परमाणु ऊर्जा पर निबंध
नाभिकीय विखण्डन के दौरान उत्पन्न ऊर्जा को नाभिकीय या परमाणु ऊर्जा कहा जाता है । नाभिकीय विखण्डन वह रासायनिक अभिक्रिया है, जिसमें एक भारी नाभिक दो भागों में टूटता है । नाभिकीय बिखण्डन अभिक्रिया ‘श्रृंखला अभिक्रिया’ होती है । जब एक अभिक्रिया से स्वतः दूसरी अभिक्रिया होती है, तो उसे श्रृंखला अभिक्रिया कहा जाता है ।
श्रृंखला अभिक्रिया दो प्रकार की होती हैं- अनियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया एवं नियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया । अनियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया में तीन नए निकलने वाले हन पर नियन्त्रण नहीं होता, जिसके कारण नाभिकों के विखण्डन की दर 13,9,27….. के अनुसार होती हे, फलस्वरूप ऊर्जा अत्यन्त तीव्र गीत से उत्पन्न होती है तथा कम समय में बहुत अधिक विनाश करने में सक्षम होती है ।
इसी सिद्धान्त के आधार पर परमाणु बम का निर्माण किया जाता है । नियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया धीरे-धीरे होती है तथा इससे प्राप्त ऊर्जा का उपयोग लाभदायक कार्यों के लिए किया जा सकता है परमाणु ऊर्जा के उत्पादन के लिए नाभिकीय रिएक्टर में यही अभिक्रिया अपनाई जाती है सबसे पहली नाभिकीय विखण्डन अभिक्रिया, अमेरिकी वैज्ञानिक स्ट्रॉसमैन एवं ऑटो हीन ने प्रदर्शित की, इन्होंने जब यूरेनियम 235 परमाणु पर न्यूट्रनों की बमबारी की, तो पाया कि इनके नाभिक दो खण्डों में विभाजित हो गए । जब यूरेनियम पर न्यूट्रोनों की बमबारी की जाती है, तो एक यूरेनियम नाभिकीय विखण्डन के फलस्वरूप बहुत अधिक ऊर्जा व तीन नए न्यूट्रन उत्सर्जित होते हैं ।
ये नव उत्सर्जित न्यूट्रान, यूरेनियम के अन्य नाभिकों को विखण्डित करते हैं । इस प्रकार यूरेनियम नाभिकों के विखण्डन की एक श्रृंखला बन जाती है । इसी श्रृंखला अभिक्रिया को नियन्त्रित कर परमाणु रिएक्टरों में परमाणु ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है ।
नाभिकीय रिएक्टर में ईंधन के रूप में यूरेनियम या प्लूटोनियम का प्रयोग किया जाता है । अभिक्रिया को नियन्त्रित करने के लिए मन्दक के रूप में भारी जल या ग्रेफाइट का प्रयोग किया जाता है । मन्दक रिएक्टर में न्यूट्रान की गति को धीमा करता है ।
रिएक्टर में नियन्त्रक छड़ के रूप में कैडमियम या बोरॉन का प्रयोग किया जाता है । यह छड नाभिक के विखण्डन के दौरान निकलने वाले तीन नए न्यूट्रान में से दो को अवशोषित कर लेती है, जिससे अभिक्रिया नियन्त्रित हो जाती है और उत्पादित परमाणु ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा के रूप में परिवर्तित कर इसका प्रयोग लाभदायक कार्यों के लिए किया जाता है ।
नाभिकीय रिएक्टर से कई प्रकार के विकिरण उत्सर्जित होते हैं, जो रिएक्टर के समीप कार्य करने वालों को नुकसान पहुँचा सकते है, इसलिए रिएक्टरों के चारों ओर कंकरीट की मोटी-मोटी दीवारें बनाई जाती हैं, जिन्हें परिरक्षक कहा जाता है ।
परमाणु रिएक्टर का उपयोग मूल रूप से विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है । नाभिकीय रिएक्टर में ईंधन की कम मात्रा से ही अपार ऊष्मा का उत्पादन किया जा सकता है, जहाँ 1,000 बाट के थर्मल पावर सयन्त्र को चलाने के लिए 300 लाख टन कोयले की आवश्यकता होती है, वहीं इतना ही विद्युत उत्पादन नाभिकीय रिएक्टर में मात्र 30 टन यूरेनियम से सम्भव है रिएक्टर से प्राप्त विद्युत ऊर्जा का उपयोग विभिन्न उद्योगों में किया जाता है ।
इसके अतिरिक्त, परमाणु रिएक्टरों का उपयोग शूटोनियम उत्पादन के लिए भी किया जाता है । यह यूरेनियम से भी बेहतर बिखण्डनीय पदार्थ है । नाभिकीय रिएक्टर में श्रृंखला अभिक्रिया के अन्तर्गत यूरेनियम पर तीव्रगामी न्यूट्रनों की बौछार करके उसे जूटोनियम में बदला जाता है ।
परमाणु रिएक्टरों में अनेक तत्वों के कृत्रिम समस्थानिक (आइसोटोप) भी बनाए जाते हैं । इन समस्थानिकों का उपयोग चिकित्सा, कृषि, जीव विज्ञान तथा अन्य वैज्ञानिक शोधो में किया जाता है । आज विश्व के सभी विकसित व विकासशील देश बिजली उत्पादन हेतु परमाणु रिएक्टरों के निर्माण में दिलचस्पी ले रहे हैं ।
वर्ष 2011 में जापान के फुकुशिमा में हुए परमाणु हादसे के बावजूद दुनियाभर में परमाणु ऊर्जा को ऊर्जा आपूर्ति का महत्वपूर्ण विकल्प माना जा महा है । अमेरिका के राष्ट्रपति श्री बराक ओबामा ने 30 वर्ष बाद वर्ष में पहली बार नया रिएक्टर बनाने की अनुमति दी है ।
चीन को प्रत्येक वर्ष 60 हजार मेगावाट विद्युत हेतु नए रिएक्टरों का निर्माण करना पड रहा है । विद्युत हेतु अब तक कोयले पर निर्भर रहने वाला देश पोलैण्ड भी परमाणु ऊर्जा की ओर आकर्षित होने लगा है । यूरोपीय देशों में क्रास में सर्वाधिक परमाणु रिएक्टर हैं ।
परमाणु राजनीतिज्ञ रेबेका हार्म्स के अनुसार, एक परमाणु रिएक्टर के निर्माण में लगभग Rs.450 अरब की लागत अती है । बर्लिन के पर्यावरण वैज्ञानिक लुत्स मेत्स का कहना है कि आज भी न तो पुराने परमाणु रिएक्टरों को नष्ट करने की तकनीक ही विकसित हो पाई है और न तो परमाणु कचरे को सुरक्षित रखने का तरीका ही खोजा जा सका है ।
बावजूद इसके वर्तमान समय में विश्व के 30 देशों में साढे चार सौ के आस-पास साक्रेय परमाणु रिएक्टर है । भारत में परमाणु उर्जा के क्षेत्र में अनुसन्धान, विकास तथा इसके अनुप्रयोग के उद्देश्य हेतु 10 अगस्त, 1948 को डॉ. होमी जहाँगीर भाभा की अध्यक्षता में परमाणु उर्जा आयोग (एईसी) की स्थापना की गई । इस आयोग ने अपनी नीतियों के क्रियान्वयन के लिए वर्ष 1954 में परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना की ।
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इस विभाग के अन्तर्गत कई शोध संस्थान हैं, साथ ही आवश्यकता पढ़ने पर यह अन्य शोध संस्थानों से भी सहयोग लेता है । वर्ष 1956 में मुम्बई के निकट परमाणु ऊर्जा के उत्पादन के उद्देश्य से भारत में ‘अप्सरा’ नामक प्रथम परमाणु शोध रिएक्टर बनाया गया था । वर्तमान में यहाँ जरलीना, ध्रुव तथा साइरस नामक तीन अन्य रिएक्टर कार्यरत हैं ।
भारत में वर्तमान समय में 21 परमाणु रिएक्टर प्रचालनरत हैं एवं कई रिएक्टरों का निर्माण कार्य भी चल रहा है । 21 प्रचालित रिएक्टरों में 2 ब्बॉयलिंग वाटर रिएक्टर, 18 प्रेसराइज्ड हैवीवाटर रिएक्टर एवं 1 प्रेसराइज्ड लाइट रिएक्टर हैं, जिनमें लगभग 3,900 मेगावाट विद्युत पैदा होती है, जो देश में कुल उत्पादित विद्युत का 3% है ।
वर्ष 1957 में ट्रॉम्बे में परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान की स्थापना की गई, जिसे अब भाभा परमाणु अनुसन्धान केन्द्र (BARC) कहा जाता है । नाभिकीय विखण्डन की अभिक्रियाओं में श्रृंखला अभिक्रिया को निरन्तर जारी रखने के लिए न्यूट्रान-मन्दक के रूप में भारी जल का उत्पादन वर्ष 1962 में प्रारम्भ हुआ । भारत अब भारी जल के उत्पादन में न सिर्फ आत्मनिर्भर है, बल्कि अन्य देशों को भी इसका निर्यात कर रहा है ।
भारत में परमाणु विद्युत सयन्त्रों के निर्माण तथा रख-रखाव का काम सम्मालने वाले भारतीय नाभिकीय ऊर्जा निगम लिमिटेड ने वर्ष 2020 तक परमाणु विद्युत उत्पादन की क्षमता को 20,000 मेगावाट तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा है । परमाणु ऊर्जा के बिकास के लिए भारत समय-समय पर अन्य देशों से भी सहयोग लेता रहा है ।
वर्ष 1981 में राजस्थान में कोटा के निकट रावतभाटा में भारत के दूसरे परमाणु विद्युत सयन्त्र ‘राजस्थान परमाणु विद्युत सयन्त्र’ ने कार्य करना शुरू किया । इसके बाद वर्ष 1983 में परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड की स्थापना की गई । इसी वर्ष 23 जुलाई को मद्रास (अब चेन्नई) के निकट कलपक्कम में भारत के तीसरे परमाणु विकृत सयन्त्र की स्थापना की गई ।
वर्ष 1987 में परमाणु कार्यक्रमों के विस्तार के लिए भारतीय परमाणु विद्युत निगम लिमिटेड की स्थापना की गई । बढती जनसंख्या हेतु ऊर्जा की आपूर्ति करना भारत के लिए एक समस्या का रूप लेता जा रहा है । आने बाले समय में देश में ऊर्जा की माँग 5.2% की वृद्धि दर से बढने का अनुमान है ।
बढती जनसंख्या, फलती-फूलती अर्थव्यवस्था और अच्छे जीवन-स्तर की चाह के कारण प्राथमिक उर्जा खपत में भी वृद्धि हुई है । ऐसी स्थिति में भारत के लिए परमाणु ऊर्जा को विशेष महत्व देना अनिवार्य हो गया है भारत में ऊर्जा आपूर्ति में वृद्धि और स्रोतों का दोहन ऊर्जा की बढती माँग के अनुरूप नहीं हो रहा है, इसलिए हमारा देश ऊर्जा सकट की स्थिति का सामना कर रहा है ।
भारत को अपनी बढती ऊर्जा की आवश्यकताओं के लिए विभिन्न देशों से तेल एवं अन्य संसाधनों का आयात करना पड़ता है यद्यपि पिछले कुछ वर्षों से भारत में ऊर्जा के गैर-पारम्परिक स्रोतों को भी ऊर्जा उत्पादन के लिए विशेष महत्व दिया जा रहा है, फिर भी ऊर्जा की कुल आवश्यकता के दृष्टिकोण से परमाणु ऊर्जा का उत्पादन समय की माँग है ।
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