Medal Ke Niyam मेडल के नियम

मेडल के नियम

Pradeep Chawla on 12-05-2019

. प्रभाविता का नियम

2. विसंयोजन का नियम अथवा युग्मकों की शुद्धता का नियम अथवा पृथक्करण का नियम

3. स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम



⦁ मेंडल का एकल संकरण प्रयोग- जब पौधों में एक जोड़ी विपर्यासी लक्षण को ध्यान में रखकर उनके मध्य क्रॉस करवाया जाता है तो उसे एकल संकरण प्रयोग कहते है । प्रथम द द्वितीय नियम एकल संकरण क्रॉस पर आधारित है ।



उदा. शुद्ध लंबा व बौने पौधे के मध्य संकरण



प्रथम पीढ़ी से प्राप्त पौधों के मध्य संकरण करवाने पर द्वितीय पीढ़ी प्राप्त होती है ।



मेंडल ने जब मटर के शुद्ध लंबे (TT) व शुद्ध बौने (tt) पौधों के मध्य संकरण कराया तो प्रथम पीढ़ी में सभी पौधे लंबे प्राप्त हुए । और जब मेंडल ने प्रथम पीढ़ी से प्राप्त पौधों में स्वपरागण होने दिया तो प्राप्त द्वितीय पीढ़ी में 75% पौधे लंबे व 25% पौधे बौने प्राप्त हुए । इससे उसे पता चला कि लक्षण प्रभावी व अप्रभावी होते है । प्रभावी कारक T , अप्रभावी कारक t को प्रकट नहीं होने देता ।









प्रभाविता का नियम- कारक युग्म में पाए जाते है । यदि कारक के दोनों सदस्य असमान हो तो इनमें से एक कारक दूसरे कारक पर प्रभावी हो जाता है । प्रभावी कारक अप्रभावी कारक के गुण को दबा देता है अर्थात् उसे प्रकट नहीं होने देता है और प्रभावी कारक स्वयं के गुण को प्रदर्शित करता है ।प्रभावी कारक T , अप्रभावी कारक t को प्रकट नहीं होने देता । Tt कारक युग्म होने पर पौधा लंबा प्राप्त होता है ।

विसंयोजन का नियम अथवा युग्मकों की शुद्धता का नियम अथवा पृथक्करण का नियम- युग्मक बनने के समय कारकों के जोड़े अथवा एलील के सदस्य विसंयोजित अथवा पृथक्कृत हो जाते है । और प्रत्येक युग्मक को दो में से एक कारक प्राप्त होता है , इसे ही विसंयोजन का नियम अथवा पृथक्करण का नियमकहते है ।

प्रत्येक युग्मक में पहुँचने वाला कारक अपनी शुद्धतम अवस्था में होता है । अतः इसे युग्मकों की शुद्धता का नियम भी कहते है ।

⦁ मेंडल का द्विसंकरण प्रयोग-(3. में डल का स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम )

मेंडल ने दो जोड़ी विपर्यासी लक्षणों वाले भिन्न पौधों के मध्य संकरण कराया , इसे ही द्विसंकरण प्रयोग कहते है ।

उदा. गोल व पीले बीज(RRYY) और झुर्रीदार व हरे(rryy) बीज वाले पौधे के मध्य संकरण



प्रथम पीढ़ी से प्राप्त पौधों के मध्य संकरण



मेंडल ने जब गोल व पीले बीज (RRYY) और झुर्रीदार व हरे बीज (rryy) वाले पौधों के मध्य संकरण कराया तो प्रथम पीढ़ी में सभी पौधे गोल व पीले बीज (RrYy) वाले प्राप्त हुए । जब प्रथम पीढ़ी से प्राप्त पौधों के मध्य स्वपरागण होने दिया तो प्राप्त द्वितीय पीढ़ी में चार प्रकार के संयोजन प्राप्त हुए जिसमें फीनोटाइपिक अनुपात निम्न है –



अतः इससे निष्कर्ष निकला कि द्वितीय पीढ़ी में लक्षणों का स्वतंत्र रूप से पृथक्करण होने के कारण प्रत्येक जोड़ी के विपर्यासी लक्षण दूसरी जोड़ी के विपर्यासी लक्षणों से स्वतंत्र व्यवहार करते है । इस कारण इसे स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम भी कहते है । इससे पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते है ।

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Comments soni kumari on 29-09-2023

Kya corona was aayega

Arpita on 03-07-2023

Maidal ke niyam

Anil on 01-07-2021

Medal ke neyam

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Anchal patel on 09-09-2020

Medal ka niyam

Srishti Yadav on 17-02-2020

Position of flower


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