उत्तराधिकार के गुणसूत्र सिद्धांत
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माता–पिता से पीढ़ी–दर–पीढ़ी आसानी से संचरित होने वाले मौलिक गुण ‘आनुवांशिक गुण’ कहलाते हैं और आनुवांशिक गुणों के संचरण की प्रक्रिया एवं उसके कारणों का अध्ययन को ‘आनुवांशिकी’ कहा जाता है। ग्रेगर जॉन मेंडल को ‘आनुवांशिकी का जनक’ कहा जाता है। इन्होंने आनुवांशिकता और आनुवांशिक सिद्धांत का वैज्ञानिक अध्ययन किया था। उनके अध्ययन का तरीका बगीचे की मटर की विभिन्न प्रजातियों व स्पष्ट लक्षणों वाले विरोधी युग्मों के संकरण (Crossbreeding) पर आधारित था। उन्होंने अलगाव (Segregation), प्रभुत्व (Dominance) और स्वतंत्र वर्गीकरण (Independent Assortment) का सिद्धांत दिया, जो आनुवांशिकी के विज्ञान का मौलिक आधार बन गया। जीन (मेंडेल द्वारा दिया गया कारक) गुणसूत्र (Chromosome) का मुख्य घटक है, जो आनुवांशिक गुणों का वहन करता है।
मेंडल का प्रयोगः
मेंडल ने संकरण (Crossbreeding) के माध्यम से मटर के कई पौधों का अध्ययन किया और आनुवांशिकता के आधार पर एक व्यापक सिद्धांत का प्रतिपादन किया, जिसे ‘मेंडल का वंशानुगत सिद्धांत’ (Mendel’s law of Inheritance) कहा जाता है। मेंडल ने बेतरतीब तरीके से मटर की प्रजातियों के सात जोड़ों को चुना। उन्होंने अपने प्रयोग में पाया कि एक जोड़े की आनुवांशिक विशेषता ने दूसरे जोड़े की आनुवांशिक विशेषता को दबा दिया था। पहले जोड़े को ‘प्रभावी’ (Dominant) कहा गया और इसे बड़े अक्षर में लिखा गया, जैसे-लंबाई के लिए 'T'| दूसरे जोड़े को ‘अप्रभावी’ कहा गया और इसे छोटे अक्षर में लिखा गया, जैसे-बौनेपन के लिए 't' | ये आनुवांशिक प्रतीक के रूप में आनुवांशिकता के लिए जिम्मेदार होते हैं।
गुण | प्रभावी गुण (प्रमुख गुण) | प्रभावी गुण (प्रमुख गुण) |
बीज का आकार बीजपत्र का रंग फूल का रंग फल का आकार फल का रंग फूल की स्थिति पौधे की लंबाई या ऊँचाई | गोलाकार चिकनी बीज पीला लाल चिकना हरा बंद लंबा | झुर्रियों वाला बीज हरा सफेद सिकुड़ा हुआ या झुर्रियों से भरा पीला सबसे दूर बौना |
मेंडल के अनुसार प्रत्येक प्रजनन कोशिका में एक ही वंशानुगत गुण को व्यक्त करने वाले दो कारक होते हैं, और जब ये दोनों कारक एक जैसे हों तो उसे ‘होमोजाइगोस’ (Homozygous) कहा जाता है लेकिन जब ये दोनों अलग– अलग होते हैं तो उसे ‘हेट्रोजाइगोस’ (Heterozygous)कहा जाता है। उन्होंने संकर प्रजातियों के वंशानुगत गुणों की पहचान के लिए अलग–अलग गुणों वाले एक या दो युग्मों की प्रजातियों का अध्ययन किया था। इसलिए, एक युग्म के संकर को ‘मोनोहाइब्रिड क्रॉस’ (Monohybrid Cross) और दो युग्म के संकर को ‘डाईहाइब्रिड क्रॉस’ (Dihybrid Cross) कहते हैं।
1. मोनोहाइब्रिड क्रॉस और अलगाव का नियम
वंशानुक्रम एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आनुवांशिक रूप से नियंत्रित गुणों का संचरण है। यहाँ हम एक गुण या लक्षण, जैसे-पौधे की ऊँचाई, के बारे में चर्चा करेंगें।
(i) मेंडल ने पहले शुद्ध–नस्ल वाले लंबे मटर के पौधों के साथ शुद्ध–नस्ल वाले बौने मटर के पौधों का संकरण कराया और पाया कि पहली पीढ़ी या F1 में सिर्फ लंबे पौधे ही पैदा हुए। पहले वंश में एक भी बौना पौधा नहीं पाया गया।
(ii) इसके बाद मेंडल ने F1 पीढ़ी के मटर के लंबे पौधों का संकरण कराया और पाया कि दूसरी पीढ़ी यानि F2 में लंबे और बौने दोनों ही प्रकार के पौधे 3:1 के अनुपात में हैं।
3:1 का अनुपात ‘मोनोहाइब्रिड अनुपात’ कहलाता है, यानि 3 लंबे और 1 बौना।
मेंडल के वंशानुक्रम के पहले नियम के अनुसार, किसी भी जीव के गुणों का निर्धारण उन आंतरिक कारकों के द्वारा होता है, जो युग्मों में पाये जाते हैं| एक युग्मक (Single Gamete) में किसी युग्म का सिर्फ एक ही कारक मौजूद हो सकता है।
2. डाईहाइब्रिड क्रॉस और स्वतंत्र वर्गीकरण का नियम
इसमें मेंडल द्वारा चुने गए विपरीत गुणों के दो युग्मों का वंशानुक्रम शामिल है| ये विपरीत गुण थे– आकार और बीज का रंग यानि गोल–पीले बीज और झुर्रीदार–हरे बीज।
(i) उन्होंने पहले गोल–पीले बीजों वाले शुद्ध–नस्ल के मटर के पौधों को झुर्रीदार–हरे बीज वाले शुद्ध–नस्ल के मटर के पौधों के साथ संकरण कराया और पाया कि F1 पीढ़ी में सिर्फ गोल–पीले बीज ही उत्पादित हुए। एक भी झुर्रीदार-हरे बीज नहीं प्राप्त हुए।
(ii) जब स्व–परागण द्वारा गोल–पीले बीज वाली F1 पीढ़ी का संकरण हुआ तब F2 पीढ़ी में अलग–अलग आकार और रंग वाले चार प्रकार के बीज प्राप्त हुए। इसे नीचे तालिका में दिखाया गया है।
F2 पीढ़ी में बीजों के प्रत्येक फीनोटाइप (phenotype) का अनुपात 9:3:3:1 है। यह डाईहाइब्रिड अनुपात कहलाता है।
मेंडल के वंशानुक्रम के दूसरे नियम के अनुसारः जब वंशानुक्रम में एक ही समय पर में गुणों के एक से अधिक युग्मों का संकरण हो,तो गुणों के प्रत्येक युग्म के लिए जिम्मेदार कारक युग्मक में स्वतंत्र रूप से वितरित होते हैं।
संतान में गुण या लक्षण कैसे प्रेषित होते हैं?
यौन प्रजनन की प्रक्रिया के दौरान गुणसूत्रों पर उपस्थित जीन के माध्यम से माता–पिता के गुण या लक्षण उनकी संतान में प्रेषित होते हैं। चूँकि जीन युग्म में काम करते हैं (एक प्रभावी और दूसरा अप्रभावी) और माता व पिता प्रत्येक के गुणसूत्रों के युग्म पर प्रत्येक गुण के लिए जीनों का एक युग्म उपस्थित होता है। इसलिए, नर और मादा युग्मक माता–पिता के जीन युग्मों से प्रत्येक गुण के लिए एक जीन धारण करता है। लेकिन जब निषेचन के दौरान नर और मादा युग्मक मिलते हैं तो युग्मनज (zygote) बनता है, जो नए जीव के रूप में वृद्धि करता है और विकिसत होता है। इसमें माता और पिता दोनों के गुण होते हैं, जो जीन के माध्यम से संचरित होते हैं।
कृपया ध्यान दें: हालांकि संतान अपने माता–पिता से दो जीन या जीन का एक युग्म प्राप्त करती है लेकिन विरासत में मिले दोनों जीनों में से जो जीन प्रमुख होगा, उसी के लक्षण संतान में दिखेंगे।
जीन वंशानुगत गुणों या लक्षणों को कैसे नियंत्रित करते हैं?
जीन गुणसूत्र पर डीएनए का खंड होता है, जो जीव के विशेष लक्षण को नियंत्रित करने के लिए प्रोटीन के निर्माण को कोड (code) करता है। मान लीजिए कि एक पौधे की संतान में 'लंबाई' कहे जाने वाले गुण के लिए जीन है। अब, लंबाई के लिए जीन पौधे की कोशिकाओं को पौधे को बढ़ाने वाले ढेर सारे हार्मोन बनाने का निर्देश देगा और इस कारण पौधा बहुत अधिक बढ़ जाएगा और लंबा हो जाएगा | अगर पौधे में बौनेपन के लिए जिम्मेदार जीन हो, तो पौधे के विकास के लिए जिम्मेदार हार्मोन कम उत्पादित होगा और पौधा छोटा और बौना रह जाएगा। पौधों की तरह ही पशुओं में यौन प्रजनन की प्रक्रिया द्वारा जीनों के माध्यम से माता–पिता से गुण उनके बच्चों में संचरित होते हैं।
संतान में रक्त समूह का निर्धारण कैसे होता है?
एक व्यक्ति में चार रक्त समूह होते हैः ‘A’, ‘B’, ‘AB’ या ‘O’। यह रक्त समूह एक जीन द्वारा नियंत्रित होता है, जिसके तीन अलग–अलग रूप होते हैं और इन्हें IA, IB, IO प्रतीक द्वारा चिन्हित किया जाता है। IA और IB जीन एक दूसरे पर कोई प्रभुत्व नहीं दिखाते। इसलिए, ये सह–प्रभावी (co-dominant) होते हैं। हालांकि, जीन IA और IB दोनों ही जीन IO पर प्रभावी होते हैं। दूसरे शब्दों में रक्त जीन IO जीन IA और IB के संबंध में अप्रभावी होता है।
हालांकि रक्त के लिए जीन के तीन रूप (जिन्हें ‘एलील’- alleles कहते हैं) होते हैं लेकिन किसी भी व्यक्ति में इनमें से केवल दो हो सकते हैं। इसलिए, किसी व्यक्ति का रक्त समूह जीन के कौन से दो रूप उसमें मौजूद हैं, पर निर्भर करता है।
(i) अगर जीनोटाइप (जीन संयोजन) IA IA है, तो व्यक्ति का रक्त समूह ‘A’ होगा और अगर जीनोटाइप IA IO हो, तब भी व्यक्ति का रक्त समूह ‘A’ होगा ( क्योंकि IO गौण जीन है)।
(ii) अगर जीनोटाइप (genotype) (जीन संयोजन) IB IB है, तो व्यक्ति का रक्त समूह ‘B’ होगा और अगर जीनोटाइप IB IO तब भी व्यक्ति का रक्त समूह ‘B’ होगा ( क्योंकि IO गौण जीन है)।
(iii) अगर जीनोटाइप IA IB है, तो व्यक्ति का रक्त समूह ‘AB’ होगा।
(iv) अगर जीनोटाइप IO IO है, तो व्यक्ति का रक्त समूह ‘O’ होगा।
Image courtesy: www.med.stanford.edu
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