हिंदू रीति रिवाज के बाद मौत 13 दिन
अंतिम संस्कार
हिन्दू धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कार बताए गए हैं। इनमें आखिरी यानी सोलहवां संस्कार है मृत्यु के बाद होने वाले संस्कार जिनमें व्यक्ति की अंतिम विदाई, दाह संस्कार और आत्मा को सद्गति दिलाने वाले रीति रिवाज शामिल हैं। अंतिम संस्कार का शास्त्रों में बहुत दिया गया है क्योंकि इसी से व्यक्ति को परलोक में उत्तम स्थान और अगले जन्म में उत्तम कुल परिवार में जन्म और सुख प्राप्त होता है। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि जिस व्यक्ति का अंतिम संस्कार नहीं होता है उनकी आत्मा मृत्यु के बाद प्रेत बनकर भटकती है और तरह-तरह के कष्ट भोगती है। हिंदू धर्म में मृत्यु को जीवन का अंत नहीं माना गया है। मृत्यु होने पर यह माना जाता है कि यह वह समय है, जब आत्मा इस शरीर को छोड़कर पुनः किसी नये रूप में शरीर धारण करती है, या मोक्ष प्राप्ति की यात्रा आरंभ करती है । किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद मृत शरीर का दाह-संस्कार करने के पीछे यही कारण है। मृत शरीर से निकल कर आत्मा को मोक्ष के मार्ग पर गति प्रदान की जाती है। शास्त्रों में यह माना जाता है कि जब तक मृत शरीर का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है तब तक उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। शास्त्रों के अनुसार किये जाने वाले सोलह संस्कारों में से अंतिम संस्कार दाह संस्कार है। यह संस्कार दो प्रकार से किया जाता है
1. जब मृत शरीर उपलब्ध हो तो |
उसका पूरी विधि विधान से अग्निदाह करना चाहिए|
2. जब किसी व्यक्ति की मृत्यु भूख से, हिंसक प्राणी के द्वारा, फांसी के फंदे, विष से, अग्नि से, आत्मघात से, गिरकर, रस्सी बंधन से, जल में रखने से, सर्प दंश से, बिजली से, लोहे से, शस्त्र से या विषैले कुत्ते के मुख स्पर्श से हुई हो तो इसे दुर्मरण कहा जाता है। इन सभी स्थितियों में मृत्यु को सामान्य नहीं माना जाता और मृत्यु पश्चात् दाह संस्कार के लिए पुतला दाह संस्कार विधि का प्रयोग किया जाता है।
सूर्यास्त के बाद नहीं होता दाह संस्कार सूर्यास्त के बाद कभी भी दाह संस्कार नहीं किया जाता। यदि मृत्यु सूर्यास्त के बाद हुई है तो उसे अगले दिन सुबह के समय ही जलाया जा सकता है। माना जाता है कि सूर्यास्त के बाद दाह संस्कार करने से मृतक व्यक्ति की आत्मा को परलोक में कष्ट भोगना पड़ता है और अगले जन्म में उसके किसी अंग में दोष हो सकता है।
छेद वाले घड़े में जल भरकर परिक्रमा की जाती है दाह-संस्कार के समय एक छेद वाले घड़े में जल लेकर चिता पर रखे शव की परिक्रमा की जाती है और अंत में पीछे की और पटककर फोड़ दिया जाता है। इस क्रिया को मृत व्यक्ति की आत्मा का उसके शरीर से मोह भंग करने के लिए किया जाता है। परन्तु इस क्रिया में एक गूढ़ दार्शनिक रहस्य भी छिपा हुआ है। इसका अर्थ है कि जीवन एक छेद वाले घड़े की तरह है जिसमें आयु रूपी पानी हर पल टपकता रहता है और अंत में सब कुछ छोड़कर जीवात्मा चली जाता है और घड़ा रूपी जीवन समाप्त हो जाता।
मृत व्यक्ति के पुरुष परिजनों का पिंडदान होता है दाह-संस्कार के समय मृत व्यक्ति के पुरुष परिजनों का सिर मुंडाया जाता है। यह मृत व्यक्ति के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का साधन तो है ही, इससे यह भी अर्थ लगाया जाता है कि अब उनके ऊपर जिम्मेदारी आ गई है।
पिंड दान तथा श्राद्ध दाह-संस्कार के बाद तेरह दिनों तक व्यक्ति का पिंडदान किया जाता है। इससे मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति प्राप्त होती है तथा उसका मृत शरीर और स्वयं के परिवार से मोह भंग हो जाता है।
मृत्यु उपरांत सांस्कारिक क्रियाएं प्रश्नः घर में किसी व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत क्या-क्या सांस्कारिक क्रियाएं की जानी चाहिए तथा किन-किन बातों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए? की जाने वाली क्रियाओं के पीछे छिपे तथ्य, कारण व प्रभाव क्या है? तेरहवीं कितने दिन बाद होनी चाहिए? मृत्यु पश्चात् संस्कार जब भी घर में किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तब हिंदू मान्यता के अनुसार मुख्यतः चार प्रकार के संस्कार कर्म कराए जाते हैं -
मृत्यु के तुरत बाद,
चिता जलाते समय,
तेरहवीं के समय व
बरसी (मृत्यु के एक वर्ष बाद) के समय।
यदि मरण-वेला का पहले आभास हो
यदि मरण-वेला का पहले आभास हो जाए तो- आसन्नमृत्यु व्यक्ति को चाहिए कि वह समस्त बाह्य पदार्थों और कुटुंब मित्रादिकों से चित्त हटाकर परब्रह्म का ध्यान करे। गीता में कहा है- यदि व्यक्ति मरण समय भी भगवान के ध्यान में लीन हो सके तो भी वह श्रेष्ठ गति को प्राप्त करता है। इस समय कुटुम्बियों और साथियों का कत्र्तव्य है कि वे आसन्न-मृत्यु के चारों ओर आध्यात्मिक वातावरण बनावें। जो दान करना चाहें- अन्नदान, द्रव्यदान, गोदान, गायत्री जपादि यथाशक्ति यथाविधि उस व्यक्ति के हाथ से करावें अथवा उसकी ओर से स्वयं करें।
गीता के अद्धाय तो पढना चाहिए अगर वो न पढ़ सके तो परिजनों व् साथियो तो पढ़ कर सुनाना चाहिए और गीता के श्लोक नही पता हो तो उनके कान में गीता बोल देना चाहिए.
गंगा जल पिलाना चाहिए एवं तुलसी पत्ता खिलाना चाहिए अगर न खा पाय तो मुह में रख देना चाहिए ।
पहला दिन
हिंदू धर्म में मान्यता है कि मृत्यु के पश्चात व्यक्ति स्वर्ग चला जाता है अथवा अपना शरीर त्याग कर दूसरे शरीर (योनि) में प्रवेश कर जाता है। मृत्यु के उपरांत होने वाली सर्वप्रथम क्रियाएं सर्वप्रथम यथासंभव मृतात्मा को गोमूत्र, गोबर तथा तीर्थ के जल से, कुश व गंगाजल से स्नान करा दें अथवा गीले वस्त्र से बदन पोंछकर शुद्ध कर दें। समयाभाव हो तो कुश के जल से धार दें। नई धोती या धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहना दें। तुलसी की जड़ की मिट्टी और इसके काष्ठ का चंदन घिसकर संपूर्ण शरीर में लगा दें। गोबर से लिपी भूमि पर जौ और काले तिल बिखेरकर कुशों को दक्षिणाग्र बिछाकर मरणासन्न को उŸार या पूर्व की ओर लिटा दें। घी का दीपक प्रज्वलित कर दें। मरणासन्न व्यक्ति को आकाशतल में, ऊपर के तल पर अथवा खाट आदि पर नहीं सुलाना चाहिए। अंतिम समय में पोलरहित नीचे की भूमि पर ही सुलाना चाहिए। मृतात्मा के हितैषियों को भूलकर भी रोना नहीं चाहिए क्योंकि इस अवसर पर रोना प्राणी को घोर यंत्रणा पहंुचाता है। रोने से कफ और आंसू निकलते हैं इन्हें उस मृतप्राणी को विवश होकर पीना पड़ता है, क्योंकि मरने के बाद उसकी स्वतंत्रता छिन जाती है। श्लेष्माश्रु बाधर्वेर्मुक्तं प्रेतो भुड्.क्ते यतोवशः। अतो न रोदितत्यं हि क्रिया कार्याः स्वशक्तितः।। (याज्ञवल्क्य स्मृति, प्रा.1/11, ग. पु., प्रेतखण्ड 14/88) मृतात्मा के मुख में गंगाजल व तुलसीदल देना चाहिए। मुख में शालिग्राम का जल भी डालना चाहिए। मृतात्मा के कान, नाक आदि 7 छिद्रों में सोने के टुकड़े रखने चाहिए। इससे मृतात्मा को अन्य भटकती प्रेतात्माएं यातना नहीं देतीं। सोना न हो तो घृत की दो-दो बूंदें डालें। अंतिम समय में दस महादान, अष्ट महादान तथा पंचधेनु दान करना चाहिए। ये सब उपलब्ध न हों तो अपनी के शक्ति अनुसार निष्क्रिय द्रव्य का उन वस्तुओं के निमिŸा संकल्प कर ब्राह्मण को दे दें। पंचधेनु मृतात्मा को अनेकानेक यातनाओं से भयमुक्त करती हैं। पंचधेनु निम्न हैं- ऋणधेनु: मृतात्मा ने किसी का उधार लिया हो और चुकाया न हो, उससे मुक्ति हेतु। पापापनोऽधेनु: सभी पापों के प्रायश्चितार्थ । उत्क्रांति धेनु: चार महापापों के निवारणार्थ। वैतरणी धेनु: वैतरणी नदी को पार करने हेतु। मोक्ष धेनु: सभी दोषों के निवारणार्थ व मोक्षार्थ। श्मशान ले जाते समय शव को शूद्र, सूतिका, रजस्वला के स्पर्श से बचाना चाहिए। (धर्म सिंधु- उŸारार्द्ध) यदि भूल से स्पर्श हो जाए तो कुश और जल से शुद्धि करनी चाहिए। श्राद्ध में दर्भ (कुश) का प्रयोग करने से अधूरा श्राद्ध भी पूर्ण माना जाता है और जीवात्मा की सद्गति निश्चत होती है, क्योंकि दर्भ व तिल भगवान के शरीर से उत्पन्न हुए हैं। ‘‘विष्णुर्देहसमुद्भूताः कुशाः कृष्णास्विलास्तथा।। (गरुड़ पुराण, श्राद्ध प्रकाश) श्राद्ध में गोपी चंदन व गोरोचन की विशेष महिमा है। श्राद्ध में मात्र श्वेत पुष्पों का ही प्रयोग करना चाहिए, लाल पुष्पों का नहीं। ‘‘पुष्पाणी वर्जनीयानि रक्तवर्णानि यानि च’।। (ब्रह्माण्ड पुराण, श्राद्ध प्रकाश) श्राद्ध में कृष्ण तिल का प्रयोग करना चाहिए, क्यांेकि ये भगवान नृसिंह के पसीने से उत्पन्न हुए हैं जिससे प्रह्लाद के पिता को भी मुक्ति मिली थी। दर्भ नृसिंह भगवान की रुहों से उत्पन्न हुए थे। देव कार्य में यज्ञोपवीत सव्य (दायीं) हो, पितृ कार्य में अपसव्य (बायीं) हो और ऋषि-मुनियों के तर्पणादि में गले में माला की तरह हो। श्राद्ध में गंगाजल व तुलसीदल का बार-बार प्रयोग करें। श्राद्ध में संस्कार हेतु बडे़ या छोटे पुत्र को (पिता हेतु बड़ा व माता हेतु छोटा) क्रिया पर बिठाया जाता है। मृतक का कोई पुत्र न हो, तो पुत्री, दामाद या फिर पत्नी भी क्रिया में बैठ सकती है। मृतक को उसके रिश्तेदार व सगे संबंधी सिर पर शीशम का तेल लगाकर पानी से नहलाते हैं। प्राण छोड़ते समय: पुत्रादि उत्तराधिकारी पुरुष गंगोदक छिड़कंे। प्राण निकल जाने पर वह अपनी गोद में मृतक को सिर रख उसके मुख, नथुने, दोनों आंखों और कानों में घी बूदें डाल, वस्त्र में ढंक, कुशाओं वाली भूमि पर तिलों को बिखेर कर उत्तर की ओर सिर करके लिटा दें। इस समय वह सब तीर्थों का ध्यान करता हुआ, मृतक को शुद्ध जल से स्नान करावे। फिर उस पर चंदन-गंध आदि का लेपन कर मुख में स्नान करावे। फिर उस पर चंदन-गंध आदि का लेपन कर मुख में पंचरत्न, गंगाजल, और तुलसी धरे तथा शुद्ध वस्त्र (कफन) में लपेट कर अर्थी पर रख भली भांति बांध दे। अर्थी को कन्धा देकर शमशान तक पहुचाया जाता है
तुलसीकाष्ठ से अग्निदाह करने से मृतक की पुनरावृत्ति नहीं होती। तुलसीकाष्ठ दग्धस्य न तस्य पुनरावृŸिाः। (स्कन्द पुराण, पुजाप्र) कर्ता को स्वयं कर्पूर अथवा घी की बŸाी से अग्नि तैयार करनी चाहिए, किसी अन्य से अग्नि नहीं लेनी चाहिए। दाह के समय सर्वप्रथम सिर की ओर अग्नि देनी चाहिए। शिरः स्थाने प्रदापयेत्। (वराह पुराण) शवदाह से पूर्व शव का सिरहाना उŸार अथवा पूर्व की ओर करने का विधान है। वतो नीत्वा श्मशानेषे स्थापयेदुŸारामुरवम्। (गरुड़ पुराण) कुंभ आदि राशि के 5 नक्षत्रों में मरण हुआ हो तो उसे पंचक मरण कहते हैं। नक्षत्रान्तरे मृतस्य पंचके दाहप्राप्तो। पुत्तलविधिः।। यदि मृत्यु पंचक के पूर्व हुइ हो और दाह पंचक में होना हो, तो पुतलों का विधान करें - ऐसा करने से शांति की आवश्यकता नहीं रहती। इसके विपरीत कहीं मृत्यु पंचक में हुई हो और दाह पंचक के बाद हुआ हो तो शांति कर्म करें। यदि मृत्यु भी पंचक मंे हुई हो और दाह भी पंचक में हो तो पुतल दाह तथा शांति दोनों कर्म करें।
प्रेत के कल्याण के लिए तिल के तेल का अखंड दीपक 10 दिन तक दक्षिणाभिमुख जलाना चाहिए |
मुख्य व्यक्ति (उसे कर्ता भी कहा जाता है) अर्थी को श्मशान में रखने के बाद शव-स्नान: दाह-कर्म का अधिकारी पुत्र स्नान करे और शुद्ध वस्त्र (धोती-अंगोछा आदि) धारण कर मृतक के समीप जाये। उसके तीन चक्कर लगाता है व पानी का घड़ा (जो कंधे पर रखा होता है) तोड़ दिया जाता है। घड़े का तोड़ना शरीर से प्राण के जाने का सूचक है। केवल पुरुष मृतक शरीर को चिता में रखते हैं। पुत्र (कर्ता) चिता के तीन चक्कर लगाकर चिता की लकड़ी पर घी डालते हुए लंबे डंडे से अग्नि देता है।
आधी चिता जलने के पश्चात् पुत्र मृतक के सिर को तीन प्रहार कर फोड़ता है। इस क्रिया को कपाल क्रिया कहा जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि पिता ने पुत्र को जन्म देकर जो ब्रह्मचर्य भंग किया था उसके ऋण से पुत्र ने उन्हें मुक्त कर दिया।
उसके बाद नदी के घाट दातुन गड़ा कर सभी शुद्ध होते है और मृत आत्मा की शांति के लिए उस गड़े हुंए दातुन में टिल और जौ के साथ पांच बार पानी देते है. फिर सभी घर लोट आते है
जहां मृतक को अंत समय रखा गया था वहां दीपक जलाकर उसकी तस्वीर रखकर शोक मनाया जाता है। मृत आत्मा के अच्छाई के बारे में बात चित करते है |
प्रथम दिन खरीदकर अथवा किसी निकट संबंधी से भोज्य सामग्री प्राप्त करके कुटुंब सहित भोजन करना चाहिए। ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करना चाहिए। भूमि पर शयन करना चाहिए। किसी का स्पर्श नहीं करना चाहिए। सूर्यास्त से पूर्व एक समय भोजन बनाकर करना चाहिए। भोजन नमक रहित करना चाहिए। भोजन मिट्टी के पात्र अथवा पत्तल में करना चाहिए। पहले प्रेत के निमित्त भोजन घर से बाहर रखकर तब स्वयं भोजन करना चाहिए। किसी को न तो प्रणाम करें, न ही आशीर्वाद दें। देवताओं की पूजा न करें।
दूसरा दिन
पहले दिन की तरह दूसरे दिन बी सुबह स्नान के लिए उसी घाट में जाते है और सभी परिवार जान स्नान कर के टिल और जौ के साथ पांच बार पानी डालते है| फिर सभी घर लोट आते है | जहां मृतक को अंत समय रखा गया था वहां दीपक जलाकर उसकी तस्वीर रखकर शोक मनाया जाता है। जहां मृतक को अंत समय रखा गया था वहां दीपक जलाकर उसकी तस्वीर रखकर शोक मनाया जाता है। मृत आत्मा के अच्छाई के बारे में बात चित करते है |
सब्जी में उसी सब्जी को बनाना चाहिए जौ मृत आत्मा को पसंद था|
तीसरा दिन
जहा अग्नि दिए थे वह तीसरे दिन अस्थि संचय करने के पहले उसके पूजा करनी चाहिए फिर अस्थि संचय करके उसे एक साफ पीतल की थल में रख करके सफेद कपडा ढक कर घाट लाना चाहिए फिर अस्थि को एक लाल घड़े में रख कर उसके ढक दे और घाट के पास पीपल के पेड़ के नीचे रख कर उसमे साल भर के लिए यानि 365 बार पानी देना होता है जौ हम तीसरे दिन से सातवे दिन में बराबर बात लेते है | और सातवे दिन तक उस पीपल के पेड़ में पानी देते है | सभी परिवार जान स्नान कर के टिल और जौ के साथ पांच बार पानी डालते है| फिर सभी घर लोट आते है |
उस दिन सदा चावल और बड़ा सब्जी बना कर खाया जाता है जिसमे सभी को एक बड़ा दिया जाता है |
मृत्यु के दिन से 10 दिन तक किसी योग्य ब्राह्मण से गरुड़ पुराण सुनना चाहिए। गरूर पुराण सूर्य अस्त के पहले हो जाना चाहिए | गरूर पुराण को वही करना चाहिए जहा आखरी बार मृत शरीर को जमीन में रखा गया था |
सब्जी में उसी सब्जी को बनाना चाहिए जौ मृत आत्मा को पसंद था|
चौथा दिन
तीसरा दिन की तरह चौथा दिन बी सुबह स्नान के लिए उसी घाट में जाते है और सभी परिवार जान स्नान कर के टिल और जौ के साथ पांच बार पानी डालते है| फिर सभी घर लोट आते है | सभी परिवार जान और साथी गण गरूर पुराण सुनना चाहिए |सब्जी में उसी सब्जी को बनाना चाहिए जौ मृत आत्मा को पसंद था|
पाचवा दिन
चौथा दिन की तरह पाचवा दिन बी सुबह स्नान के लिए उसी घाट में जाते है और सभी परिवार जान स्नान कर के टिल और जौ के साथ पांच बार पानी डालते है| फिर सभी घर लोट आते है | सभी परिवार जान और साथी गण गरूर पुराण सुनना चाहिए |
सब्जी में उसी सब्जी को बनाना चाहिए जौ मृत आत्मा को पसंद था|
छटवा दिन
पाचवा दिन की तरह छटवा दिन बी सुबह स्नान के लिए उसी घाट में जाते है और सभी परिवार जान स्नान कर के टिल और जौ के साथ पांच बार पानी डालते है| फिर सभी घर लोट आते है | सभी परिवार जान और साथी गण गरूर पुराण सुनना चाहिए |
सब्जी में उसी सब्जी को बनाना चाहिए जौ मृत आत्मा को पसंद था|
सातवा दिन
छटवा दिन की तरह सातवा दिन बी सुबह स्नान के लिए उसी घाट में जाते है और सभी परिवार जान स्नान कर के टिल और जौ के साथ पांच बार पानी डालते है| फिर सभी घर लोट आते है | सभी परिवार जान और साथी गण गरूर पुराण सुनना चाहिए |
उस दिन सदा चावल और बड़ा सब्जी बना कर खाया जाता है जिसमे सभी को 2 बड़ा दिया जाता है |
अग्निशांत होने पर स्नान कर गाय का दूध डालकर हड्डियों को अभिसिंचित कर दें। मौन होकर पलाश की दो लकड़ियों से कोयला आदि हटाकर पहले सिर की हड्डियों को, अंत में पैर की हड्डियों को चुन कर संग्रहित कर पंचगव्य से सींचकर स्वर्ण, मधु और घी डाल दें। फिर सुंगधित जल से सिंचित कर मटकी में बांधकर 10 दिन के भीतर किसी तीर्थ में प्रवाहित करें। दशाह कृत्य गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्योपरांत यम मार्ग में यात्रा के लिए अतिवाहिक शरीर की प्राप्ति होती है। इस अतिवाहिक शरीर के 10 अंगों का निर्माण दशगात्र के 10 पिंडों से होता है। जब तक दशगात्र के 10 पिंडदान नहीं होते, तब तक बिना शरीर प्राप्त किए वह आत्मा वायुरूप में स्थित रहती है।
इस बात का ध्यान दे की 365 पानी पूरी हो गई है क्या
आठवाँ दिन
छटवा दिन की तरह आठवाँ दिन बी सुबह स्नान के लिए उसी घाट में जाते है और सभी परिवार जान स्नान कर के टिल और जौ के साथ पांच बार पानी डालते है| फिर सभी घर लोट आते है | सभी परिवार जान और साथी गण गरूर पुराण सुनना चाहिए |
सब्जी में उसी सब्जी को बनाना चाहिए जौ मृत आत्मा को पसंद था|
नावा दिन
आठवाँ दिन की तरह नावा दिन बी सुबह स्नान के लिए उसी घाट में जाते है और सभी परिवार जान स्नान कर के टिल और जौ के साथ पांच बार पानी डालते है| फिर सभी घर लोट आते है | सभी परिवार जान और साथी गण गरूर पुराण सुनना चाहिए |
सब्जी में उसी सब्जी को बनाना चाहिए जौ मृत आत्मा को पसंद था|
दसवा दिन
दसवें दिन घर की शुद्धि की जाती है। परिवार के पुरुष सदस्य सिर मुंडवा लेते हैं। फिर दीपक बुझाकर हवन आदि कर गरुड़ पुराण का पाठ कराया जाता है। इन दसों दिन घर वाले किसी भी सांसारिक कार्यक्रम में, मंदिर में व खुशी के माहौल में हिस्सा नहीं लेते व भोजन भी सात्विक ग्रहण करते हैं।
आज के दिन गंगा गे पुत्र अस्थि को गंगा में विसर्जीत कर देते है |
इसलिए दशगात्र के 10 पिंडदान अवश्य करने चाहिए। इन्हीं पिंडों से अलग अलग अंग बनते हैं। वैसे तो दस दिनों तक प्रतिदिन एक एक पिंड रखने का विधान है, लेकिन समयाभाव की स्थिति में 10 वें दिन ही 10 पिंडदान करने की शास्त्राज्ञा है। शालिग्राम, दीप, सूर्य और तीर्थ को नमस्कारपूर्वक संकल्पसहित पिंडदान करें। पिंड पिंड से बनने संख्या वाले अवयव प्रथम शीरादिडवयव निमिŸा द्वितीय कर्ण, नेत्र, मुख, नासिका तृतीय गीवा, स्कंध, भुजा, वक्ष चतुर्थ नाभि, लिंग, योनि, गुदा पंचम जानु, जंघा, पैर षष्ठ सर्व मर्म स्थान, पाद, उंगली सप्तम सर्व नाड़ियां अष्टम दंत, रोम नवम वीर्य, रज दशम सम्पूर्णाऽवयव, क्षुधा, तृष्णा पिंडों के ऊपर जल, चंदन, सुतर, जौ, तिल, शंख आदि से पूजन कर संकल्पसहित श्राद्ध को पूर्ण करें। संकल्प: कागवास गौग्रास श्वानवास पिपिलिका। तथ्य, कारण व प्रभाव: इस श्राद्ध से मृतात्मा को नूतन देह प्राप्त होती है और वह असद्गति से सद्गति की यात्रा पर आरूढ़ हो जाती है।
दशगात्र के पिंडदान की समाप्ति के बाद मुंडन कराने का विधान है। सभी बंधु बांधवों सहित मुंडन अवश्य कराना चाहिए। तर्पण की महिमा श्राद्ध में जब तक सभी पूर्वजों का तर्पण न हो तब तक प्रेतात्मा की सद्गति नहीं होती है। अतः 10, 11, 12, 13 आदि की क्रियाओं में शास्त्रों के अनुसार तर्पण करें। नदी के तट पर जनेऊ देव, ऋषि, पितृ के अनुसार सव्य और अपसव्य में कुश हाथ में लेकर हाथ के बीच, उंगली व अगूंठे से संपूर्ण तर्पण करें नदी तट के अभाव में ताम्र पात्र में जल, जौ, तिल, पंचामृत, चंदन, तुलसी, गंगाजल आदि लेकर तर्पण करें। तर्पण गोत्र एवं पितृ का नाम लेकर ही निम्न क्रम से करें - पिता दादा परदादा माताÛ दादी परदादी सौतेली मां नाना, परनाना, वृद्ध परनाना, नानी, परनानी, वृद्ध परनानी, चचेरा भाई, चाचा, चाची, स्त्री, पुत्र, पुत्री, मामा, मामी, ममेरा भाई, अपना भाई, भाभी, भतीजा, फूफा, बूआ, भांजा, श्वसुर, सास, सद्गुरु, गुरु, पत्नी, शिष्य, सरंक्षक, मित्र, सेवक आदि। ये सभी तर्पण पितृ तर्पण में आते हैं। सभी नामों से पूर्व मृतात्मा का तर्पण करें। नोट- जो पितृ जिस रूप में जहां-जहां विचरण करते हैं वहां-वहां काल की प्रेरणा से उन्हें उन्हीं के अनुरूप भोग सामग्री प्राप्त हो जाती है। जैसे यदि वे गाय बने तो उन्हें उŸाम घास प्राप्त होती है। (गरुड़ पुराण प्रे. ख.) नारायण बली प्रेतोनोपतिष्ठित तत्सर्वमन्तरिक्षे विनश्यति। नारायणबलः कार्यो लोकगर्हा मिया खग।। नारायणबली के बिना मृतात्मा के निमित्त किया गया श्राद्ध उसे प्राप्त न होकर अंतरिक्ष में नष्ट हो जाता है। अतः नारायणबली पूर्व श्राद्ध करने का विधान आवश्यकता पूर्वक करना ही श्रेष्ठ है।
ग्यारवे दिन
एकादशाह श्राद्ध 11वें दिन शालिग्राम पूजन कर सत्येश का उनकी अष्ट पटरानियों सहित पूजन करें। सत्येश पूजन श्राद्ध कर्ता के सभी पापों के प्रायश्चित के लिए किया जाता है। तत्पश्चात् हेमाद्री श्रवण करें- हमने जन्म से लेकर अभी तक जो कर्म किये हैं उन्हें पुण्य और पाप के रूप में पृथक-पृथक अनुभव करना जिसमें भगवान ब्रह्मा की उत्पŸिा से लेकर वर्णों के धर्मों तक का वर्णन है। चार महापाप: ब्रह्म हत्या, सुरापान, स्वर्ण चोरी, परस्त्री गमन। दशविधि स्नान: गोमूत्र, गोमय, गोरज, मृŸिाका, भस्म, कुश जल, पंचामृत, घी, सर्वौषधि, सुवर्ण तीर्थों के जल इन सभी वस्तुओं से स्नान करें। पांच ब्राह्मणों से पंचसूक्तों का पाठ करवाएं। भगवान के सभी नामों का उच्चारण करते हुए विष्णु तर्पण करें। प्रायश्चित होम: मृतात्मा की अग्निदाह आदि सभी क्रियाओं में होने वाली त्रुटियों के निवारण के निमित्त प्रायश्चित होम का विधान है। शास्त्रोक्त प्रमाण से हवन कर स्नान करें। पंच देवता की स्थापना व पूजन: ब्रह्मा, विष्णु, महेश, यम, तत्पुरुष इन देवताओं का पूजन करें। मध्यमषोडशी के 16 पिंड दान प्रथम विष्णु द्वितीय शिव तृतीय सपरिवार यम चतुर्थ सोमराज पंचम हव्यवाहन षष्ठ कव्यवाह सप्तम काल अष्टम रुद्र नवम पुरुष दशम प्रेत एकादश विष्णु प्रथम ब्रह्मा द्वितीय विष्णु तृतीय महेश चतुर्थ यम पंचम तत्पुरुष नोट- ये सभी पिंडदान सव्य जनेऊ से किए जाते हैं। दान पदार्थ: स्वर्ण, वस्त्र, चांदी, गुड, घी, नमक, लोहा, तिल, अनाज, भैंस, पंखा, जमीन, गाय, सोने से शृंगारित बेल। वृषोत्सर्ग वृषोत्सर्ग के बिना श्राद्ध संपन्न नहीं होता है। ईशान कोण में रुद्र की स्थापना करें, जिसमें रुद्रादि देवताओं का आवाहन हो। स्थापना जौ, धान, तिल, कंगनी, मूंग, चना, सांवा आदि सप्त धान्य पर करें। प्रेतमातृका की स्थापना करें। फिर वृषोत्सर्ग पूर्वक अग्नि आदि देवों का ह्वन करें। यदि बछड़ा या बछिया उपलब्ध हो तो शिव पार्वती का आवाहन कर पाद्य, अघ्र्यादि से पूजन करें। फिर वृषभ व गाय दान का संकल्प करें। विवाह के शृंगार का दान करें। एकादशाह को होने वाला वृषोत्सग नित्यकर्म है। वृषोत्सर्ग कर वृष को किसी अरण्य, गौशाला, तीर्थ, एकांत स्थान अथवा निर्जन वन में छोड़ दें। शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ भी कराएं। वृषोत्सर्ग प्रेतात्मा की अधूरी इच्छाएं पूरी हों, इसलिए करते हैं। आद्यश्राद्ध: आद्यश्राद्ध के दान पदार्थ छतरी, कमंडल, थाली, कटोरी, गिलास, चम्मच, कलश शय्यादान। 14 प्रकार के दान: शय्या, गौ, घर, आसन, दासी, अश्व, रथ, हाथी, भैंस, भूमि, तिल, स्वर्ण, तांबूल, आयुध। तिल व घी का पात्र। स्त्री के मृत्यु पर निम्नलिखित पदार्थों का दान करना चाहिए। अनाज, पानी मटका, चप्पल, कमंडल, छत्री, कपड़ा, लकड़ी, लोहे की छड़, दीया, तल, पान, चंदन, पुष्प, साड़ी। निम्नलिखित वस्तुओं का दान एक वर्ष तक नित्य करना चाहिए। अन्न कुंभ दीप ऋणधेनु। धनाभाव में निष्क्रिय द्रव्य का दान भी कर सकते हैं। षोडशमासिक श्राद्ध शव की विशुद्धि के लिए आद्य श्राद्ध के निमिŸा उड़द का एक पिंडदान अपसव्य होकर अवश्य करें। आद्य श्राद्ध से संपूर्ण श्राद्ध मृतात्मा को ही प्राप्त होता है। दूसरे श्राद्ध से अन्य प्रेतात्मा यह क्रिया नहीं ले सकतीं। अपसव्य होकर गोत्र नाम बोलकर करें। प्रथम उनमासिक श्राद्ध निमिŸाम द्वितीय द्विपाक्षिक मासिक ‘‘ तृतीय त्रिपाक्षिक मासिक ‘’ चतुर्थ तृतीय मासिक ‘‘ पंचम चतुर्थ मासिक ‘‘ षष्ठ पंचम मासिक ‘‘ सप्तम षणमासिक ‘‘ अष्टम उनषणमासिक ‘‘ नवम सप्तम मासिक ‘‘ दशम अष्टम मासिक ‘‘ एकादश नवम मासिक ‘‘ द्वादश दशम मासिक ‘‘ त्रयोदश एकादश मासिक ‘‘ चतुर्दश द्वादश मासिक ‘‘ पंचदश उनाब्दिक मासिक ‘‘ षोडशमासिक में प्रथम आद्य श्राद्ध का पिंड भी इसी में शामिल करते हैं। दान संकल्प कर निम्नलिखित पदार्थों का दान करें। वीजणा (पंखा), लकड़ी, छतरी, चावल, आईना, मुकुट, दही, पान, अगरचंदन, केसर, कपूर, स्वर्ण, घी, घड़ा (घी से भरा), कस्तूरी आदि। यदि दान देने में समर्थ न हों तो तुलसी का पान रख यथाशक्ति द्रव्य ब्राह्मण को दे दें। इससे कर्म पूर्ण होता है। यह अधिक मास हो तो 16 पिंड रखे जाते हैं अन्यथा 15 पिंड रखने का विधान है। यह श्राद्ध हर महीने एक-एक पिंड रख कर करना पड़ता है लेकिन 16 महीनों का पिंडदान एक साथ एकादशाह के निमिŸा रखकर किया जाता है। इससे मृतात्मा की आगे की यात्रा को सुगम होती है। सपिंडीकरण श्राद्ध सपिंडीकरण श्राद्ध के द्वारा प्रेत श्राद्ध का मेलन करने से पितृपंक्ति की प्राप्ति होती है। सपिंडीकरण श्राद्ध में पिता, पितामह तथा प्रपितामह की अर्थियों का संयोजन करना आवश्यक है। इस श्राद्ध में विष्णु पूजन कर काल काम आदि देवों का चट पूजन कर पितरों का चट पूजन पान पर करें। प्रेत के प्रपितामह का अर्धपात्र हाथ में उठाकर उसमें स्थित तिल, पुष्प, पवित्रक, जल आदि प्रेतपितामह के अर्धपात्र में छोड़ दें। ये कर्म शास्त्रोक्त विधानानुसार करें। सपिंडीकरण श्राद्ध में सर्वप्रथम गोबर से लिपी हुई भूमि पर सबसे पहले नारियल के आकार का पिंड प्रेत का नाम बोलकर रखें। फिर गोल पिंड क्रमशः पिता, दादा व परदादा के निमित्त रखें। (यदि सीधे तो सास का वंश लें) भगवन्नाम लेकर स्वर्ण या रजत के तार से बड़े पिंड का छेदन करें। फिर क्रमशः पिता, दादा और परदादा में संयोजन कर सभी पिंडों का पूजन करें। एक पिंड काल-काम के निमिŸा साक्षी भी रखें।
बारवा दिन
तेरहवें का श्राद्ध द्वादशाह का श्राद्ध करने से प्रेत को पितृयोनि प्राप्त होती है। लेकिन त्रयोदशाह का श्राद्ध करने से पूर्वकृत श्राद्धों की सभी त्रुटियों का निवारण हो जाता है और सभी क्रियाएं पूर्णता को प्राप्त होकर भगवान नारायण को प्राप्त होती हंै। तेरहवें का श्राद्ध अति आवश्यक है।
तेरवा दिन
मान्यता है कि मृतक की आत्मा बारह दिनों का सफर तय कर विभिन्न योनियों को पार करती हुई अपने गंतव्य (प्रभुधाम) तक पहुंचती है। इसीलिए 13वीं करने का विधान बना है। परंतु कहीं-कहीं समयाभाव व अन्य कारणों से 13वीं तीसरे या 12वें दिन भी की जाती है जिसमें मृतक के पसंदीदा खाद्य पदार्थ बनाकर ब्रह्म भोज आयोजित कर ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देकर मृतक की आत्मा की शांति की प्रार्थना की जाती है व गरीबों को मृतक के वस्त्र आदि दान किए जाते हैं। हर माह पिंड दान करते हुए मृतक को चावल पानी का अर्पण किया जाता है।
यह श्राद्ध 13वें दिन ही करना चाहिए। लोकव्यवहार में यही श्राद्ध वर्णों के हिसाब से अलग-अलग दिनों को किया जाता है। लेकिन गरुड़ पुराण के अनुसार तेरहवीं तेरहवें दिन ही करना चाहिए। इस श्राद्ध में अनंतादि चतुर्दश देवों का कुश चट में आवाहन पूजन करें। फिर ललितादि 13 देवियों का पूजन ताम्र कलश में जल के अंदर करें। सुतर से कलश को बांध दें। फिर कलश के चारों ओर कुंकुम के तेरह तिलक करें। इन सभी क्रियाओं के उपरांत अपसव्य होकर चट के ऊपर पितृ का आवहनादि कर पूजन करें।
पगड़ी संस्कार
इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीक़े से पगड़ी (जिसे दस्तार भी कहते हैं) बाँधी जाती है। क्योंकि पगड़ी इस क्षेत्र के समाज में इज्ज़त का प्रतीक है इसलिए इस रस्म से दर्शाया जाता है के परिवार के मान-सम्मान और कल्याण की ज़िम्मेदारी अब इस पुरुष के कन्धों पर है।[1] रसम पगड़ी का संस्कार या तो अंतिम संस्कार के चौथे दिन या फिर तेहरवीं को आयोजित किया जाता है।
डेढ़ महीने में
परिवार जान आपस में बैठ कर खाना खाते है |
छह महीने में
परिवार जान आपस में बैठ कर खाना खाते है |
बारह महीने में
साल भर बाद बरसी मनाई जाती है, जिसमें ब्रह्म भोज कराया जाता है व मृतक का श्राद्ध किया जाता है ताकि मृतक पितृ बनकर सदैव उस परिवार की सहायता करते रहें। इन सभी क्रियाओं को करवाने व करने का मुख्य उद्देश्य मृतक की आत्मा को शांति पहुंचाना व उसे अपने लिए किए गए गलत कर्मों हेतु माफ करना है क्योंकि जब भी कोई व्यक्ति अच्छा या बुरा कर्म करता है उसका प्रभाव परिवार के सभी व्यक्तियों पर होता है। इनसे हर परिवार को जीवन चक्र का ज्ञान व कर्मों के फलों का आभास कराया जाता है। वर्षभर तक किसी भी मांगलिक का आयोजन, त्योहार आदि नहीं करने चाहिए ताकि दिवंगत आत्मा को कोई कष्ट नहीं पहुंचे।
आत्मा की शांति के लिए
पितृ सदा रहते हैं आपके आस-पास। मृत्यु के पश्चात हमारा और मृत आत्मा का संबंध-विच्छेद केवल दैहिक स्तर पर होता है, आत्मिक स्तर पर नहीं। जिनकी अकाल मृत्यु होती है उनकी आत्मा अपनी निर्धारित आयु तक भटकती रहती है।
हमारे पूर्वजों को, पितरों को जब मृत्यु उपरांत भी शांति नहीं मिलती और वे इसी लोक में भटकते रहते हैं, तो हमें पितृ दोष लगता है। शास्त्रों में कहा गया है कि पितृ दोष के कुप्रभाव से बचने के लिए अशांत जीवन का उपाय श्राद्ध है तथा इससे बचने के लिए विभिन्न उपाय किए जाते हैं जिनमें श्राद्ध, तर्पण व तीर्थ यात्राएं आदि तो हैं ही साथ ही विभिन्न प्रकार की साधनाएं एवं प्रयोग किए जाते हैं जिनके संपन्न करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
श्राद्ध बारह प्रकार के होते हैं। हम मृत आत्मा की शांति-तर्पण दान देकर उनका आशीर्वाद और कृपा प्राप्त कर सकते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार श्राद्ध कर्म से संतुष्ट होकर पितर हमें आयु, पुत्र, यश, वैभव, समृद्धि देते हैं। स्कंद पुराण के अनुसार श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों के द्वारा ही होती है। श्राद्ध के पिण्डों को गाय, कौवा अथवा अग्रि या पानी में छोड़ दें। पितृ दोष हो तो गृह एवं देवता भी काम नहीं करते तथा एेसे जातक का जीवन शापित एवं अशांत हो जाता है।
जो व्यक्ति माता-पिता का वार्षिक श्राद्ध नहीं करता उसे घोर नरक की प्राप्ति होती है और उसका जन्म शुक्र में होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि जिस व्यक्ति की मृत्यु दुर्घटना में, विष से अथवा शस्त्र से हुई है उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन करना चाहिए। जिन व्यक्तियों को अपने माता-पिता की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है, एेसे व्यक्ति को श्राद्ध पक्ष की अमावस्या को श्राद्ध कर्म संपन्न करना चाहिए। नवमी के दिन अपनी मृत मां, दादी, परदादी इत्यादि का श्राद्ध करना चाहिए।
— पंडित अशोक प्रेमी बंसरीवाला
जब मृत्यु के बाद मृत आत्माअों की इच्छाअों की पूर्ति नहीं होती तो उनकी आत्मा अप्रत्यक्ष रुप से प्रभाव दिखाती है, जिसके कारण अशुभ घटनाएं घटित होती हैं। इसे पितृदोष कहा जाता है। इस दोष के कारण दुर्भाग्य में भी वृद्धि होती है। पितृ दोष एक ऐसा दोष है जो अधिकतर कुंडली में होता है। इस प्रकार का दोष होने पर व्यक्ति को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लोग पितृदोषों से मुक्ति हेतु हरिद्वार अौर नासिक आदि स्थानों पर जाते हैं। जानिए पितृदोष से संबंधित कुछ बातें-
किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात जब परिजन उसकी अंतिम इच्छाअों की पूर्ति नहीं करते तो उसकी मृत आत्मा पृथ्वी पर भटकती रहती है।
जब मृत व्यक्ति के अधूरे कार्य पूरे नहीं किए जाते तो उसकी आत्मा परिवार पर अप्रत्यक्ष रुप से कार्यों को पूरा करने के लिए दबाब डालती है। जिसके कारण परिवार में कई बार अशुभ घटनाएं घटित होती हैं। यही पितृदोष होता है।
पितृदोष से मुक्ति हेतु श्राद्धपक्ष अौर हर महीने की अमावस्या पर पितरों की आत्मिक शांति के लिए पिंडदान अौर तर्पण करें।
कर्मलोपे पितृणां च प्रेतत्वं तस्य जायते।
तस्य प्रेतस्य शापाच्च पुत्राभारः प्रजायते।
अर्थात: कर्मलोप की वजह से जो पूर्वज मृत्यु के बाद प्रेत में चले जाते हैं। उनके श्राप से पुत्र संतान की प्राप्ति नहीं होती है। प्रेत में पितर को कई कष्टों का सामना करना पड़ता है। यदि उनका श्राद न किया जाए तो वे हमें नुक्सान पहुंचाते हैं। पितरों का श्राद करने से समस्याएं स्वयं समाप्त हो जाती हैं।
शास्त्रों के अनुसार
पुत्राम नरकात् त्रायते इति पुत्रम‘‘ एवं ’’पुत्रहीनो गतिर्नास्ति
अर्थात: जिनके पुत्र नहीं होते उन्हें मरोणोपरांत मुक्ति नहीं मिलती। पुत्र द्वारा किए श्राद कर्म से ही मृत व्यक्ति को पुत नामक नर्क से मुक्ति मिलती है इसलिए सभी लोग पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखते हैं।
अगर मृत्यो के बाद पुरुष नदी या तलाब में पानी दे रहे है और महिलाए कुछ वजह से तलाब नइ जा पा रहे है तो घर में ही पानी दे सकते है क्या?
अस्थायी बहा कर आने वाले को लेट हो जाने पर घर मे नही जाने दिया जाता वह दुसरे के घर पर रूक जाए तो उस घर पर क्या सकट आ सकते है
Barsi tithi ki honi chaiye ya amavasya ki
यदि प्रेत क्रिया के बीच मे नवे दिन पंचक आ जाये तो क्या करना चाहिए
Dasgatra Shuddh Mein Kitna Banswada Dashrath puri Mein Kitna balance kara jata haijata hai
Kya puche sahab apse
Ghar me kisi ke mrityu ke bad khane me kya kya mana hai
Kis age me kam din me sam pan hota hai
Meri Chachi ji ka nidhan ho gya hai to sradh our barsi ek hi shath ho gya hai,our muhe Nya gher banwana hai mai kitne dino ke baad naye gher ka nirman karwa sakta hu.marg darshan kare
Apne Maa k deth hone k bad shadi shuda ldki 10 va ka khana kha sakti hai kya
Mere bete ka roka April me karna h Or mere chcha sasur ki barsi june me h to kya ham roka kar sakte h
Procedures to follow by a married female after death of her mother
Hum,mata.ji.teari.kar.rahey.ha.humara.bhai.bhi.kar.raha.ha.moksh.bhai.ka.ya.howa.hum.teari.apney.ghar.jaha.mata.ji.shadi.ho.kar.aayi.thi.pitaji.ka.sab.ya.howa.
Kya suddhak ke baad kpdo me sabun lga skte h
Mere Papa ke bade bhai ke 1month pahle death ho gya he.. Mere shadi fix huwa he... Ab kab tak me mera shadi ho payega ? Matlab kitna din bad mere ghar me subh karya kar sakte he ?
अगर किसी व्यक्ति का 3 बजे सुबह दिन रविवार को देहान्त हुआ हो तो कब से 12 वी गिनी जाएगी
Mrityu ke pashchat ghar me roti ban sakta hai
Ager 2 year se astiya ger me raki ho to sbub kam ho sakte hai kya jese saadi
Antim samya kirya karm kab hoga date 24/1/2022
पिता की मौत के बाद कितने दिन के बाद शुभ कार्य या मंदिर में पूजा पाठ कर सकते हैं?
शुद्र की माता जी अगर मृत्यु को प्राप्त होती हैं तो मृत्यु के बाद उस के पुत्र को क्या करना चाहिए कि उस की माता जी सदैव के लिए कल चक्र से मुक्त हो जाए
हमारे भतीजे की मृत्यु हो गई है उसका दसवां संस्कार मंगलवार को पड़ रहा है जिसमें दुविधा बनी हुई है की बाल मंगलवार को बनवाया जाए या बुद्धवार को कृपया शास्त्रोक्त जानकारी प्रदान करें सादर प्रणाम
Dhashma Karya ke bad Jo Roti Banai Jaati Hai use .raak.ko chhana Jata Hai Uske nishanon Ka Rahasya
पितृदोष कब ओर कैसे लगता हैं इसके क्या उपाय है ओर इसकी पुजा कहा होती है।
Meri Mata ji ki mature ho gai hai gateway hoga ya barware. Krupa margdarshan kare.
Agar kisi vyakti ke ghar do logo ka peepal yek hi din ho rha hai to kya wo peepal yek jagah hi poojan karega ya dono jagah
मृत्यु के बाद मृत के घर में अग्नि कब जलानी चाहिए
Mai hindu hu mere ek riste dar ki mrutyu hone par use dah sanskar rat me kiya gya . Kabir panth hone ke karan uska dah sanskar nhi hona tha uska mitti Sankar hona tha yane jamin me esthan dena tha. Yah sab Katona mahamari ke karan karana pada .mritak ki mukkti ki upay bataiye.
Bua saas ki mrityu hone pr mere mayeke ka Kya ribaz bnta h
Sanatan Dharm ke anusar ghar mein agar kisi ke mrutyu ho jaayeto 10 din ke andar kisi Bahu beti ko bahar bhejna theek rahega.
After death 2/3/4-13 din mansik pujan kare ya na agar kare to uska phal kisko milega.
मरने के बाद दस दिन तक हल्दी तेल काम प्र योग करना चाहिये या नही
Mritu ke baad kitne samay ke baad wareeya ker sakte hai
Mai bramhno ko khana nahi khila sakti to our upay kya hai
Yadi Pagdi Rasm ke din Panchak aaya toh Pagdi bandhte kya?
Kya panchak me daswa kar sakte hai.
After how many days of my sons marriage i can go to someones home where a person died
Sorah saradh ka niyam bataye
Mere bhai ka age 46 tha usaki shadi aur janohi bhi nahi hui thi to ab usaka karay 12 va din karneka ya 1 va din karane ka
क्या17 तारा दिन में हवन वाहृमण भोज का बिधान है कृपया बताए अक्सर 13दिन में हि गरुण पुराण भोग बाह्माण भोज कर रहे हैं उचित है
Agar ek mritu ghar main hone k 9ve din gharane me ek aur death ho jati hai to sudhak aur tervi same date par kar sakte hai kya? Please sir jaldi bataye
Tai Ji ki mritu pashchat unki terahvi hui lekin barsi nahin ki gayi thi to barsi se poorv parivar me vivah karya hona aur usme shamil hona Pitra dosh ka karan ho sakta hai kya ?
बृहस्पतिवार को terhaviकरना शुभ है या अशुभ
kaya mirtyu ke baad parivar ka rista dar ghar se dur rahta hi to dadhi baal bana sakta hi ki nahi (khandaan charpidhi kahi)
त्रयोदशी संस्कार में हवन होता है अग्नि विसर्जन यानीहवन शांत करना चाहिए या नहीं दूध काले तिल जो गंगाजल सेहवन
शांत होता है या नहीं कृपया यह हमें जानकारी दें
Agar ghar me kisi ki mrityu ho jaye to tirthon par jana chahiye ya nhi
Mere पिता जी की मृत्यु को एक वर्ष होगया है उनकी बरसी अभी की है और मेरी ताई जी की मृत्यु 5 माह पहले हुई है उनकी बरसी अभी नहीं हुई है क्या हम अपने पिता जी की गति गया जी जाकर करवा सकते है या नहीं
Dear Sir,
can you pl inform how to calculate anniversary after death as my father exprired 12 nov 2020.
Kya ham saririk sambandh bana sakte hai
Hindi dharm ke anusar 3 ,13 adi sankhya ashubh Mani jati hai to ham 13 vi kiu manage hai ...mera MATLAB hai ye 13 din kis anusar or kiu mannnae jate hai
Mritak ke ghar shok prakat karne kis baar aur kya lekar kitne log aik sath j
ayen?
Me bhut preshan hu apni jindagi se upas btae
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