प्राकृतिक आपदा प्रबंधन
भारत में प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा, चक्रवात और भूकंप आदि से व्यापक क्षति होती रही है। आपदा प्रबंधन बहुआयामी, बहु-अनुशासनात्मक और क्षेत्रीय दृष्टिकोण, जिसमें इंजीनियरिंग, सामाजिक और वित्तीय आदि सभी प्रक्रियाओं का समावेश हो, को अपनाने की आवश्यकता पर जोर देता है। दुर्भाग्य से भारत का आपदा प्रबंधन के मोर्चे पर अच्छा रिकॉर्ड नहीं रहा है।
प्राकृतिक आपदाओं को होने से तो रोका नहीं जा सकता क्योंकि वे उसी प्राकृतिक वातावरण का हिस्सा है जिसमें हम रहते हैं, लेकिन जहां तक संभव हो सके हम लोगों एवं उनकी संपत्तियों पर पड़ने वाले इन प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए समाज के विभिन्न स्तरों पर एहतियाती कदम उठा सकते हैं। यहाँ हम आपको विभिन्न शब्द सीमाओं जैसे कि 300, 500, 600 और 800 शब्दों के लेख प्रदान कर रहे हैं जिनमें से आप अपनी आवश्यकतानुसार किसी भी लेख का चयन कर सकते हैं।
पर्यावरण को लगातार क्षति पहुंचने की वजह से पूरी दुनिया प्राकृतिक आपदाओं से त्रस्त है और इसलिए हमें तत्काल इनसे बचाव के तरीकों पर अपना ध्यान केन्द्रित करना होगा। भारत और अन्य देश पूरी दुनिया में हो रहे पर्यावरण असंतुलन का मूल्य चुकाने को मजबूर हैं और इन देशों में प्राकृतिक आपदाओं की वजह से जीवन और संपत्ति की व्यापक हानि हो रही है।
जागरूकता जरूरी
वैसे तो प्राकृतिक आपदाओं के बारे में दुनिया भर में जागरूकता बढ़ रही है लेकिन वास्तविकता में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है और इस वजह से हालात नहीं बदल रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण को लेकर ज्यादातर मौखिक रूप से चिंता का प्रदर्शन एवं बयानबाजी ही होती रही है। भारत में भी पर्यावरण असंतुलन बढ़ती हुई चिंता का विषय है और यहां भी पर्यावरण असंतुलन को कम करने के लिए किए जा रहे प्रयास अपर्याप्त ही साबित हो रहे हैं।
मानव निर्मित कारणों से बढ़ रहा है खतरा
मानव निर्मित कारणों से भी पर्यावरण का असंतुलन बढ़ रहा है। जनसंख्या में हो रही बेतहाशा वृद्धि की वजह से मानुष्यों की जरूरत बढ़ी हैं और उनमें उपभोक्तावादी प्रवृति बढ़ी है। इन दोनों ही वजहों से प्राकृतिक संसाधनों पर असर पड़ा है। पेड़ों को काटना, खनिज पदार्थों के लिए खानों का दुरुपयोग एवं वायुमंडलीय प्रदूषण पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा हैं। प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि करने में इन सभी कारकों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
पानी की बढ़ती जरूरत लगातार भू-जल के स्तर को कम कर रही है और साथ ही औद्योगिक विषाक्त सॉल्वैंट्स को नदियों में बहाया जा रहा है जिससे हमारा जल दूषित हो रहा है। कारखानों और वाहनों से लगातार निकलता गंदा धुआं एवं ग्रीनहाउस गैस वातावरण को प्रदूषित कर रहे हैं। ऐसी स्थिति अगर लगातार चलती रही तो पृथ्वी पर प्राणियों का जीवन दूभर हो जाएगा।
निष्कर्ष
प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए सतत विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हरेक परियोजना के पर्यावरण संबंधी चिंताएं सभी विकास परियोजनाओं के केंद्र में होनी चाहिए। प्राकृतिक आपदाओं की पूर्व चेतावनी के लिए उपग्रहों से मिलने वाले डाटा का अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क बनाने की आवश्यकता है। संवेदनशील क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए स्थायी तंत्र का विकास करना चाहिए।
आपदा को एक दुखद घटना, जैसे दुर्घटना, आग, आतंकवादी हमला या विस्फोट आदि जिनकी वजह से लोगों को भारी क्षति का सामना करना पड़ता है, के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। प्राकृतिक आपदा पृथ्वी की ऐसी प्राकृतिक क्रियाओं द्वारा उत्पन्न होती है जो मनुष्य के लिए आर्थिक रूप से बेहद नुकसानदायक होने के साथ ही पर्यावरण के लिए भी हानिकारक होती हैं। कुल मिलाकर यह जीवन और संपत्ति दोनो ही के लिए बहुत नुकसानदायक है। प्राकृतिक आपादाओं की वजह से कई लोग अपने निकटतम एवं प्रिय लोगों को खो देते हैं और खुद भी बेघर, बेसहारा हो जाते हैं एवं उनका जीवन एक दैनिक संघर्ष बन जाता है।
प्राकृतिक आपदाओं के प्रकार
प्राकृतिक आपदाएं कई प्राकृतिक खतरों जैसे कि हिमस्खलन, भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, भूस्खलन, बाढ़, सुनामी, तूफ़ान, बर्फ के तूफान, सूखा आदि के रूपों में प्रकट होती हैं। ये आपदाएं असहनीय विनाश करते हैं। प्राकृतिक आपदाओं के प्रति मानवों की अपर्याप्त तैयारी, उचित योजना का आभाव एवं आपदा प्रबंधन की कमी प्राकृतिक आपदाओं से उत्पन्न संकटों को और बढ़ा देता है। जब भी किसी प्राकृतिक आपदा का हमला होता है पृथ्वी पर जीवन को अकल्पनीय क्षति पहुंचती है और सब कुछ एक पल में नष्ट कर देता है।
भारत में आपदा प्रबंधन
प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में मानवीय प्रतिक्रियों के दौरान उचित योजना एवं आपातकालीन प्रबंधन की आवश्यकता है। विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के बाद इनसे निपटने के लिए तैयारी की कमी बार-बार दृष्टिगोचर हुई है। वर्ष 2013 में जब उत्तराखंड में बाढ़ आई थी तो वहां कोई भी आपदा प्रबंधन की योजना लागू नही हो पाई भी। इस तथ्य के बावजूद कि पहाड़ी इलाके हमेशा प्राकृतिक आपदाओं के खतरे से घिरे रहते हैं, राज्य सरकारों ने कोई पर्याप्त तैयारी प्रदर्शित नहीं की है। मार्च 2013 में पेश एक नियंत्रक एवं लेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, जो 2007 में बनाई गई थी, ने 2008 से 2012 के बीच प्राकृतिक आपदा की स्थिति में किसी भी उपचारात्मक उपायों को लागू करने के लिए सुझावों एव उपायों के लिए कोई मीटिंग नहीं की। सीएजी की रिपोर्ट ने भी राज्य आपदा राहत निधि के उपयोग में व्यापक अनियमितताओं की ओर भी इशारा किया।
प्राकृतिक आपदाओं से कैसे निपटें?
जबरदस्त वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति के बावजूद हमें वास्तव में यह पता नहीं चल पाता कि कब एवं कहां कोई प्राकृतिक आपदा आने वाली है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और हम इसे रोक नहीं सकते। लेकिन कुछ तैयारियों के द्वारा इनके प्रभावों को कम किया जा सकता है और साथ ही जीवन एवं संपत्ति के नुकसान को कुछ हद तक कम करने में कामयाबी हासिल की जा सकती है। उदाहरण के तौर पर जैसा कि हम जानते हैं ग्लोबल वार्मिंग सभी समस्याओं की जड़ है और इसलिए जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए पर्यावरण की रक्षा करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
आपदा के प्रभाव को कम करने के लिए एक अग्रिम चेतावनी प्रणाली विकसित किए जाने की आवश्यकता है। प्राकृतिक आपदा की स्थिति में लोगों को सुरक्षित निकासी के लिए भी प्रशिक्षित किए जाने की आवश्यकता है। ज्यादा से ज्यादा भूकंपरोधी भवनों का निर्माण हो इस दिशा में मजबूत प्रयास किया जाना चाहिए।
किसी भी प्राकृतिक आपदा के बाद, फिर से जीवन का पुन: निर्माण करने के लिए पैसों की आवश्यकता होती है। लोगों को बाढ़, भूकंप, भूस्खलन, भीषण आग या किसी भी अन्य प्राकृतिक आपदा की घटना के बाद उन्हें नुकसान के एवज में अपने मकान और सामान के लिए पहले से ही व्यापक बीमा कवरेज प्राप्त करने के लिए कदम उठाने चाहिए।
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