Karnataka Ka Third Yudhh कर्नाटक का तृतीय युद्ध

कर्नाटक का तृतीय युद्ध

Pradeep Chawla on 12-05-2019



कर्नाटक युद्ध तृतीय

























(1749-1754 ई.) के ठीक दो साल बाद ही कर्नाटक का तृतीय युद्ध आरम्भ हो गया। यह युद्ध 1756-1763 ई. तक चला। इस समय में सप्तवर्षीय युद्ध आरम्भ हो गया था, और तथा में फिर से ठन गई थी। इसके फलस्वरूप में भी और में लड़ाई शुरू हो गई। इस बार लड़ाई की सीमा लांघ कर तक में फैल गई।







फ़्राँसीसियों की पराजय



कर्नाटक का तीसरा युद्ध सप्तवर्षीय युद्ध का ही एक महत्त्वपूर्ण अंश

माना जाता है। सप्तवर्षीय युद्ध में फ़्राँस ने आस्ट्रिया को तथा

इंग्लैण्ड ने प्रशा को समर्थन देना शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप भारत में

फ़्राँसीसी और अंग्रेज़ी सेना में युद्ध प्रारम्भ हो गया। 1757 ई. में

फ़्राँसीसी सरकार ने काउण्ट लाली को इस संघर्ष से निपटने के लिए भारत भेजा।

दूसरी ओर बंगाल पर क़ब्ज़ा करके अपार धन अर्जित कर लेने के कारण अंग्रेज़

दक्कन को जीत पाने में सफल रहे। लाली ने 1758 ई. में ‘ को अपने अधिकार में ले लिया, परन्तु उसका पर अधिकार करने का सपना पूरा नहीं हो सका। इस कारण उसकी व्यक्तिगत एवं फ़्राँस की छवि पर बुरा असर पड़ा। लाली ने को

से बुलवाया, ताकि वह इस युद्ध में अपनी स्थिति को मज़बूत कर सके, परन्तु

1760 ई. में अंग्रेज़ी सेना ने सर आयरकूट के नेतृत्व में वाडिवाश की लड़ाई

में फ़्राँसीसियों को बुरी तरह से शिकस्त दी। बुसी को अंग्रेज़ी सेना ने

क़ैद कर लिया। 1761 ई. में ही अंग्रेज़ों ने फ़्राँसीसियों से को छीन लिया। इसके पश्चात् जिन्जी तथा माही पर भी अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया।



निर्णायक युद्ध



फ़्राँसीसियों के लिए निर्णायक युद्ध था, क्योंकि फ़्राँसीसियों की समझ में यह बात पूर्ण रूप से आ चुकी थी कि, वे कम से कम

में ब्रिटिश कम्पनी के रहते सफल नहीं हो सकते, चाहे वह उत्तर-पूर्व हो या

पश्चिम या फिर दक्षिण भारत। 1763 ई. में सम्पन्न हुई पेरिस सन्धि के द्वारा

अंग्रेज़ों ने चन्द्रनगर को छोड़कर शेष अन्य प्रदेश, जो फ़्राँसीसियों के

अधिकार में 1749 ई. तक थे, वापस कर दिये और ये क्षेत्र भारत के स्वतंत्र

होने तक इनके पास बने रहे।







फ़्राँसीसी पराजय के कारण



फ़्राँसीसियों की पराजय के अनेक कारण गिनाये जा सकते हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-



  1. अत्यधिक महत्वाकांक्षा के कारण में अपनी प्राकृतिक सीमा , बेल्जियम तथा तक बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे, और भारत के प्रति वे उतने गम्भीर नहीं थे।
  2. दोनों कम्पनियों में गठन तथा संरक्षण की दृष्टि से काफ़ी अन्तर था।

    फ़्राँसीसी कम्पनी जहाँ पूर्ण रूप से राज्य पर निर्भर थी, वहीं ब्रिटिश

    कम्पनी व्यक्तिगत स्तर पर कार्य कर रही थी।
  3. फ़्राँसीसी नौसेना अंग्रेज़ी नौसेना की तुलना में काफ़ी कमज़ोर थी।
  4. भारत में बंगाल पर अधिकार कर कम्पनी ने अपनी स्थिति को आर्थिक रूप से काफ़ी मज़बूत कर लिया था।
  5. दूसरी ओर फ़्राँसीसियों को से उतना लाभ कदापि नहीं हुआ, जितना अंग्रेज़ों को बंगाल में हुआ।
  6. अल्फ़्रेड लायल ने फ़्राँस की असफलता के लिए फ़्राँसीसी व्यवस्था के खोखलेपन को दोषी ठहराया है। उसके अनुसार, की वापसी,

    तथा डंडास की भूलें, लाली की अदम्यता इत्यादि से कहीं अधिक लुई पन्द्रहवें

    की भ्रान्तिपूर्ण नीति तथा उसके अक्षम मंत्री फ़्राँस की असफलता के लिए

    उत्तरदायी थे।


  • तथा द्वारा फ़्राँसीसी सेना का नेतृत्व उच्च स्तर का नहीं था। जबकि ,

    साण्डर्स तथा लॉरेन्स का नेतृत्व उच्च श्रेणी का था। डूप्ले के

    उत्तरदायित्व को भी यदि फ़्राँसीसियों की पराजय का कारण माना जाए, तो

    अतिश्योक्ति नहीं होगी। वह राजनीतिक षड्यंत्र में इतना उलझ गया था, कि उसे

    वहाँ से वापस लौटना भी काफ़ी कठिन मालूम हो रहा था और इन सबका सम्मिलित

    प्रभाव फ़्राँसीसियों के भारतीय व्यापार पर पड़ा।

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Comments Neha dhakad on 26-07-2019

Karnataka ke teeno yudhon ke bare main jankari


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