पावका नः सरस्वती का अर्थ
मधुच्छन्दसूके तीसरे सूक्तकीवे तीन ॠचाएँ जिनमें सरस्वतीका .आवाहन किया गया है इस प्रकार हैं-
पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती ।
यज्ञं वष्टु धियावसुः ||
चोदयित्री सूनृतानां चेतन्ती सुमतीनाम् ।.
यज्ञं दुधे सरस्वती ।|
महो अर्ण: सरस्वती प्र चेतयति केतुना ।
धियो विश्वा वि राजति ।।
प्रथम दो ॠचाओंका आशय पर्याप्त स्पष्ट हो जाता है जब हम यह जान लेते हैं कि सरस्वती सत्य की वह शक्ति है जिसे हम अन्त:प्रेरणा कहते है । सत्यसे आनेवली अन्त:प्रेरणा हमें संपूर्ण मिथ्यात्वसे छुड़ाकर पवित्र कर देती है ( पावका ), क्योंकि भारतीय विचारके अनुसार सब पाप केवल मिथ्यापन ही है, मिथ्या रूपसे प्रेरित भाव, मिथ्या रूपसे संचालित संकल्प और क्रिया ही है । जीवनका और हमारे अपने-आपका केंद्रभूत विचार, जिसको लेकर हम चलते हैं, एक मिथ्यात्व है और वह अन्य सबको भी मिथ्यारूप दे देता है । सत्य हमारे अंदर आता है एक प्रकाश, एक वाणीके रूपमें, और वह आकर हमारे विचारको बदलनेके लिये बाधित कर देता है, हमारे अपने विषयमें और जो कुछ हमारे चारों ओर है उसके विषयमें एक नवीन विवेकदृष्टि ला देता है । विचारका सत्य दर्शन ( Vision) के सत्यको रचता है और .दर्शन का सत्य हमारे अंदर सत्ताके सत्यका निर्माण करता है और सत्ताके सत्य ( सत्यम् ) मेंसे स्वभावत: भावनाका, संकल्पका और क्रियाका सत्य. प्रवाहित होता है. । यह है वास्तवमें वेदका केंद्रभूत विचार ।
सरस्वती, अन्त:प्रेरणा, प्रकाशमय समृद्धताओंसे भरपूर हैं ( वाजेभि-वार्जिनिवती ), विचारकी संपत्तिसे ऐश्वर्यवती ( धियावसु:) है । वह यज्ञको धारण करती है, देवके प्रति दी गयी मर्त्य जीवकी क्रियाओंकी हविको धारण करती है, एक तो इस प्रकार कि वह मनुष्यकी चेतनाको जागृत कर देती
145
है (चेतन्ती सुमतीनाम् ), जिससे वह चेतना भावना की समुचित अवस्थाओंको और विचारकी समुचित गतियोंको पा लेती है, जो अवस्थाएँ और गतियां उस .सत्ये अनुरूप होती हैं जहांसे सरस्वती अपने प्रकाशोंको उँडेला करती है और दूसरे इस प्रकार कि वह मनुष्य्की इस चेतनाके अंदर उन सत्योंके उदय होनेको प्रेरित कर देती है ( चोदीयत्री सूनृतानांम्), जो. सत्य कि वैदिक ऋषियोंके अनुसार जीवन और सत्ताको असत्य, निर्बलता और सीमा से छुड़ा देते हैं और उसके लिये परम सुखके द्वारोंको खोल देते हैं ।
इस सतत जागरण और प्रेरण (चेतन और ) के द्वारा जो 'केतु' (अर्थात् बोधन ) इस एक शब्दमें संगृहीत हैं--जिस 'केतु'को वस्तुओंके मिथ्था मर्त्यदर्शनसे भेद करनेके लिये 'दैव्य-केतु' (दिव्य बोधन ) करके प्राय: कहा गया है,--सरस्वती मनुष्यकी क्रियाशील चेतनाके अंदर बड़ी भारी बाढ़को या महान् गतिको, स्वयं सत्य-चेतनाको ही, ला देती है और इससे वह हमारे सब विचारोंको प्रकाशमान कर देती है (तीसरा मंत्र ) । हमें यह अवश्य स्मरण रखना चाहिये कि वैदिक ऋषियोंकी यह सत्य-चेतना एक अति- मानस (मनसे परेका, मनोतीत ) स्तर है, जीवनकी पहाड़ीकी सतहपर है (अद्रे: सानु: ) जो हमारी सामान्य पहुँचसे परे है और जिसपर हमें बड़ी कठिनतासे चढ़कर पहुँचना होता है । यह हमारी जागृत सत्ताका भाग नहीं है, यह हमसे छिपा हुआ अति-चेतनकी निद्रामें रहता है । तो अब हम समझ सकते हैं कि मधुच्छंद्स्का क्या आशय है, जब वह कहता है कि सरस्वती अन्त:प्रेरणाकी सतत क्रियाके द्वारा सत्यको हमारे विचारोंमें चेतनाके प्रति जागृत कर देती है ।
परंतु जहां तक केवल व्याकरणके रूपका संबंध है, इस पंक्तिका इसकी अपेक्षा बिलकुल भिन्न अनुवाद भी किया जा सकता है; हम ''महो अर्ण:'' को सरस्वतीके समानाधिकरण मानकर इस ऋचाका यह अर्थ कर सकते हैं कि ''सरस्वती जो बड़ी भारी नदी है, बोधन (केतु ) के द्वारा हमें ज्ञानके प्रति जागृत करती है और हमारे सब विचारोंमें प्रकाशित होती है ।'' यदि हम यहां "बड़ी भारी नदी" इस मुहावरेको भौतिक अर्थमें ले और इससे पंजाबकी भौतिक नदी समझें, जैसा कि सायण समझता प्रतीत होता है, तो यहाँ हमें विचार और शब्द-प्रयोगकी एक बड़ी असंगति दिखायी पड़ने लगेगी, जो किसी भयंकर स्वप्न या पागलखानेके अतिरिक्त कहीं संभव नहीं हो सकती । यर यह कल्पनाकी जा सकती है कि इसका अभिप्राय है, अन्तःप्रेरणाका बड़ा भारी प्रवाह या समुद्र और यह कि यहां सत्य-चेतनाके महान् समुद्र कोई संकेत नहीं है | तो भी, दूसरे ऐसे स्थालोंमें देवातओंके
146
संबंधमें यह संकेत बार-बार आता है कि वे महान् प्रवाह या समुदकी विशाल शक्तिके द्वारा कार्य करते है (मह्ना महतो अर्णवस्य 10-67-12), जहां कि सरस्वतीका कोई उल्लेख नहीं होती और यह असंभव होता है कि वहाँ उससे अभिप्राय हो । यह सच है कि वैदिक लेखोंमें सरस्वतीके विषयमें यह कहा गया है कि वह 'इन्द्र' की गुप्त आत्मशक्ति है (यहाँ हम यह भी देख सकते हैं कि यह एक ऐसा प्रयोग है जो कि अर्थसून्य हो जाता है, यदि सरस्वती केवल एक उत्तरकी नदी हो और इन्द्र आकाशका .देवता हो, पर तब इसका एक बड़ा गंभीर और हृदयग्राही अर्थ हो जाता है यदि इन्द्र हो प्रकाशयुक्त मन और. सरस्वती हो वह अन्त:प्रेरणा जों अतिमानस सत्यके गुह्य स्तरसे निकलकर आती है ) । परंतु इससे यह नहीं हो सकता कि सरस्वतीको अन्य देवोंकी अपेक्षा इतना महत्त्वपूर्ण स्थान दे दिया जाय जितना कि तब उसे मिल जाता है यदि '' मह्ना महतो अर्णवस्य''का यह अनुवाद करें कि ''सरस्वतीकी महानताके द्वारा" । यह तो बार-बार प्रतिपादित किया गया है कि देवता सत्य की शक्तिके द्वारा 'ऋतेन', कार्य करते हैं, पर सरस्वती तो सत्यके देवताओंमेंसे केवल एक है, यह भी नहीं कि वह उनमेंसे सबसे अघिक महत्त्वपूर्ण या व्यापक हो ।. इसलिये 'महो अर्ण:'का जो अर्थ मैंने किया है वही एकमात्र ऐसा अर्थ है जो वेदकके सामान्य विचारके साथ और दूसरे संदर्भोंमें जो इस वाक्यांशका प्रयोग हुआ है उसके साथ संगीत रखता है ।
तो चाहे हम यह समझें कि यह बड़ा भारी प्रवाह, ''महो अर्ण:", स्वयं सरस्वती ही है और चाहे हम इसे सत्यका समुद्र समझें, यह एक निश्च-यात्मक तथ्य है, जो इस संदर्भके द्वारा असंदिग्थ रूपमें स्थापित हो जाता है कि वैदिक ॠषि जलके, नदीके या समुद्रके रूपकको आलंकारिक अर्थमें और एक आध्यात्मिक प्रतीकके रूपमें प्रयुक्त करते थे । तो इसको लेकर हम आगे विचार प्रारम्भ कर सकते हैं और देख सकते हैं कि यह हमें कहाँतक ले जाता है । प्रथम तो हम यह देखते हैं कि हिंदू लेखोंमें, वेदमें, पुराण में और दार्शनिक तर्को तथा दृष्टांतों तकमें सत्ताको स्वयं एक समुद्रके रूपमें वर्णित किया गया है । वेद दो समुद्रोंका वर्णन करता है, उपरले जल और निचले जल । वे समुद्र हैं--तो अवचेतनका जो अंधकारमय और अभिव्यक्ति-रहित है और दूसरा अतिचेतनका जो प्रकाशमय है और नित्य अभिव्यक्त है, पर है मानवमनसे परे ।
ॠषि वामदेव चतुर्थ मण्डलके अंतिम सूक्तमें इन दो समुद्रोंका वर्णन करता है | वह कहता है कि एक मधुमय लहर समुद्रसे ऊपरको आरोहण
Pavka nah sarswati meaning in gujarati
Atithi devo bhava meaning in gujarati
पावका नः सरस्वती का अर्थ है हम अपनी बुद्धि से कामना पूरी करें। सही है या ग़लत
पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती ।
यज्ञं वष्टु धियावसुः ||
आप यहाँ पर gk, question answers, general knowledge, सामान्य ज्ञान, questions in hindi, notes in hindi, pdf in hindi आदि विषय पर अपने जवाब दे सकते हैं।
नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें
Culture
Current affairs
International Relations
Security and Defence
Social Issues
English Antonyms
English Language
English Related Words
English Vocabulary
Ethics and Values
Geography
Geography - india
Geography -physical
Geography-world
River
Gk
GK in Hindi (Samanya Gyan)
Hindi language
History
History - ancient
History - medieval
History - modern
History-world
Age
Aptitude- Ratio
Aptitude-hindi
Aptitude-Number System
Aptitude-speed and distance
Aptitude-Time and works
Area
Art and Culture
Average
Decimal
Geometry
Interest
L.C.M.and H.C.F
Mixture
Number systems
Partnership
Percentage
Pipe and Tanki
Profit and loss
Ratio
Series
Simplification
Time and distance
Train
Trigonometry
Volume
Work and time
Biology
Chemistry
Science
Science and Technology
Chattishgarh
Delhi
Gujarat
Haryana
Jharkhand
Jharkhand GK
Madhya Pradesh
Maharashtra
Rajasthan
States
Uttar Pradesh
Uttarakhand
Bihar
Computer Knowledge
Economy
Indian culture
Physics
Polity
इस टॉपिक पर कोई भी जवाब प्राप्त नहीं हुए हैं क्योंकि यह हाल ही में जोड़ा गया है। आप इस पर कमेन्ट कर चर्चा की शुरुआत कर सकते हैं।