पर ही जारी करता है। अध्यादेश लाने की

प्रक्रिया न तो सामान्य रूप से कानून बनाने की प्रक्रिया का स्थान ले सकती

है और न ही लेना चाहिए। लोकतंत्र में ऐसी स्थिति संभव है जब लोकसभा में

बहुमत पाने वाली पार्टी को राज्यसभा में बहुमत प्राप्त न हो। ऐसी स्थिति

में कानून पारित करने के लिए संयुक्त सत्र बुलाकर बहुमत प्राप्त कर लेना

कोई रास्ता नहीं होता है। उन्होंने आगे कहा कि वर्ष 1952 से लेकर अभी तक

सिर्फ चार बार संयुक्त सत्र बुलाया गया है। इससे साबित होता है कि विशेष

परिस्थिति में ही इसका उपयोग किया गया है।



अध्यादेेश के प्रयोग की सीमाएं-



  • राष्ट्रपति उन्हीं विषयों के संबंध में अध्यादेश जारी कर सकता है जिन विषयों पर संसद को विधि बनाने की शक्ति प्राप्त है।
  • अध्यादेश उस समय भी जारी किया जा सकता है जब संसद में केवल एक सदन का

    सत्र चल रहा हो क्योंकि विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाना होता

    है। हालांकि जब संसद के दोनों सदनों का सत्र चल रहा हो तो उस समय जारी किया

    गया अध्यादेश अमान्य माना जाएगा।


  • अध्यादेश के द्वारा नागरिकों के मूल अधिकारों का अतिक्रमण नहीं किया जा

    सकता है क्योंकि अनुच्छेद 13(क) के अधीन विधि शब्द के अंतर्गत ‘अध्यादेश’

    भी शामिल है।


  • राष्ट्रपति के द्वारा जारी किए गए अध्यादेश को संसद के पुनः सत्र में

    आने के 6 सप्ताह के अन्दर संसद के दोनों सदनों का अनुमोदन मिलना जरूरी है

    अन्यथा 6 सप्ताह की अवधि बीत जाने पर अध्यादेश प्रभावहीन हो जाएगा।



  • कूपर केस (1970) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि अध्यादेश की

    न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। हालांकि 38वें संविधान संशोधन अधिनियम 1975

    में कहा गया कि राश्ट्रपति की संतुष्टि अंतिम व मान्य होगी और न्यायिक

    समीक्षा से परे होगी। परंतु 44वें संविधान संशोधन द्वारा इस उपबंध को खत्म

    कर दिया गया और अब राष्ट्रपति की संतुष्टि को असद्भाव के आधार पर न्यायिक

    चुनौती दी जा सकती है।


  • राष्ट्रपति के द्वारा जारी किए गए अध्यादेश को अस्पष्टता, मनमाना प्रयोग, युक्तियुक्त और जनहित के आधार पर चुनौती दी जा सकती है।


  • राष्ट्रपति द्वारा जारी किए गए अध्यादेश को उसके द्वारा किसी भी समय वापस लिया जा सकता है।


  • राष्ट्रपति के द्वारा अध्यादेश उस परिस्थिति में भी जारी किया जा सकता

    है जब सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा किसी विधि को अविधिमान्य घोषित कर दिया

    गया हो और उस विषय में कानून बनाना जरूरी हो।


  • संसद सत्रावसान की अवधि में जारी किया गया अध्यादेश संसद की अगली बैठक

    होने पर दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए। यदि संसद इस पर

    कोई कार्रवाई नहीं करती है तो संसद की दुबारा बैठक के 6 हफ्ते पश्चात

    अध्यादेश समाप्त हो जाता है। अगर संसद के दोनों सदन इसका निरामोदन कर दे तो

    यह 6 हफ्ते से पहले भी समाप्त हो सकता है। यदि संसद के दोनों सदनों को

    अलग-अलग तिथि में बैठक के लिए बुलाया जाता है तो ये 6 सप्ताह बाद वाली तिथि

    से गिने जाएंगे।


  • किसी अध्यादेश की अधिकतम अवधि 6 महीने, संसद की मंजूरी न मिलने की स्थिति में 6 सप्ताह होती है।
  • अध्यादेश विधेयक की तरह ही पूर्ववर्ती हो सकता है अर्थात् इसे पिछली

    तिथि से प्रभावी किया जा सकता है। यह संसद के किसी कार्य या अन्य अध्यादेश

    को संशोधित अथवा निरसित कर कता है। यह किसी कर कानून को भी परिवर्तित कर

    सकता है। हालांकि संविधान संशोधन हेतू अध्यादेश जारी नहीं किया जा सकता है।

    राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति का अनुच्छेद 352 में वर्णित

    आपातकाल से कोई संबंध नहीं है। राष्ट्रपति युद्ध, बाह्य आक्रमण और सशस्त्र

    विद्रोह ने होने की स्थिति में भी अध्यादेश जारी कर सकता है।


क्या है डीसी बधवा बनाम बिहार सरकार का मामला-



डी.सी. बाधवा बनाम बिहार राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की पाँच

जजों की पीठ ने बार-बार अध्यादेश की शक्ति के प्रयोग की आलोचना की तथा कहा

कि यह विधानमण्डल के विधि बनाने की शक्ति का कार्यपालिका के द्वारा अपहरण

है। इस शक्ति का प्रयोग असाधारण परिस्थितियों में किया जाना चाहिए न कि

राजनीतिक उद्देश्य से। ज्ञातव्य है कि डी.सी बाधवा ने अध्यादेश की शक्ति के

दुरुपयोग का उदाहरण देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में यह तथ्य प्रस्तुत किया

कि बिहार राज्य में 1967 से 1981 के बीच कुल 256 अध्यादेश जारी किए गए तथा

उन्हें विधानमण्डल द्वारा अनुमोदित किए बगैर बार-बार जारी करके 14 वर्षों

तक जीवित रखा गया।







गौरतलब है कि 1952 से 2014 के बीच 668 बार अध्यादेश जारी किये गये हैं।

वहीं 1967 से 1981 के बीच बिहार में 256 अध्यादेश जारी हुए जबकि विधानसभा

ने 189 कानून ही बनाए। वहीं यह चौंकाने वाली बात यह है कि 18 जनवरी 1986 को

बिहार के राज्यपाल जगन्नाथ कौशल ने एक दिन में 58 अध्यादेश जारी किया था।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए-1 में 36 और यूपीए-2

में 25 अध्यादेश लाए गए थे। वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा भी अब तक करीब 25

लाए जा चुके हैं।



राज्यपाल के द्वारा लाया जाने वाला अध्यादेश







अनुच्छेद 213 यह उपबन्ध करता है कि जब राज्य का विधानमण्डल सत्र में

नहीं है और राज्यपाल को इस बात का समाधान हो जाता है कि ऐसी परिस्थितियाँ

विद्यमान हैं जिनमें तुरंत कार्यवाही करना अपेक्षित है तो वह अध्यादेश जारी

कर सकेगा। जिन राज्यों में दो सदन हैं उन राज्यों में दोनों सदनों का सत्र

में नहीं होना जरूरी है। राज्यपाल केवल उन्हीं विषयों से संबंधित अध्यादेश

जारी कर सकता है जिन विषयों तक राज्य का विधानमण्डल विधि निर्माण कर सकता

है। राज्यपाल के द्वारा जारी किए गए अध्यादेश को भी राज्य विधानमण्डल के

सत्र में आने के 6 सप्ताह के भीतर विधानमण्डल का अनुमोदन प्राप्त करना

जरूरी है अन्यथा वह निष्प्रभावी हो जाएगा। यद्यपि राज्यपाल को राष्ट्रपति

की ही तरह अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्राप्त है किंतु इस संबंध में

राज्यपाल की इस शक्ति पर कुछ सीमाएँ लगाई गई हैं जो राष्ट्रपति की शक्ति पर

नहीं हैं।



सीमाएँ


जिस विधेयक को विधानमण्डल में प्रस्तुत करने से पहले राष्ट्रपति की

स्वीकृति लेनी पड़ती है उस विषय पर अध्यादेश जारी करने से पूर्व राज्यपाल

को राष्ट्रपति से अनुमति लेनी पड़ेगी। राज्यपाल जिन विषयों पर राष्ट्रपति

का विचार लेना आवश्यक समझता है, उस विषय पर अध्यादेश जारी करने से पहले वह

राष्ट्रपति से परामर्श लेगा।उल्लेखनीय है कि राज्यपाल द्वारा जारी किया गया

अध्यादेश अनुच्छेद-226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय के द्वारा दिए गए किसी भी

निर्णय को अधिभावी (Override) कर सकता है।

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Comments omprakash on 24-09-2023

Adyadesh kya hai

Rahul on 15-10-2020

The ordinance seeks to destabilize the balance between executive and legislative powers by ignoring arbitrary positions and the rule of law in the constitutional system.

बनकर रंगनाथ अंबादास on 23-02-2020

लोकसभा विसर्जित होने पर हंगामी प्रधानमंञी राष्ट्रपती को अध्यादेश जारी करने के लिये आदेशीत कर सकते हैं क्या ?

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SHRAWAN PRASAD on 22-02-2020

अध्यादेश क्या है

nilesh on 19-01-2020

adhyadesh kise kahte hai


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