भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ
रामकाव्य की विशेषताएँ और रामचंदि्रका
(ख) रामकाव्य की विशेषताएँ और रामचंदि्रका
केशव पर मुख्यत दोष लगाया जाता है कि उन्होंने रामचंदि्रका में राम कथा को मनमाने ढंग से विवृ+त और विश्रृंखलित कर दिया है। अनेक मार्मिक् प्रसंगों को छोड़ दिया है या संक्षिप्त कर दिया है, लेकिन यह निष्कर्ष सामान्यत: तुलसी की रामचरितमानस के साथ रामचंदि्रका की तुलना करने के कारण ही निकाला जाता रहा है। अèािकांश आलोचकों के सामने या तो संपूर्ण रामकथा सहित्य नहीं रहा अन्यथा èयान देने से यह स्पष्ट हो जाता है कि स्वयं तुलसी ने भी राम कथा के परंपरागत रूपों से हटकर अपने समय की परिसिथतियों, अपनी विचारèाारा और रुचि तथा तत्कालीन भारतीय वातावरण के अनुसार राम-कथा को एक नयी मर्यादा, नया आदर्श, नयी èाार्मिक एवं नैतिक आस्था का रूप प्रदान किया है। ठीक इसी प्रकार केशव ने भी अपनी रुचि, लोक-रुचि तथा तत्कालीन परिसिथतियों एवं विचारों के अनुरूप राम कथा का वर्णन किया है। रामचंदि्रका की रचना करते समय केशव के सामने तुलसी और उनकी रामचरितमानस प्रेरणा स्रोत के रूप में नहीं रही, वरन संस्वृ+त का रामकाव्य साहित्य रहा। विशेष रूप से वह परंपरा जिसमें घटनाओं के ऊहात्मक तथा वक्रोकित प्रèाान वर्णन एवं भाषा, छंद, अलंकार आदि की विशिष्टता से चमत्कार उत्पन्न करने की तथा राम को मुख्यत: एक राजा के रूप में मानकर उनके राज वैभव एवं दाम्पत्य, Üांृगार का खुलकर वर्णन करने की प्रवृत्ति प्रèाान रही हैं। मुख्यत: केशव के प्ररेणा स्रोत वाल्मीकि रामायण, आèयात्म रामायण, हनुमन्नाटक, प्रसन्न राघव आदि संस्वृ+त ग्रंथ रहे है। रामचंदि्रका की कथा का मूल आèाार वाल्मीकि वृ+त रामायण है। किंतु केशव ने उनका नितान्त अनुकरण न कर अपनी मौलिक सूझ-बूझ और अभिरुचि के अनुसार काँट-छाँट कर ली है।
तुलसी की रामचरितमानस और केशव की रामचंदि्रका
केशव की रामचंदि्रका वस्तुत: हिंदी में राम-कथा का दूसरा प्रबंèा काव्य है जो अपनी विशिष्टताओं के कारण अपना विशेष महत्त्व रखता है। तुलसी की रामचरितमानस से यह नितांत भिन्न हैं। कारण रामचंदि्रका की रचना में केशव का उíेश्य राम के जीवन का संपूर्ण चित्रा प्रस्तुत करना नहीं था, वरन जैसा कि उन्होंने स्वयं स्पष्ट किया है-
रामचन्द्र की चनिद्रका वर्णत हौं बहुछंद।
जिस प्रकार तुलसी ने अपने युग की आवयकता के अनुरूप राम को एक मर्यादा पुरुषोत्तम रूप प्रदान कर विश्रंृखलित होती संस्वृ+ति को पुन संगठित करने का प्रयास किया था। उसी प्रकार केशव ने भी अपने युग रीतियुग की आवश्यकताओं के अनुरूप राम को एक आदर्श राजा के रूप में तत्कालीन विलासी राजाओं तथा विश्रंृखलित होती शासन व्यवस्था के सम्मुख आदर्श के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
तुलसी का प्रभाव-क्षेत्रा अèािक व्यापक है और केशव का अत्यन्त सीमित, क्योंकि तुलसी का उददेश्य एक व्यापक समाज के लिए राम को आदर्श रूप में प्रस्तुत करना था जिससे जीवन की हर सिथति में समाज के प्रत्येक मानवीय संबंèाो में और हर स्तर के व्यकितयों के लिए आदर्श और प्रेरणा का संबल बन सवें+, जबकि केशव की यह सीमा तत्कालीन राजन्य वर्ग थी।
प्रभाव, रचना और उददेश्य में अन्तर होने के कारण दोनों की भाषा-शैली और अभिव्यकित के कला रूपों में भी अन्तर आ गया है। तुलसी की भाषा जनभाषा है। छंद भी लोक जीवन के हैं और अभिव्यकित में कला वैचित्रय का आग्रह नहीं, वरन सरलता और सहजता है। जबकि केशव की भाषा विशिष्ट है-संस्वृ+त गर्भित अभिव्यकित में भी सहजता और सरलता की अपेक्षा कलात्मक विशिष्टता और चमत्कार का आग्रह है।
संस्वृ+त साहित्य में ही रामकाव्य की दो स्पष्ट अलग èााराओं का विकास हो गया था-मर्यादा संवलित आदर्श भाव की èाारा तथा माèाुर्य भाव की èाारा। हिंदी में इन दोनों èााराओं का प्रादुर्भाव हुआ। केशव पर भी माèाुर्य भाव की भकित का प्रभाव पड़ा था, जबकि तुलसी शुद्ध मर्यादावादी कवि रहे। इस प्रकार केशव रामचंदि्रका की रचना में शुद्ध रूप से संस्वृ+त के ही ऋणी है।
तुलसी ने राम-कथा को आèाार बनाकर रामचरितमानस के अतिरिक्त रामलला नहछू बरवै रामायण जानकी मंगल रामाज्ञा प्रश्न कवितावली तथा गीतावली की भी रचना की थी। इन ग्रंथों के अèययन से स्पष्ट होता है कि-
• तुलसी भी माèाुर्य-भाव की Üाृंगारपरक भकित èाारा से प्रभावित हुए थे।
• तुलसी ने भी राम के ऐश्वर्य सम्पन्न सुवु+मार वृत्ति के राजा-रूप का चित्राण किये हैं।
• तुलसी ने भी राम-सीता के Üाृंगार परक चित्राण किये हैं।
• तुलसी ने भी अलंकार एवं छंद-बहुल चमत्कार उत्पन्न करने वाली काव्य-शैली का प्रयोग किया है।
• तुलसी ने जिस विस्तार से रामचरितमानस में राम कथा का चित्राण किया है उस विस्तार से इन अन्य काव्य ग्रंथों में नहीं, वरन किसी अंश को छोड़ा है तो किसी को अèािक विस्तार दिया है। यथा प्रसंग कथा-क्रम में भी अंतर किया है।
• राम सीता तथा अन्य पात्राों के चरित, अलौकिक और मर्यादावान की अपेक्षा मानवीय अèािक है।
अत: तुलसी की इन रचनाओं से जब रामचंदि्रका की तुलना करते है तो केशव और उनकी रामचंदि्रका पर आरोपित अèािकांश दोषों का स्वत: ही परिमार्जन हो जाता है। केवल किलष्टत्व का आंशिक दोष रह जाता है। यही नहीं तुलसी से तुलना कर केशव के संबंèा में जितने भी निष्कर्ष निकाले गये है, वे एकांगी, भ्रमात्मक और गलत हैं। वे निष्कर्ष केवल रामचरितमानस के साथ तुलना करके ही निकाले गये हैं, यह उनकी सबसे बड़ी एकांगिता और सीमा है।
परवर्ती राम काव्य तथा रामचंदि्रका
रामचंदि्रका की रचना के बाद आèाुनिक युग तक हिंदी के राम काव्यों की एक दीर्घ परंपरा है, पर तुलसी और केशव-दोनों का प्रभाव परिलक्षित होता है। यहाँ रामचंदि्रका के बाद रची गर्इ प्रमुख कथाओं का संक्षिप्त परिचय देकर उन पर पड़े रामचंदि्रका के प्रभाव का संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा है :
मुनिलाल वृ+त रामप्रकाश पर रामचंदि्रका के कथानक और अलंवृ+त शैली का प्रभाव है। भूपति द्वारा दोहा, चौपार्इ में रचित रामचरित रामायण आचार्य चिंतामणि वृ+त रामायण पिंगल, छंद, अलंकार, गुण, दोष, रस आदि से संबंèािक काव्यशास्त्राीय मान्यताओं के आèाार पर हुर्इ है। अत: ये भी रामचंदि्रका के समान ही काव्यशास्त्रा सम्मत कला-सौंदर्य-युक्त है। रसिक गोविंद वृ+त रामायण सूचनिका तथा लछिराम वृ+त रामचंद्र भूषण भी केशव की कला-शास्त्राी परंपरा ही रचनाएं है। सेनापति ने कवित्त रत्नाकर में राम कथा का 76 छंदो में वर्णन किया है, अत: अभिव्यंजना शैली में सेनापति स्पष्टत: रामचंदि्रका से प्रभावित है। गोविंद सिंह ने गोविंद रामायण की रचना की जिसमें राम के वीर और पराक्रमी रूप का प्रमुखत: वर्णन है। रामप्रिया शरण वृ+त सीतायन में राम का संक्षिप्त चरित तथा सीता और उनकी सखियों का वर्णन है। राम किशोर शरण वृ+त राम रसामृत सिंèाु, सरजूराम पंडित वृ+त जैमिनि पुराण जिसमें राम चरित, सीता त्याग, लववु+श जन्म राम का अश्वमेघ यज्ञ तथा सीता-राम विलाप आदि प्रसंगों का वर्णन है। इन वर्णनों पर रामचंदि्रका का प्रभाव हे। इनके अतिरिक्त भगवंत राय खीची की रामायण मधुसूदन दास वृ+त रामश्वमेघ खुमान का लक्ष्मणशतक, गोवु+लनाथ का सीताराम गुणार्गव, मनियार सिंह का रामचरित, ललक दास का सत्योपाख्यान, नवल सिंह का रामचंद्र विलास तथा सीता स्वयंवर आदि रामकथा पर आèाारित काव्य हैं, जिसमें Üाृंगार रस की प्रèाानता है और सभी भी अभिव्यंजना शैली पर चमत्कार प्रवृत्ति के रूप में रामचंदि्रका का प्रभाव किसी न किसी अंश में है।
महाराज रघुराज सिंह वृ+त राम स्वयंवर रामचंदि्रका के पश्चात रामकथा पर आèाारित एक उल्लेखनीय महाकाव्य है। कवि ने स्वयं स्वीकार किया है कि इस काव्य रचना के लिए वाल्मीकि, तुलसी, सूर, केशव आदि से प्रभाव ग्रहण किया है। किंतु इस रचना की अभिव्यंजना शैली पर केशव का प्रभाव सबसे अèािक है। कविवर रसिक बिहारी लाल वृ+त राम रसायन 11000 छंदों का विशाल ग्रंथ है। रामचंदि्रका के समान ही इसमें अनेक छंद हैं। इसकी अभिव्यंजना शैली भी चमत्कार पूर्ण है। जानकीप्रसाद वृ+त रामनिवास रामायण भी रामचंदि्रका के ही समान चमत्कार प्रèाान महाकाव्य हैं जिसमें अनेक छंदों का प्रयोग हुआ है। नवलसिंह वृं+त रामविलास पर रामचंदि्रका की वर्णन शैली का प्रभाव है। पंए रामचरित उपाèयाय वृ+त रामचरित चिंतामणि की शैली, अलंकार गर्भित, छंद बहुल और चमत्कार प्रèाान है। इस ग्रंथ में प्रवृ+ति के नाना रूपों के वर्णन पर केशव का स्पष्ट प्रभाव लगता है। पंए बलदेव प्रसाद मिश्र वृ+त कौशल-किशोर पूर्णत: रामचंदि्रका पर आèाारित है।
मैथिलीशरण गुप्त वृ+त साकेत आèाुनिक युग का महत्वपूर्ण महाकाव्य है। इसमें उर्मिला के चरित्रा की प्रèाानता है। गुप्त जी ने केशव की भांति छंद संबंèाी प्रबंèा काव्य की शास्त्राीय मान्यताओं का उल्लंघन करके एक सर्ग में अनेक छंदो का प्रयोग किया है। साकेत की संवाद-योजना रामचंदिका में संवाद-योजना की परंपरा का ही उत्कर्ष है।
हरिऔèा वृ+त वैदेही वनवास की संस्वृ+त गर्भित भाषा रामचंदि्रका की संस्वृ+त गर्भित भाषा की परंपरा में ही है। केशव ने राम द्वारा सीता त्याग को उचित नहीं माना है। हरिऔध ने सीता त्याग को औचित्य प्रदान करने के लिए सीता की सहमति का एक नया मौलिक प्रसंग जोड़ा है। हो सकता है, ऐसा करने की प्रेरणा उन्हें रामचंदि्रका से प्राप्त हुर्इ हो। बलदेव प्रसाद मिश्र का साकेत संत भी बहुछंदी महाकाव्य है। इसमें Üाृंगार वीर रस की प्रèाानता है। जिस पर रामचंदि्रका का किसी न किसी रूप में प्रभाव दृषिटगोचर होता है।
निष्कर्षत : राम काव्य की एक सुदीर्घ परंपरा है जिसके बीज वैदिक साहित्य में मिलते हैं। इन्हें सर्वप्रथम इकठठा कर क्रमबद्ध रूप में पिरोया वाल्मीकि ने। वाल्मीकी ने राम का चरित्रा श्रेष्ठ राजा तथा श्रेष्ठ मानव के रूप में प्रस्तुत किया है, किंतु कालान्तर में राम की प्रतिष्ठा विष्णु के अवतार के रूप में हो गयी और राम का चरित्रा भारतीय संस्वृ+ति और जीवन के सर्वोतम मूल्यों तथा आदशो± के प्रतीक रूप में विकसित हुआ है। रामकाव्य परंपरा के दो रूप मिलते है। -साहितियक काव्य तथा èाार्मिक काव्य। केशव की रामचंदि्रका, तुलसी के मानस से-प्रभाव, रचना, उददेश्य तथा अभिव्यकित के कला रूपों आदि की दृषिट से नितान्त भिन्न है। तुलसी पहले भक्त थे, कवि बाद में। केशव पहले कवि थे, वह भी आचार्य परंपरा के। तुलसी व्यापक जनभावना के कवि थे, केशव राजन्यवर्ग की रूचियों के। तुलसी ने राम के मर्यादित, आदर्श तथा अवतार रूप को लिया, केशव ने आदर्श राजा, श्रेष्ठ मानव के रूप को। केशव ने तुलसी की रामचरित मानस से प्रभाव ग्रहण न करके सीèो वाल्मीकि रामायण, आèयात्म रामायण, हनुमन्नाटक तथा प्रसन्न राघव से प्रभाव ग्रहण किया है। हिंदी के परवर्ती राम काव्यों पर अèािकांशत: रामचंदि्रका का ही प्रभाव दृषिटगोचर होता है। क्योंकि परवर्ती रामकाव्यों में राम श्रेष्ठ मानव एवं आदर्श राजा का ही रूप है इसलिए उनमें Üाृंगार रस है। आलंकारिक, छंद तथा अत्यंत चमत्कारी अभिव्यंजना शैली है, संस्वृ+त गर्भित भाषा आदि विशेषताएं भी उनमें मिलती है। अत: राम काव्य परंपरा में केशव की रामचंदि्रका मील का पत्थर सिद्ध होती है।
Bhakti kal ki pramukh pravirti
Hindi sahitya ka bhakti kaal and prustbhumi
प्रवृत्तियों
Bhakti ki pramukh pravttiyo par prakash dalie
भक्ति काल के नामकरण के ऊपर एक तोका
Vaktikal sahitya ki pravitiya likhe
namve shing kis vidha ka lekhak h
भक्तिकाल की प्रवृत्तियां
1.Bhakti kaal ki karno ko ulekh kare?
भक्ति काल के नामकरण के ऊपर एक तोकाJutika
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