जवाहरलाल नेहरू की विदेश नीति
पंडित जवाहरलाल नेहरू की पंचशील और विदेश नीति पर शशि थरूर के विचार-
जवाहरलाल
नेहरु ने भारत की विदेश नीति को एक ऐसे अवसर के रुप में देखा जिसमें वे
अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रुप में स्थापित कर
सकें.
उनकी विदेश नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा था
उनका पंचशील का सिद्धांत जिसमें राष्ट्रीय संप्रभुता बनाए रखना और दूसरे
राष्ट्र के मामलों में दखल न देने जैसे पाँच महत्वपूर्ण शांतिसिद्धांत
शामिल थे.
भारत के प्रधानमंत्री के रुप में वह
चाहते थे कि भारत दोनों महाशक्तियों में से किसी के भी दबाव में न रहे और
भारत की अपनी एक स्वतंत्र आवाज़ और पहचान हो.
उन्होंने मुद्दों के आधार पर किसी भी महाशक्ति की आलोचना करने का उदारहण भी रखा.
यह
महत्वपूर्ण था क्योंकि तब तक दुनिया के बहुत से देशों को भारत की आज़ादी
पर भरोसा नहीं था और वे सोचते थे कि यह कोई ब्रितानी चाल है और भारत पर
असली नियंत्रण तो ब्रिटेन का ही रहेगा.
नेहरु के
बयानों और वक्तव्यों ने उन देशों को विश्वास दिलाया कि भारत वास्तव में
स्वतंत्र राष्ट्र है और अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपनी एक राय रखता है.
नेहरु की विदेश नीति में दूसरा महत्वपूर्ण बिंदू गुट निरपेक्षता का था.
भारत ने स्पष्ट रुप से कहा कि वह दो महाशक्तियों के बीच झगड़े में नहीं पड़ना चाहता और स्वतंत्र रहना चाहता है.
हालांकि
इस सिंद्धांत पर नेहरु ने 50 के दशक के शुरुआत में ही अमल शुरु कर दिया था
लेकिन "गुट निरपेक्षता" शब्द उनके राजनीतिक जीवन के बाद के हिस्से में
1961 के क़रीब सामने आया.
कमज़ोरियाँ
जवाहरलाल नेहरु की विदेश नीति की दो बड़ी कमज़ोरियाँ थीं.
| |
पंडित नेहरू ने पंचशील और गुट निरपेक्ष जैसे महत्त्वपूर्ण सिद्धांत सामने रखे |
एक तो यह नीति सिद्धांतों पर आधारित थी इसलिए यह पश्चिमी देशों को बहुत बार जननीतियों के नैतिक प्रचार की तरह लगती थी.
इसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को मित्र नहीं मिल रहे थे और कोई भी भारत से सीधी तरह से जुड़ नहीं रहा था.
दूसरी
कमज़ोरी यह थी कि सिंद्धातों पर आधारित होने के कारण इस नीति का संबंध
राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास के साथ सीधी तरह नहीं जुड़ा था.
इसके कारण यह विदेश नीति भारत की जनता के आर्थिक विकास में कोई योगदान नहीं दे सकी.
उदाहरण
के लिए भारत में उन दिनों कोई विदेशी निवेश नहीं हुआ और 1962 में चीन से
मिली पराजय से ज़ाहिर हो गया कि सुरक्षा के मामले में भारत तैयार नहीं था.
आज की नीति पर प्रभाव
नेहरु की नीति की सबसे बड़ी खूबी थी आत्मसम्मान की रक्षा.
| |
पंडित नेहरू की नीति की ख़ूबी आत्मरक्षा की थी |
एक नए देश के लिए यह कहना आसान नहीं था कि हम जो हैं सो हैं, हम किसी का दबाव स्वीकार नहीं कर सकते. यह महत्वपूर्ण था.
इसका असर बाद की सभी सरकारों पर बना रहा चाहे वो किसी भी पार्टी या विचारधारा की क्यों न रही हो.
अब बहुत कुछ बदल गया है क्योंकि दुनिया ही बदल गई है.
इस समय गुट निरपेक्षता ही महत्वहीन हो गया है क्योंकि गुट में रहने का विकल्प ही ख़त्म हो गया है.
रणनीति
की दृष्टि से भी दुनिया बहुत बदली है. आज आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्द में
भारत बहुत से ऐसे देशों के साथ खड़ा हुआ है जिनको वह नेहरु के ज़माने में
आलोचक हुआ करता था.
हालांकि दो अलग अलग समय में एक ही नीति को परखना ठीक भी नहीं है.
पंडित जवाहरलाल नेहरू की पंचशील और विदेश नीति पर शशि थरूर के विचार-
जवाहरलाल
नेहरु ने भारत की विदेश नीति को एक ऐसे अवसर के रुप में देखा जिसमें वे
अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रुप में स्थापित कर
सकें.
उनकी विदेश नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा था
उनका पंचशील का सिद्धांत जिसमें राष्ट्रीय संप्रभुता बनाए रखना और दूसरे
राष्ट्र के मामलों में दखल न देने जैसे पाँच महत्वपूर्ण शांतिसिद्धांत
शामिल थे.
भारत के प्रधानमंत्री के रुप में वह
चाहते थे कि भारत दोनों महाशक्तियों में से किसी के भी दबाव में न रहे और
भारत की अपनी एक स्वतंत्र आवाज़ और पहचान हो.
उन्होंने मुद्दों के आधार पर किसी भी महाशक्ति की आलोचना करने का उदारहण भी रखा.
यह
महत्वपूर्ण था क्योंकि तब तक दुनिया के बहुत से देशों को भारत की आज़ादी
पर भरोसा नहीं था और वे सोचते थे कि यह कोई ब्रितानी चाल है और भारत पर
असली नियंत्रण तो ब्रिटेन का ही रहेगा.
नेहरु के
बयानों और वक्तव्यों ने उन देशों को विश्वास दिलाया कि भारत वास्तव में
स्वतंत्र राष्ट्र है और अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपनी एक राय रखता है.
नेहरु की विदेश नीति में दूसरा महत्वपूर्ण बिंदू गुट निरपेक्षता का था.
भारत ने स्पष्ट रुप से कहा कि वह दो महाशक्तियों के बीच झगड़े में नहीं पड़ना चाहता और स्वतंत्र रहना चाहता है.
हालांकि
इस सिंद्धांत पर नेहरु ने 50 के दशक के शुरुआत में ही अमल शुरु कर दिया था
लेकिन "गुट निरपेक्षता" शब्द उनके राजनीतिक जीवन के बाद के हिस्से में
1961 के क़रीब सामने आया.
कमज़ोरियाँ
जवाहरलाल नेहरु की विदेश नीति की दो बड़ी कमज़ोरियाँ थीं.
| |
पंडित नेहरू ने पंचशील और गुट निरपेक्ष जैसे महत्त्वपूर्ण सिद्धांत सामने रखे |
एक तो यह नीति सिद्धांतों पर आधारित थी इसलिए यह पश्चिमी देशों को बहुत बार जननीतियों के नैतिक प्रचार की तरह लगती थी.
इसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को मित्र नहीं मिल रहे थे और कोई भी भारत से सीधी तरह से जुड़ नहीं रहा था.
दूसरी
कमज़ोरी यह थी कि सिंद्धातों पर आधारित होने के कारण इस नीति का संबंध
राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास के साथ सीधी तरह नहीं जुड़ा था.
इसके कारण यह विदेश नीति भारत की जनता के आर्थिक विकास में कोई योगदान नहीं दे सकी.
उदाहरण
के लिए भारत में उन दिनों कोई विदेशी निवेश नहीं हुआ और 1962 में चीन से
मिली पराजय से ज़ाहिर हो गया कि सुरक्षा के मामले में भारत तैयार नहीं था.
आज की नीति पर प्रभाव
नेहरु की नीति की सबसे बड़ी खूबी थी आत्मसम्मान की रक्षा.
| |
पंडित नेहरू की नीति की ख़ूबी आत्मरक्षा की थी |
एक नए देश के लिए यह कहना आसान नहीं था कि हम जो हैं सो हैं, हम किसी का दबाव स्वीकार नहीं कर सकते. यह महत्वपूर्ण था.
इसका असर बाद की सभी सरकारों पर बना रहा चाहे वो किसी भी पार्टी या विचारधारा की क्यों न रही हो.
अब बहुत कुछ बदल गया है क्योंकि दुनिया ही बदल गई है.
इस समय गुट निरपेक्षता ही महत्वहीन हो गया है क्योंकि गुट में रहने का विकल्प ही ख़त्म हो गया है.
रणनीति
की दृष्टि से भी दुनिया बहुत बदली है. आज आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्द में
भारत बहुत से ऐसे देशों के साथ खड़ा हुआ है जिनको वह नेहरु के ज़माने में
आलोचक हुआ करता था.
हालांकि दो अलग अलग समय में एक ही नीति को परखना ठीक भी नहीं है.
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