उग्रवाद के उदय के दो कारण इन हिंदी
उग्रवादी एव क्रांतिकारी आंदोलन के उदय के 2 प्रमुख कारण थे
1. कांग्रेस की उपलब्धियों से असंतोष
कांग्रेस की 15 से 20 वर्ष की उपलब्धियों से तरुण लोग संतुष्ट नहीं थे
कांग्रेस नेतृत्व की आवेदन-निवेदन नीति की असफलताने देश के अंदर और खुद कांग्रेस के अंदर असंतोष पैदा कर दिया था
ब्रिटिश सरकार द्वारा लगातार कांग्रेस की मांगों के प्रति अपनायी जाने वाली उपेक्षापूर्ण नीतिने कांग्रेस के युवा नेताओं➖जैसे बाल गंगाधर तिलक,लाला लाजपत राय और विपिन चंद्र पाल को अंदर तक आंदोलित कर दिया था
इनका अंग्रेजों की न्यायप्रियता और बराबरी की भावना पर कोई विश्वास नहीं रह गया था
यह लोग शांतिमय और संवैधानिक ढंगो के आलोचकबन गए थे और
यह समझते थे कि याचना प्रार्थना और प्रतिवाद करने की नीति से कुछ नहींमिलने वाला था
जिन्होंने यूरोपीय साम्राज्यवाद को समाप्त करने के लिए यूरोपियों ढंग सेअपनाने पर बल दिया
लाला लाजपत राय ने कहा शिकायत दूर करने और रियायते प्राप्त करने की 20 वर्षों के अथक प्रयत्न के परिणाम स्वरुप रोटी के स्थान पर पत्थर हीप्राप्त हुआ है
इन युवा नेताओं ने उदारवादी नेताओं की राजनीति भिक्षावृति मे कोई विश्वास नही जताया
इन्होंने अपनी मांगे मनवाने के लिए कठोर कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया
1905 में लाला लाजपत राय ने इंग्लैंड से लौटने पर अपने देशवासियों को यह बतलाया कि अंग्रेजी प्रजातंत्र अपनी ही समस्याओं में इतना उलझा हुआ है कि उनके पास हमारी समस्याओं के लिए समयही नहीं है
वहां के समाचार पत्र हमारा कोई भी पक्ष प्रस्तुतनहीं करेंगे और वहां किसी को अपनी बात सुनाने का अवसरप्राप्त करना बहुत कठिन है
उन्होंने कहा कि यदि आप स्वतंत्रता चाहते हैं तो आपको स्वयं कार्यकरना पड़ेगा अपनी तत्परता से स्पष्ट प्रमाण देने होंगे
कांग्रेस का तरुण दल जिसे राष्ट्रवादी उग्रवादीभी करते थे, पुरानी पीढ़ी से पूर्णता अप्रसन्नथा
उसके अनुसार कांग्रेस का राजनीतिक धर्म केवल क्राउन प्रति राज भक्ति प्रकट करना
उनका उद्देश्य केवल अपने लिए प्रांतीय अथवा केंद्रीय विधान परिषद में सदस्यता प्राप्त करना और
इनका कार्यक्रम केवल अत्याधिक भाषणदेना और प्रत्येक वर्ष के दिसंबर माह में अंग्रेज के अधिवेशनमें उपस्थित होना था
इन पर यह दोष लगाया गया कि वह केवल मध्यमवर्गीय बुद्धिजीवियोंके लिए काम करते हैं और कांग्रेस की सदस्य इन मध्यम वर्गीय लोगों तक ही सीमित है
उन्हें भय है कि यदि जन साधारण,आंदोलन में आ जाए तो उनका नेतृत्व समाप्तहो जाएगा
अतः उदारवादी दल वालों को देश भक्ति के नाम पर व्यापार करने का दोषी ठहराया गया
तिलक नें कांग्रेस को चापलूसों का सम्मेलन और कांग्रेस के अधिवेशन को छुट्टियों का मनोरंजन बतलाया था
लाला लाजपत राय ने कांग्रेस सम्मेलनों को शिक्षित भारतीयों का वार्षिक राष्ट्रीय मेला कहा
दोनों ही कांग्रेस कार्योके बड़े आलोचक थे
बाल गंगाधर तिलक ने तो यहां तक कहा➖कि यदि हम वर्ष में एक बार मेढंक की भांति टर्राए तो हमें कुछ नहीं मिलेगा
2 बढ़ता हुआ पश्चिमीकरण-
भारतीय राष्ट्रवादियों की नई पीढ़ी ने देश में बढ़ते हुए पश्चिमीकरणपर गहरी चिंता व्यक्त की
भारतीय जीवन चिंतन और राजनीति में पश्चिम का प्रभावबढ़ता जा रहा था और भारतीय संस्कृति का प्रभाव कम हो रहा था
इन लोगों का बौद्धिक और भावात्मक प्रेरणा का स्त्रोतभारत था और उन्होंने भारतीय इतिहास के वीरों की गाथाओं से प्रेरणाली थी
बंकिमचंद्र चटर्जी,विवेकानंद, स्वामी दयानंद के लेखोने उनको प्रभावित किया था
बंकिम चंद ने 1886 में लिखे कृष्ण चरित्रभाग प्रथम में भारत के उस जैसे परम पुरुष के नेतृत्व में भारत की एकताके सपने देखे थे
उन्होंने श्री कृष्ण को एक वीर योद्धा एक चतुर नीतिज्ञ और सफल साम्राज्य निर्माताके रूप में देखा था
विवेकानंद ने भारतीय वेदांत से संसार को चकाचोंध कर दिया और अपनी प्राचीन परंपराओं और विरासत में एक नई आशा उत्पन्नकी और एक नया आत्मविश्वास जगाया
स्वामी दयानंद ने पश्चिमी विशिष्टता की पोल खोल दी
उन्होंने वैदिक संस्कृति का वह रूप दिखाया जो उस समय तक प्राय: अनदेखा किया जाता था
उन्होंने बताया कि जिस समय यूरोपवासी भारतीय सभ्यता तथा अज्ञान के गढेमें गिरे थे
वैदिक काल में भारत में एक उच्च सभ्यता संस्कृति दर्शन और धर्म का विकास हो रहा था और इस प्रकार उन्होंने एक नए आत्मविश्वासको जगाया और श्वेत जातियों की काली अथवा ब्राउनजातियों से वरिष्ठता की भावना को चुनौती दी
उनका राजनीतिक संदेश था➖ भारत भारतीयों के लिए हैं
अरविंद घोष ने कहा स्वतंत्रता हमारे जीवन का उद्देश्य है,और हिंदू धर्म ही हमारे एक उद्देश्य की पूर्ति करेगा
राष्ट्रीयता एक धर्म है और वह ईश्वर की देन है
एनी बेसेंट ने कहा कि सारी हिंदू प्रणाली पश्चिमी सभ्यता से बढ़कर है
इस प्रकार बढ़ते पश्चिमीकरण की प्रतिक्रिया में हिंदू धर्म के पुनरूत्थान में उग्रवाद के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी
इसके विपरीत कांग्रेस के उदारवादी नेताओं ने पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति में अपनी पूर्ण निष्ठा जतायी थी
1985 से 1905 तक भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की बागडोर कांग्रेस के उदारवादी दल के हाथ में थी. 1905 ई. से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दूसरा चरण प्रारम्भ होता है, जिसे उग्रवादी युग (garam dal) की संज्ञा दी गई है. जब ब्रिटिश साम्राज्यवाद का वरदान मानने वाले तथा उनकी न्यायप्रियता में अटूट विश्वास रखनेवाले उदारवादी नेताओं का विश्वास टूटकर बिखर गया तब कांग्रेस में एक नए तरुण वे का उदय हुआ जो प्रार्थना के बदले संघर्ष का मार्ग अपनाने को आतुर था. उग्रवादी दल के नेताओं में प्रमुख थे – बाल गंगाधर तिलक, लाल लाजपत राय, विपिनचन्द्र पाल (बाल-लाल-पाल) एवं अरविन्द घोष. गरम दल (garam dal) के इन नेताओं का मानना था कि सरकार पर दबाव डालकर ही अधिकारों को पाया जा सकता है. कांग्रेस के अन्दर अब युवा वर्ग की संख्या बढ़ने लगी थी जो जल्द से जल्द स्वराज्य और स्वतंत्रता चाहता था. कांग्रेस के दो दल हो गए – एक शांतिमय ढंग से सरकार का सक्रीय विरोध करना चाहता था और दूसरा क्रांति का मार्ग अपनाना चाहता था.
उदारवादी राजनीतिक उत्तेजना के साथ राष्ट्र का पुनर्निर्माण नहीं करना चाहते थे, वे सरकार के साथ सहयोग के पक्षपाती थे. लेकिन उग्रवादी सरकार के साथ असहयोग और नौकरशाही के साथ संघर्ष करना चाहते थे.
उग्रवादी सरकार के सुधारों से पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे. वे जितना सरकार का विरोध करते थे उतना ही उदारवादियों के विचार का भी विरोध करते थे. गरम दल (garam dal) के अग्रदूत ब्रिटिश शासन को वरदान के बदले अभिशाप मानते थे. उनके कार्यक्रम में बहिष्कार तथा स्वदेशी और राष्ट्रीय शिक्षा को विशेष महत्त्व दिया गया था. उनका कहना था कि स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और उसे प्राप्त करना कांग्रेस का लक्ष्य. हम स्वतंत्रता और न्याय चाहते हैं, दया की भीख नहीं. उग्रवादी स्वराज्य का वास्तविक/सार्थक स्वतंत्रता मानते थे. उग्रवादी प्रजातंत्र संविधान और प्रगति के साथ-साथ राष्ट्रीय आन्दोलन का सामाजिक आधार विस्तृत बनाना चाहते थे. उन्हीं के प्रयत्नों के परिणाम-स्वरूप निम्न मध्यम वर्ग राष्ट्रीय आन्दोलन में प्रवेश कर पाए. गरम दल (garam dal) के नेताओं ने जनसाधारण को राष्ट्रीयता और राजनीति का पाठ पढ़ाने के लिए विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं का प्रकाशन आरम्भ किया. इस प्रकार उग्रवाद भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की महत्त्वपूर्ण इकाई बन गया.
पलासी का युद्ध कब हुआ था
उग्रवाद के उदय के कारण
Ugravaadi aur udaar vaadi same hai kya
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