छत्तीसगढ़ में भूमि का उपयोग
शोध सार
आज देश के आर्थिक विकास के लिए जनसंख्या वृद्धि एक चुनौती के रूप में सामने आयी है। भूमि एक ऐसा संसाधन है जिसकी मात्रा सीमित है, साथ ही मानव जीवन का अस्तित्व बनाये रखने में इसका सर्वाधिक योगदान है। प्रकृति ने हमें अनेक संसाधन उपलब्ध कराये हैं,यदि इन संसाधनों का उपयोग विवेकपूर्ण तथा मितव्ययता पूर्ण ढं़ग से किया जाय तो निश्चित रूप से अनेक विकराल समस्याओं से भी निपटा जा सकता है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ के दुर्ग जिले का भूमि उपयोग एवं शस्य गहनता का स्थानिक एवं कालिक स्वरूप का अध्ययन किया गया है, जिससे आगामी नियोजन हेतु रूपरेखा तैयार की जा सके। प्रस्तुत अध्ययन द्वितीयक आंकडों पर आधारित है। आंकड़ों का संकलन वर्ष1983-84,1993-94 एवं 2003-2004 से प्राप्त जिला सांख्किीय पुस्तिका, उप-संचालक, कृषि विभाग, एवं भू-अभिलेख कार्यालय, दुर्ग से प्राप्त किया गया है। अध्ययन हेतु जिले के सभी तहसीलों को इकाई माना है। शस्य गहनता के परिकलन हेतु बी. एस. त्यागी द्वारा प्रतिपादित प्रविधि अपनायी गयी है। तत्पश्चात् प्राप्त परिकलित आंकड़ों को अति उच्च, उच्च, मध्यम एवं निम्न चार स्तरों में वर्गीकृत किया गया हैै।जिले में अतिउच्च गुरूर तहसील में 161.6 जबकि धमधा तहसील में 122.02 निम्न शस्य गहनता सूचकांक प्राप्त हुआ।
प्रस्तावना
भूमि एक आधारभूत प्राकृतिक संसाधन है जिस पर सभी आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्य सम्पन्न होते हैं। भूमि आदिकाल से लेकर अद्यतन निरंतर मानवीय इतिहास को प्रोत्साहन देती रही है। देश के किसी भू भाग में रहने वाला प्रत्येक मानव अपने दैनिक आवश्यकता की पूर्ति भूमि के विभिन्न उपयोगों द्वारा प्राप्त करता है। वास्तव में भूमि उपयोग मानव पर्यावरण एवं प्रकृति का वर्णन है, जो कि भौतिक जलवायुविक और मिट्टी संबंधी परिस्थतियों के साथ मानव क्र्रिया-कलापों, जो भूमि को प्रभावित करते हैं,से सीधा सम्बन्धित है ;टंद्रमजजप)। भूमि उपयोग वह अध्ययन है जिसमें मानव द्वारा उत्पादित वस्तु के साथ-साथ मानवीय क्रियाकलापों का अध्ययन है ;ब्संूेवद1962)। प्रकृति में उपलब्ध सभी संसाधनों में भूमि सबसे शक्तिशाली एवं उत्पादक कारक है। मानवीय सभ्यता और उसकी आवश्यकताओं में परिवर्तन के अनुसार भूमि उपयोग के स्वरूप में भी परिवर्तित होते रहते हैं, जिसमें परोक्ष रूप से कृषि विकास की अवस्थाएं अंकित होती रहती हैं।
वर्तमान में बढती़े जनसंख्या की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए भूमि से अधिकतम लाभ प्राप्ति हेतु भूमि उपयोगिता की समस्या एवं रणनीति में भूमि संसाधन उपयोगिता का अध्ययन एक मुख्य बिन्दु है। यद्यपि ष्भूमि उपयोगश्शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सावर ;1919द्ध जोन्स एवं फ्रिन्च ;1925द्ध, डडले स्टैम्प ;1931ए 1939द्ध, शफी ;1960द्ध, आदि भूगोलवेत्ताओं ने भूमि उपयोग से संबंधित अध्ययन किये है। किसी क्षेत्र में कृषि विकास हेतु शुद्ध बोये गये क्षेत्र की अपेक्षा कुल फसली क्षेत्र का अधिक होना फसल गहनता की मात्रा को प्रदर्शित करता है।अतः शस्य गहनता एवं भूमि उपयोग का धनात्मक सहसंबंध होता है ;माजिद हुसैन, 2004द्ध। भूमि उपयोग से संबंधित इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखकर प्रस्तुत शोध पत्र जिला दुर्ग (छ.ग.़)का भूमि उपयोग एवं शस्य गहनता का कालिक एवं स्थानिक स्वरूप में परिवर्तन का विश्लेषण किया गया है।
उद्देश्य
प्रस्तुत अध्ययन का मुख्य उद्देश्य छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में भूमि-उपयोग एवं शस्य गहनता का कालिक एवं स्थानिक स्वरूप का तुलनात्मक विश्लेषण करना है। भूमि उपयोग एव ंशस्य गहनता स्वरूप में परिवर्तन हेतु जिले के तहसील को इकाई का आधार मानकर मूल्यांकन किया गया हैं ताकि आने वाले समय में नियोजन हेतु रूपरेखा तैयार की जा सके।
अध्ययन क्षेत्र
छत्तीसगढ राज्य के दक्षिण-पश्चिम में स्थित जिला दुर्ग ;20 23ष् से 22 02श् उत्तर, 80 46श् से 81 58श् पूर्वद्ध 87902.80 वर्ग कि.मी क्षेत्र में विस्तृत है। जिले की समुद्र सतह से ऊॅंचाई 317 मीटर है। 2001 की जनगणना के अनुसार जिले की जनसंख्या 2810436 है जिनमें अनुसूचित जाति 12.79 प्रतिशत एवं अनुसूचित जनजाति का प्रतिशत 12.41 है। अध्ययन क्षेत्र महानदी-शिवनाथ दोआब तथा छ.ग.दक्षिणी मैदान का मध्यवर्ती भाग के अंर्तगत है। जिले का उत्तर-पश्चिमी भाग शिवनाथ पार मैदान के नाम से जाना जाता है। खारून नदी इस क्षेत्र की मुख्य नदी के अंर्तगत होने के कारण कृषि भूमि उपयोग एवं कृषि विकास की संभावनाये अधिक हैं। जिला 11 तहसील तथा 12 विकासखण्ड़ों में विभाजित हैं। जिले के कुल भौगोलिक क्षेत्र में सकल बोया गया क्षेत्र 87.93 प्रतिशत जिसमें शुद्ध बोये गये क्षेत्र 63.99 प्रतिशत, 24.38 प्रतिशत द्विफसली क्षेत्र वहीं 33 प्रतिशत सिंचित क्षेत्र के अंर्तगत है।
विधितंत्र
प्रस्तुत शोध पत्र मूलतः द्वितीयक आंकड़ों पर आधारित है। आंकड़ों का संकलन वर्ष 1983-84,1993-94 एवं 2003-2004 से प्राप्त जिला सांख्किीय पुस्तिका, उप-संचालक, कृषि विभाग, एवं भू-अभिलेख कार्यालय, दुर्ग से प्राप्त किये गये है। जिले के भूमि उपयोग के स्वरूप में परिवर्तन तथा शस्य गहनता सूचकांक के तुलनात्मक अध्ययन हेतु तहसील स्तर पर इनका कालिक ; वर्ष 1983-84 एवं 2003-04) विवेचन किया गया है। यद्यपि शस्य गहनता के निर्धारण हेतु अनेक अध्ययन हुए हैं जिनमें जसबीर सिंह, आर.आर.त्रिपाठी, बी.बी. सिंह, वाई.जी. जोशी एवं बी.एस. त्यागी भूगोलवेत्ताओं के योगदान उल्लेखनीय हैं। अध्ययन हेतु शस्य गहनता सूचकांक का परिकलन बी. एस.त्यागी द्वारा प्रतिपादित विधि प्रयोग में लायी गयी है। विश्लेषित प्राप्त शस्य गहनता सूचकांक को चार स्तरों में अति उच्च, उच्च, मध्यम एवं निम्न स्तरों में वर्गीकृत किया है। विश्लेषित प्राप्त मूल्यों का उद्देश्यानुरूप, सारणीयन एवं वर्णमात्री मानचित्र का प्रयोग किया गया है।
भूमि उपयोग प्रतिरूप
अध्ययन क्षेत्र की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। किसी भी क्षेत्र की भूमि का सूचीबद्ध विधि से किया जाने वाला उपयोग ही भूमि उपयोग है इस प्रकार उपयोग द्वारा भूमि की क्षमताओं का निर्धारण किया जाता है। भूमि उपयोग मानव एवं पर्यावरण के साथ समायोजन है। भूमि उपयोग जहां प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक उपादानों का संयोग का प्रतिफल है वहीं राजनीति कारक में शासन द्वारा निर्धारित नीतियों से भूमि उपयोग में परिवर्तन निश्चित है। जिले में भूमि उपयोग स्वरूप में परिवर्तन का विवरण सारणी-1 से स्पष्ट है।
परिवर्तित भूमि उपयोग प्रतिरूप
वर्ष 1983-84 की तुलना में हुए भूमि उपयोग परिवर्तन सारणी-1 में दिखाया गया है। सारणी-1 के अनुसार भूमि उपयोग में होने वाले द्विदशकीय परिवर्तन 1983-84 की तुलना में 2003-04 में कुल बोये गये -0.9ः कमी वहीं कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि में 2.64ः की वृद्धि देखी गई। यह परिवर्तन भूमि प्रबन्धन, जिले में परिवहन, आवास एवं उद्योग से संबंधित विकास कार्यो द्वारा संभव हुआ है। तहसील स्तर पर भूमि उपयोग स्वरूप में दस वर्ष में परिवर्तन के स्वरूप सारणी कमांक्र-2 से स्पष्ट है।
सारणी-1 जिला दुर्ग: भूमि-उपयोग में परिर्वतन प्रतिरूप ;प्रतिशत मेंद्ध
क्रमांक भूमि उपयोग वर्ष 1983-84 वर्ष 1993-94 वर्ष 2003-04 वर्ष 1983-84 व 2003-04के आधार पर परिवर्तन
1.
2.
3.
4.
5. वन क्षेत्र
कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि
अन्य अकृषित भूमि जिसमें पड़ती शामिल नहीं है।
पड़ती भूमि
निरा फसली क्षेत्र 11.45
8.79
11.44
4.57
63.67 11.48
10.58
10.44
4.84
62.66 11.44
11.43
9.30
4.02
63.99 -0.01
2.64
-2.14
-0.55
0.32
100.00 100.00 100.00 -
7.
8. सकल कृषिगत क्षेत्र
द्विफसली क्षेत्र 88.83
25.15 87.17
24.34 87.93
24.38 -0.9
-0.77
स्रोत -जिला सांख्यिकीय पुस्तिका,दुर्ग, 1983-84,1993-94 एवं 2003-04
सारणी क्र-2 जिला दुर्गः भूमि-उपयोग स्वरूप में परिवर्तन ;वर्ष 1993-94 पर आधारित 2003-04द्धप्रतिशत में
क्रमांक तहसील कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि अकृषित भूमि पड़ती शामिल नहीं है पड़ती भूमि शुद्ध कृषिगत भूमि
1.
2.
3.
4.
5.
6.
7.
8.
9.
1011
नवागढ़
बेमेतरा
साजा
बेरला
धमधा
दुर्ग
पाटन
गुण्डरदेही
ड़ौंडीलोहारा
गुरूर
बालोद
0.72
-0.12
0.00
0.00
-0.71
1.7
0.29
-0.34
-0.57
-0.4
-0.7
-0.1
0.48
0.59
1.41
0.23
-2.75
-1.75
-1.34
1.32
0.4
1.62 2.88
0.93
0.78
-0.30
1.00
-1.9
-2.1
-1.61
2.16
-0.46
-1.10 -0.3
-0.1
-0.3
-0.1
00
0.1
0.5
0.3
-0.2
-2.8
3.7
स्रोत - जिला, सांख्यिकी पुस्तिका, रायपुर ; 1993.94ए 2003.04द्ध
वन क्षेत्रफल
वर्ष 1983-84 की तुलना में 2003-04 में वनभूमि के क्षेत्र में 0.01 प्रतिशत में कमी प्राप्त हुई। जिले के तहसील स्तर पर वनभूमि के क्षेत्र में लगभग सभी तहसीलों में कमी देखी गई।
कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि
ऐसी भूमि जो प्राकृतिक रूप से ऊसर भूमि, कृषि के लिए अयोग्य एवं अन्य उपयोग में लायी गई भूमि यह वह भूमि होती है जिसमें सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक भू-दृश्यों के अनेक महत्वपूर्ण तत्वों में अधिवास, परिवहन एवं संचार के साधन, सिंचाई के साधन, उद्योग एवं बाजार निर्माण के क्षेत्र उपयोग में लायी जाती है। जिले में 1983-84 पर आधारित 2003-04 में 2.64 प्रतिशत में वृद्धि प्राप्त हुई वहीं अध्ययन क्षेत्र के इकाई स्तर पर देखा जाय तो कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि में सर्वाधिक वृद्धि दुर्ग तहसील में 1.7 प्रतिशत प्राप्त हुआ। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2000 में नवनिर्मित छत्तीसगढ़ राज्य का गठन होने के फलस्वरूप जिला दुर्ग में जनसंख्या का भार अपेक्षाकृत बढ़ा परिणामस्वरूप दुर्ग तहसील में नगरीय क्षेत्र अधिवास, परिवहन एवं बाजार जैसे क्षेत्रों के विकास में वृद्धि वहीं सबसे कम धमधा एवं बालोद तहसील में क्रमशः -0.71 एवं -0.70 प्रतिशत प्राप्त हुआ।
पडती के अतिरिक्त अन्य अकृषित भूमि
भूमि उपयोग के अंर्तगत इस प्रकार की भूमि के क्षेत्र में वर्तमान एवं भविष्य की रूपरेखा नियोजित कर निर्धारित की जाती है। इस प्रकार की भूमि में योजनाबद्ध वैज्ञानिक तकनीकों के माध्यम से भावी सम्भावनाओं को ध्यान में रखते हुए कृषि विकास हेतु उपयोग में लायी जाती है। वर्तमान में इस प्रकार की भूमि तीन प्रकार से कृषि योग्य बंजर भूमि, वृक्ष, झाडियां, उद्यान एवं चारागाह भूमि विभाजित है। तुलनात्मक रूप से बीस वर्ष पूर्व की तुलना में वर्ष 2003-04 में जिले में -1.14 प्रतिशत कमी देखी गई। वस्तुतः इस श्रेणी के कमी का कारण कृषि क्षेत्र में विस्तार के फलस्वरूप प्राप्त हुआ है। जिले में इस श्रेणी की भूमि में सर्वाधिक कमी दुर्ग, पाटन एवं गुण्डरदेही तहसील में क्रमशः -2.75, -1.75 एवं-1.34 में प्राप्त हुआ।
पडती भूमि
परती भूमि के अंर्तगत वे सभी भूखण्ड सम्मिलित है जिन पर पहले कृषि की जाती थी किन्तु पिछले पांच वर्षों से अस्थायी रूप से उन पर फसलें नहीं उत्पादित की है। पडती भूमि दो वर्गों में रखी जाती है। चालू पडती जिसमें केवल चालू वर्ष में ही कृषि नहीं की गई है। दूसरी पुरानी पडती पिछले पांच वर्षों से अध्ंिाक समय से फसलें नहीं ली गई है तो उसे इस वर्ग के अंर्तगत वर्गीकृत करते हैं। इसका प्रमुख कारण कृषक द्वारा साधनों की कमी, सिंचाई सुविधाओं की कमी, मिट्टी अपरदन आदि कारणों से कुछ समय के लिए पडती छोड़ दी जाती है। पडती भूमि एवं निराफसली क्षेत्र से घनिष्ठ संबंध पाया जाता है। सभी भौगोलिक अनुकूल दशाएं उपलब्ध होने पर बोये गये क्षेत्र का विस्तार किया जा सकता है।जिले में 2003-04 के दशक में कुल कृषि के क्षेत्र -0.9 प्रतिशत की कमी प्राप्त हुई वहीं निराफसली क्षेत्र में वृद्धि देखा गया। तहसील स्तर पर देखा जाय तो पडती भूमि का विस्तार नवागढ़ तहसील में 2.88 प्रतिशत की वृ़िद्ध देखी गई जबकि सबसे कम पाटन तहसील में 2.1 प्रतिशत प्राप्त हुई;सारणी-2द्ध।
शुद्ध कृषिगत भूमि
इसे निराफसली क्षेत्र भी कहते हैं। कृषि विकास में इस प्रकार की भूमि का सर्वाधिक महत्व है। वर्ष 1983-84 में अध्ययन क्षेत्र में 63.87 प्रतिशत शुद्ध बोया गया क्षेत्र के अंर्तगत था, जो वर्ष 2003-04 में बढ़कर 63.99 प्रतिशत अर्थात् 0.32 प्रतिशत की वृद्धि प्राप्त हुई। इस प्रकार निराफसली क्षेत्र में वृ़िद्ध होने से कृषि योग्य पडती भूमि, अकृषित भूमि की कमी को दर्शाता है। सारणी क्र.-2 के अनुसार 2003-04 के वर्षों में बालोद तहसील में सर्वाधिक क्षेत्र 3.2 प्रतिशत में वृद्धि होने का कारण तांदुला जलाशय द्वारा नहरों द्वारा सिंवाई सुविधाओं की सुविधा प्राप्त होना जबकि पाटन एवं गुण्डरदेही तहसील में क्रमशः 0.5 एवं 0.3 प्रतिशत वृद्धि प्राप्त हुई। अध्ययन क्षेत्र के डौंडीलोहारा तहसील में सबसे कम -2.8 प्रतिशत प्राप्त हुई इसका प्रमुख कारण पडती भूमि के क्षेत्र में वृद्धि होना इंगित करता है।
मानचित्र-1
शस्य गहनता प्रतिरूप
किसी भी क्षेत्र में शुद्ध बोये गये क्षेत्र की अपेक्षा कुल फसली क्षेत्र का अधिक होना शस्य गहनता की मात्रा को प्रदर्शित करता है। शस्य गहनता का मतलब एक निश्चित क्षेत्र में एक वर्ष में ली जाने वाली फसलों की संख्या से है। अर्थात् एक वर्ष में एक ही कृषि क्षेत्र पर उत्पादित की जाने वाली फसलों की संख्या शस्य गहनता कहलाती है। यदि एक क्षेत्र में वर्ष में एक ही फसल उत्पन्न की जाती है तो उसकी गहनता 100 प्रतिशत मानी जायेगी, यदि दो फसलें उत्पादित की जायेगी तो शस्य गहनता 200 प्रतिशत हो जायेगी ;सिंह, 1979द्ध। शस्य गहनता की गणना उन भागों में आसान होती है, जहां वर्ष में एक ही फसलें उत्पन्न की जाती है। उल्लेख्नीय है कि अध्ययन क्षेत्र की मुख्य फसल धान है। शस्य गहनता का सूचकांक एवं भूमि उपयोग का धनात्मक सहसंबंध रहता है। यद्यपि शस्य गहनता का अध्ययन अनेक विद्वानों ने किया है, लेकिन वाई.जी. जोशी ने शस्य गहनता के स्थान पर शस्य तीवत्रा, जबकि जसबीर सिंह ने शस्य गहनता के स्थान पर भूमि उपयोग क्षमता शब्द का प्रयोग किया है। बी. एन. त्यागी ने शस्य गहनता के स्थान पर कृषि गहनता शब्द का प्रयोग किया है। इन्होंने यह गणना तीन स्तरों में की हैः-
मानचित्र-2
1. क्ुल क्षेत्र में से भूमि उपयोग के अनेक पक्षों द्वारा अधिकृत क्षेत्र का प्रतिशत ज्ञात करके।
2. सम्पूर्ण फसल में से प्रत्येक फसल के अंर्तगत पडने वाले अधिकृत क्षेत्र का प्रतिशत ज्ञात करके।
3. शु़द्ध फसल क्षेत्र में से रबी एवं खरीफ फसल के मौसम में बोये गये फसलों के प्रतिशत की गणना करके।
तत्पश्चात् सभी प्रतिशत श्रेणियों में परिवर्तित कर प्राप्त सम्पूर्ण मान के जोड में श्रेणी की कुल संख्या से भाग देकर औसत ज्ञात किया। त्यागी की श्रेणी गुणांक विधि के आधार पर तहसील स्तर पर दुर्ग जिले की शस्य गहनता ज्ञात कर चार वर्गों में विभाजित किया गया है ;मानचित्र क्र-1द्ध। परिकलन सूत्र निम्नानुसार है:-
ब्प्त्र ब्ध्छ ग् 100
ब्प्त्र शस्य गहनता सूचकांक
ब्त्र सकल बोया गया क्षेत्र
छत्र शुद्ध बोया गया क्षेत्र
सारणी क्रमांक-3 जिला दुर्ग: शस्य गहनता सूचकांक
;1993-94 एवं 2004-05द्ध
क्रमांक तहसील वर्ष 1993-94 वर्ष 2003-04
1.
2.
3.
4.
5.
6.
7.
8.
9.
10.
11. बालोद नवागढ़
बेमेतरा
साजा
बेरला
धमधा
दुर्ग
पाटन
गुण्डरदेही
डोंडीलोहारा
गुरूर
बालोद
152.2
132.4
127.5
134.3
120.1
145.0
140.6
143.2
153.94
154.0
143.8 138.2
140.8
136.9
130.8
122.02
137.1
138.5
150.5
151.4
161.6
155.3
औसत 142.10 140.6
परिकलित प्राप्त मानों के आधार पर जिले में वर्ष 1993-94 मे ंशस्य गहनता सूचकांक 142.6 रहा जबकि 2003-04 में बढ़कर 142.10 प्राप्त हुआ। जिले में वर्ष 2003-04 में उच्च शस्य गहनता सूचकांक 155 से अधिक बालोद,गुरूर तहसील में प्राप्त हुआ ;सारणी क्र.-3द्ध।
शस्य गहनता में परिवर्तन
जिले द्वारा प्राप्त आंकड़ों के सांख्यिकीय विश्लेषण से ज्ञात हुआ कि अध्ययन क्षेत्र में वर्ष 1993-94 की तुलना में वर्ष 2003-2004 शस्य गहनता में परिवर्तन देखा गया। वर्ष 2003-04 गुरूर, बालोद, डोण्डी-लोहारा एवं गुण्डरदेही तहसीलों में क्रमशः 161.6, 155.3,151.4 एवं 150.5 गहनता सूचकांक जिले के औसत गहनता सूचकांक से अधिक पाया गया जबकि बेरला 130.8 एवं धमधा तहसील में 122.02 निम्न शस्य गहनता सूचकांक प्राप्त हुआ। जिले में वर्ष 1993-94 में जहां 140.6 औसत शस्य गहनता सूचकांक प्राप्त हुआ वहीं 2003-04 में औसत शस्य गहनता सूचकांक बढ़कर 142.10 प्राप्त हुआ ;मानचित्र-1द्ध। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2003-04 के दशक में जिले में सिंचाई सुविधाओं के कारण सिंचित क्षेत्र में विस्तार, भूमि प्रबंधन मंे सुधार तथा कृषकों में आधुनिकीकरण का उपयोग के फलस्वरूप शस्य गहनता सूचकांक में वृद्धि देखा गया लेकिन इसका प्रभाव जिले सभी इकाईयों में समान सुविधा न होने के कारण शस्य गहनता में भी अन्तर प्राप्त हुआ।
निष्कर्ष
अध्ययन क्षेत्र में वर्ष 1983-84 की तुलना में भूमि उपयोग के क्षेत्र में कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि में 2.64 प्रतिशत एवं निराफसली क्षेत्र में 0.32 प्रतिशत वृद्धि देखी गई। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2000 में नवनिर्मित छत्तीसगढ़ राज्य का गठन होने के फलस्वरूप जिला दुर्ग में जनसंख्या का भार अपेक्षाकृत बढ़ा परिणामस्वरूप अध्ययन क्षेत्र में नगरीय क्षेत्र में विस्तार के कारण आवास, परिवहन तथा संचार के साधनों में बाजार के विकास वहीं भूमि सुधार प्रबन्धन एवं सिंचाई के साधनों के विस्तार के कारण शुद्ध बोये गये क्षेत्रों में वृद्धि हुई।
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