रियासती विभाग की स्थापना
इस मसले को हल करने के लिया लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 5 JULY 1947 को रियासती विभाग की स्थापना की |
इस रियासत विभाग की अध्यक्षता – सरदार वल्लभ भाई पटेल
और सचिव – वी. पी. मेनन
राजस्थान का एकीकरण
एकीकरण से पूर्व की स्तिथि
Ø स्वतंत्रता से पूर्व भारत में 565 देशी रियासतें थी |
Ø राजस्थान में 19 देसी रियासतें, 3 ठिकाने ( नीमराणा , कुशल्गढ़ और लावा ) व एक केन्द्रशासित प्रदेश अजमेर-मेरवाड़ा था |
Ø 1945 में ब्रिटेन में क्लीमेंट एटली के नेत्रत्व में लेबर पार्टी की सरकार बनीं | इससे पहले चर्चिल ( कंजरवेटिव पार्टी ) की सरकार थी |
Ø ब्रिटेन की संसद ने 16 जुलाई 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया |
Ø इस अधिनियम के फलस्वरूप 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रजी दासता से मुक्त हो जायगा परन्तु.....
Ø इस भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम की 8 वीं धारा ने पुन: संकट ग्रस्त कर दिया क्योकिं इस धारा के अनुसार “ ब्रिटिश सरकार की भारतीय देसी रियासतों पर स्थापित सत्ता समाप्त कर यह सर्वोचता देसी रियासतों को दे दी जायगी |” अर्थात देसी रियासते खुद निर्णय करेंगी कि वे पाकिस्तान में मिले या भारत में मिले या अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखे | यदि ऐसा होता तो आज भारत अनेक छोटे छोटे टुकडों में होता |
Ø इस मसले को हल करने के लिया लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 5 JULY 1947 को रियासती विभाग की स्थापना की |
इस रियासत विभाग की अध्यक्षता – सरदार वल्लभ भाई पटेल
और सचिव – वी. पी. मेनन
कुछ महत्वपूर्ण जानकारी
Ø राजस्थान का एकीकरण सात चरणों में सम्पन्न हुआ
Ø एकीकरण का श्रेय – सरदार वल्लभ भाई पटेल
Ø एकीकरण का प्रारम्भ 18 मार्च 1948 से होकर 1 नवम्बर 1956 को पूर्ण हुआ |
Ø एकीकरण में 8 वर्ष 7 माह 14 दिन का समय लगा |
Ø स्वतंत्रता से पूर्व राजस्थान में 19 रियासतें, 3 ठिकानें (नीमराणा, कुशलगढ़, लावा) और एक केन्द्र शासित प्रदेश अजमेर-मेरवाड़ा था |
नीमराणा - अलवर में
कुशलगढ़ – बाँसवाड़ा में
लावा – टोंक में था |
Ø स्वतंत्रता से पूर्व पुरे भारत में 565 देसी रियासतें थी जिसमे से 19 राजस्थान में थी |
Ø 5 जुलाई 1947 को रियासती सचिवालय की स्थापना सरदार वल्बभ भाई पटेल की अध्यक्षता में की गई व इसके सचिव वी.पी. मेनन को बनाया गया |
Ø जोधपुर का शासक हणूत सिंह पकिस्तान में मिलना चाहता था | लेकिन वी.पी. मेनन और लार्ड माउन्टबैटन ने बड़ी चतुराई से भारत में शामिल होने के लिए राजी कर लिया |
Ø बाँसवाड़ा के महारावल चन्द्रवीर सिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर करते समय कहा कि “मैं अपने डेथ वारंट पर हस्ताक्षर कर रहा हूँ” |
रियासतों के बारें में कुछ विशेष जानकरी
Ø क्षेत्रफल की दृष्टी से सबसे बड़ी रियासत – जोधपुर
Ø क्षेत्रफल की दृष्टी से सबसे छोटी रियासत – शाहपुरा
Ø जनसंख्या की दृष्टी से सबसे बड़ी रियासत – जयपुर
Ø जनसंख्या की दृष्टी से सबसे छोटी रियासत – शाहपुरा
Ø सबसे प्राचीन रियासत – मेवाड़ (उदयपुर)
Ø सबसे नवीन और अंतिम रियासत – झालावाड़ (एक मात्र अंग्रेजो द्वारा निर्मित रियासत)
Ø एक मात्र मुस्लिम रियासत – टोंक
Ø जाटों की रियासत – भरतपुर और धोलपुर(अन्य रियासतें राजपूतों की थी )
Ø एकीकरण के अन्त में शामिल होने वाली रियासत – सिरोही
एकीकरण के सात चरण
प्रधानमंत्री याद रखने की शोर्ट ट्रिक – शोभा गोकुलमणि हीरा ही हीरा मोहन करें
राज प्रमुख याद रखने की शोर्ट ट्रिक – उदय होकर भीभु मानें
उद्घाटनकर्ता याद रखने की शोर्ट ट्रिक - NNPS
1. प्रथम चरण (मत्स्य संघ) :-
स्थापना- 18 मार्च 1948
राजधानी – अलवर
सम्मलित रियासतें -- (ABCD) अलवर, भरतपुर, करौली, धौलपुर (नीमराणा ठिकाना)
उद्घाटनकर्ता – एन. वी. गाडगिल
प्रधानमंत्री – शोभाराम कुमावत (अलवर से)
राजप्रमुख – उदयभान सिंह (धौलपुर शासक)
नामकरण – के. एम्. मुंशी
2. दितीय चरण (पूर्व राजस्थान) :-
स्थापना – 25 मार्च 1948
राजधानी – कोटा
सम्मलित रियासतें – बूंदी लाडू कुकि को प्रशाद बांटो + झालावाड
उद्घाटनकर्ता – एन. वी. गाडगिल
प्रधानमंत्री – गोकुल लाल ओसवा (शाहपुरा)
राजप्रमुख – भीम सिंह (कोटा)
उपराजप्रमुख – बहादुरसिंह (बूंदी)
3. तृतीय चरण (संयुक्त राजस्थान) :-
स्थापना – 18 अप्रैल 1948
राजधानी – उदयपुर
सम्मलित रियासतें – पूर्व राजस्थान + मेवाड़(उदयपुर)
उद्घाटनकर्ता – पं. जवाहर लाल नेहरु
प्रधानमंत्री – माणिक्यलाल वर्मा (उदयपुर)
राजप्रमुख – भूपाल सिंह (उदयपुर)
उपराजप्रमुख – भीम सिंह (कोटा)
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4. चतुर्थ चरण (वृहद राजस्थान) :-
स्थापना – 30 मार्च 1949 ( राजस्थान दिवस )
राजधानी – जयपुर
रियासतें – संयुक्त राजस्थान + JJJB (जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर)
उद्घाटनकर्ता – सरदार वल्लभ भाई पटेल
प्रधानमंत्री – हीरालाल शास्त्री (जयपुर)
महाराजप्रमुख – भूपाल सिंह (उदयपुर)
राजप्रमुख – मानसिंह दितीय (जयपुर)
उपराजप्रमुख – भीम सिंह (कोटा)
5. पंचम चरण (संयुक्त वृहद राजस्थान) :-
स्थापना – 15 मई 1949
राजधानी – जयपुर
सम्मलित रियासतें – वृहद राज. + मत्स्य संघ
(शंकरदेव राय समिति की सिफारिश से )
प्रधानमंत्री के पद को समाप्त कर मुख्यमंत्री पद का सृजन
प्रथम मुख्यमंत्री – हीरा लाल शास्त्री
राजप्रमुख – मानसिंह दितीय (जयपुर)
6. षष्टम चरण (राजस्थान संघ) :-
स्थापना – 26 जनवरी 1950 (भारत का संविधान लागु)
राजधानी – जयपुर
सम्मलित रियासतें – संयुक्त वृहद राज. + सिरोही (आबू देलवाड़ा छोड़कर)
मुख्यमंत्री – हीरा लाल शास्त्री
राजप्रमुख – मानसिंह दितीय (जयपुर)
(राजस्थान का विधिवत नाम दिया गया)
7. सप्तम चरण (आधुनिक राजस्थान) :-
स्थापना – 1 नवम्बर 1956
राजधानी – जयपुर
राजस्थान संघ में सिरोही का आबू देलवाड़ा भाग, अजमेर-मेरवाड़ा व मध्यप्रदेश का सुनेल टप्पा क्षेत्र जोड़ा गया व झालावाड़ का सिरोंज क्षेत्र मध्यप्रदेश को दे दिया |
मुख्यमंत्री – मोहन लाल सुखाडिया
राजप्रमुख की जगह राज्यपाल पद सृजित
प्रथम राज्यपाल – गुरुमुख निहालसिंह
सातवे सविधान संशोधन द्वारा राज्यों की श्रेणियाँ समाप्त
महत्वपूर्ण तथ्य
Ø वर्तमान राजस्थान का स्वरूप 1 नवम्बर 1956 को अस्तित्व में आया |
Ø राजस्थान के गठन के पश्चात हीरा लाल शास्त्री राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री बने |
Ø राज्य की 160 सदस्य प्रथम विधान सभा का गठन 29 फरवरी 1952 को हुआ |
Ø टीकाराम पालीवाल राज्य के प्रथम निर्वाचित लोकतांत्रिक सरकार के मुख्यमंत्री बने |
Ø नरोतम लाल जोशी को विधानसभा का प्रथम अध्यक्ष चुना गया |
Ø अजमेर-मेरवाड़ा सी श्रेणी का राज्य था जिसकी अलग विधानसभा धार सभा थी तथा हरिभाऊ उपाध्याय वहाँ के मुख्यमंत्री थे |
Ø नवगठित राजस्थान में 25 जिले बनाए गये जिन्हें पाँच संभागो (जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, बीकानेर व कोटा) में विभाजित किया गया |
Ø 1 नवम्बर 1956 को फलज अली की अध्यक्षता में राज्य का पुनर्गठन किया गया और अजमेर-मेरवाड़ा क्षेत्र भी राजस्थान में मिला दिया गया |
Ø अजमेर राज्य का 26 वाँ जिला बना व जयपुर संभाग का नाम बदल कर अजमेर संभाग कर दिया गया |
Ø 1 नवम्बर 1956 को सरदार गुरुमुख निहालसिंह को राज्य का प्रथम राज्यपाल नियुक्त किया गया |
Ø अप्रेल 1962 में संभागीय व्यवस्था समाप्त कर दी गयी |
Ø 15 अप्रेल 1962 को धौलपुर राज्य का 27 वाँ जिला बनाया गया |
Ø 26 जनवरी 1987 को हरिदेव जोशी की सरकार ने राज्य को 6 संभागों जयपुर, अजमेर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, बीकानेर में बाँट कर संभागीय व्यस्था पुन: शुरू की |
Ø 10 अप्रेल 1991 को बारां, दौसा और राजसमंद जिले बनाए गये |
Ø 12 अप्रेल 1994 को हनुमानगढ़ 31वाँ जिला बना |
Ø 19 जुलाई 1997 को करौली 32वाँ जिला बना |
Ø 26 जनवरी 2008 को परमेशचंद कमेटी की सिफारिश पर प्रतापगढ़ 33वाँ जिला बना|
Ø राज्य के सातवें संभाग के रूप में भरतपुर संभाग के निर्माण के अधिसूचना 4 जून 2005 को जारी की गई जिसमे करौली व सवाईमाधोपुरम, कोटा संभाग से व भरतपुर व धौलपुर जयपुर संभाग से शामिल किये गये |
लोकनाट्यों का लोकजीवन से अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। यही कारण है कि लोक से संबंधित उत्सवों, अवसरों तथा मांगलिक कार्यों के समय इनका अभिनय किया जाता है। विवाह के अवसर पर अनेक जातियों में यह प्रथा है कि स्त्रियाँ बारात विदा हो जाने पर किसी स्वाँग या साँग का अभिनय प्रस्तुत करती हैं जिसे भोजपुरी प्रदेश में डोमकछ कहते हैं।
लोकनाट्यों की भाषा बड़ी सरल तथा सीधी सादी होती है जिसे कोई भी अनपढ़ व्यक्ति बड़ी आसानी से समझ सकता है। जिस प्रदेश में लोकनाट्यों का अभिनय किया जाता है, नट लोग वहाँ की स्थानीय बोली का ही प्रयोग करते हैं। ये लोग अभिनय के समय गद्य का ही प्रयोग करते हैं। परंतु बीच-बीच में गीत भी गाते जाते हैं। लोकनाट्यों के संवाद बहुत छोटे तथा सरस होते हैं। लंबे कथोपकथनों का इनमें नितांत अभाव होता है। लंबे संवादों को सुनने के लिए ग्रामीण दर्शकों में धैर्य नहीं होता। अत: नाटकीय पात्र संक्षिप्त संवादों का ही प्रयोग करते हैं।
लोकनाट्यों का कथानक प्राय: ऐतिहासिक, पौराणिक, या सामाजिक होता है। धार्मिक कथावस्तु को लेकर भी अनेक नाटक खेले जाते हैं। बंगाल के लोकनाट्य जात्रा और कीर्तन का आधार धार्मिक आख्यान होता है। राजस्थान में अमरसिंह राठौर की ऐतिहासिक गाथा का अभिनय किया जाता है। केरल प्रदेश में प्रचलित यक्षगान नामक लोकनाट्य का कथानक प्राय: पौराणिक होता है। उत्तरप्रदेश की रामलीला और रासलीला की पृष्ठभूमि धार्मिक है। नौटंकी और स्वाँग की कथावस्तु समाज से अधिक संबंध रखती है।
लोकनाट्यों में प्राय: पुरुष ही स्त्री पात्रों का कार्य किया करते हैं परंतु व्यवसायी नाटक मंडलियाँ साधारण जनता को आकृष्ट करने के लिए सुंदर लड़कियों का भी इस कार्य के लिए उपयोग करती हैं। लोकनाट्यों के पात्र अपनी वेशभूषा की अपेक्षा अपने अभिनय द्वारा ही लोगों को आकृष्ट करने की चेष्टा करते हैं। इन नाटकों के अभिनय में किसी विशेष प्रकार के प्रसाधन, अलंकार या बहुमूल्य वस्त्र आदि की आवश्यकता नहीं होती। कोयला, काजल, खड़िया आदि देशी प्रसाधनों से मुख को प्रसाधित कर तथा उपयुक्त वेशभूषा धारण कर पात्र रंगमंच पर आते हैं। कुछ पात्र प्रसाधन के लिए अब पाउडर और क्रीम का भी प्रयोग करने लगे हैं।
लोकनाट्य खुले हुए रंगमंच पर खेले जाते हैं। दर्शकगण मैदान में आकाश के नीचे बैठकर नाटक का अभिनय देखते हैं। किसी मंदिर के सामने का ऊँचा चबूतरा या ऊँचा टीला ही रंगमंच के लिए प्रयुक्त किया जाता है। कहीं कहीं काठ के ऊँचे तख्तों का बिछाकर मंच तैयार किया जाता है। इन रंगमंचों पर परदे नहीं होते। अत: किसी दृश्य की समाप्ति पर कोई परदा नहीं गिरता। नाटक के पात्रगण किस पेड़ या दीवाल की आड़ में बैठकर अपना प्रसाधन किया करते हैं, जो उनके लिए ग्रीनरूप का काम करता है।
रियासती विभाग की स्थापना- जुलाई 1947 में की गई। रियासती विभाग का अध्यक्ष- सरदार वल्लभ भाई पटेल. रियासती विभाग का सदस्य सचिव- वी. पी. मेनन. अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् का अध्यक्ष पण्डित जवाहर लाल नेहरू का बनाया गया।।
Riyasti vibhag kha pr h
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