अभिलेखागार का महत्व
अभिलेखागार सार्वजनिक अथवा वैयक्तिक, राजकीय अथवा अन्य संस्था संबंधी अभिलेखों, मानचित्रों, पुस्तकों आदि का व्यवस्थित निकाय और उसका संरक्षागार। अधिकतर ये अभिलेख राज्यों, साम्राज्यों, स्वतंत्र नगरों, संस्थाओं अथवा विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा महत्वपूर्ण कार्यों के संपादन के लिए प्रस्तुत किए जाते रहे हैं, कालांतर में जिन्हें ऐतिहासिक महत्व प्रदान कर दिया है। प्रशासन की घोषणाएँ, फर्मान, संविधानों की मूल प्रतियाँ, संधियों सुलहनामों के अहदनामें, राष्ट्रों के पारस्परिक संबंधों के मान और सीमाओं के उल्लेख आदि सभी प्रकार के अभिलेख इस श्रेणी में आते हैं और राष्ट्रीय अथवा अंतर्राष्ट्रीय अभिलेखागारों में संरक्षित और सुरक्षित किए जाते हैं। पहले इनका उपयोग प्राय: संबंधित संस्थाओं का निजी था, पर अब ये ऐतिहासिक अध्ययन के लिए प्रयुक्त अथवा वादप्रतिवादों के संदर्भमें भी प्रमाण के लिए उपस्थित किए जा सकते हैं। संधियाँ तो राष्ट्रों को अपने पूर्वव्यवहारों ओर अहदनामों के अनुकूल आचरण करने को बाध्य करती हैं।
अभिलेखागार अथवा अभिलेख निकाय की राष्ट्रीय अथवा प्रशासन विभागीय व्यवस्था नि:संदेह आधुनिक हे जो वस्तुत: नियोजित रूप में फ्रांसीसी राज्यक्रांति के बाद और मुख्यत: उसके परिणामस्वरूप संगठित हुई है। किंतु अभिलेखागारों की संस्था प्राचीन काल में भी सर्वथा अनजानी न थी। ईसा से सैकड़ों साल पहले राजाओं, सम्राटों की दिग्विजयों, राजकीय प्रशासकीय घोषणाओं, फर्मानों, पारस्परिक आचरण व्यवहारों के संबंध में जो उनके अभिलेख मंदिरों, मकबरों की दीवारों, शिलाओं, स्तंभों, ताम्रपत्रों आदि पर खुदे मिलते हैं वे भी अभिलेखागार की व्यवस्था की ओर संकेत करते हैं। इस प्रकार के महत्व के अभिलेख प्राचीन काल में खोज में अभिरुचि रखनेवाले अनेक पुराविद सम्राटों द्वारा एकत्र कर उनके अभिलेखागारों में सदियों, सहस्राब्दियों संरक्षित रहे हैं। ईसा से पहले सातवीं सदी (638-33ई.पू.) में सम्राट् असुरबनिपाल ने अपनी राजधानी निनेवे में लाखों ईटों पर कीलनुमा अक्षरों में खुदे अभिलेखों को एकत्र कर अपना इतिहासप्रसिद्ध अभिलेखागार संगठित किया था जिसकी संप्राप्ति और अध्ययन से प्राचीन जगत् के इतिहास पर प्रभूत प्रकाश पड़ा है। इसी अभिलेखागार में प्राय: तृतीय सहस्राब्दी ई.पू. में लिखे संसार के पहले महाकाव्य 'गिल्गमेश' की मूल प्रति उपलब्ध हुई है। खत्ती रानी का मिस्र के फ़राऊन के साथ युद्धविरोधी पत्रव्यवहार आज भी उपलब्ध है जो प्राचीनतम संरक्षित अभिलेख के रूप में पुराकालीन अंतर्राष्ट्रीय संबंध का प्रमाण प्रस्तुत करता है और ई.पू.ल. द्वितीय सहस्राब्दी के मध्य का है।
अभिलेखों के राष्ट्रीय अभिलेखागारों में आधुनिक ढंग से प्रशासकीय संरक्षण की व्यवस्था पहली बार फ्रांसीसी राज्यक्रांति के समय हुई जब फ्रांस में (1) राष्ट्रीय और (2) विभागीय ('नात्सिओन' तथा 'दपार्तमाँ') अभिलेखागार (आर्कीव) क्रमश: 1789 और 1796 में संगठित हुए। बाद में इसी संगठन के आधार पर बेल्जियम, हालैंड, प्रशा, इंग्लैंड आदि ने भी अपने अपने अभिलेखागार व्यवस्थित किए। इंग्लैंड और ब्रिटिश राष्ट्रसंघ में अभिलेखों और अभिलेखों और अभिलेखागारों की लाक्षणिक संज्ञा 'रेकर्ड' तथा 'रेकर्ड आफ़िस' है।
इंग्लैंड ने 1838 में ऐक्ट बनाकर देश के विविध स्वतंत्र अभिलेखसंग्रहों का केंद्रीकरण कर उनको लंदन में एकत्र कर दिया। इस दिशा में विशेषत: दो प्रकार की व्यवस्था विविध राष्ट्रों में प्रचलित है। कुछ ने तो सारे प्रदेशीय अभिलेखागारों के अभिलेखों को राजधानी में सुरक्षित कर उन्हें बंद कर दिया है। और कुछ ने केंद्रीकरण की नीति अपनाकर स्थानीय दृष्टि से महत्वूर्ण अध्ययन और उपयोग के निमित्त अभिलेखों को यथास्थान प्रदेश में भेज दिया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने ऐसे केंद्रीय अभिलेखों को भी प्रदेश में भेज दिया है जिनका संबंध उन प्रदेशों के इतिहास, राजनीति या व्यापारव्यवस्था से रहा है। कुछ राष्ट्रों ने एक तीसरी नीति अपनाकर केंद्र और प्रदेशों के अभिलेखागारों में तत्संबंधी महत्व की दृष्टि से अभिलेखों को बाँटकर सुरक्षित किया है। अनेक अभिलेखों की प्रतिलिपियाँ बनाकर यथावश्यक स्थानों में रखने की व्यवस्था है। यह व्यवस्था विशेषकर दो अथवा अधिक राष्ट्रों के पारस्परिक व्यवहार संबंधी अभिलेखों की रक्षा के लिए होती है। इस संबंध में अंतर्राष्ट्रीय अभिलेखागार भी संगठित किए गए हैं।
ब्रिटिश शासनकाल में भारत में भी महत्व के 'रेकर्ड' संगृहीत और संरक्षित करने की योजना स्वीकृत हुई और आज इस देश में भी राष्ट्रीय अभिलेखागार दिल्ली में संगठित है।
देश विभाजन के बाद जिन अभिलेखों का संबंध भारत और पाकिस्तान दोनों से है उनकी प्रतिलिपियाँ पाकिस्तान ने बनवा ली हैं। विस्तृत विवरण के लिए देखिए 'अभिलेखालय'।
अभिलेखागारों की व्यवस्था और अभिलेखों की सुरक्षा विशेष विधि से की जाती है। इसके लिए सर्वत्र विशेषज्ञ नियुक्त हैं। अभिलेखों का नियमन, उनका विभाजन और वर्गीकरण आज एक विशिष्ट विज्ञान ही बन गया है। इस दिशा में अमरीकी संयुक्त राज्य ने विशेष प्रगति की है। राज्य अथवा संस्था अभिलेखों की सुरक्षा की उत्तरदायी होती है। अध्ययनादि के लिए उनके उत्तरोत्तर सार्वजनिक उपयोग की व्यवस्था आधुनिक अभिलेखागार आंदोलन का प्रधान लक्ष्य है।
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